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Uttar Kand Saar in Hindi रामचरितमानस उत्तरकांड व्याख्या – भाग 12


Ramcharitmanas Uttar Kand Dohe Chaupai Saar in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस के “उत्तरकाण्ड” के आगामी दोहों एवं चौपाइयों की व्याख्या को ध्यान से समझने की कोशिश करेंगे। तो चलिए, बिना देरी किये शुरू करते है :

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Uttar Kand Saar in Hindi रामचरितमानस उत्तरकांड व्याख्या


Ramcharitmanas Uttar Kand Saar Part 12 in Hindi : दोस्तों ! उत्तरकाण्ड के आगामी दोहों एवं चौपाइयों की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत है :

राम राज्याभिषेक, वेदस्तुति, शिवस्तुति

दोहा :

Tulsidas Ke Uttar Kand Ke Doho Ka Saar in Hindi

बार बार बर मागउँ हरषि देहु श्रीरंग।
पद सरोज अनपायनी भगति सदा सतसंग।।14 क।।

बरनि उमापति राम गुन हरषि गए कैलास।
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास।।14 ख।।

व्याख्या :

मैं बार-बार यही वरदान मांगता हूं कि मुझे आपके चरणकमलों में भक्ति और आपके भक्तों का सत्संग सदा प्राप्त हो। हे लक्ष्मीपति ! हर्षित होकर मुझे यही वरदान दीजिये।

तुलसीदास जी कहते हैं कि उमापति महादेव जी श्रीराम जी का गुण वर्णन करके और हर्षित होकर कैलाश को चले गये। तब प्रभु जी ने वानरों को सब प्रकार से सुख देने वाले डेरे दिलवाये।

चौपाई :

Uttar Kand Ki Chaupaiyon Ka Saar in Hindi

सुनु खगपति यह कथा पावनी। त्रिबिध ताप भव भय दावनी।।
महाराज कर सुभ अभिषेका। सुनत लहहिं नर बिरति बिबेका।।1।।

व्याख्या :

दोस्तों ! काकभुसुण्डि गरुड़ से कहते हैं कि हे गरुड़ ! यह पवित्र कथा, जो तीनों प्रकार के तापों और जन्म-मृत्यु के भय का नाश करने वाली है, सुनिए। महाराज श्रीरामचंद्र जी के कल्याणमय राज्याभिषेक का श्रवण कर, मनुष्य विषयों से विरक्ति और विवेक पाते हैं।

चौपाई :

Ramcharitmanas Uttar Kand Chaupai Arth Saar in Hindi

जे सकाम नर सुनहिं जे गावहिं। सुख संपति नाना बिधि पावहिं।।
सुर दुर्लभ सुख करि जग माहीं। अंतकाल रघुपति पुर जाहीं।।2।।

व्याख्या :

जो मनुष्य इसे किसी कामना से सुनते हैं और गाते हैं, वे अनेकों प्रकार के सुख और सम्पत्ति पाते हैं। वे जगत में देव दुर्लभ सुखों को भोगकर अंत में श्रीराम जी के पुर को जाते हैं।

चौपाई :

Tulsidas Uttar Kand Chaupai Bhavarth Saar in Hindi

सुनहिं बिमुक्त बिरत अरु बिषई। लहहिं भगति गति संपति नई।।
खगपति राम कथा मैं बरनी। स्वमति बिलास त्रास दुख हरनी।।3।।

व्याख्या :

इस कथा को जो जीवनमुक्त, विरक्त और विषयी सुनते हैं, वे क्रमशः भक्ति, मुक्ति और नवीन संपत्ति पाते हैं। हे गरुड़ ! मैंने अपनी बुद्धि के अनुसार श्रीराम कथा का वर्णन किया, जो भय और दुःख को हरने वाली है।

चौपाई :

Ramcharitmanas Uttar Kand Chaupai Saar Bhav in Hindi

बिरति बिबेक भगति दृढ़ करनी। मोह नदी कहँ सुंदर तरनी।।
नित नव मंगल कौसलपुरी। हरषित रहहिं लोग सब कुरी।।4।।

व्याख्या :

काकभुसुण्डि कहते हैं कि हे गरुड़ ! यह विरक्ति, विवेक और भक्ति को दृढ करने वाली है और मोह रूपी नदी के लिये सुंदर नौका है। अयोध्यापुरी में नित नवीन मंगल उत्सव होते हैं और सभी वर्गों के लोग आनंदित रहते हैं।

