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मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali (71-75)
मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali-Narottam Das (71-75) in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! जैसाकि हम पिछले कुछ दिनों से नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली” के पदों का विस्तार से अध्ययन कर रहे है। अब तक हम इसके करीब 70 पदों को अच्छे से समझ चुके है। इसी श्रृंखला में आज हम इसके अगले 71-75 पदों की व्याख्या करने जा रहे है। तो चलिये शुरु करते है :
नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली“ के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
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Meera Muktavali मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (71-75)
Narottamdas Swami Sampadit Meera Muktavali Ke 71-75 Pad in Hindi : दोस्तों ! “मीरा मुक्तावली” के 71 से लेकर 75 तक के पदों की शब्दार्थ सहित व्याख्या निम्नानुसार है :
पद : 71.
मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali Ke 71-75 Pad in Hindi
सुणी मैं हरी आवण की आवाज।
महल चढ़े-चढ़ी जोऊँ सजनी ! कब आवै महाराज।।
दादुर मोर पपीहा बोलै कोयल मधुरे साज।
उमग्यो इन्द्र चहुँ दिसी वरसै, दामण छंडी लाज।।
धरती रूप नवा-नवा धरिया इन्द्र मिलण कै काज।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर ! वेग मिलो महाराज।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | सुणी | सुनी है |
2. | आवण | आने की |
3. | जोऊँ | देखना |
4. | आवै | आयेंगे |
5. | दामण | दामन |
6. | छंडी | त्याग दी |
7. | लाज | लज्जा |
8. | वेग | शीघ्र |
व्याख्या :
मीराबाई कह रही है कि मैंने साजन के आने की आवाज सुनी है। हे सहेली ! मैं महल के ऊपर चढ़-चढ़कर के देख रही हूँ कि महाराज कब आ रहे है ? कोयल अपनी मधुरवाणी को सजाकर के बोल रही है और मेंढक एवं पपीहा बोल रहे है। इंद्रदेव अपनी उमंग में भरकर चारों दिशाओं में वर्षा कर रहे है।
मीराबाई कहती है कि मैंने आपका दामन पकड़ लिया है, समस्त लज्जा को छोड़कर। धरती ने नये-नये रूप धारण कर लिये है, इंद्रदेव से मिलने के लिये। ऐसे मनमोहक समय में हे प्रभु ! आप आते है तो मेरे मन को अत्यधिक प्रसन्नता प्राप्त होगी। हे मीरा के प्रभु ! शीघ्र मिलिये।
पद : 72.
मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali Vyakhya – Narottamdas Swami in Hindi
वदळा रे ! तूं जळ भरि आयो,
छोटी-छोटी बूँदन वरसण लाग्यो कोयल सबद सुणायो।
गाजै, वाजै पवन मधुरिया, अम्बर बदरा छायो।।
सेज सवारी, पिय घर आये हिलि-मिलि मंगळ गायो।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, भाग भलो जिन पायो।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | वरसण | बरस रही है |
2. | गाजै | गर्जना |
3. | वाजै | चलना |
4. | सेज | शैय्या |
5. | सवारी | संवारना |
6. | हिलि-मिलि | मिल-जुलकर |
7. | भाग | भाग्य |
8. | भलो | अच्छा |
9. | जिन | जिन्होंने |
व्याख्या :
मीराबाई कह रही है कि अरे बादल ! तू जल भर के ले आया। छोटी-छोटी बूँदे बरस रही है। आकाश में बादल छाये हुये है। अब मैं अपनी शैय्या को सवारूँगी। प्रियतम मेरे घर आये है। अब सखियों के साथ मिल-जुल कर मंगलगान गाऊँगी। मीरा कहती है कि मेरे तो प्रभु गिरधर नागर है। जिन्होंने आपको पाया है, उनका भाग्य बहुत अच्छा है।
पद : 73.
मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali – Vyakhya Shabdarth Sahit in Hindi
सहेलिया ! साजन घर आया हो।
बहोत दिनों की जोवती विरहणि पिव पाया हो।।
रतन करूँ नेवछावरी, ले आरति साजूं हो।
पिया का दिया सनेसड़ा, ताहि बहोत निवाजूं हो।।
पांच सखी इकठी भयी, मिळि मंगळ गावै हो।
पिय का रळी बधावणा आणंद अंगि न मावै हो।।
हरि सागर सूं नेहरो, नैणां वध्या सनेह हो।
मीरां सखी कै आंगणै दूधां बूठा मेह हो।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | जोवती | प्रतीक्षा |
2. | पिव | प्रियतम |
3. | नेवछावरी | न्योछावर |
4. | साजूं | सजा लूँ |
5. | सनेसड़ा | सन्देश |
6. | निवाजूं | अनुग्रह |
7. | इकठी | एकत्रित |
8. | बधावणा | बधाई |
9. | मावै | समाना |
व्याख्या :
मीराबाई कहती है कि हे सहेलियों ! प्रियतम श्रीकृष्ण जी घर आये है। बहुत दिनों की प्रतीक्षा थी इस विरहिणी को, लेकिन अब प्रियतम को पा लिया है। अब मैं इन पर रत्नों को न्योछावर कर दूँ। मैं अपने प्रियतम की आरती की थाली सजा लूँ।
प्रियतम का दिया सन्देश बहुत अनुग्रह करके स्वीकारती हूँ। पाँचों इन्द्रियाँ इकट्ठी हो गयी है। अब सब मिलकर मंगल गान गा रही है और अब प्रिय का आनन्द और बधाई अंगों में नहीं समा पा रहे है। हरि तो प्रेम के सागर है। नैनों में उनके प्रति प्रेम बढ़ गया है। मीरा के आँगन में तो जैसे दूध की वर्षा हो रही है।
पद : 74.
मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali Arth with Hard Meanings in Hindi
म्हारा ओळगिया घर आया।
तन की ताप मिटी, सुख पाया, हिल-मिल मंगळ गाया।।
धन की धुनि सुनि मोर मगन भया, यूं मेरे आनंद आया।
मगन भयी मिली प्रभु अपणा सूं भी का दरद मिटाया।।
चंद कूँ देखि कमोदणि फूलै ! हरख भया मेरी काया।
रग-रग सीतल भयी मेरी सजनी ! हरि मेरे महल सिधाया।।
सब भगतन का कारज कीना, सोई प्रभु मैं पाया।
मीरां विरहणी सीतल होयी, दुख-दुंद दूरि न्हसाया।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | ओळगिया | प्रवासी प्रियतम |
2. | धुनि | ध्वनि |
3. | हरख | प्रसन्न |
4. | कारज | कार्य |
5. | कीना | कर दिया |
6. | न्हसाया | नष्ट हो गयी है |
व्याख्या :
मीराबाई कहती है कि मेरा प्रवासी प्रियतम घर आ गया है। अब तन की पूरी तपन मिट गयी है और सुख मिल गया है। सखियों के साथ हिल-मिलकर मंगलगान गा रही हूँ। बादल की ध्वनि सुनकर के मोर मगन हो गया है। मेरे प्रियतम को देखकर के मैं प्रसन्न हो जाती हूँ। इसप्रकार मुझे आनंद की प्राप्ति हो गयी है।
मीरा कहती है कि मैं मगन हो गयी हूँ। अब तक का जो दर्द था, वो अब मिट गया है। चंद्रमा को देखकर जैसे कुमोदिनी प्रसन्न हो जाती है, वैसे अपने श्रीकृष्ण जी को देखकर मैं प्रसन्न हो गयी हूँ। मेरा शरीर भी उसीप्रकार प्रसन्न हो गया है। मेरी रग-रग में शीतलता हो गयी है।
हरि मेरे घर आये है। सभी भक्तों का कार्य कर दिया है। सभी भक्त प्रसन्न है। उन्हीं प्रभु जी को आज मैंने पा लिया है। विरहिणी मीरा अपनी विरह वेदना से दग्ध थी, वो अब शीतल हो गयी है। मेरे पूरे दुःख, दर्द नष्ट हो गये है।
पद : 75.
मीरा मुक्तावली के पद Meera Muktavali Bhav in Hindi
सांवळिया ! म्हारै आज रंगीली गणगौर छै।
काळी-पीळी बादलों में बिजली चमकै, मेघ-घटा घणघोर छै।।
दादुर मोर पपीहा बोलै, कोयल कर रही सोर छै।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, चरणां में म्हारो जोर छै।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | सोर | शोर |
2. | घणघोर छै | छायी हुयी है |
3. | जोर | अधिकार |
व्याख्या :
मीराबाई अपने श्रीकृष्ण जी से कह रही है कि हे मेरे प्रियतम ! आज हमारे घर रंगीली गणगौर का त्योहार है। बादलों में काली-पीली बिजली चमक रही है। बादलों की घनघोर घटायें छायी हुई है। मेंढक, मोर और पपीहा बोल रहे है। कोयल शोर मचा रही है।
हे मीरा के प्रभु गिरधर नागर ! आपके चरणों में मेरा पूरा अधिकार है। मीराबाई अपने प्रेमजनित अधिकार भाव को स्थापित करती है।
इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने “मीरा मुक्तावली” के अगले 71-75 पदों की व्याख्या को समझा। उम्मीद है कि इन्हें समझने में कोई कठिनाई तो नहीं हुई होगी। फिर मिलेंगे।
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एक गुजारिश :
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