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Sufi Rachnaye | सूफी काव्य की प्रमुख रचनाएं :
नमस्कार दोस्तों ! पिछले नोट्स में हमने आपको सूफी काव्य और उसकी प्रमुख विशेषताओं के बारे में विस्तार से बताया था। उम्मीद है कि आपको समझ में आया होगा। आज के नोट्स में हम आपको Sufi Rachnaye | सूफी काव्य की प्रमुख रचनाएं एवं तथ्य के बारे में बताने जा रहे है जो बहुत ही महत्वपूर्ण है। आइये जानते है :
Sufi Rachnaye | सूफी काव्य की प्रमुख रचनाएं : : सूफी काव्य की प्रमुख रचनाये इस प्रकार से है :
हसांवली | Hansawali :
रचनाकाल | 1370 ई. |
रचनाकार | असाइत |
नायक | राजकुमार |
नायिका | हसांवली |
भाषा | राजस्थानी हिंदी |
चंदायन | Chandayan :
रचनाकाल | 1379 ई. |
रचनाकार | मुल्ला दाऊद |
नायिका | चंदा |
भाषा | अवधी |
लिपि | फारसी |
- माता प्रसाद गुप्त ने इस रचना को ‘लोरकहा‘ की संज्ञा दी है । चंदायन लोकगाथा के आधार पर लिखी गई वह रचना है जो लोक के पात्रों को अपना आधार बनाती है ।
- हजारी प्रसाद द्विवेदी का उपन्यास ‘पुनर्नवा‘ लोरिक देव और चंदा की प्रेम कहानी को आधार बनाता है।
लखनसेन पद्मावती | Lakhan Sen Padmavati
रचनाकाल | 1459 ई. |
रचनाकार | दामोदर कवि |
नायक | लक्ष्मणसेन |
नायिका | पद्मावती |
भाषा | राजस्थानी हिंदी |
- दामोदर कवि ने इसे वीर कहानी की सज्ञां दी है।
“वीर कहाणी करूं बखाणी”
- वास्तव में यह रचना वीर रस को नहीं बल्कि श्रृंगार रस को विषय बनाती है।
सत्यवती कथा | Satyavati Katha
रचनाकाल | 1501 ई. |
रचनाकार | ईश्वरदास |
नायक | ऋतुपर्ण |
नायिका | सत्यवती |
भाषा | अवधी |
- ये ऐसे सूफी कवि हैं जिन्होंने राम भक्ति में भी रचनाएं लिखी है।
- भरत मिलाप
- अंगद पैज
मृगावती | Mrigawati
रचनाकाल | 1503 ई. |
रचनाकार | कुतुबन |
नायक | राजकुमार |
नायिका | मृगावती |
भाषा | अवधी |
- कुतुबन के चिश्ती गुरु शेख बुरहान है।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने मृगावती का समय 1501 ई. माना है.।
माधवानल काम कदंला | Madhvanal Kaam Kandla
रचनाकाल | 1527 ई. |
रचनाकार | गणपति |
भाषा | राजस्थानी |
माधवानल काम कदंला चौपाई | Madhvanal Kaam Kandla Chaupai
रचनाकाल | 1556 ई. |
रचनाकार | कुशल लाभ |
भाषा | राजस्थानी |
माधवानल काम कदंला | Madhvanal Kaam Kandla
रचनाकाल | 1584 ई. |
रचनाकार | आलम |
भाषा | अवधी |
माधवानल काम कदंला चरित (विरह वारीश) | Madhvanal Kaam Kandla Charit
रचनाकाल | 1773 ई. |
रचनाकार | बोधा |
भाषा | ब्रजभाषा |
पद्मावत | Padmavat
रचनाकाल | 1540 ई. |
रचनाकार | मलिक मोहम्मद जायसी |
भाषा | अवधी |
- पद्मावत के रचनाकार मलिक मोहम्मद जायसी हैं । इनका जन्म 1492 ईस्वी में हुआ।
- पद्मावत 1540 ई. में शेरशाह सूरी के समय में लिखी गई सूफी प्रेमाख्यान परंपरा का यह प्रतिनिधि ग्रंथ माना जाता है।
रामचंद्र शुक्ल ने इस ग्रंथ को हिंदी का ‘जगमगाता रत्न’ कहां है।
- पद्मावत में 57 खंड है और अंत में उपसंहार है। पद्मावत की पहली पंक्ति है :
” सुमिरौ आदी एक करतार”
- 57 वें खण्ड की अंतिम पंक्ति है :
“जौहर भई सब इस्तिरीपुरुष भये संग्राम।
बादशाह गढ़ चूरा,चित् उर भा ईस्लाम।।”
- उपसंहार की अंतिम पंक्ति है :
