Aadhunik Kaal | आधुनिक काल एवं भारतेन्दु हरिश्चंद्र
नमस्कार दोस्तों ! आज हम Aadhunik Kaal | आधुनिक काल के बारे में अध्ययन करने जा रहे है तथा साथ ही आधुनिक काल के प्रमुख कवि भारतेन्दु हरिश्चंद्र और उनकी रचनाओं के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करने वाले है तो आइए समझते है :
Aadhunik Kaal | आधुनिक काल : आधुनिक काल को गद्य युग भी कहा जाता है क्योंकि आधुनिक काल में गद्य का महत्व काफी बढ़ गया था। विचारों को प्रकट करने के लिए गद्य को अधिक सार्थक समझा जाता था।
आधुनिकता से तात्पर्य : जब साहित्य में धर्म और दरबार महत्वहीन होकर मनुष्य मात्र की समस्याओं का अध्ययन किया जाने लगा तब साहित्य का स्वरूप आधुनिक हो गया। जब साहित्य में बड़े-बड़े मठों और दरबारों के स्थान पर समाज और राष्ट्र की समस्याएं व्यक्त होने लगी तो साहित्य का स्वरूप आधुनिक हो गया। जिसे हम आधुनिक साहित्य कहते हैं।
इसके प्रधान लक्षण इस प्रकार है :
- समाज सुधार की भावना।
- अलौकिक के स्थान पर ऐहिकता की प्रधानता।
- अखंडित राष्ट्रीय चेतना की भावना।
- अंग्रेजों के प्रति आक्रोश एंव स्वाधीनता प्राप्ति की आकांक्षा।
- मनुष्य मात्र की समस्याओं का अध्ययन।
- वैज्ञानिक सोच के प्रति आग्रह।
हिंदी साहित्य में आधुनिक चेतना के वाहक बने – भारतेंदु हरिश्चंद्र।
Aadhunik Kaal | आधुनिक काल का प्रारंभ
आधुनिक काल के प्रारम्भ को लेकर अलग-अलग विद्वानों के अलग-अलग मत है। जिनमें कुछ मुख्य निम्नानुसार है :
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 1843 ई. (संवत 1900) से आधुनिक काल का प्रारंभ माना है।
- डॉ .नगेंद्र और गणपति चंद्रगुप्त ने 1857 ई. से आधुनिक काल की शुरुआत मानी है।
- कुछ विद्वान भारतेंदु के जन्म के साथ 1850 ई. से ही आधुनिक काल की शुरुआत मानते हैं।
- भारतेंदु काल की वास्तविक शुरुआत 1868 ई. से रामविलास शर्मा ने मानी है।
- भारतेंदु काल से ही आधुनिक काल की शुरुआत मानी जाती है।
- ये भारतेन्दु युग के वैतालिक माने जाते हैं।
- ये नवजागरण के अग्रदूत माने जाते हैं।
- भारतेंदु धनवान राजकुमार माने जाते हैं।
- डॉ. नगेंद्र ने भारतेंदु काल को पुनर्जागरण काल की संज्ञा दी है और
- रामविलास शर्मा ने भारतेंदु काल को नवजागरण काल की संज्ञा दी है।
भारतेंदु कालीन कविता की मुख्य प्रवृतियां :
भारतेंदु कालीन कविता की मुख्य प्रवृतियां निम्न बिन्दुओं से स्पष्ट होती है :
- ऐहिकता की प्रधानता।
- समाज सुधार की भावना।
- राष्ट्रीय चेतना की अभिव्यक्ति।
- अखंडित एकता की भावना।
- गद्य विधाओं का जन्म।
- अनुवाद की प्रवृत्ति।
- समस्यापूर्ति।
- प्रकृति के उद्दीपनकारी रूप के साथ-साथ आलंबन रूप का भी चित्रण मिलता है।
- देशभक्ति बनाम राज भक्ति का द्वंद मिलता है :