चौपाई :

Ramcharitmanas Uttar Kand Chaupai Saar Vyakhya in Hindi

नित नइ प्रीति राम पद पंकज। सब कें जिन्हहि नमत सिव मुनि अज।।
मंगल बहु प्रकार पहिराए। द्विजन्ह दान नाना बिधि पाए।।5।।

व्याख्या :

श्रीराम जी के श्री चरणों में सबकी नित्य नवीन प्रीति है, जिन चरणों को शिव जी, मुनिगण और ब्रह्मा जी भी नमस्कार करते हैं। भिक्षुकों को को अनेक प्रकार के वस्त्राभूषण पहनाये गये तथा ब्राह्मणों ने विविध प्रकार के दान प्राप्त किये।

वानरों और निषाद की विदाई

दोहा :

Ramcharitmanas Uttar Kand Dohe Vanro Aur Nishad Ki Vidai in Hindi

ब्रह्मानंद मगन कपि सब कें प्रभु पद प्रीति।
जात न जाने दिवस तिन्ह गए मास षट बीति।।15।।

व्याख्या :

तुलसीदास जी कहते है कि सभी वानर ब्रह्मानन्द में मग्न है। प्रभु के चरणों में सबकी प्रीति है। दिन कब चले गये, उन्हें पता ही नहीं चला और छ: महीने बीत गये।

चौपाई :

Ramcharitmanas Uttar Kand Chaupai Vanro Aur Nishad Ki Vidai in Hindi

बिसरे गृह सपनेहुँ सुधि नाहीं। जिमि परद्रोह संत मन माहीं।।
तब रघुपति सब सखा बोलाए। आइ सबन्हि सादर सिरु नाए।।1।।

व्याख्या :

वे लोग अपने घरों को तो भूल ही गये। उन्हें सपने में भी घर की याद नहीं आती, जैसे संत पुरुषों के मन में पराया धन याद नहीं आता। श्रीरामचंद्र जी ने सब सखाओं को बुलाया और सबने आकर आदर सहित सिर नवाया।

चौपाई :

Ramcharitmanas Uttar Kand Chaupai Saar Bhav Sahit in Hindi

परम प्रीति समीप बैठारे। भगत सुखद मृदु बचन उचारे।।
तुम्ह अति कीन्हि मोरि सेवकाई। मुख पर केहि बिधि करौं बड़ाई।।2।।

व्याख्या :

श्रीरामजी ने उनको परम प्रीति से अपने पास बैठाया और भक्तों को सुख देने वाले कोमल वचन कहे। श्रीरामजी ने कहा कि तुम लोगों ने मेरी बड़ी सेवा की है। मुँह पर मैं कैसे तुम्हारी बड़ाई करूँ ?

चौपाई :

Ramcharitmanas Uttar Kand Chaupai Arth Sahit Saar in Hindi

ताते मोहि तुम्ह अति प्रिय लागे। मम हित लागि भवन सुख त्यागे।।
अनुज राज संपति बैदेही। देह गेह परिवार सनेही।।3।।

व्याख्या :

मेरे हित के लिये तुम लोगों ने अपना गृह सुख छोड़ा। इससे तुम मुझे बहुत ही प्रिय लग रहे हो । छोटे भाई, राज्य, सम्पत्ति, सीता, देह, घर, कुटुम्ब और मित्र, ये सब मुझे प्रिय है।

चौपाई :

Ramcharitmanas Uttar Kand Chopai Saar Sahit Vyakhya in Hindi

सब मम प्रिय नहिं तुम्हहि समाना। मृषा न कहउँ मोर यह बाना।।
सब कें प्रिय सेवक यह नीती। मोरें अधिक दास पर प्रीती।।4।।

व्याख्या :

यह सभी मुझे प्रिय हैं। पर तुम्हारे समान नहीं है। मैं झूठ नहीं कह रहा हूं। ये मेरा स्वभाव है। नीति की बात तो यह है कि सेवक सभी को प्यारे लगते हैं। पर मेरा तो दास पर विशेष प्रेम रहता है।

इसप्रकार आज हमने उत्तरकाण्ड के कुछ दोहों और चौपाईयों का अर्थ एवं सार जाना। इसी तरह से आगामी अंक में अगले पदों को भी हम एक-एक करके समझेंगे। तो जुड़े रहिये हमारे साथ।


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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Uttar Kand Saar in Hindi रामचरितमानस उत्तरकांड व्याख्या – भाग 12 के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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