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Thomas Stearns Eliot | टी. एस. एलियट
Thomas Stearns Eliot | टी. एस. एलियट : T.S. Eliot आधुनिक युग के महानतम अंग्रेजी साहित्य विभूतियों में से है । इन्होंने नाटक, कविता और आलोचना तीनों में बहुत प्रसिद्धि हासिल की।
इनका जन्म 1888 ईस्वी में सेंट लुइस, अमेरिका में हुआ । 23 वर्ष की उम्र में यह अपनी मातृभूमि अमेरिका छोड़कर इंग्लैंड में बस गए और वहां की नागरिकता प्राप्त की ।1965 ईस्वी में लंदन में इनकी मृत्यु हुई । इन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।
“द वेस्ट लैंड” इनकी प्रसिद्ध कविता है। जो क्राइटेरियन (त्रैमासिक पत्रिका) में प्रकाशित हुई थी । इनकी इसी कविता को नोबेल पुरस्कार मिला।
जयशंकर प्रसाद की ‘कामायनी’ की तुलना एलियट की ‘द वेस्ट लैंड’ से की जाती है। सन् 1925 ईस्वी में एलियट ने द क्राइटेरियन पत्रिका का संपादन कार्य संभाला।
बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशकों से एलियट का लेखन कार्य प्रारंभ होता है । यह समय अंग्रेजी काव्य के लिए पतनोन्मुखी तथा आलोचना के लिए दिशाहीनता का समय था।
इस समय स्वच्छंदतावादी कवियों (शैली, वर्डसवर्थ, कॉलरिज) आदि की आलोचना में वैयक्तिकता, कल्पना एवं भावना की प्रधानता थी।
यद्यपि एलियट से पहले मैथ्यू अर्नाल्ड ने वैयक्तिकता के अतिरेक को नियंत्रित करने का प्रयास किया लेकिन उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिली।
स्वच्छंदतावादी आलोचना पद्धति में कृति के स्थान पर कृतिकार को विशेष महत्व दिया जा रहा था। इसका विरोध करते हुए एलियट ने अपने आलोचना सिद्धांत में तीन बातों पर विशेष बल दिया।
- एलियट साहित्य में आत्मानुभूति का विरोध करते हैं।
- इतिहास और परंपरा को अत्यंत महत्वपूर्ण माना।
- कला को निर्वैयक्तिक घोषित करते हुए काव्य के वस्तु पक्ष पर बल दिया । इन्होंने काव्य में भाषा एवं बिम्ब की विशेष भूमिका को रूपामूर्त किया।
Thomas Stearns Eliot | टी. एस. एलियट की प्रमुख रचनाएं :
Thomas Stearns Eliot | टी. एस. एलियट की प्रमुख रचनाएं : टी. एस. एलियट की प्रमुख रचनाएं इस प्रकार है:-
- द सीक्रेट वुड [The Sacred Wood] – 1920
- होमेज टू जॉन ड्राइडन [Homage to John Dryden] – 1924
- द यूज़ ऑफ पोयट्री एंड द यूज़ ऑफ क्रिटिसिज्म [The Use of Poetry and the Use of Criticism] – 1933
- द सिलेक्टेड एसेज [Selected Essays] -1934
- एसेज ऐसेन्ट एंड मॉर्डन [Essays Ancient and Modern] – 1936
इन्होंने कविता को परिभाषित किया है:-
“कविता उत्तम छन्द में उत्तम शब्दों की व्याख्या है”
Thomas Stearns Eliot | टी. एस. एलियट के प्रमुख सिद्धांत
Thomas Stearns Eliot | टी. एस. एलियट के प्रमुख सिद्धांत : टी. एस. एलियट के प्रमुख सिद्धांत निम्न प्रकार से है –
- 1. परंपरा एवं वैयक्तिक प्रज्ञा का सिद्धांत [Tradition and the Individual Talent]
- 2. निर्वैयक्तिकता का सिद्धांत [Impersonal Theory of poetry]
- 3. वस्तुनिष्ठ सहसंबंधी या समीकरण का सिद्धांत [Theory of objective correlative]
1. परंपरा एवं व्यक्तिगत प्रज्ञा का सिद्धांत
एलियट ने” ट्रेडीशन एंड दी इंडिविजुअल टैलेंट” शीर्षक निबंध के दूसरे भाग में निर्वैयक्तिकता का सिद्धांत दिया है। यह निबंध एलियट की ख्याति का आधार है । इसी निबंध में एलियट लिखते हैं :
“कोई भी कवि अथवा कलाकार अकेले अपनी पूरी अर्थवक्ता सिद्ध नहीं कर पाता उसकी महत्ता, उसका विवेचन, मृत कवियों एवं कलाकारों के साथ उसके संबंध का विवेचन है।”
एलियट ने परंपरा का अर्थ संकीर्ण घेरे से नहीं लिया बल्कि इसका व्यापक अर्थ ग्रहण किया है। परंपरा की वास्तविक भावना को प्राप्त करने के लिए कलाकार को कठिन साधना करनी पड़ती है ।
परंपरा से अर्थ प्राचीनकाल से चली आ रही कला और साहित्य की प्रमुख धारणाओं के संम्यक बोध से है। इनकी परंपरा मात्र रूढी नहीं बल्कि चिर गतिशील सृजनात्मक संभावनाओं की समष्टी है।
