Jain Sahitya | जैन साहित्य : प्रमुख जैन कवि और रचनाएं
Jain Sahitya | जैन साहित्य : इसका समय 8वीं शती से 10वीं शती रहा है। इनका केंद्र स्थान गुजरात का काठियावाड़ रहा है। जैन रचनाकारों को राष्ट्रकूट, सोलंकी, चालुक्य आदि राजाओं ने आश्रय दिया है।
आदिकाल में चर्चरी, फागु, रास, चरिऊ शैलियों में केवल जैन रचनाकारों ने लिखा है। इनकी लोकप्रिय रास रही है। इसकी यह विशेषता है कि यह सर्वाधिक प्रमाणिक रूप में प्राप्त होता है। जैन रचनाकारों ने श्री कृष्ण और महाभारत से संबंधित कथा को हरिवंश पुराण का नाम दिया है।
Jain Kavi Aur Rachnaye | प्रमुख जैन कवि और रचनाएं
Jain Sahitya | जैन साहित्य : प्रमुख जैन कवि और रचनाएं इसप्रकार है :
स्वयंभू | Swayambhu
इनका समय 8वीं शती रहा है। इनकी रचनाएं हैं :
- पउम चरिऊ (हरिवंश पुराण)
- रिट्ठनेमि चरिऊ
- जयकुमार चरिऊ
- स्वयंभू चरिऊ
सर्वप्रथम भयाणी नामक विद्वान ने स्वयंभू को अपभ्रंश का वाल्मीकि कहा है।
पउम चरिऊ में 5 कांड और 12000 श्लोक है । 5 कांड इसप्रकार है :
- विद्याधर कांड
- अयोध्या कांड
- सुंदरकांड
- युद्ध कांड
- उत्तरकांड
रामकुमार वर्मा ने स्वयंभू को हिंदी का पहला कवि माना है। स्वयंभू हिंदी के पहले विनम्र कवि माने जाते हैं। स्वयंभू राष्ट्रकूट नरेश ध्रुव के सामंत के आश्रय में रहते थे।
पुष्पदंत | Pushpdant
इनका समय 10 वीं सदी है। इनकी रचनाएं हैं :
- महापुराण ( हरिवंश पुराण)
- णय कुमार चरित
- जसहर चरिऊ
- कोश ग्रंथ
पुष्पदंत की तीन उपाधियां है जो इस प्रकार है :
- काव्य रत्नाकर
- कवि कुल तिलक
- अभिमान मेरु
महापुराण रचना के आधार पर भयाणी ने पुष्पदंत को अपभ्रंश का वेदव्यास का है। इसी रचना के आधार पर इन्होंने अभिमान मेरु की उपाधि धारण की। पुष्पदंत को अपभ्रंश का माद्य और कालिदास भी कहते हैं।
यद्यपि स्वयंभू और पुष्पदंत दोनों ने ही हरिवंश पुराण और णयकुमार चरिऊ ग्रंथों की रचना की लेकिन पुष्पदंत की रचना अधिक प्रसिद्ध हुई है। स्वयंभू अपनी सहृदयता के लिए विख्यात है। लेकिन पुष्पदंत में सांप्रदायिकता का आग्रह एवं खंडन का जोश ज्यादा है।
णयकुमार चरिऊ में पुष्पदंत के व्यक्तिगत जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। जैसे यह प्रारंभ में शैव थे। बाद में जैन बने। इस रचना की भाषा ब्राचड अपभ्रंश से प्रभावित दिखलाई देती है। जिससे अनुमान लगाया जाता है कि पुष्पदंत संभवतः उत्तर भारत के निवासी रहे होंगे। यह राष्ट्रकूट नरेश कृष्ण तृतीय के सामंत भरत तथा भरत के पुत्र नन्न के आश्रय में रहते थे।
आचार्य देवसेन | Acharya Devsen
इनकी प्रमुख रचनाएं है :
- श्रावकाचार
- सावयधम्म दोहा
- दब्बसहाब पयास
- दर्शनसार
- आराधना सार
- तत्व सार
- लघुनय चक्र
- वृहतनय चक्र
श्रावकाचार में 250 दोहे प्राप्त होते हैं । इस रचना में गृहस्थ जीवन के कर्तव्यों की सुंदर व्याख्या की गई है। एक ग्रंथ के रूप में यह हिंदी की पहली रचना मानी जाती है। दब्बसहाब पयास देवसेन की खेती का आधारभूत ग्रंथ है।
