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Hindi Sahitya Ke Nibandh | हिंदी साहित्य के निबंध
Hindi Sahitya Ke Nibandh (हिंदी साहित्य के निबंध) : हिंदी की अन्य विधाओं के समान ही हिंदी निबंध का प्रारम्भ भारतेंदु युग से ही माना जाता है। इस काल में समाज में एक नई चेतना देखने को मिली। इस काल में लोगों ने अपने विचारों को स्वतंत्रता पूर्वक अपने एक निजीपन के साथ प्रस्तुत किया ।
इस काल की पत्र-पत्रिकाओं में विविध विषयों पर विचार व्यक्त किए जाते थे। उन्हें हम हिंदी निबंध का प्रारंभिक रूप कहेंगे। निबंध इन पत्रिकाओं से सीधे जुड़े हुए थे । लेखक सामयिक राजनीतिक धार्मिक सामाजिक विषयों पर निबंधों के माध्यम से प्रकाश डालते रहते थे।
भारतेंदु युग के निबंधकारो ने साधारण व गंभीर दोनों विषयों पर निबंध रचना की है।
Hindi Sahitya Ke Nibandh | हिंदी साहित्य के निबंधों का विकास क्रम :
हिंदी निबंध के विकास को चार भागों में विभक्त करेंगे जो इस प्रकार है :
- भारतेंदु युग – 1873 से 1900
- द्विवेदी युग – 1900 से 1920
- शुक्ल युग –1920 से1940
- शुक्लोत्तर युग – 1940 के बाद
1. भारतेंदु युग
भारतेंदु जी के निबंध ही हिंदी के प्राथमिक निबंध है। इससे पहले के निबंधों में निबंध के गुण विद्यमान नहीं थे। इन्होने हिंदी गद्य की अनेक विधाओं का न केवल सूत्रपात किया बल्कि उन्हें पल्लवित भी किया।
भारतेंदु हरिश्चंद्र
- तदीय सर्वस्व
- हिंदी भाषा
- वैद्यनाथ की यात्रा
- भारतवर्ष की उन्नति कैसे हो सकती है
- मणिकर्णिका
बालकृष्ण भट्ट
- ईश्वर भी क्या ठिठोल है
- चली सो चली
- देवताओं से हमारी बातचीत
- खटका
- नए तरह का जुनून
- बाल विवाह
प्रताप नारायण मिश्र
- धोखा
- खुशामद
- आप
- बात
- दांत
- भौं मुच्छ
- नारी
- परीक्षा
- है -है
- मनोयोग
- समझदार की मौत है
बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन
- नेशनल कांग्रेस की दुर्दशा
- भारतीय प्रजा के दुख की दुहाई और ठिठाई पर गवर्नमेंट की कडाई
2. द्विवेदी युग
पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी
- रसज्ञरजंन लेखांजलि
- म्युनिसिपालिटी के कारनामे
- प्रभात, आत्मनिवेदन
- सुपराधे जनकस्य दण्ड:
- भाषा और व्याकरण
बालमुकुंद गुप्त
- शिव शंभू का चिट्ठा
सरदार पूर्ण सिंह
- सच्ची वीरता
- कन्यादान
- पवित्रता
- आचरण की सभ्यता
- मजदूरी और प्रेम
- ब्रह्मक्रांति
- अमेरिका का मस्ताना
- योगी वाल्ट हिटमैन
भगवतशरण उपाध्याय
- ठंडा आम
- साहित्य और कला
- इतिहास साक्षी है
हरिवंश राय बच्चन
- नए पुराने झरोखे
- टूटी छुटी कड़ियां
चंद्रधर शर्मा गुलेरी
- कछुआ धर्म
- मोरेसिमोहि कुंठाव
- काशी
- जय जमुना मैया जी
पदम सिंह शर्मा
- पदम पराग
- प्रबंध मंजरी
3. शुक्ल युग
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने चिंतामणि में अपने निबंध संकलित किए हैं। उनके निबंध दो प्रकार के हैं :-
- साहित्यिक समीक्षा संबंधी विचार
- मनोविकार संबंधी निबंध
आचार्य रामचंद्र शुक्ल
1. साहित्यिक समीक्षा संबंधी विचार
- विचार बीथी
- मानस की धर्म भूमि
- काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था
- साधारणीकरण और व्यक्ति वैचित्र्यवाद
- रसात्मक बोध के विविध रूप
- चिंतामणि -1,2,3,4
- कविता क्या है
2. मनोविकार संबंधी निबंध
- उत्साह
- लज्जा और ग्लानि
- श्रद्धा -भक्ति
- क्रोध
- भाव या मनोविकार
- लोभ और प्रीति
- घृणा
- ईर्ष्या
- भय
- करुणा
बाबू गुलाब राय
- ठलुआ क्लब
- फिर निराशा क्यों
- मेरी असफलताएं
- कुछ उथले कुछ गहरे
पदमलाल पुन्नालाल बख्शी
- पंच पात्र
- कुछ
वासुदेव शरण अग्रवाल
- पृथ्वी पुत्र
- माता भूमि
- कला और संस्कृति
- वेद विद्या
- वाग्धारा
4. शुक्लोत्तर युग
हजारी प्रसाद द्विवेदी
- अशोक के फूल
- कल्प लता
- विचार और वितर्क
- विचार प्रवाह
- कुटज
- आलोक पर्व
