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मीरा मुक्तावली का भाव Meera Muktavali (61-65)
मीरा मुक्तावली का भाव Meera Muktavali-Narottam Das (61-65) in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली” के अगले 61-65 पदों का भाव शब्दार्थ सहित समझने जा रहे है। तो चलिए शुरू करते है :
नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली“ के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
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Meera Muktavali मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (61-65)
Narottamdas Swami Sampadit Meera Muktavali Ke 61-65 Pad in Hindi : दोस्तों ! “मीरा मुक्तावली” के 61 से लेकर 65 तक के पदों का शब्दार्थ सहित भाव निम्नानुसार है :
पद : 61.
मीरा मुक्तावली का भाव Meera Muktavali Ke 61-65 Pad in Hindi
आवो मन मोहना जी ! जोऊँ थारी वाट।
खान-पान मोहि नेक न भावै, नैण न लगे कपाट।।
तुम आयाँ बिनि सुख नहिं मेरे, दिल में बोहोत उचाट।
मीराँ कहै मैं भयी रावरी, छाँडो नाहिं निराट।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | जोऊँ | देखती हूँ |
2. | थारी | आपकी |
3. | वाट | मार्ग |
4. | नेक | तनिक |
5. | कपाट | पलक रूपी किंवाड |
6. | बिनि | बिना |
7. | उचाट | अशांति/ उदासी |
व्याख्या :
मीरा बाई कह रही है कि मेरे मन को मोहित करने वाले मेरे मनमोहन जी आइये। मैं आपका मार्ग देखती रहती हूँ। अब मुझे खाना-पीना तनिक भी भाता नहीं है। नेत्रों के पलके रुपी किंवाड बिल्कुल भी बंद नहीं होते हैं।
आपके आये बिना मुझे बिल्कुल भी सुख नहीं मिलता है। मेरे हृदय में बहुत ही अशांति भरी रहती है। मीरा कह रही है कि मैं तो आपकी हो गई हूँ। हे मेरे प्रभु ! मुझे इस प्रकार से निराश मत छोड़ो। मुझे अपने दर्शनों से वंचित मत कीजिये। मैं तो आपकी ही हूँ।
पद : 62.
मीरा मुक्तावली का भाव Meera Muktavali Bhav – Narottamdas Swami in Hindi
आवो मन-मोहना जी ! मीठा थारां बोल।
बाळपणी की प्रीत रमइयाजी ! कदे नहिं आयो थांरो तोल।।
दरसण बिन मोहि जक न परत है, चित मेरो डांवा डोल।
मीरां कहै मैं भयी रावरी, कहो तो बजाऊं ढोल।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | थारां | आपका |
2. | बोल | वचन |
3. | बाळपणी | बचपने |
4. | तोल | व्यवहार |
5. | कदे | कभी |
व्याख्या :
मीराबाई कहती है मेरे मन को मोहित करने वाले मेरे मनमोहना जी आइये। आप बहुत मीठे वचन बोलते हैं और हमारा तो बचपन का प्रेम है। हे रमइया जी (श्रीकृष्ण जी) ! मैं आपका व्यवहार समझ नहीं सकी हूँ।
आप मुझे दर्शन क्यों नहीं देते हो ? दर्शन के बिना मुझे शांति नहीं मिल पा रही है। मेरा चित्त चलायमान बना हुआ है। मीरा तो आपकी हो गई है। यदि आप विश्वास नहीं कर रहे हो तो क्या ढोल बजा करके इसकी घोषणा कर दूँ ?
पद : 63.
मीरा मुक्तावली का भाव Meera Muktavali– Bhav Shabdarth Sahit in Hindi
म्हारै घर होता जाज्यों सज।
अबकै जिन टाला दे जावो, सिर पर राखूं विराज।।
म्हे तो जनम-जनम की दासी, थे म्हाकां सिरताज।
पावणडा म्हाकै भला ही पधारो, सब ही सुधारण काज।।
म्हे तो बुरी छा, थांकै भली छै घणैरी, तुम हो अेक रसराज।
थानै हम सबहिन की चिंता, तुम सबकै हो गरिब-निवाज।।
सबकै मुगट-सिरोमनि सिर पर, मानूं पुण्य की पाज।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर, बांह गहे की लाज।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | जाज्यों | जाते हुये |
2. | टाला | बात को टालना |
3. | राज | राजा (श्रीकृष्ण जी) |
4. | पावणडा | पाहुने/मेहमान |
5. | काज | कार्य |
6. | घणैरी | ज्यादा |
7. | पाज | सीमा |
व्याख्या :
मीराबाई अपने मनोभावों को प्रकट करती हुई कहती है कि हे मेरे राजा ! मेरे घर होते हुये जाना। अबकी बार बात को टाल मत जाना। हे मेरे प्रभु ! मैं आपको मस्तक पर शोभायमान रखूँगी। मैं तो आपकी जन्म-जन्म की दासी हूँ। आप तो मेरे सिर के ताज हो। आप सर्वश्रेष्ठ हो। मेरे पाहुने ! आप अच्छे से पधारिये। यदि आप आ गये तो मेरे संपूर्ण कार्य पूरे हो जायेंगे।
मैं तो प्रभु बुरी हूँ, आप तो बहुत ज्यादा अच्छे हो। आप तो रसराज हो, रसिक शिरोमणि हो। आपको हम सबकी चिंता रहती है। आप सब गरीबों के हितकारी हो। आप सबके सिर पर स्थापित शिरोमणि है। आप सभी के प्रिय हो। मैं तो आपको पुण्य की सीमा मानती हूँ। हे प्रभु ! आप जो बाँह पकड़ते हो, आप जो गरीब को अपना लिये हो, उसकी लाज रखो। हे मीरा के प्रभु ! ‘अपना लिये’ की तो लाज रखो।
पद : 64.
