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Tulsidas Rachit Uttar Kand उत्तरकांड व्याख्या – भाग 13
Tulsidas Rachit Ramcharitmanas Uttar Kand in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस के “उत्तरकाण्ड” के दोहों और चौपाईयों की व्याख्या श्रृंखला में आज फिर से हम आगे के पदों का अध्ययन करने जा रहे है। अच्छा तो शुरू करते है :
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Uttar Kand Saar in Hindi रामचरितमानस उत्तरकांड व्याख्या
Tulsidas Krit Ramcharitmanas Uttar Kand Saar Part 13 in Hindi : दोस्तों ! उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों एवं चौपाइयों की विस्तृत व्याख्या इस तरह से है :
वानरों और निषाद की विदाई
दोहा :
Tulsidas Rachit Uttar Kand Ke Doho Ki Vyakhay in Hindi
अब गृह जाहु सखा सब भजेहु मोहि दृढ़ नेम।
सदा सर्बगत सर्बहित जानि करेहु अति प्रेम।।16।।
व्याख्या :
हे सखाओं ! अब सब लोग घर पर चले जाओ। वहाँ दृढ़ नियम से मुझे भजते रहना। मुझे सदा सर्वव्यापक और सबका कल्याणकारी जानकर अत्यंत प्रेम करना।
चौपाई :
Tulsidas Rachit Uttar Kand Ki Chaupaiyon Ki Vyakhya in Hindi
सुनि प्रभु बचन मगन सब भए। को हम कहाँ बिसरि तन गए।।
एकटक रहे जोरि कर आगे। सकहिं न कछु कहि अति अनुरागे।।1।।
व्याख्या :
प्रभु जी के वचन सुनकर सब प्रेम में मग्न हो गये। हम कौन हैं और कहां हैं ? वे यह भूल गये। यहां तक की शरीर की भी सुध-बुध भूल गये। वे हाथ जोड़कर एकटक देखते हुये आगे खड़े ही रह गये। अत्यंत प्रेम के कारण वे कुछ कह नहीं सके।
चौपाई :
Tulsidas Rachit Uttar Kand Vanro Aur Nishad Ki Vidai in Hindi
परम प्रेम तिन्ह कर प्रभु देखा। कहा बिबिधि बिधि ग्यान बिसेषा।।
प्रभु सन्मुख कछु कहन न पारहिं। पुनि पुनि चरन सरोज निहारहिं।2।।
व्याख्या :
प्रभु जी ने उनके अत्यंत प्रेम को देखा, तब उन्होंने अनेक प्रकार के और विशेष ज्ञान का उपदेश दिया। प्रभु के सम्मुख वे कुछ नहीं कह सकते। बार-बार वे प्रभु जी के चरण कमलों को निहारते हैं।
चौपाई :
Tulsidas Rachit Uttar Kand Vanro Aur Nishad Ki Vidai Vyakhya in Hindi
तब प्रभु भूषन बसन मगाए। नाना रंग अनूप सुहाए।।
सुग्रीवहि प्रथमहिं पहिराए। बसन भरत निज हाथ बनाए।।3।।
व्याख्या :
तब प्रभु जी ने गहने और वस्त्र मंगाये, जो अनेक रंगों के और अनुपम सुंदर थे। भरत ने पहले सुग्रीव को अपने हाथ से अच्छी तरह सवांरकर पहनाया।
चौपाई :
Ramcharitmanas Uttar Kand Vanro Aur Nishad Ki Vidai in Hindi
प्रभु प्रेरित लछिमन पहिराए। लंकापति रघुपति मन भाए।।
अंगद बैठ रहा नहिं डोला। प्रीति देखि प्रभु ताहि न बोला।।4।।
व्याख्या :
प्रभु जी की प्रेरणा से लक्ष्मण जी ने विभीषण को भूषण वस्त्र पहनाये, जो श्रीराम जी को बहुत प्रिय लगे। अंगद बैठे ही रहे। वे अपनी जगह से नहीं हिले-डुले। उनकी प्रीति देखकर, श्रीराम जी ने उन्हें नहीं बुलाया।