“अंग्रेज राज सुख साज सजै सब भारी ।
पै धन विदेश चलि जात ह्वै यह अति ख्वारी।।”
- कविता के लिए ब्रज भाषा एवं गद्य के लिए खड़ी बोली पर बल दिया गया है।
खड़ी बोली गद्य के निर्माण में भारतेंदु का योगदान :
सरस्वती पत्रिका से पहले ही हरिश्चंद्र चंद्रिका पत्रिका में भारतेंदु ने सुव्यवस्थित गद्य का निर्माण कर दिया था। भारतेंदु से पूर्व हिंदी गद्य अनेक अतिवादी पनाओं में झूल रहा था।
इंशा अल्लाह खां | चटकीलापन, मुहावरेदार |
सदल मिश्र | पूर्वीपन |
लल्लू लाल | ब्रजभाषापन |
सदासुखलाल नियाज | पंडिताऊपन, चलती हुई भाषा, साधुभाषा (आचार्य शुक्ल के अनुसार) |
शिवप्रसाद सितारे हिंद | फारसीपन, विदेशीपन |
लक्ष्मण सिंह | संस्कृतनिष्ठपन, विशुद्धापन |
भाषा को इन अतिरेकों से मुक्त करते हुए भारतेंदु ने कालचक्र नामक इतिहास डायरी में नोट किया :
“हिंदी नई चाल में ढली और इसकी वाहक बनी – हरिश्चंद्र चंद्रिका।”
भारतेन्दु हरिश्चंद्र ने अपने जीवन काल में 4 पत्रिकाओं का संपादन किया :
- कविवचन सुधा – 1868 ई.
- हरिश्चंद्र मैगज़ीन -1873 ई.
- हरिश्चंद्र चंद्रिका – 1873 ई.
- बाला बोधिनी – 1874 ई.
फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना गवर्नर जनरल लॉर्ड वेलेजली के समय 1800 ई. में बंगाल के कोलकाता में हुई। इस कॉलेज के अध्यक्ष जॉन गिलक्राइस्ट थे और कॉलेज के अंदर कार्यरत अध्यापक (भाषा मुंशी) लल्लू लाल और सदल मिश्र थे तथा कॉलेज के बाहर इंशाअल्लाह खां और सुखलाल नियाज थे।
हिंदी साहित्य में प्रथम रचना माने जाने वाली कुछ रचनाएं और रचनाकार
लल्लू लाल | खड़ी बोली शब्द के प्रथम प्रयोक्ता |
प्रेम सागर रचना – लल्लू लाल | आधुनिक काल का प्रथम गद्य ग्रंथ |
अमीर खुसरो | खड़ी बोली हिंदी के पहले कवि |
सरहपा | हिंदी के पहले कवि |
स्वयंभू | हिंदी का पहला महान कवि |
श्रावकाचार (देवसेन) | ग्रंथ के रूप में हिंदी की प्रथम रचना |
चंदबरदाई | हिंदी के प्रथम महाकवि |
पृथ्वीराज रासो | हिंदी का पहला महाकाव्य |
चंद-छंद बरनन की महिमा | खड़ी बोली गद्य का पहला ग्रंथ |
भाषायोग वशिष्ठ | खड़ी बोली गद्य का पहला प्रौढ़ या परिमार्जित ग्रंथ |
सदल मिश्र | खड़ी बोली शब्द के द्वितीय प्रयोक्ता |
श्रीधर पाठक | यह हिंदी के पहले स्वच्छंदतावादी एवं समर्थ कवि |
प्रियप्रवास | खड़ी बोली हिंदी का पहला महाकाव्य |
भारतेन्दु हरिश्चंद्र | Bharatendu Harishchandra
Aadhunik Kaal | आधुनिक काल एवं भारतेन्दु हरिश्चंद्र : भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर,1850 ई. में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ। इनमें बहुमुखी प्रतिभा थी। हिंदी पत्रकारिता और नाटक व काव्य में उनका बहुत योगदान रहा है। भारतेन्दु हरिश्चंद्र से ही नाटकों का प्रारम्भ भी माना जाता है।