मीरा मुक्तावली का भाव Meera Muktavali Bhav with Hard Meanings in Hindi
म्हारा ओळगिया ! घर आज्यो।
सुख-दुख खोलि कहूँ अंतर की, वेगा वदन बताज्यो।।
च्यार पहर च्यारूं जुग वीत्या, नैणां नींद न आवै।
पूरण ब्रह्म अखंड अविनासी ! तुम विन विरह संतावै।।
नैणा नीर आभ ज्यूँ झरणा, ज्यूँ र मेघ झड़ लाया।
रतवंती इत राम कंत विन फिरत वदन विलखाया।।
साधू-सजन मिलै सिर साटै, तन मैन करूँ बधाई।
जन मीरां नै मिलौ कृपा करि, जनम-जनम कंमराई।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | ओळगिया | प्रवासी |
2. | अंतर | हृदय |
3. | वेगा | शीघ्र |
4. | वदन | मुख |
5. | बताज्यो | दर्शन देना |
6. | वीत्या | बीतता है |
7. | आभ | आकाश |
8. | रतवंती | प्रेम में अनुरक्त प्रियतमा |
9. | इत | यहाँ |
10. | सिर साटै | सिर के बदले |
11. | बधाई | अभिनंदन |
व्याख्या :
मीरा बाई अपने प्रवासी प्रियतम श्रीकृष्ण जी को कहती है कि हे मेरे प्रवासी प्रियतम ! अब तो हमारे घर आ जाइये। मैं अपने हृदय की सुख-दु:ख की बात आपसे करुँगी। शीघ्र ही दर्शन दीजिये। हे मेरे प्रभु ! चार प्रहर ऐसे बीतते हैं, जैसे चार युग हो। मेरे नेत्रों में नींद नहीं आती है। हे मेरे प्रभु ! आप तो पूर्ण हो, परमब्रम्ह हो, अविनाशी हो। आपके बिना मुझे भी विरह संतप्त कर रहा है।
मेरे नेत्रों से नीर बहता रहता है, जैसे आकाश से जल बरसता है, जैसे झरना फूटता है, जैसे मेघ झड़ ले आता है, वैसे मेरे नेत्रों से आंसूँ टपकते रहते हैं। आपके प्रेम में अनुरक्त प्रियतमा का यहाँ हे मेरे प्रियतम ! मुख उदास ही रहता है।
साधु सज्जन तो यदि सिर देने के बदले भी मिले तो भी वे स्वीकार्य हैं। उन साधु सज्जनों का तो तन-मन से मैं अभिनंदन करती हूँ। मीरा कहती है कि हे प्रभु ! इस मीरा से मिलो। हमारी जन्म-जन्म की मित्रता है। मुझे दर्शन दीजिये प्रभु !
पद : 65.
मीरा मुक्तावली का भाव Meera Muktavali Bhav in Hindi
भवन-पति ! तुम घरि आज्यो हो।
विथा लगी तन माहिंनै, म्हारी तपत बुझाज्यो हो।।
रोवत-रोवत डोलताँ, सब रैण विहावै हो।
भूख गयी निंदरा गयी, पापी जीव न जवै हो।।
दुखिंया कूँ सुखिया करो, मोहि दरसण दीजै हो।
मीराँ व्याकुल बिरहणी, अब विलम न कीजै हो।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | भवन-पति | गृह-स्वामी |
2. | विथा | व्यथा |
3. | माहिंनै | मुझे |
4. | विहावै | बिताती |
5. | जवै | जीना |
6. | विलम | देर |
व्याख्या :
मीराबाई कहती है कि हे संसार के स्वामी ! हे श्रीकृष्ण जी ! आप घर आ जाइये। मेरे गृह-स्वामी घर आ जाइये। मेरी जो विरह वेदना की अग्नि की तपन है, उसको बुझा देना हे प्रभु ! मैं आपके अभाव में रोती-रोती घूमती रहती हूँ। रोते-रोते ही पूरी रात बिताती हूँ।
मेरी नींद गई, भूख चली गई है। मेरा जो पापी जीव है, यह आपके बिना जी नहीं पायेगा। मुझ दुखिया को सुखिया करो। हे प्रभु ! मुझे दर्शन दे दीजिये। अब देर मत कीजिये। मीरा आपके दर्शनों के लिये व्याकुल है। हे प्रभु ! अब विलम्ब मत कीजिये, क्योंकि समय बहुत व्यतीत हो गया है।
इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने “मीरा मुक्तावली” के अगले 61-65 पदों का भाव जाना और समझा। अगले अंक में फिर से हाजिर होंगे कुछ नये पदों के साथ।
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एक गुजारिश :
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