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Uttar Chhayavad Ke Kavi | उत्तर छायावाद के कवि एवं उनकी रचनाएँ
हेलो दोस्तों ! एक बार फिर से स्वागत है आपके चहेते Hindishri पोर्टल पर। उम्मीद है कि आपको नोट्स में दी जाने वाली जानकारी यथोचित और उपयोगी लग रही होगी। इसी श्रृंखला में आज हम Uttar Chhayavad Ke Kavi | उत्तर छायावाद के कवि एवं उनकी रचनाओ के बारे में अध्ययन करने जा रहे है। आज के नोट्स में हम उत्तर छायावाद क्या है ? इसकी प्रवृत्तियां तथा इसके प्रमुख कवियों के बारे में विस्तार से जानेंगे। तो चलिए शुरू करते है :
Uttar Chhayavad | उत्तर छायावादी युग
छायावादी काव्य में सांस्कृतिक नवजागरण का बोध होता है। वहीँ 1930 के बाद छायावाद में कुछ परिवर्तन हमें दिखाई देता है जिसे हम उत्तर छायावाद के नाम से जानते हैं। उत्तर छायावादी प्रवृत्ति एक अल्पकालिक प्रवृत्ति रही है।
उत्तर छायावादी काव्य ने केवल छायावादी काव्य में बदलाव लाने का कार्य किया और एक अन्य जागृत युग की आधार भूमि तैयार की। इस काल के आरंभ में प्रणय के स्पष्ट और शरीरी रूप को अधिक व्यक्त किया गया है।
व्यक्तिगत जीवन में प्रणय की तृष्टि करना ही उनका एकमात्र लक्ष्य रहने के कारण काव्य में क्षोभ और निराशा का वातावरण महसूस होने लगा। जैसे :
“इस पार, प्रिये मधु है तुम हो,
उस पार न जाने क्या होगा।”
इस प्रकार अनेक आशा-निराशाओं के द्वंद की स्थिति इन कवियों के वैचारिक जगत में रही। जीवन के विकास में जिन चीजों को नकारा गया।इन कवियों ने उन्हें ही काव्य में सबसे अधिक स्वीकृति दी। उत्तर छायावादी कवियों के सौंदर्य की उपासना, नारी प्रेम, आराधना और भक्ति आदि बिंदु समान है।
Uttar Chhayavad | उत्तर छायावाद की प्रवृत्तियां
उत्तर छायावाद की निम्न प्रवृत्तियां दृष्टिगोचर होती है :
- जीवन संघर्ष से पलायन।
- शारीरिक भोग एवं ऐन्द्रिकता।
- वैक्तिक अभावों की स्वीकृति।
- समाज में संघर्ष और द्वंद्व की स्थिति।
- ईश्वर के प्रति विरोधी भावना।
- अभिव्यक्ति की सरल व सहज प्रणाली।
Uttar Chhayavadi Kavita |उत्तर छायावादी कविता
उत्तर छायावादी कविता को दो भागों में बांटा गया है :
- व्यक्तिगत प्रणयमूलक काव्यधारा
- राष्ट्रीय सांस्कृतिक स्वच्छंदतावादी काव्यधारा
- डॉ. बच्चन सिंह ने इसे गांधीवादी, विप्लववादी काव्यधारा कहा है।
1. व्यक्तिगत प्रणयमूलक काव्य धारा के प्रमुख कवि इस प्रकार है :
- हरिवंश राय बच्चन
- रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’
- नरेंद्र शर्मा
- भगवती चरण वर्मा
2. राष्ट्रीय सांस्कृतिक स्वच्छंदतावाद काव्य धारा के प्रमुख कवि इस प्रकार है :
- सुभद्रा कुमारी चौहान
- रामधारी सिंह ‘दिनकर’
- सोहनलाल द्विवेदी
- सियाराम शरण गुप्त
- बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’
- माखन लाल चतुर्वेदी
- केदारनाथ मिश्र ‘प्रभात’
- मोहनलाल महतो ‘वियोगी’
- श्याम नारायण पाण्डेय
Harivansh Rai Bachchan | हरिवंश राय बच्चन
