Contents
Hindi Sahitya Ka Itihas | हिंदी साहित्य का इतिहास
Hindi Sahitya Ka Itihas | हिंदी साहित्य का इतिहास : अतीत के तथ्यों का वर्णन – विश्लेषण जो कालक्रमानुसार किया गया हो इतिहास कहा जाता है I इतिहास लेखन के प्रति भारतीय दृष्टिकोण आदर्शमूलक एवं आध्यात्मवादी रहा हैI जिसमें सत्य के साथ शिव और सुंदर का समन्वय करने की ओर ध्यान केंद्रित रहा I
हिंदी साहित्य का इतिहास लेखन की पद्धतियां
हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन में जो प्रमुख पद्धतियां प्रचलित रही है, उनका विवरण निम्न है :
- वर्णानुक्रम पद्धति
- कलानुकर्मी पद्धति
- विधेयवादी पद्धति
- वैज्ञानिक पद्धति
1. वर्णानुक्रम पद्धति
- ऐसे ग्रंथ शब्दकोश जैसे प्रतीत होते हैं I गार्सा-द-तासी एवं शिवसिंह सेंगर ने वर्णानुक्रम पद्धति में इतिहास ग्रंथ लिखा है I
2. कलानुकर्मी पद्धति
- इस पद्धति में कवियों एवं लेखकों का विवरण ऐतिहासिक कालक्रमानुसार तिथिक्रम से होता है I जॉर्ज ग्रियर्सन एवं मिश्रबंधुओं ने इसी पद्धति में इतिहास ग्रंथ लिखे हैं I
3. विधेयवादी पद्धति
- साहित्य का इतिहास लिखने में यह पद्धति सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध हुई है I इस पद्धति के जन्मदाता फ्रांस के विद्वान तेन माने जाते हैं I जिन्होंने विधेयवादी पद्धति को तीन तत्वों में बांटा है :
- जाति
- वातावरण
- क्षण
- हिंदी साहित्य में रामचंद्र शुक्ल ने इसी पद्धति में इतिहास लिखा है I
4. वैज्ञानिक पद्धति
- इसमें इतिहास तथ्यों का प्रतिपादन करते हुए तटस्थता के साथ निष्कर्ष प्रस्तुत करता है I इसमें क्रमबद्धता एवं तर्कपुष्टता अनिवार्य रूप में होती है I
- गणपति चंद्र गुप्त ने हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास लिखा है I
Hindi Sahitya Ka Itihas | हिंदी साहित्य का इतिहास लेखन की परंपरा
हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन का वास्तविक सूत्रपात 19वीं शताब्दी से माना जाता है I हिंदी साहित्य के इतिहास लेखकों का संक्षिप्त विवरण निम्नवत है –
गार्सा-द-तासी | Garsa Da Tasi
हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की परंपरा की शुरुआत एक फ्रेंच विद्वान गार्सा-द-तासी द्वारा रचित वाला ”इस्तवार द ला लितरेव्यूर ऐन्दूई ऐन्तुस्तानी” नामक ग्रंथ से हुई I यह दो खंडों में विभाजित है :
- इसके प्रथम भाग का प्रकाशन 1839 ई. में हुआ और
- द्वितीय भाग का प्रकाशन 1847 ई. में हुआ I
इनके इतिहास ग्रंथ में अनेक कमियां हैं जैसे :
- काल विभाजन का कोई प्रयास नहीं किया गया I
- युगीन परिस्थितियों का कोई विवेचन नहीं हुआ I
अनेक न्यूनताओ के होने पर भी इस ग्रंथ को हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की परंपरा में प्रथम ग्रंथ होने का गौरव प्राप्त है I
शिवसिंह सेंगर | Shiv Singh Sengar
- इनके ग्रंथ का नाम “शिवसिंह सरोज” है, जिसका प्रकाशन वर्ष 1883 है I इसमें हिंदी के 1003 कवियों का जिक्र है I हिंदी भाषा में रचित हिंदी साहित्य का पहला इतिहास ग्रंथ शिवसिंह सरोज है I
- यह ग्रंथ हिंदी साहित्य के प्रारंभ का जिक्र करने वाला पहला इतिहास ग्रंथ है I इन्होने 713 ई से हिंदी साहित्य का प्रारंभ माना है I
- पुष्य या पुंड नामक कवि को हिंदी का पहला कवि बताया है I किसी भारतीय द्वारा लिखा गया यह पहला इतिहास ग्रंथ है, जिसमें विशुद्ध हिंदी कवियों का उल्लेख किया गया है I
सर जार्ज ग्रियर्सन | Sir George Grierson
सर जार्ज ग्रियर्सन का 1888 में ” द मॉडर्न वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिंदुस्तान” नामक इतिहास ग्रन्थ प्रकाशित हुआ I ग्रियर्सन आयरलैंड के निवासी थे ग्रियर्सन ने 952 कवि हिंदी के गिनाये है I ग्रियर्सन ने पहली बार कालानुक्रमी पद्धति में इतिहास लिखा I