इनका नाम हरिश्चंद्र था और भारतेंदु की उपाधि 1880 ई. में समकालीन साहित्यकारों व पत्रकारों ने प्रदान की थी। भारतेंदु ने “तदीय समाज” की स्थापना 1873 ई. में की।
भारतेंदु कालीन विशेषताएं :
- सामाजिकता की भावना।
- भारतेंदु की कविता में अंग्रेजों के प्रति व्यंग्य और आक्रोश की अभिव्यक्ति है।
- जनपदीय भाषा का प्रयोग।
- व्यंग्य, पैरोडी, स्यापा, गाली भी लिखी है।
- भारतेंदु ने मुकरियां भी लिखी हैं।
- श्रृंगारिक चेतना की अभिव्यक्ति।
भारतेंदु की भक्ति भावना की रचनाएं :
गौण मात्रा में ही सही, लेकिन भारतेंदु ने भक्ति भावना की रचनाएं भी लिखी है जो इस प्रकार है :
- तदीय सर्वस्व
- प्रेम मालिका
- वैशाख महातम्य
- भारतेंदु के भक्ति भाव पर वल्लभ संप्रदाय का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है।
भारतेंदु की ब्रज भाषा में रचित रचनाएं :
- प्रेम मालिका
- प्रेम सरोवर
- वर्षा विनोद
- प्रेम माधुरी
- प्रेम पचासा
- वेणु गीती
- प्रेम फुलवारी
- गीत गोविंदानंद
- भारतेंदु ‘रसा‘ उपनाम से बृज भाषा में कविताएं लिखा करते थे।
- भारतेंदु का स्यापा प्रसिद्ध है :
” है है उर्दू हाय हाय, कहां सिधारी हाय हाय”
- इनकी समस्यापूर्ति प्रसिद्ध है :
“पिय प्यारे तिहारे निहारे बिना”
भारतेंदु की खड़ी बोली की कविताएं :
- भरत शिक्षा
- विजय वल्लरी
- विजयिनी विजय वैजयंती
- फूलों का गुच्छा
- दशरथ विलाप
- बकरी विलाप
- प्रातः सुमिरन
- रिपुनाष्टक
- बसंत होली
- प्रबोधिनी
- विजयिनी विजय वैजयंती में उत्कृष्ट देशभक्ति देखने को मिलती है तथा प्रातः सुमिरन बांग्ला के पयार छंद में लिखी गई है।
भारतेंदु की राज भक्ति की कविताएं :
- एडवर्ड सप्तम के प्रति
- महारानी विक्टोरिया के प्रति
- लार्ड रिपन के प्रति
भारतेंदु के काव्यानुवाद :
- नारद भक्तिसूत्र का अनुवाद तदीय सर्वस्व के नाम से किया है। शांडिल्य भक्तिसूत्र का अनुवाद भक्तिसूत्र वैजयंती के नाम से किया है।
- भारतेंदु ने अपनी रचना रस रत्नाकर में रीति तत्वों का सीधे-सीधे अनुसरण किया है। भारतेंदु ने कविता वर्धनी सभा की स्थापना बनारस में की थी।
भारतेंदु की चर्चित पंक्ति :
” निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
(भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है – निबंध से)
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटै, न हियै को सूल।।”
इसप्रकार अब आप आधुनिक काल और हिंदी साहित्य में आधुनिक चेतना के प्रमुख वाहक कवि/लेखक भारतेन्दु हरिश्चंद्र और उनकी रचनाओं के बारे में अच्छे से समझ गए होंगे। उम्मीद करते है कि आपको आज की जानकारी उपयोगी लगी होगी।
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एक गुजारिश :
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