हरिवंश राय बच्चन का जन्म 27 नवम्बर 1907 तथा मृत्यु 18 जनवरी 2003, मुंबई में हुई। इनकी मृत्यु सांस की बीमारी के वजह से हुई। ये हिंदी कविता के उत्तर छायावादी युग के प्रतिनिधि कवियों में माने जाते हैं। बच्चन जी का प्रथम काव्य संग्रह ‘तेरा हार – 1929’ है।
हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख रचनाएँ
इनकी प्रमुख रचनाएँ इसप्रकार है :
सं. | रचना | वर्ष |
---|---|---|
01. | मधुशाला | 1935 |
02. | मधुबाला | 1936 |
03. | मधुकलश | 1937 |
- यह तीनों रचनाएँ हालावादी रचनाएं हैं। हरिवंश राय बच्चन को हालावाद का प्रवर्तक माना जाता है। हालावाद का समय 1933 से 1938 ईस्वी तक माना जाता है। मधुशाला इन की सबसे प्रसिद्ध कृति है।
“मंदिर मस्जिद बैर कराते, मेल कराती है मधुशाला”
— मधुशाला
“इस पार, प्रिये मधु है तुम हो, उस पार न जाने क्या होगा।”
— मधुबाला
सं. | रचना | वर्ष |
---|---|---|
04. | निशा निमंत्रण | 1938 |
- निशा निमंत्रण को स्वयं बच्चन जी अपना सर्वश्रेष्ठ काव्य संग्रह मानते हैं। जबकि इनकी लोकप्रिय रचना मधुशाला है।
- डॉ. बच्चन सिंह के अनुसार, — “निशा निमंत्रण उजड़े हुए नीड की व्यथा कथा है।“
“मुझसे मिलने को कौन विकल, मैं होऊ किसके हित चंचल।”
— निशा निमंत्रण
सं. | रचना | वर्ष |
---|---|---|
05. | एकांत संगीत | 1939 |
06. | आकुल अंतर | 1943 |
07. | . सतरंगीणी | 1945 |
08. | मिलनयामिनी | 1950 |
09. | धार के इधर-उधर | 1957 |
10. | आरती और अंगारे | 1958 |
11. | बुद्ध और नाच घर | 1958 |
12. | त्रिभंगीमां | 1961 |
13. | चार खेमें 64 खूंटे | 1962 |
14. | दो चट्टानें | 1965 |
15. | जाल समेटा | 1973 |
- दो चट्टानें काव्य संग्रह को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला है।
सं. | रचना | वर्ष |
---|---|---|
16. | बंगाल का काल | 1946 |
17. | सूत की माला | 1948 |
18. | खादी का फूल | 1948 |
- 1935 में बच्चन ने “उमर खय्याम की रुबाईयों” का अनुवाद “खय्याम की मधुशाला” के नाम से किया है।
हरिवंश राय बच्चन हिंदी के बायरन माने जाते हैं।
हरिवंश राय बच्चन की प्रमुख आत्मकथाएँ
इनकी प्रमुख आत्मकथाएँ इसप्रकार है :
सं. | आत्मकथा | वर्ष |
---|---|---|
01. | क्या भूलूं क्या याद करूं | 1969 |
02. | नीड़ का निर्माण फिर से | 1970 |
03. | बसेरे से दूर | 1978 |
04. | दश द्वार से सोपान तक | 1985 |
Rameshwar Shukla ‘Anchal’ | रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’
इनका जन्म 1 मई 1915 ईस्वी में उत्तर प्रदेश में हुआ। ये मांसलवाद के प्रवर्तक माने जाते हैं। बाद में इन्होंने मार्क्सवादी तथा प्रगतिशील कविताएं भी लिखी। इन्हें प्रेम, यौवन और सौंदर्य के कवि भी कहते हैं।
रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’ की प्रमुख रचनाएँ
इनकी प्रमुख रचनाएँ इसप्रकार है :
सं. | रचना | वर्ष |
---|---|---|
01. | मधुलिका | 1938 |
02. | अपराजिता | 1938 |
03. | किरण बेला | 1941 |
04. | लाल चुनर | 1942 |
05. | करील | 1942 |
06. | वर्षान्त के बादल | 1954 |
07. | विराम चिन्ह | 1957 |
