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Krishna Bhakti Sahitya Ke Kavi | प्रमुख कृष्ण भक्त कवि


Krishna Bhakti Sahitya Ke Kavi | प्रमुख कृष्ण भक्त कवि : नमस्कार दोस्तों ! आज हम आपको कृष्ण भक्ति साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले प्रमुख कवियों के बारे में बताने जा रहे है। इनमें निम्न कवियों का प्रमुख नाम आता है:

  • Mirabai | मीराबाई
  • RasKhan | रसखान
  • Narottam Das Swami | नरोत्तम दास स्वामी
  • Rahim Das | रहीम दास (अब्दुर्रहीम खान-खाना)
  • Birbal | बीरबल
  • Holaray | होलराय
  • Narhari Bandijan | नरहरी बंदीजन
  • Kavi Gang | कवि गंग आदि

आज हम “Krishna Bhakti Sahitya Ke Kavi | प्रमुख कृष्ण भक्त कवि” के बारे में विस्तार से चर्चा करने जा रहे है। तो चलिए शुरू करते है :



Mirabai | मीराबाई


Mirabai | मीराबाई : मीराबाई का जन्म 1498 ई.में पाली के कुड़की नामक गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम रतन सिंह और माता का नाम कुवंरी बाई था। इनके दादा जी राव दूदां ने मेड़ता सिटी नागौर में उनका पालन पोषण किया।

मीराबाई के बचपन का नाम पेमल था। मीरा का विवाह मेवाड़ के राजपरिवार में हुआ। उदयपुर के महाराणा सांगा के पुत्र भोजराज से इनका विवाह हुआ था। विवाह के 7 वर्ष पश्चात ही उनके पति का देहांत हो गया और ये विधवा हो गई। मीराबाई बचपन से ही कृष्ण भक्ति में रुचि रखती थी। पति की मृत्यु के बाद वह कृष्ण भक्ति में समय बिताने लगी।


Mirabai | मीराबाई की कविताओं की विशेषता :

दोस्तों ! मीरा बाई की कविता की विशेषताओं को निम्न बिंदुओं के माध्यम से समझा जा सकता है :

  • मीराबाई की भक्ति भावना सगुण कृष्ण के प्रति माधुर्य भाव या दांपत्य भाव की थी।
  • मीरा की मुख्य भाषा राजस्थानी मिश्रित ब्रजभाषा है।
  • मीरा की कविता के दो विशेष पहलू है :
  1. कृष्ण के प्रति एकनिष्ठ व गहन प्रेम-भाव की व्यंजना और
  2. सामंती समाज के प्रति विध्वंसक पक्ष।
  • मीराबाई ने अपने आराध्य का स्मरण नंदलाल, गोपाल, गिरधर नागर, जोगी, नट नागार, गोविंद आदि शब्दों का प्रयोग किया है।
  • मीरा ने श्री कृष्ण, द्वारिकाधीश, मथुराधीश ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं किया है।
  • मीराबाई भक्तिकाल की अकेली ऐसी कवयित्री है जो संप्रदायमुक्त व्यापक चेतना की कवयित्री है।
  • मीरा का प्रेम आराध्य के प्रति केवल समर्पण मात्र नहीं है, बल्कि इसी प्रेम में उनके जीवन संघर्षों और तात्कालिक जड़वादी सांप्रदायिक भक्तों के सामंती प्रतिबंधों को भी स्पष्ट करता चलता है।
  • मीरा सामंती अभिजात (समाज) को एक झटके में तोड़ डालती है :

“पग घुंघरू बांध मीरा नाची रे।”

रूढ़ीवादी समाज के मध्य स्वीकार्य का साधन है :

“माई री ! मैं तो लियो गोविंदो मोल।”

मीरा की कविता में चुनौती का भाव भी देखा जा सकता है :

“सिसौधों रूठ्यो सो म्हारो काई कर लेसी।”

  • मीराबाई की कविता प्रतिरोध की कविता मानी जाती है। यह स्त्री की पराधीनता का प्रत्याख्यान है।

“कुल काण जगत दई बहाय जान पानी।
अपने घर का पर्दा कर लो मैं अबला बौरानी।

  • मीरा का प्रेम अपनी सरसता, एकनिष्ठता व समर्पण-शीलता के अनिर्वचनीय आनंद के लिए विख्यात है।

“असुंवन सींची -सींची प्रेम बेलि बोई
(मीराबाई)



Mirabai | मीराबाई की प्रमुख रचनाएँ

मीरा बाई की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार है :

  • नरसी जी को मायरो
  • राग सोरठा रा पद
  • गीत गोविंद की टीका
  • राग गोविन्द
  • नरसी मेहता की हुंडी
  • चरित पद
  • स्फुट पद
  • रुक्मणी मंगल


Mirabai | मीराबाई के सन्दर्भ में कुछ प्रमुख तथ्य :

