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Laukik Sahitya | लौकिक साहित्य एवं प्रमुख गद्य ग्रन्थ


Laukik Sahitya | लौकिक साहित्य एवं प्रमुख गद्य ग्रन्थ: आदिकाल में कुछ लौकिक और गद्य ग्रंथों की रचनाएं हुई है जो निम्नानुसार है :



राउलवेल | Raulvel

  • रोड़ा या रोड इसके रचनाकार माने जाते हैं।
  • यह एक गद्य पद्य मिश्रित प्राचीन चंपू शैली का प्राचीनतम उदाहरण है।
  • इसमें किसी हुणी नारी की प्रशंसा में नख – शिख सौंदर्य का वर्णन आया है।
  • यहीं से नख-शिख सौंदर्य की शुरुआत मानी जाती है।
  • राउलवेल संयोग श्रृंगार की आधार रचना है।
  • यहां राजस्थानी, पंजाबी आदि बोलियों का प्रभाव देखा जा सकता है।
  • यह एक शिलांकित रचना है।
  • इसका मूल पाठ मुंबई के प्रिंस ऑफ वेल्स के म्यूजियम में सुरक्षित रखा गया है।
  • सर्वप्रथम भयाणी ने इसे संपादित किया।
  • बाद में माता प्रसाद गुप्त ने इसका प्रामाणिक पाठ संपादित किया ।
  • यह राउलवेल 10वीं -11वीं सदी की रचना है।
  • कुछ विद्वानों ने राउलवेल की भाषा में अवधि का प्रारंभिक रूप देखा है ।

वसंत विलास | Vasant Vilas

  • इसमें कुल 84 दोहे मिलते हैं।
  • यह सर्वश्रेष्ठ अलौकिक रचना मानी जाती है।
  • इसके रचनाकार अज्ञात है।
  • यह एक अलौकिक श्रृंगारिक कृति है।
  • इसमें बसंत ऋतु के मादक प्रभाव का चित्रण किया गया है।
  • इस रचना में स्त्री, पुरुष और प्रकृति तीनों के सौंदर्य का चित्रण किया है।

ढोला मारु रा दूहा | Dhola Maru Ra Duha

  • यह 11 वीं सदी में रचित राजस्थानी लोक भाषा का अलौकिक काव्य है।
  • यह वियोग श्रृंगार की रचना है।
  • इसका नायक ढोला है। और नायका मारवाणी है।
  • इसमें मारवणी का विरह दिखलाया गया है।
  • इसमें प्रेमी जीवन के नाना घात-प्रतिघातों का सुंदर चित्रण किया गया है।
  • इसके रचनाकार कवि कल्लोल है।

संदेश रासक | Sandesh Rasak

  • इसके रचनाकार रचनाकार अब्दुर्रहमान है।
  • यह 11 वीं 12 वीं सदी के हैं।
  • ये हिंदी के पहले मुस्लमान कवि हैं ।

यह 3 प्रकमो में विभाजित है :

  1. मंगलाचरण
  2. विरह वर्णन
  3. षडऋतु वर्णन
  • इसमें 223 छन्द प्राप्त होते हैं।
  • संदेश रासक वियोग श्रृंगार की उत्कृष्ट रचना मानी जाती है ।

इसे आदिकाल का मेघदूत कहा जाता है।

  • पद्मावत के विरह वर्णन पर संदेश रासक का प्रभाव दिखलाई देता है।
  • संदेश रासक में वनस्पतियों की एक लंबी सूची प्रस्तुत की गई है। ठीक इसी प्रकार
    पद्मावत में भी पकवानों एवं व्यंजनों की एक लंबी सूची प्रस्तुत की गई है।


प्राकृत पैंगलम |Prakrit Painglam

  • यह 14वीं सदी की रचना है। यह एक छंद शास्त्र विषयक रचना है।
  • आदिकालीन काव्य रूढ़ियों और परंपराओं को समझने के लिए यह एक उपयोगी ग्रंथ है ।
  • प्राकृतिक पैंगलम विभिन्न वर्गों की आर्थिक दशा पर प्रकाश डालती है।
  • आदिकालीन प्रारंभिक हिंदी भाषा और छंदों को समझने के लिए यह एक उपयोगी ग्रंथ है।

उक्ति व्यक्ति प्रकरण | Ukti Vyakti Prakaran

  • यह 12वीं सदी की रचना है ।
  • इसके रचनाकार दामोदर भट्ट है।
  • राजकुमारों को देशी भाषा की शिक्षा देने के लिए यह ग्रंथ लिखा गया ।
  • यह ग्रंथ 5 प्रकरणों में विभाजित है।
  • यह ग्रंथ व्याकरण ग्रंथ के जैसा प्रतीत होता है ।
  • आदि काल में रचित एक गद्य ग्रंथ है ।
  • स्वयं दामोदर शर्मा इस ग्रंथ की भाषा को अपभ्रंश मानते हैं।
  • लेकिन प्रख्यात भाषाविद सुनिति कुमार चटर्जी ने इसकी भाषा को प्राचीन कौसली (अवधी) माना है।

वर्ण रत्नाकर | Varn Ratnakar

  • 1325 ईस्वी में ज्योतिरीश्वर ठाकुर ने वर्ण रत्नाकर की रचना की ।
  • यह भी एक गद्य ग्रंथ है।
  • ये शब्दकोश सा प्रतीत होता है ।
  • यह रचना 8 कल्लोल में विभाजित है।
  • यह रचना मैथिली गद्य की प्रथम रचना मानी जाती है।
  • इस रचना में पहली बार अवहट्ठ शब्द का प्रयोग मिलता है।
  • बाद में विद्यापति की कीर्तिलता में भी अवहट्ठ शब्द का प्रयोग मिलता है।

रणमल छंद | Ranmal Chhand

  • 1397 ईस्वी में श्रीधर ने इसकी रचना की ।
  • यह एक वीर प्रशस्ति है।
  • इसमें ईडर के राठौड़ राजा रणमल की वीरता का चित्रण है।
  • 14वीं सदी के अंत तक आते-आते अपभ्रंश से नव्य आर्य भाषाओं का उदय
  • किस प्रकार से हो रहा था? उसे इस ग्रंथ में देखा जा सकता है ।

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एक गुजारिश :

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