“बिरिध जो सीस डोलावै पूनि धुनि आवै रीस।
बूढी आयु होअ तुम्हें यह दिन्हे – कीन्हे असीस।।”
- नागमती वियोग खंड की पहली पंक्ति है :
“नागमती पथ चित्त उर हेरा, पिउ जो गये पुनि कीन्ह न फेरा।”
- इस नागमती वियोग खंड की अंतिम पंक्ति है:-
“नहिं पावस ओहि देसरा नहि हेवंत बासंत।
ना कोकिल ना पपीहरा जेहिं सुनै आवे कंत।।”
रामचंद्र शुक्ल ने नागमती वियोग खंड को हिंदी साहित्य की अमूल्य धरोहर कहा है ।
- पद्मावत में बारहमासा आषाढ माह से प्रारंभ होता है। पहली पंक्ति है :
“चढौ आकाश गगन घन गाजा”
- पद्मावत में एक पद मिलता है जिसके आधार पर पद्मावत की प्रतीकात्मक व्याख्या की जाती है हालांकि माता प्रसाद गुप्त इस पद को प्रक्षिप्त मानते हैं।
“तन चित उर मन राजा कीन्हा।
हिय सिंहलगढ बुधि पद्मनी चिन्हा।।“
- प्रतीक इस प्रकार है :-
तन /शरीर | चित्तौड़गढ़ |
मन | रत्नसेन |
ह्रदय | सिंहलगढ़ |
बुद्धि | पद्मावती |
दुनिया धंधा/ सांसारिकता | नागमती |
गुरु | हीरामन तोता |
माया | अलाउद्दीन खिलजी |
शैतान | राघव चेतन |
पद्मावत के स्वरूप के बारे में विभिन्न विद्वानों के मत :
पद्मावत में प्रेम की प्रधानता निर्विवाद है किंतु इसके स्वरूप को लेकर विद्वानों में मतभेद रहा है। जो इस प्रकार से है : —
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार :
- शुक्ल जी ने पद्मावत के प्रेम को अलौकिक, एकांतिक एवं आध्यत्मिक माना है ।
- इन्होंने पद्मावत को समासोक्ति व अन्योक्क्तिपरक काव्य माना है।
- शुक्ल जी के अनुसार पद्मावत‘ हिंदी साहित्य का जगमगाता रत्न‘ है ।
- शुक्ल के अनुसार प्रबंध के क्षेत्र में पद्मावत का स्थान रामचरितमानस के बाद दूसरा है।
विजय देव नारायण साही के अनुसार :
- विजयदेव नारायण साही ने पद्मावत के प्रेम को लौकिक माना है। इनके अनुसार जायसी को बैकुंठी प्रेम की तलाश नहीं है बल्कि वह तो ऐसा प्रेम चाहते हैं जो प्रेम करने वाले कोई बैकुंठी बना दे।
- जायसी यदि सूफी है तो कुजात सूफी हैं ।
- जायसी पहले कवि है बाद में सूफी है।
- पद्मावत एक महाकाव्यात्मक त्रासदी है।
माता प्रसाद गुप्त के अनुसार :
- पद्मावत ना तो समासोक्ति है ना ही अन्योक्ति बल्कि वह तो ‘सव्भावोक्ति’ है और जो कुछ उसके स्वभाव में है वह है – प्रेम।
वासुदेवशरण अग्रवाल ने पद्मावत की ‘संजीवनी टीका’ लिखी है। इसका 1956 ईस्वी में दूसरा साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है।
- इन्होंने जायसी को पृथ्वी पुत्र की संज्ञा दी है । ‘पृथ्वी पुत्र’ नाम से इन्होंने निबंध संग्रह भी लिखा है।
अन्य तथ्य
- 1650 ई. में अलाओल (अलोउजाला) ने ठाकुर वजीर मोहन के कहने पर पद्मावत का बांग्ला में अनुवाद किया।
“सन नव सौ सत्ताईस अहा “
- उपरोक्त पंक्ति पद्मावत के रचनाकाल को संकेतित कर रही है।
- पद्मावत की कडवक बद्धता में सात अर्धालियों पर दोहा का प्रावधान मिलता है।
- जायसी के दो गुरु हैं : शेख मोहिदी और सैय्यद अशरफ इब्राहिम।
- ग्रियर्सन ने शेख मोहिदी को ही जायसी का गुरु माना है।
- अमेठी से 1 मील दूर वर्तमान कोट नामक स्थान पर जायसी की कब्र बनी हुई है।
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एक गुजारिश :
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