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Ras Ke Prakar With Example | रस के प्रकार एवं उदाहरण | रस विवेचन


Ras Ke Prakar With Example | रस के प्रकार एवं उदाहरण | रस विवेचन : दोस्तों ! इस पोस्ट में हम आपको रस से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण व रोचक बातें बताएंगे जो परीक्षा की दृष्टि से महत्व रखती है । इसमें हम Ras Ke Prakar With Example | रस के प्रकार एवं उदाहरण | रस विवेचन का अध्ययन करेंगे।



Ras Ke Prakar With Example | रस के प्रकार : रस के प्रकार इस प्रकार है :

  • श्रृंगार रस
  • भयानक रस
  • रौद्र रस
  • वीर रस
  • वीभत्स रस
  • अद्भुत रस
  • करुण रस
  • शांत रस
  • हास्य रस
  • वात्सल्य रस
  • भक्ति रस

श्रृंगार रस | Shringar Ras :

जैसा कि आप जानते हैं श्रृंगार रस को “रसराज” कहा जाता है और श्रृंगार रस को रसराज की संज्ञा आचार्य भोजराज ने दी है।

श्रंगार रस का रंग श्याम
देवता विष्णु
स्थायी भाव रति

श्रृंगार रस के पक्ष :

श्रृंगार रस के पक्ष : इसके 2 पक्ष होते हैं –

  1. वियोग श्रृंगार (विप्रलम्भ श्रृंगार)
  2. संयोग श्रृंगार

वियोग श्रृंगार :

वियोग श्रृंगार की चार स्थितियां होती है :-

  • पूर्वानुराग
  • मान
  • प्रवास
  • करुण

इन चार स्थितियों को निर्धारित करने वाले आचार्य रुद्रट हैं।

वियोग श्रृंगार की 10 अवस्थाएं होती है जो इस प्रकार है :-

  1. चिंता
  2. स्मृति
  3. अभिलाषा
  4. गुण कथन
  5. प्रलाप
  6. उद्वेग
  7. व्याधि
  8. उन्माद
  9. जड़ता
  10. मरण

श्रृंगार रस को रसराज कहे जाने के आधार :

  • श्रृंगार रस की प्रकृति सार्वभौमिक होती है, चाहे कोई रसिक हो अथवा अरसिक, शिक्षित हो अथवा अशिक्षित यह सभी को प्राप्त होता है।
  • इसके दो पक्ष होते हैं – संयोग और वियोग । अतः यह व्यापक रस है।
  • इसका स्थायी भाव है – रति। रति शब्द का अर्थ व्यापक है। मनोनुकूल सभी क्षेत्रों में सुख का संवेदन करने वाली इच्छा को रति कहा जाता है।
  • सबसे महत्वपूर्ण कारण यह है कि श्रृंगार रस में 33 संचारियों का संचरण हो जाता है। यहां तक कि आलस्य, मरण, त्रास, संचारी एवं जुगुप्सा व आलस्य के भाव जो संयोग श्रृंगार में वर्जित माने जाते हैं, उनका समावेश भी वियोग श्रृंगार में हो जाता है।

वियोग श्रृंगार के उदाहरण

“कागद पर न लिखत बनत, संदेश कहत लजात।
जानत है तेरो हियो मेरे हिय की बात।।”


वियोग श्रृंगार का करुण रस से अंतर यह है कि करुण रस में नायक या नायिका का पुनर्मिलन नहीं होगा लेकिन वियोग श्रृंगार में मिलन की आशा बनी रहती है। जैसे :

“रकत धरा मांसु गरा ,हाड भये सब संख।
धनी सारस ररि मूई आवहु लेहू समेटहु पंख।।”


यदि वियोग श्रृंगार के साथ वीभत्स रस का मिलन दिखलाई दे तो वहां अंगीरस के रूप में वियोग श्रृंगार ही माना जाएगा।
प्रकृति की सजावट का विधान भी श्रृंगार के अंतर्गत ही आता है।

संयोग श्रृंगार के उदाहरण

“बतरस लालच लाल की मुरली धरी लुकाय
सौंह करें भौंहनु हंसे देन कही नटि जाए।

“बूझत स्याम कौन तू गोरी ?
कहां रहत काकी तू बेटी, देखी कहूं ब्रज की खोरी।।”


भयानक रस | Bhayanak Ras :

जब किसी भयानक व्यक्ति या वस्तु को देखने से उससे संबंधित वर्णन सुनने से मन में भय उत्पन्न हो, उसे भयानक रस कहा जाता है।

भयानक रस का रंगकाला या कृष्ण
देवता कालदेव
स्थायी भावभय

भयानक रस के उदाहरण


“गोल कपोल पलट कर सहसा बने भिडो के छत्तो से,
हिलने लगे उष्ण सांसो से होठ लपालप लत्तो से ,
कुंदली से दांत हो गए बढ बराह की दाढो से,
विकृत भयानक रोद्र रस प्रकटा पूरी बाढो से।।”

