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Pramukh Chhayavaadi kavi | महादेवी वर्मा एवं सुमित्रानंदन पंत
नमस्कार दोस्तों ! आज हम Pramukh Chhayavaadi kavi | प्रमुख छायावादी कवि महादेवी वर्मा एवं सुमित्रानंदन पंत के बारे में अध्ययन करने जा रहे है। आज के नोट्स में इनके संक्षिप्त जीवन परिचय तथा प्रमुख रचनाओं के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कर रहे है। तो आइए समझते है :
महादेवी वर्मा | Mahadevi Verma
महादेवी वर्मा हिंदी की प्रतिभावान कवयित्रियों में से हैं। ये हिंदी साहित्य के छायावादी युग के चार प्रमुख आधार स्तंभों में से एक मानी जाती है। इन्हें आधुनिक मीरा भी कहा जाता है। इनका जन्म होली के दिन 26 मार्च 1907 को फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ। महादेवी वर्मा विरह वेदना की विख्यात कवयित्री हैं।
इन्हें पीड़ावाद की कवयित्री, सजल गीतों की गायिका, आधुनिक मीरा आदि संबोधन दिए गए हैं। निराला ने महादेवी वर्मा को हिंदी के विशाल मंदिर की “वीणाकानि” कहा है । दीपक और बदली इनके प्रिय प्रतीक हैं।
महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएँ :
क्रम सं. | रचनाएँ | वर्ष |
---|---|---|
01. | निहार | 1930 |
02. | रश्मि | 1932 |
03. | निरजा | 1934 |
04. | सांध्यगीत | 1936 |
05. | यामा | 1940 |
06. | दीपशिखा | 1942 |
- “मैं नीर भरी दु:ख की बदली” — यह इनकी प्रतिनिधि कविता है और यह सांध्यगीत काव्य संग्रह में संकलित है।
- महादेव वर्मा ने चांद (प्रयाग) मासिक पत्रिका का अवैतनिक संपादन किया।
महादेवी वर्मा के प्रमुख रेखा चित्र :
क्रम सं. | रेखा चित्र | वर्ष |
---|---|---|
01. | अतीत के चलचित्र | 1941 |
02. | स्मृति की रेखाएं | 1943 |
03. | श्रृंखला की कड़ियां | – |
04. | मेरा परिवार | – |
महादेवी वर्मा के प्रमुख संस्मरण :
क्रम सं. | संस्मरण | वर्ष |
---|---|---|
01. | पथ के साथी | 1956 |
02. | मेरा परिवार | 1972 |
03. | संस्मरण | 1983 |
महादेवी वर्मा की चर्चित पंक्तियाँ :
“विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात”
“कीर का प्रिय आज पिंजर खोल दो”
“मिलन का मत नाम लो, मैं विरह में चिर हूं”
“तुमको पीड़ा में ढूँढा तुम में ढूँढूँगी पीड़ा”
“कैसे कहती हो सपना है अलि! उस मूक मिलन की बात”
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, —
“छायावादी कहे जाने वाले कवियों में महादेवी जी ही रहस्यवाद के भीतर रही हैं।”
महादेवी वर्मा के राष्ट्रगीत :
- “जाग! बेसुध जाग। जाग तुझको दूर जाना।”
- “पंथ होने दो अपरिचित।”
- “हे धरा के अमर सूत! तुझको अशेष प्रणाम।”
- “पूछता क्यों शेष कितनी रातें।”
सप्तपर्णा : यह भी एक काव्य संग्रह है।
सुमित्रानंदन पंत | Sumitranandan Pant
सुमित्रानंदन पंत का जन्म अल्मोड़ा के कौसानी ग्राम में 1900 में हुआ। इनके बचपन का नाम गुसाईं दत्त था। ये प्रकृति के सबसे बड़े कवि माने जाते हैं। इन्हें छायावाद का वर्ड्सवर्थ कहा जाता है।
पंत को शब्दों की आत्मा का ज्ञान है। ये स्वर सिद्ध के नाम से प्रसिद्ध है। पंत का काव्य विकसनशील काव्य का उदाहरण है। क्योंकि पंत का काव्यस्वर समय के साथ बदलता रहा है। इनकी पहली कविता “गिरजे का घंटा – 1916″है।
सुमित्रानंदन पंत की छायावादी कविताएं :
क्रम सं. | कविताएं | वर्ष |
---|---|---|
01. | उच्छवास | 1920 |
02. | ग्रंथि | 1920 |
03. | वीणा | 1927 |
04. | पल्लव | 1928 |
05. | गुंजन | 1932 |
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, — “वीणा के बाद ग्रंथि है, वीणा के ना बजने की।”
- डॉ. बच्चन सिंह के अनुसार,— “पंत का पहला काव्य संग्रह वीणा है।”