  • मीराबाई की सर्वाधिक प्रमाणिक रचना स्फुट पद मानी जाती है।
  • मीराबाई के गुरु रैदास माने जाते हैं।
  • ग्रह त्यागने के पश्चात मीराबाई सर्वाधिक वृंदावन में रही।
  • मीराबाई की वृंदावन में भेंट जीव गोस्वामी से हुई।
  • मीराबाई का देहांत गुजरात के द्वारका के रणछोड़ मंदिर में हुआ।
  • सुमित्रानंदन पंत ने मीरा को राजस्थान की मरू मंदाकिनी कहा।
  • मीरा ग्रंथावली के संपादक परशुराम चतुर्वेदी है।
  • दयाराम ने मीरा चरित्र
  • राधाबाई ने मीरा महातम्य और
  • मुंशी देवी प्रसाद ने मीराबाई का जीवन चरित्र लिखा।

RasKhan | रसखान


RasKhan | रसखान : इनका जन्म 1533 ई. में हुआ। इनका वास्तविक नाम सैय्यद इब्राहिम था। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार रसखान वास्तव में रस की खान थे। राम चरितमानस को सुनने वाले पहले भक्त कवि ये ही है। रस खान ने विठ्ठलाचार्य से वल्लभ संप्रदाय में दीक्षा ली थी।


रसखान | RasKhan की रचनाएँ :

  • प्रेम वाटिका
  • सुजान रसखान
  • अष्टयाम
  • दानलीला

RasKhan | रसखान के सन्दर्भ में कुछ प्रमुख तथ्य :

  • सुजान रसखान में 181 सवैया, 17 कवित्त, 12 दोहे, 4 सोरठे है। सुजान रसखान इनकी ख्याति का आधारभूत ग्रन्थ है। कृष्ण भक्ति परम्परा में इन्होंने सबसे सुन्दर कवित्त और सवैये लिखे है।
  • विजेंद्र स्नातक के अनुसार – रसखान स्वच्छंद काव्यधारा के प्रवर्तक कहे जा सकते है।
  • भारतेन्दु ने ऐसे ही कवियों को लक्षित करके लिखा है :

“इन मुस्लमान हरिजनन पै कोटिक हिन्दू वारियै। “

  • रामचंद्र शुक्ल के अनुसार :

“शुद्ध बृजभाषा का जो चलतापन और सफाई रसखान और घनानंद की रचनाओं में है, वह अन्यत्र दुर्लभ है। “


रसखान की चर्चित पंक्तियाँ :

“काग के भाग बड़े सजनि, हरि हाथ सो ले गयो माखन रोटी।”

“ताहि अहीर की छोहरियाँ, छछियाभर छाह पै नाच नचावै। “



Narottam Das Swami | नरोत्तम दास स्वामी


Narottam Das Swami | नरोत्तम दास स्वामी : ये उत्तर प्रदेश के सीतापुर के बाड़ी कस्बे के रहे है। इनकी प्रमुख रचना सुदामा चरित है।

इनकी चर्चित पंक्ति है :

“देखि विहाल बिवाइन सो पग कंटक जाल लगे पुनि जोये।”


Rahim Das | रहीम दास (अब्दुर्रहीम खान-खाना)


Rahim Das | रहीम दास (अब्दुर्रहीम खान-खाना) : इनका जन्म 1542 ई. में हुआ। रहीम बैरम खान के पुत्र थे। अकबर के समय 7 हजारी मसनबदारी थी। अकबर के समय में इन्हे बडी- बडी जागीरी दी गयी थी। अकबर ने इन्हें मिर्जा खान की उपाधि दी थी। कृष्ण भक्ति परंपरा में रहीम दास बहुभाषाविद् कवि माने जाते हैं।

रहीम दास को निम्न भाषाओं की जानकारी थी :

  1. तुर्की
  2. अरबी
  3. फारसी
  4. ब्रजभाषा
  5. पश्तो
  6. संस्कृत
  7. खड़ी बोली
  8. हिंदी
  9. अवधी

Rahim Das | रहीम दास की रचनाएं :

  1. रास पंचाध्यायी
  2. मदनाष्टक
  3. श्रृंगार सोरठा
  4. खेट कौतुकम
  5. बरवै नायिका भेद
  6. रहीम दोहावली
  7. नगर शोभा

Rahim Das | रहीम दास के सन्दर्भ में कुछ प्रमुख तथ्य :