जोइंदु | Joindu
इनकी प्रमुख रचनाएं है :
- परमात्म प्रकाश
- योग सार
परमात्म प्रकाश : यह रचनाएं छठी सदी के धर्म दर्शन एवं इंद्रिय निग्रह को आधार बनाती है। यद्यपि दोहा चौपाई छंद के प्रथम प्रयोक्ता सरहपा माने जाते हैं लेकिन दोहा छंद की विधिवत शुरुआत जोइंदु और मुनि रामसिंह माने गए हैं।
मुनि रामसिंह | Muni Ramsingh
इनकी प्रमुख रचना है :
- पाहुड दोहा
इसमें 222 दोहे हैं। यह जैन रचनाकारों में सर्वश्रेष्ठ रहस्यवादी कवि माने जाते हैं। जैन दर्शन में समस्त श्रुत ज्ञान को पाहुड कहा जाता है।
श्री धर्म सूरी | Shri Dhrma Suri
इनकी प्रमुख रचना है :
- जंबूस्वामी रासा
इस रचना में गृहस्थ जीवन की मधुरता की सुंदर झांकी मिलती है।
श्री चंद्रमुनि | Shri Chandra Muni
इनकी प्रमुख रचना है :
- पुराणसार
धनपाल के नाम से एक और रचना प्राप्त होती है जिसका नाम तिलक मंजरी मिलता है। यह गद्य काव्य का श्रेष्ठ उदाहरण है।
आसगुकवि | Aasgu kavi
इनकी प्रमुख रचनाएं है :
- चंदनबाला रास
- जीवदया रास
चंदनबाला रास मात्र 35 शब्दों में लिखा गया एक सुंदर लघु खंडकाव्य है। यह रचना करुण रस की गंभीरतम सृष्टि करती है। 1200 ईस्वी में इसकी रचना जालौर में की गई।
मेरुतुंग | Merutung
इनकी प्रमुख रचना है :
- प्रबंध चिंतामणि -1304 ई.
प्रबंध चिंतामणि में मुंज के अन्य दोहे उद्धृत किए गए हैं।
हेमचंद्र | Hemchandra
इनके बचपन का नाम चंगदेव था। यह बहुत बड़े वैयाकरण थे। इन्हे अपभ्रंश का पाणिनि कहा जाता है। इन्हें कलिकाल सर्वज्ञ भी कहा जाता है। यह गुजरात के सोलंकी राजा जयसिंह सिद्धराज एवं उनके पुत्र कुमारपाल के आश्रित थे। इनकी रचनाएं है :
- सिद्ध हेमचंद्र शब्दा अनुशासन
- छन्दानुशासन
- योगचर्या
- देशिनाममाल कोश
- काव्यानुशासन
- प्राकृत व्याकरण
- कुमारपाल चरित
सोमप्रभ सूरी | Somprabh Suri
इनकी रचना है :
- कुमारपाल प्रतिबोध
अम्बदेव सूरी | Ambdev Suri
इनकी रचना है :
- संघपति समरा रासा
अभयदेव सूरी | Abhaydev Suri
इनकी रचना है :
- जय तिहुअण
प्रज्ञा तिलक | Pragya Tilak
इनकी रचना है :
- कच्छुली रास
शालिभद्र सूरी | Shalibhadra Suri
इनकी रचनाएं है :
- भरतेश्वर बाहुबलिरास – 1184 ई.
- पंचपांडव चरितरास
- बुद्धि रास
— भरतेश्वर बाहुबलीरास जैन परंपरा का सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ माना जाता है।
— मुनि जिनविजय ने भरतेश्वरबाहुबली रास को जैन परंपरा का प्रथम रास माना है।
हरिभद्र सूरी | Haribhadra Suri
इनकी रचनाएं है :
- धूर्त आख्यान
- जसहर चरिऊ
- नेमिनाथ चरिऊ
- ललित विस्तरा
भुवनतुंग सूरी | Bhuvantung Suri
इनकी रचना है :
- सियाराम चरिऊ
जिनपदम सूरी | Jinpadam Suri
इनकी रचना है :
- धूलिभदद फागु
राजशेखर | Rajshekhar
इनकी रचनाएं है :
- नेमिनाथ फागु
- बसंतविलास फागु
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