“उधर गरजती सिंधु लहरिया, कठिन काल के जालो सी
चली आ रही फैन उगलती, फन फैलाए व्यालों सी।।”


“कभी अचानक भूतों का सा प्रकट विकट महाआकार
कड़क – कड़क कर हंसते हम सब थर्रा उठता है संसार।।”


रौद्र रस | Rodra Ras :

रौद्र रस काव्य का एक रस है । इसमें क्रोध का भाव होता है । जब अपने गुरुजन या माता-पिता की निंदा करने से जो क्रोध उत्पन्न होता है, उसे रौद्र रस कहते हैं या एक पक्ष द्वारा दूसरे पक्ष को अपमान करने से जो क्रोध आता है, उसे रोद्र रस कहा जाता है ।

क्रोध के कारण मुख लाल ह़ो जाना, भोहें चढ़ाना, शस्त्र चलाना आदि भाव उत्पन्न होते हैं।

रौद्र रस का रंगलाल या रक्त
देवतारूद्र
स्थायी भावक्रोध

रौद्र रस के उदाहरण

“उस काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा।
मानो हवा के जोर से सोता हुआ सागर जागा।



वीर रस | Veer Ras :

अपने शत्रु के उत्कर्ष को मिटाने, दुखियों की दुर्दशा देख उनका उद्धार करने और धर्म का उद्धार करने आदि में जो उत्साह मन में उमड़ता है, वही वीर रस कहलाता है।

इस रस के चार भेद होते हैं :

  • दानवीर
  • धर्मवीर
  • युद्धवीर
  • दयावीर
वीर रस का रंगगौर वर्ण
देवतामहेंद्र
स्थायी भावउत्साह
  • वीर रस में एक संयम का भाव दिखता है जबकि रौद्र रस में असंयम का भाव दिखता है।
  • तथा वीर रस में विवेक का भाव दृष्टिगोचर होता है जबकि रौद्र रस में अविवेक का भाव दृष्टिगोचर होता है।

वीर रस के उदाहरण

“मैं सत्य कहता हूं सखे सुकुमार मत जानो मुझे,
यमराज से भी युद्ध में सदा प्रस्तुत समझो मुझे।।”

“दावा द्रुम दण्ड पर चीता मृग झुण्ड पर,
भूषण वितुण्ड पर जैसे मृगराज है।।” (युद्धवीर)

“वेद राखे विदित पुराण राख्यो सारयुत,
राम नाम राख्यो आनि रसना सुधर में।।” (धर्मवीर)

“क्षमा शोभती उस भुजंग को,
जिसके पास गरल हो ।।” (दया वीर)

“ऐसे समय सिवराज देत ऐसे गजराज,
जिन्हें पाय होत कविराज बेफिकिर है।” (दानवीर)


वीभत्स रस | Vibhats Ras :

घृणित वस्तुओं ,चीजों या घृणित व्यक्ति को देखकर या उसके बारे में विचार करके मन में उत्पन्न होने वाली घृणा ही वीभत्स रस की सृष्टि करती है।

वीभत्स रस का रंगनीला
देवतामहाकाल
स्थायी भावजुगुप्सा

वीभत्स रस में अस्थि, मांस, मज्जा, खून, थूक, रक्त, हड्डी, रुंड -मुंड आदि शब्द होते हैं ।


वीभत्स रस के उदाहरण

“कहूँ रूंड – मुंड कहूँ कुण्ड भरै स्रोनित के,
कहूँ बख्तर करि झुण्ड झपकत है।।”

“स्रोनित सो सानि -सानि गुदा खात सतुआ से,
प्रेत एक पीयत है बहोरि धोरि- धोरि कै।


अद्भुत रस | Adbhut Ras :

विचित्र और आश्चर्यजनक वस्तुओं को देखकर ह्रदय में जो विस्मय आदि के भाव उत्पन्न होते हैं, उन्हें अद्भुत रस कहा जाता है।

अद्भुत रस का रंगनीला
देवताब्रह्मा
स्थायी भावविस्मय/ आश्चर्य

अद्भुत रस के उदाहरण

“केशव कहि न जाय का कहिये,
देखत तब रचना विचित्र अति,
समझे मन ही मन रहीयै।।”



करुण रस | Karun Ras :

प्रेमी से सदैव के लिए बिछुड़ जाने या दूर चले जाने से जो दु:ख या वेदना होती है, उसे करुण रस कहते हैं। जहां दुबारा मिलने की आशा समाप्त रहती है, वहां करुण रस होता है ।

इसमें रोना, छाती पीटना,जमीन पर गिर जाना आदि भाव रहते हैं।

करुण रस का रंगकपोत वर्ण
देवतायमराज
स्थायी भावशोक

करुण रस के उदाहरण

“वह आता दो टूक कलेजे के करता
पछताता पथ पर आता।।

“मैं नीर भरी दु:ख की बदली,
परिचय इतना इतिहास यही,
उमड़ी कल थी मिट आज चली।।”


शांत रस | Shant Ras :