  • मदनाष्टक की भाषा खड़ी बोली हिंदी है। खेट कौतुकम ज्योतिष से संबंधित ग्रंथ है। इसकी भाषा संस्कृत में मिश्रित फारसी है।
  • नगर शोभा और बरवै नायिका भेद नीति विषयक ग्रंथ है। जिसमें रस व नायिका भेद का चित्रण मिलता है । बरवै नायिका भेद को नायिका भेद का साम्राज्य कहा जाता है।
  • रहीम की मूल भाषा ब्रजभाषा है। रहीम दास के दोहे तो ब्रज भाषा में लिखे हैं, लेकिन बरवै अवधी भाषा में लिखे हैं। रहीम दास का प्रिय छंद बरवै है।
  • इन्होंने तुर्की भाषा में रचित बाबरनामा का फारसी भाषा में अनुवाद किया। इन्होंने फारसी में दीवान भी लिखा।
  • रहीमदास ने कवि गंग को एक बार एक रचना पर 36 लाख का दान दिया था।
  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रहीम को दानवीर कर्ण की संज्ञा दी है।
  • रहीम कृष्ण भक्त कवि होने के साथ-साथ एक बड़े योद्धा एवं नीति कार भी रहे हैं। रहीम ने सर्वाधिक दोहे नीति पर लिखे हैं। रहीम के नीति के दोहे कोरी नीति नहीं है, बल्कि जीवन और लोग के बड़े गहरे अनुभव यहां स्थापित हुए हैं।
  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा है कि इनकी उक्तियां इतनी लोक लुभावनी सिद्ध हुई कि परवर्ती कवियों में बिहारी जैसे कवि भी इनकी उक्तियां चुराने का लोभ संवरण नहीं कर सके।
  • जहांगीर के समय में रहीम की जागीर जप्त कर ली गई थी। आचार्य विट्ठलनाथ ने रहीम को वल्लभ संप्रदाय में दीक्षित किया।

Birbal | बीरबल


Birbal | बीरबल : इनका जन्म हरियाणा के नारनौल में हुआ था। बीरबल भी कृष्ण भक्ति कवि माने जाते हैं। इनका वास्तविक नाम – महेश दास था। यह ब्रह्म उपनाम से कविता किया करते थे। अकबर ने इन्हें कविराय की उपाधि दी थी।


Holaray | होलराय


Holaray | होलराय : ये भी कृष्ण भक्त कवि है। ये एक बार तुलसीदास के लोटे पर रीझ गए थे।

“लोटा तुलसी को लाख टके को मोल।
मोलतोल कछु है नाहि लेउ राय कवि होल।


Narhari Bandijan | नरहरी बंदीजन


नरहरी बंदीजन भी प्रमुख कृष्ण भक्त कवि (Krishna Bhakti Sahitya Ke Kavi) रहे है।


इनकी रचनाएँ इस प्रकार है :

  • रुक्मणी मंगल
  • छप्पय नीति
  • कवित संग्रह

इनके एक छप्पय से प्रेरित होकर अकबर ने अपने साम्राज्य में गो-वध निषेध लागू कर दिया था।



Kavi Gang | कवि गंग


Kavi Gang | कवि गंग : ये अकबर के दरबारी कवि रहे हैं। ये अपने समय के बड़े कवि रहे होंगे, तभी आचार्य भिखारी दास ने लिखा है :

“तुलसी गंग दोउ भये, सुकविन के सरदार”
(भिखारी दास)

  • कवि गंग ने “चंद छंद बरनन की महिमा” नाम से खड़ी बोली गद्य का पहला ग्रंथ लिखा।

कवि गंग की चर्चित पंक्ति :

“कबहुँ ना भडुवा रण चढै, कबहुँ ना बाजे बंब
सकल सभा हि प्रणाम करि विदा होत कवि गंग।”

  • उल्लेख मिलता है कि नूरजहाँ ने कवि गंग को हाथी के पांव तले कुचलवा दिया था।

Krishna Bhakti Sahitya Ke Kavi | कृष्ण भक्ति साहित्य के अन्य कवि


दोस्तों ! कृष्ण भक्ति साहित्य में कुछ अन्य प्रमुख कवि इस प्रकार है :

पुहुकररस रतन (1618 ई.)
अहमद गुण सागर
मनोहर कवि शतप्रश्नोत्तरी
जगतानंदब्रज परिक्रमा
रसिक दास पूजा विलास
सुंदर कविराय सुंदर श्रृंगार
बालभद्र मिश्र
  • शिख-नख दूषण विचारगोवर्धन सतसई टीका
मुबारक
  • तिल शतक अलक शतक
  • साहित्य में कोई प्रवृत्ति यदि एक बार शुरू हो जाती है तो वह क्षीण तो हो सकती है, लेकिन समाप्त नहीं हो सकती।
  • रीतिकाल में भी कृष्ण भक्ति साहित्य लिखा गया। आधुनिक काल में हरिऔधका प्रिय प्रवास और द्वारिका प्रसाद मिश्र ने अवधी भाषा में कृष्णायन की रचना की।
  • जगन्नाथदास रत्नाकर और सत्यनारायण कविरत्न ने ब्रज भाषा में उद्धव शतक और भ्रमरदूत की रचना की।
  • ठाकुर गोपाल शरण सिंह ने भी कृष्ण भक्ति पर लिखा है :

“मेरे चित्त में ही छिपा मेरा चित्त चोर है।”

इस प्रकार दोस्तों ! आपको “Krishna Bhakti Sahitya Ke Kavi | प्रमुख कृष्ण भक्त कवि एवं उनकी रचनाओं” के बारे में अच्छी जानकारी हो गयी होगी। साथ ही हमने आपको इनसे सम्बंधित प्रमुख तथ्यों और चर्चित पंक्तियों से भी अवगत करा दिया है। जिन्हें आप अवश्य ही ध्यान में रखे।


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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Krishna Bhakti Sahitya Ke Kavi | प्रमुख कृष्ण भक्त कवि के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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