यह अंग्रेजी भाषा में लिखा गया I इसका हिंदी में अनुवाद किशोरी लाल गुप्त ने 1957 ई में हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास नाम से किया।ग्रियर्सन ने 643 ई से हिंदी का प्रारंभ माना है। ग्रियर्सन पहले इतिहासकार है जिन्होंने हिंदी काल विभाजन करने का प्रयास किया है I
उन्होंने सम्पूर्ण इतिहास क 12 खंडो में विभाजित किया है I इनका इतिहास ग्रन्थ हिंदी का पहला वैज्ञानिक इतिहास ग्रंथ माना जाता है कि ग्रियर्सन ने भक्ति काल को धार्मिक पुनर्जागरण काल की संज्ञा दी है I
इन्होंने ही भक्तिकाल को स्वर्णकाल की संज्ञा दी है I
ग्रियर्सन ने भक्तिकाल का उदय बिजली की कौंध के समान त्वरित माना है I
ग्रियर्सन ने ही सर्वप्रथम रीतिकाल के लिए “रीति” शब्द का प्रयोग किया है I
इनका एक चर्चित ग्रंथ है – भाषा सर्वेक्षण I इसी में इन्होंने उर्दू को ठेठ हिंदी की संज्ञा दी है I
मिश्रबंधु | Mishra Bandhu
हिंदी साहित्य के इतिहास ग्रंथों में मिश्रबन्धुओ द्वारा रचित ” मिश्रबन्धु विनोद “ का महत्वपूर्ण स्थान है I यह चार खंडों में विभाजित है जिसमें से प्रथम तीन भाग -1913 ई में और अंतिम चौथा भाग 1934 में प्रकाशित हुआ I
मिश्रबन्धु विनोद एक विशालकाय ग्रंथ है जिसे आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने महाव्रत संग्रह की संज्ञा दी है I इसमें लगभग 5000 हिंदी कवियों का विवरण दिया गया है I मिश्रबन्धु 643 ई से हिंदी साहित्य का प्रारम्भ मानते हैं I
उन्होंने सारे रचनाकाल को 8 खंडों में विभक्त किया है I उन्होंने तुलनात्मक पद्धति का अनुसरण करते हुए कवियों की श्रेणियां बनाने का प्रयास भी किया है I परवर्ती इतिहास लेखकों ने मिश्रबंधु विनोद से कच्ची सामग्री जुटाई है I स्वयं आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य के इतिहास में यह स्वीकार किया है I
” रीतिकाल के कवियों का परिचय लिखने में मैंने प्राय : उक्त ग्रन्थ
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
(मिश्र बंधु विनोद) से ही विवरण लिए हैं I
मिश्र बंधुओं ने हिंदी का पहला गद्यकार गोरखनाथ को माना है I
आचार्य रामचंद्र शुक्ल | Acharya Ramchandra Shukla
हिंदी साहित्य के इतिहासकारों में पंडित रामचंद्र शुक्ल का स्थान सर्वोपरि है I इन्होंने 1929 में “हिंदी साहित्य का इतिहास” नामक ग्रंथ हिंदी शब्द सागर की भूमिका के रूप में लिखा जिसे बाद में स्वतंत्र पुस्तक का रूप दिया गया I
शुक्ल जी पहले इतिहासकार है जिन्होंने कवियों के जन्म आदि परिचय को महत्व देकर काव्य प्रवृत्तियों को युगीन संदर्भ में विश्लेषण करने पर बल दिया हैI इन्होनें हिंदी का पहला कवि “मुंज” को माना है I इन्होंने अपने इतिहास में 1000 कवियों को स्थान दिया है I
Hindi Sahitya Ka Itihas | हिंदी साहित्य का इतिहास का काल विभाजन
शुक्ल जी ने हिंदी साहित्य का काल विभाजन इसप्रकार किया है –
- वीरगाथा काल : संवत 1050-1375 तक
- भक्ति काल : संवत 1375-1700 तक
- रीतिकाल : संवत 1700-1900 तक
- आधुनिक काल : संवत 1900 से अद्यतन
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आधुनिक काल को गद्य खंड और पद्य खंड में विभाजित किया है I
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी |Acharya Hajari Prasad Dvivedi
अब तक के साहित्य के इतिहास से संबंधित उनकी निम्न पुस्तके प्रकाश में आयी है :
(क) हिंदी साहित्य की भूमिका – 1940
(ख) हिंदी साहित्य : उद्भव और विकास -1952
(ग) हिंदी साहित्य का आदिकाल -1952
(घ) कबीर-1942 में “कबीर “ इनका प्रसिद्ध ग्रन्थ है I
आचार्य द्विवेदी द्वारा रचित हिंदी साहित्य की भूमिका यद्यपि पद्धति की दृष्टि से इतिहास ग्रन्थ नहीं है परन्तु उनमे दिए स्वतंत्र लेख हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन के लिए नयी सामग्री एवं नयी व्याख्या प्रस्तुत करते हैं I
हिंदी साहित्य की भूमिका में द्वेवेदी जी लिखते है :