संसार में वैराग्य या तत्त्व ज्ञान की प्राप्ति होने पर शांत रस की उत्पत्ति होती है। जहां ना दु:ख, ना सुख, ना राग, ना द्वैष होता है, ऐसी मनोस्थिति में उत्पन्न रस को शांत रस का जाता है।

शांत रस का रंगकुंद रंग
देवताश्री नारायण
स्थायी भावशम \निर्वेद


शांत रस अनेक स्थितियों में प्राप्त होता है । संसार को नश्वर मानने का एवं विरक्ति का भाव, सांसारिक अनासक्ति का भाव, शांत रस को स्थापित करता है।

शांत रस के उदाहरण

“यह संसार झड़ि और झाझंड, अणि लगे बरि जाना है
यह संसार कागज की पुड़िया, बूंद पड़े धुलि जाना है।।

“आज बचपन का कोमल गात, जरा सा पीला पात।
चार दिन चांदनी सुखद रात और फिर अंधकार अज्ञात।।”


हास्य रस | Hasya Ras :

जब हम किसी की वाणी, अंग, वेशभूषा या चेष्टा आदि की विकृति देखते है तो हमारे हृदय में विनोद या हास का भाव उत्पन्न होता है, उसे ही हास्य रस कहा जाता है।

हास्य रस का रंगसफेद
देवताप्रमथु देवता (शिव जी का गण)
स्थायी भावहास

हास्य रस के उदाहरण

” शीश पर गंगा हँसै, भुजनी भुजंगा हँसै।
हास ही को दंगा भयो, नंगा के विवाह में।।”


“आराम करो भई आराम करो,
आराम शब्द में है राम छिपा,
जो भवसागर को खेता है।


वात्सल्य रस | Vatsalya Ras :

छोटे बच्चों के प्रति माता-पिता या सगे संबंधियों का ममता का भाव वात्सल्य रस कहलाता है।

यह 10 वां रंग है । इसके 2 पक्ष होते हैं :

  • संयोग वात्सल्य
  • वियोग वात्सल्य।
वात्सल्य रस का रंगपदम
देवतासभी माताएं
स्थायी भावसंतान विषयक रति


वात्सल्य रस के उदाहरण

“जसोदा हरि पालने झुलावै
हलरावै – दुलरावै जोई सोई कछु गावै।” (संयोग वात्सल्य)

जसोदा बार बार यौ भाषै।
है कोउ ब्रज मै हितू हमारौ, चलत गुपालहिं राखै।।” (वियोग वात्सल्य)

“प्रिय ! पति वह मेरा प्राण प्यारा कहां है?
दु :ख जलनिधि डूबी का सहारा कहां है?”



भक्ति रस | Bhakti Ras :

ईश्वर से जुड़ा प्रेम भक्ति रस कहलाता है। भावना भेद के आधार पर भक्ति के तीन भेद किए जाते हैं :

  • दास्य भाव
  • सख्य भाव
  • माधुर्य भाव


दास्य भाव रामानंद, रामानुज, कबीर, तुलसी राम
सख्य भावसूरदास
माधुर्य भावमीरा, अंडाल।

भक्ति रस के उदाहरण

“प्रभु हों पतितन को सब टीकों।
और पतित सब धौंस चारि के,
हौं तो जनमत ही को।।” (दास्य भाव)

“खेलन में काको गुसैया
हरि हारे जीते सुदामा
बरबान ही कत करत रसैया।।” (सख्य भाव)


“जाकै सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई।।”


संचारी भाव | Sanchari Bhav


कुछ कठिन संचारी भावों के अर्थ इस प्रकार है

संचारी भावसंचारी भाव का अर्थ
चपलता स्थिर होके नहीं बैठना।
अवहित्थाहर्ष आदि से उत्पन्न भाव को लज्जा आदि के कारण छिपाने की चेष्टा करना
विषाद दु:ख का भाव
व्याधिप्रकृति के साथ दु:ख का भाव
उन्माद दु:ख व पागलपन का मिश्रण
आवेगदु:ख की तीव्रता
मती बुद्धि की एक सहज प्रक्रिया
विबोधअचानक से याद आना
ग्लानी आत्म पश्चाताप, शारीरिक अशक्ति का भाव
जड़ताकर्मेंद्रियों का कार्य करना बंद हो जाना
अपस्मारमिर्गी के रोग की सी अवस्था जैसे : – मूर्छा आ जाना, मुंह से झाग आ जाना
अमर्ष दूसरों के द्वारा हुई अवज्ञा से उत्पन्न असहनशीलता
असूयानिंदा करना, सौतिया डाह

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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Ras Ke Prakar With Example | रस के प्रकार एवं उदाहरण | रस विवेचन के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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2 thoughts on “Ras Ke Prakar With Example | रस के प्रकार एवं उदाहरण | रस विवेचन”

  1. बहुत शानदार तरीके से आपने रस के बारे में बड़ी सूक्ष्मता से समझाया है । धन्यवाद

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