एलियट किसी युग के सृजनात्मक विकास के लिए अतीत की महान कृतियों में प्रवाहित संवेदनों का बोध अनिवार्य मानते हैं । परंपरा वास्तव में ऐतिहासिक चेतना अथवा इतिहास बोध है।
एलियट के मतानुसार साहित्य एक अविच्छिन्न एवं अखंडित धारा है । अतीत और वर्तमान इसके दो छोर हैं । दोनों एक दूसरे को प्रभावित करते हैं । एक स्वरूप तो अतीत में प्रवाहित रहता है और दूसरा वर्तमान परिवेश एवं संदर्भों से अनुस्यूत रहता है।
कवि की चेतना में जब समाज, जाति और देश की अखंड भावना का एक सतत विकासशील सत्य प्रकाशित हो जाता है । साथ ही साथ वर्तमान के संदर्भ में अतीत के मूल्यांकन के नए सूत्र भी प्राप्त होते हैं ।
परंपरा सिद्धांत का महत्व
परंपरा सिद्धांत के द्वारा एलियट ने आत्मनिष्ठ सिद्धांत के स्थान पर वस्तुनिष्ठ साहित्य को महत्व प्रदान किया है। कला को निर्वैक्तिक घोषित किया और कवि को काव्य की स्वतंत्र अवधारणा के लिए माध्यम मात्र स्वीकार किया।
“कवि व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति नहीं करता बल्कि वह विशिष्ट माध्यम मात्र है , कलाकार की प्रगति निरंतर आत्मत्याग व्यक्तित्व का निरंतर बहिष्कार है।”
बिम्बवादी विचारक ‘एजरा पाउंड‘ की मान्यता है कि कवि वैज्ञानिक की भांति निर्वैक्तिक और वस्तुनिष्ठ होता है । एजरा पाउंड की इस मान्यता से एलियट प्रभावित थे। इनका भी विचार है कि कवि का कार्य आत्मनिरपेक्ष होता है।
जाहिर है कि एलियट ने परंपरा को आवश्यक मानते हुए वैयक्तिकता का विरोध किया है । साहित्य के जीवंत विकास के लिए परंपरा का योग जरूरी है, क्योंकि इससे साहित्य में आत्मनिष्ठ तत्व गौण हो जाता है और वस्तुनिष्ठ तत्व प्रमुख हो जाता है।
2. निर्व्यक्तिकता का सिद्धांत
कवि के व्यक्तिगत भावों की विशेषता का सामान्यीकरण ही निर्व्यक्तिकता है। कवि अपनी तीव्र संवेदना एवं ग्रहण क्षमता से अन्य लोगों या समाज की अनुभूतियों को आयत कर लेता है । अब यह आयत (ग्रहण) की हुई अनुभूतियां कवि की व्यक्तिगत अनुभूतियां बन जाती है
अपने चिंतन द्वारा इन आयत अनुभूतियों को जब काव्य में अभिव्यक्त करता है तब वे उसके निजी अनुभव होते हुए भी सबके अनुभव बन जाते हैं। भारतीय काव्यशास्त्र में साधारणीकरण की यही स्थापना है।
निर्व्यक्तिकता के दो रूप हैं :-
- प्राकृतिक : यह प्रमुख शिल्पी या कलाकार के लिए है।
- विशिष्ट : जो प्रौढ़ कलाकारों द्वारा उपलब्ध की जाती है।
एलियट का विचार है:- प्रौढ़ कवि र्वैक्तिक अनुभव क्षेत्र में भी निर्वैक्तिक ही होता है। इन्होंने कवि और कलाकृति के पारस्परिक प्रभाव को इन शब्दों में स्वीकार किया है:-
“मैं विश्वास करता हूं कि कवि अपने पात्रों को अपना कुछ अंश अवश्य प्रदान करता है, किंतु मैं यह भी विश्वास करता हूं कि वह अपने निर्मित पात्रों द्वारा स्वयं भी प्रभावित होता है।”
इसका परिणाम यह निकलता है कि संपूर्ण काव्य कृति कवि के व्यक्तित्व से निर्मित हो उठता है। अतः यह कहना भी गलत होगा कि एलियट कविता में कवि के व्यक्तित्व का पूर्ण बहिष्कार करता है।
3. वस्तुनिष्ठ समीकरण का सिद्धांत
एलियट ने सर्वप्रथम इस सिद्धांत का प्रतिपादन अपने प्रसिद्ध निबंध “हैमलेट एंड हिज प्रॉब्लम्स” में किया था।
इनके इसी निबंध को “विभावन व्यापार” के नाम से जाना जाता है । एलियट का मानना है कि भाव संप्रेषण के लिए वस्तुनिष्ठ समीकरण का सिद्धांत आवश्यक है।
एलियट का कथन है :
“कला में भाव प्रदर्शन का एक ही मार्ग है और यह है कि उसके लिए वस्तुनिष्ठ समीकरण को प्रस्तुत किया जाए अर्थात ऐसी वस्तु संघटना स्थिति , घटना श्रृंखला प्रस्तुत की जाए, जो उस नाटकीय भाव का सूत्र है ताकि यह बाहरी वस्तुएँ, जब प्रस्तुत की जाए तो दर्शकों के मन में वही भाव जागृत हो जाए जो भाव नाटककार के हैं।”
नाटककार अपनी संवेदनाओं और अनुभूतियों की अभिव्यक्ति के लिए मूर्त विधान से काम लेता है । फलस्वरुप अमूर्त विधान हो जाता है। इन मूर्त चिन्हो एवं प्रतीकों से ठीक वही भावनाएं जागृत होती है जो कवि के मन में रहती है।
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