” मैं जोर देकर कहना चाहता हूं कि अगर इस्लाम भारत में न भी आया होता तो
यहां का भक्ति साहित्य बारह आना वैसा ही होता जैसा रहा है “
हजारी प्रसाद द्विवेदी परंपरा की निरंतर बल देते हैं I इसी दृष्टि से उन्होंने भक्ति काल को अलवारो से चलने वाली सांस्कृतिक प्रक्रिया का सहज परिणाम बतलाया है I
रामकुमार वर्मा | RamKumar Verma
इसकी पुस्तक का नाम ” हिंदी साहित्य का इतिहास आलोचनात्मक इतिहास “ है I
यह इतिहास ग्रन्थ 7 प्रकरणों में विभाजित है I यह एक अधूरा इतिहास ग्रन्थ है,क्योकि यह केवल भक्तिकाल तक का ही वर्णन करता है I
रामकुमार वर्मा ने भक्ति काल का विभाजन इसप्रकार किया है :
- संत काव्य
- प्रेम काव्य
- राम काव्य
- कृष्णा काव्य
गणपति चंद्र गुप्त|Ganpati Chandra Gupt
इनका हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन में महत्वपूर्ण योगदान है I उन्होंने हिंदी साहित्य का वैज्ञानिक इतिहास – 1965 लिखकर एक अभाव की पूर्ति की है I
गुप्तजी लिखते है कि विगत 30-35 वर्षों में हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य हुआ है I जिससे बहुत सी ऐसी नयी सामग्री , नए तथ्यों और नए निष्कर्ष प्रकाश में आये है I जो आचार्य शुक्ल के वर्गीकरण विश्लेषण आदि के सर्वथा प्रतिकूल पडते हैं I
इन्होंने मध्यकाल को कुछ विशिष्ट परंपराओं में बांटा है :
- धर्माश्रय में रचित काव्य
- लोकाश्रय में रचित काव्य
- राज्याश्रय में रचित काव्य
इन्होने सूफी साहित्य को लोकाश्रय परंपरा में विश्लेषित करते हुये इसे “रोमांसिक कथा काव्य परंपरा” की संज्ञा दी है I
Hindi Sahitya Ka Itihas | हिंदी साहित्य का इतिहास के प्रमुख ग्रन्थ
हिंदी साहित्य के इतिहास के प्रमुख ग्रन्थ इसप्रकार से है –
1 | रामस्वरूप चतुर्वेदी | हिंदी साहित्य और संवेदना का इतिहास-1986 |
2 | डॉ. बच्चन सिंह | हिंदी साहित्य का दूसरा इतिहास-1996 |
3 | सुमन राजे | हिंदी साहित्य का आधा इतिहास-2003 |
4 | विश्वनाथ प्रसाद मिश्र | हिंदी साहित्य का अतीत-1959 |
5 | महेश दत्त शुक्ल | भाषा काव्य संग्रह-1873 |
6 | टीकम सिंह तोमर | हिंदी वीर काव्य |
7 | डॉ नगेंद्र | रीतिकाव्य की भूमिका |
8 | ब्रज रत्नदास | खड़ी बोली हिंदी साहित्य का इतिहास |
9 | गुलाब राय | हिंदी साहित्य का सुबोध इतिहास |
10 | विश्वनाथ त्रिपाठी | (i) हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास (ii) हिंदी साहित्य का सरल इतिहास |
11 | अयोध्या सिंह उपाध्याय | हिंदी भाषा और साहित्य का विकास |
12 | शिवदान सिंह चौहान | हिंदी साहित्य के अस्सी वर्ष |
13 | राहुल सांस्कृत्यायन | हिंदी काव्यधारा |
14 | लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय | साहित्य और साहित्येतिहास |
15 | डॉ धीरेन्द्र वर्मा | हिंदी साहित्य का विवेचनात्मक इतिहास |
16 | रामखेलावन पांडे | हिंदी साहित्य का नया इतिहास |
17 | शिवकुमार शर्मा | हिंदी साहित्य युग और प्रवृत्तियां |
18 | नलिन विलोचन शर्मा | साहित्य का इतिहास दर्शन |
19 | मैनेजर पांडेय | साहित्य की इतिहास दृष्टि |
20 | किशोरी लाल गुप्त | हिंदी साहित्य के इतिहासों का इतिहास |
ये भी अच्छे से जाने :
एक गुजारिश :
दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “Hindi Sahitya Ka Itihas | हिंदी साहित्य का इतिहास“ के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I
नोट्स अच्छे लगे हो तो अपने दोस्तों को सोशल मीडिया पर शेयर करना न भूले I नोट्स पढ़ने और हमारी वेबसाइट पर बने रहने के लिए आपका धन्यवाद..!
बहुत अच्छा लगा। क्या आपका एप्पलीकेशन भी है?
Thanks and welcome to Hindishri.com. plz.. invite ur friends and share on social media.
Love you sir
Thanks and welcome to Hindishri.com. plz.. invite ur friends and share on social media.