- नाखून क्यों बढ़ते हैं
- देवदारू
- बसंत आ गया
नंददुलारे वाजपेई
- हिंदी साहित्य बीसवीं सदी
- आधुनिक साहित्य
- नया साहित्य नए प्रश्न
- राष्ट्रभाषा की कुछ समस्याएं
- राष्ट्रीय साहित्य
- नई कविता
- रस सिद्धांत
- हिंदी साहित्य का आधुनिक युग
- आधुनिक साहित्य: सृजन और समीक्षा
- रीति और शैली
डॉ नगेंद्र
- विचार और अनुभूति
- आधुनिक हिंदी कविता की मुख्य प्रवृतियां
- विचार विश्लेषण
- विचार और विवेचन
- अनुसंधान और आलोचना
- आलोचक की आस्था
- आस्था के चरण
- यौवन के द्वार पर
- चेतना के बिंब
रामधारी सिंह दिनकर
- मिट्टी की ओर
- अर्धनारीश्वर
- रेती के फूल
- हमारी सांस्कृतिक एकता
- वेणु वन
- उलझी आग
- वट पीपल
- प्रसाद
- पंत
- मैथिलीशरण गुप्त
- शुद्ध कविता की खोज
- संस्कृति के चार अध्याय
- दोष रहित दूषण सहित
शांतिप्रिय द्विवेदी
- संचारिणी
- सामयिकी
- धरातल
- आधान
- साकल्य
- साहित्यिकी
शिवपूजन सहाय
- कुछ
अमृतराय
- रम्या
- बतरस
- आनंद कम
- विजिट इंडिया
- बाइस्कोप
रामदरश मिश्र
- कितने बजे हैं
- बबूल और कैक्टस
- घर परिवेश
- छोटे-छोटे सुख
नामवर सिंह
- बलकम खुद
- वाद विवाद संवाद
विद्यानिवास मिश्र
- चितवन की छांह
- कदम की फूली डाल
- तुम चंदन हम पानी
- आंगन का पंछी और बंजारा मन
- मैंने सिल पहुंचाई
- बसंत आ गया पर कोई उत्कंठा नहीं
- मेरे राम का मुकुट भीग रहा है
- परंपरा बंधन नहीं
- तमाल के झरोखे से
- शैफाली झर रही है
- भाव पुरुष श्री कृष्ण
महादेवी वर्मा
- श्रृंखला की कड़ियां
- क्षणदा
- साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध
- संभाषण
- भारतीय संस्कृति के स्वर
- संकल्पिता
विश्वनाथ प्रसाद मिश्र
- महावीर तीर्थ की यात्रा
- हां मिथिके
कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर
- नई पीढ़ी नए विचार
- जिंदगी मुस्कुराई
- बाजे पायलिया के घुंघरू
रामविलास शर्मा
- प्रगति और परंपरा
- साहित्य और संस्कृति
- भाषा साहित्य और संस्कृति
- प्रगतिशील साहित्य की समस्याएं
- लोक जीवन और साहित्य
- स्वाधीनता और राष्ट्रीय साहित्य
- आस्था और सौंदर्य
- परंपरा का मूल्यांकन
- विराम चिन्ह
अज्ञेय
- त्रिशंकु
- सबरंग और कुछ राग
- आत्मनेपद
- आल बाल
- लिखी कागद कोरे
- अद्यतन
- जोग लिखी
- स्रौत और सेतु
- युग संधियों पर
- धार और किनारे
- कहां है द्वारका
- छाया का जंगल
- स्मृति छंद
- हिंदी साहित्य एक आधुनिक परिदृश्य
जयशंकर प्रसाद
- काव्य कला तथा अन्य निबंध
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
- प्रबंध प्रतिमा
- चाबुक
- प्रबंध पूर्णिमा
- चयन संग्रह
जैनेंद्र
- जड़ की बात
- साहित्य का श्रेय और प्रेय
- मंथन
- इस्तत:
सियारामशरण गुप्त
- झूठ-सच
कुबेरनाथ रॉय
- प्रिया नीलकंठी
- रस आखेटक
- गंधमाधन
- विषाद योग
- निषाद बांसुरी
- पर्णमुकुट
- महाकवि की तर्जनी
- कामधेनु
- गराल
- उत्तर कुरु
रामवृक्ष बेनीपुरी
- लाल तारा
- गेहूं और गुलाब
- वंदे वाणी विनायको
देवेंद्र सत्यार्थी
- धरती गाती है
- एक युग एक प्रतीक
- रेखाएं बोल उठी
भवानी प्रसाद मिश्र
- जिन्होंने मुझे रचा
मुक्तिबोध
- नई कविता का आत्म संघर्ष
- नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र
- एक साहित्यिक की डायरी
केदारनाथ अग्रवाल
- समय-समय पर
दूधनाथ सिंह
- लौट आ ओ धार
विष्णु प्रभाकर
- हम जिनके ऋणी
धर्मवीर भारती
- ठेले पर हिमालय
- पश्यन्ती
- कहनी-अनकहनी
- कुछ चेहरे कुछ चिंतन
- शब्दिता
शिवप्रसाद सिंह
- शिखरों के सेतु
- कस्तूरी मृग
- चतुर्दिक
- मानसी गंगा
- किस किसको नमन करूं
- क्या कहूं कुछ कहा न जाए
निर्मल वर्मा
- चीडों पर चांदनी
- हर बारिश में
- शब्द और स्मृति
- कला का जोखिम
- ढलान से उतरते हुए
- शताब्दि के ढलते वर्षों में
ये भी अच्छे से जाने :
एक गुजारिश :
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