- नंददुलारे वाजपेई का प्रिय कवि जयशंकर प्रसाद है लेकिन इन्होंने छायावाद का प्रवर्तक सुमित्रानंदन पंत को माना है। इनके अनुसार उच्छवास से छायावाद की शुरुआत होती है।
- पंत का अंतिम छायावादी काव्य संग्रह गुंजन है। तथा पल्लव इनका प्रतिनिधि छायावादी काव्य संग्रह है। पल्लव संग्रह की कविताओं को पंत ने कल्पना के से विह्लल बाल की संज्ञा दी है।
- निराला ने अपनी कविताओं को “कल्पना के कानन की रानी” कहा है।
- पंत ने पल्लव की भूमिका में छायावादी काव्य भाषा, अलंकार, छंद, शिल्प सौंदर्य की समीक्षा कर दी है। इसलिए पल्लव को छायावाद का मेनिफेस्टो (घोषणा पत्र) कहते हैं।
पंत की पल्लव संग्रह में संकलित चर्चित कविताएं :
- आंसू की बालिका के प्रति
- मधुमास
- बादल
- छायाकाल
- नक्षत्र
- अनंग
- बालापन
- परिवर्तन
- नोट : – परिवर्तन पंत की आत्म संघर्ष व आत्म साक्षात्कार की कविता मानी जाती है। यह पंत की सर्वाधिक जटिल एवं ग्रंथिल रचना है।
पंत की गुंजन संग्रह में संकलित कविताएं :
- चांदनी
- अप्सरा
- नौका विहार
- भावी पत्नी के प्रति
- संध्या तारा
पंत की प्रगतिवादी रचनाएँ :
रचनाएँ | वर्ष |
---|---|
युगांत | 1936 |
युगवाणी | 1939 |
ग्राम्या | 1940 |
- युगांत को छायावाद के अंत का घोषणा पत्र कहा है।
पंत की युगांत में सम्मिलित चर्चित कविताएं :
- ताज
- बापू के प्रति
- द्रुत झरो
पंत की ग्राम्या में संकलित कविताएं :
- ग्राम वधू
- वे आंखें
- वह बूढ़ा
- संध्या के बाद
- ग्राम श्री
पंत की महर्षि अरविंद के अंतश्चेतनावादी दर्शन की रचनाएँ :
- स्वर्ण किरण :1946- 47
- स्वर्ण धूलि : 1947- 48
पंत की मानवतावादी दौर की रचनाएँ :
क्रम सं. | रचनाएँ | वर्ष |
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01. | युगपथ | 1949 |
02. | उत्तरा | 1949 |
03. | अतिमा | 1955 |
04. | वाणी | 1958 |
05. | कला और बूढ़ा चांद | 1959 |
06. | लोकायतन | 1964 |
07. | सत्यकाम | 1975 |
08. | चिदम्बरा | 1964 |
- उत्तरा में गीत विहग रचना शामिल है। गीत विहग रचना की चर्चित पंक्ति :-
“मैं नवमानवता का संदेश सुनाता
मै स्वाधीनलोक की गौरव गाथा गाता।”
पंत की अन्य रचनाएं :
- पतझर
- रश्मि
- स्वर्णिम चक्र
- समाधिता
पंत के गीतिनाटक :
- शिल्पी
- सौवर्ण
- ज्योत्सना
- रजत शिखर
- कला और बूढ़ा चांद काव्य कृति पर पंत को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है।
- चिदंबरा काव्य संग्रह पर 1968 में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है।
- लोकायतन पंत का एकमात्र महाकाव्य है जो गांधी जी के जीवन को आधार बनाता है।
- लोकायतन हिंदी की पहली काव्य कृति है। इसे रूस की सरकार द्वारा प्रथम सम्मान सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार दिया गया है।
पंत की अन्य कविताएं :
- पो फटने से पहले
- पावस ऋतु में पर्वत प्रदेश
- एक तारा
- मधुस्मिति
- छाया
पंत की चर्चित पंक्तियां :
“देवी मां! सहचरी! प्राण!”
“राजनीति का प्रहसन नहीं है रे आज।
एक वृहद सांस्कृतिक समस्या जग के निकट उपस्थित।।”
“प्रथम रश्मि का आना, रंगिणि तूने कैसे पहचाना।”
“बालिका मेरी मनोरम मित्र थी।”
“छोड़ द्रुमों की मृदु छाया, तोड़ प्रकृति से भी मोह माया।
बाले तेरे बाल जाल में कैसे उलझा दूं लोचन।।”
“खुल गए छंद के बंद।”
इसप्रकार दोस्तों ! आपको आज दो Pramukh Chhayavaadi kavi | प्रमुख छायावादी कवि महादेवी वर्मा एवं सुमित्रानंदन पंत और उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में अच्छी जानकारी हो गयी होगी। इस सभी महत्वपूर्ण रचनाओं और तथ्यों को आप अवश्य याद करे। ये आपके लिए अत्यंत उपयोगी साबित होंगे।
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एक गुजारिश :
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