वानरों और निषाद की विदाई
दोहा :
Ramcharitmanas Uttar Kand Vanro Aur Nishad Ki Vidai Dohe in Hindi
जामवंत नीलादि सब पहिराए रघुनाथ।
हियँ धरि राम रूप सब चले नाइ पद माथ।।17 क।।
व्याख्या :
श्रीराम जी जामवंत, नील आदि को भूषण वस्त्र स्वयं पहनाये, तब सभी श्रीराम जी के रूप को हृदय में धारण करके, उनके चरणों में सिर नवा कर चले।
चौपाई :
Ramcharitmanas Uttar Kand Vanro Aur Nishad Ki Vidai Chopai in Hindi
तब अंगद उठि नाइ सिरु सजल नयन कर जोरि।
अति बिनीत बोलेउ बचन मनहुँ प्रेम रसबोरि।।17 ख।।
व्याख्या :
तुलसीदास जी आगे कहते है कि तब अंगद उठके सिर नवाकर, सजल नेत्रों से हाथ जोड़कर, अति विनीत एवं प्रेम के रस में डूबे हुये वचन बोले।
चौपाई :
Uttar Kand Vanro Aur Nishad Ki Vidai Chopai Arth in Hindi
सुनु सर्बग्य कृपा सुख सिंधो। दीन दयाकर आरत बंधो।।
मरती बेर नाथ मोहि बाली। गयउ तुम्हारेहि कोंछें घाली।।1।।
व्याख्या :
हे सर्वज्ञ ! हे कृपा और सुख के समुद्र ! दीनों पर दया करने वाले एवं दुखियों के बंधू ! हे नाथ ! मरते समय बाली मुझे आपकी ही गोद में डाल गये थे।
चौपाई :
Tulsidas Krit Uttar Kand Vanro Aur Nishad Ki Vidai Chopai in Hindi
असरन सरन बिरदु संभारी। मोहि जनि तजहु भगत हितकारी।।
मोरें तुम्ह प्रभु गुर पितु माता। जाउँ कहाँ तजि पद जलजाता।।2।।
व्याख्या :
हे अशरण को शरण देने वाले ! भक्तों का हित करने वाले ! अपना स्वरुप स्मरण करके मुझे ना छोड़े। आप ही मेरे स्वामी, गुरू, माता एवं पिता है। मैं आपके चरण कमलों को छोड़कर कहाँ जाऊँ।
चौपाई :
Ramcharitmanas Uttar Kand Vanro Aur Nishad Ki Vidai Chopai Arth in Hindi
तुम्हहि बिचारि कहहु नरनाहा। प्रभु तजि भवन काज मम काहा।।
बालक ग्यान बुद्धि बल हीना। राखहु सरन नाथ जन दीना।।3।।
व्याख्या :
महाराज ! आप विचार करके कहिये कि प्रभु जी को छोड़कर घर में मेरा काम ही क्या है ? इस ज्ञान, बुद्धि और बल से हीन बालक को शरण में रखिये।
चौपाई :
Ramcharitmanas Uttar Kand Vanro Aur Nishad Ki Vidai Chopai Bhavarth in Hindi
नीचि टहल गृह कै सब करिहउँ। पद पंकज बिलोकि भव तरिहउँ।।
अस कहि चरन परेउ प्रभु पाही। अब जनि नाथ कहहु गृह जाही।।4।।
व्याख्या :
मैं आपके घर की नीची से नीची सेवा करूँगा। आपके चरणकमलों का दर्शन करके भवसागर से तर जाऊंगा। हे नाथ ! मेरी रक्षा कीजिये। ऐसा कहकर वे श्रीराम जी के चरणों में गिर पड़े। हे नाथ ! अब मुझे घर जाने के लिये ना कहिये।
दोस्तों ! आज हमने उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों और चौपाईयों की विस्तृत व्याख्या को समझा। अगले लेख में फिर मिलते है। आप इसे अच्छे से तैयार अवश्य करते चले।
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एक गुजारिश :
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