08. | अपराधिता | – |
- अपराजिता एक प्रबंध काव्य है।
- किरण बेला और करील प्रगतिशील रचनाएं हैं। जो मार्क्सवाद से प्रभावित है।
Pandit Narendra Sharma | नरेन्द्र शर्मा
इनका जन्म 1913 ईस्वी में उत्तर प्रदेश में हुआ। इन्होंने प्रयाग में अभ्युदय पत्रिका का संपादन किया।
नरेन्द्र शर्मा की प्रमुख रचनाएँ
इनकी प्रमुख रचनाएँ इसप्रकार है :
सं. | रचना |
---|---|
01. | शूलफूल |
02. | कर्णफूल |
03. | प्रभात फेरी |
04. | पलाश वन |
05. | प्रवासी के गीत 1939 |
06. | मिट्टी के फूल |
07. | कदली वन |
08. | ग्राम्या |
09. | रक्त चंदन |
10. | अग्नि शस्त्र |
11. | हंस माला |
- प्रभात फेरी में जोश परक, विध्वसंक गीत एवं बेहोश परक प्रेम गीत शामिल है।
- पलाश वन में प्रकृति प्रेम की कविताएं हैं।
- प्रवासी के गीत सर्वाधिक लोकप्रिय काव्य संग्रह है।
नरेन्द्र शर्मा के प्रमुख खंडकाव्य
इनके प्रमुख खंडकाव्य इसप्रकार है :
सं. | खंडकाव्य | वर्ष |
---|---|---|
01. | द्रोपति | 1964 |
02. | उत्तर जय | 1965 |
- उत्तर जय अश्वत्थामा पर लिखा गया खंडकाव्य है। यह अश्वत्थामा के पीड़ा भोगी एवं खंडित व्यक्तित्व पर लिखा गया है।
Bhagwati Charan Verma | भगवती चरण वर्मा
इनका जन्म 1907 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ। ये दीवानेपन के कवि है।
“हम दीवानों की क्या हस्ती, आज यहाँ कल वहाँ चले।
मस्ती का आलम साथ चले, हम धूल उड़ाते जहां चले।।”.
भगवती चरण वर्मा की प्रमुख रचनाएँ
इनकी प्रमुख रचनाएँ इसप्रकार है :
सं. | रचना | वर्ष |
---|---|---|
01. | मधुकण | 1932 |
02. | प्रेम संगीत | – |
03. | मानव | – |
- मानव संग्रह की कविताओं में प्रगतिवादी दर्शन का प्रभाव देखा जा सकता है।
- इस मानव संग्रह में संकलित कविता “चली आ रही भैंसा गाड़ी” प्रसिद्ध प्रगतिशील कविता है।
भगवती चरण वर्मा के प्रमुख उपन्यास
इनके प्रमुख उपन्यास इसप्रकार है :
सं. | उपन्यास | वर्ष |
---|---|---|
01. | पतन | 1928 |
02. | चित्रलेखा | 1934 |
03. | टेढे़-मेढे रास्ते | 1946 |
04. | अपने खिलौने | 1957 |
05. | भूले-बिसरे चित्र | 1959 |
06. | सामर्थ्य और सीमा | 1962 |
07. | थके पाँव | 1964 |
08. | सबहिं नचावत राम गोसाईं | 1970 |
09. | प्रश्न और मरीचिका | 1973 |
10. | क्या निराश हुआ जाए | – |
- चित्रलेखा उपन्यास पाप पुण्य की समस्या पर लिखा महान उपन्यास है।
- टेढे़-मेढे रास्ते उपन्यास में मार्क्सवाद की आलोचना की गई है।
- भूले बिसरे चित्र उपन्यास को 1961ईस्वी में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
इस प्रकार दोस्तों ! आज आपने उत्तर छायावाद और उसकी प्रवृतियों के बारे में जाना। साथ ही Uttar Chhayavad Ke Kavi | उत्तर छायावाद के प्रमुख कवियों और उनकी रचनाओं के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर ली है। उम्मीद है कि आपको नोट्स जरूर पसंद आये होंगे।
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एक गुजारिश :
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