Arastu Ka Anukaran Siddhant | अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत
Arastu Ka Anukaran Siddhant | अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत : अरस्तु ने लगभग 400 ग्रंथों की रचना की। यह जीव विज्ञान के प्रवर्तक माने जाते हैं। पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में अरस्तु का महान योगदान है।
वह सिकंदर महान के गुरु के रूप में विख्यात हैं।
Arastu Ke Pramukh Granth | अरस्तु के प्रमुख ग्रन्थ
Arastu Ke Pramukh Granth | अरस्तु के प्रमुख ग्रन्थ : इनके साहित्य शास्त्र से संबंधित दो ग्रंथ प्रसिद्ध है –
- Poetics |काव्यशास्त्र
- Rhetorics | भाषण शास्त्र
1. Poetics |काव्यशास्त्र :
- इसमें अरस्तु ने अपना प्रसिद्ध अनुकरण सिद्धांत, विरेचन सिद्धांत, त्रासदी सिद्धांत दिए हैं।
- इनके काव्यशास्त्र में कुल 26 अध्याय हैं। जिसमें यूनानी काव्य का वस्तु गत विवेचन किया गया है।
- इसी में प्लेटो के काव्य अक्षरों का भी उत्तर दिया गया है, लेकिन खंडन शैली में नहीं।
अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत की प्रमुख विशेषताएं
अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत की प्रमुख विशेषताएं निम्नानुसार है :
- अनुकरण का विषय प्रकृति या जीवन का बहिरंग ही नहीं बल्कि अंतरंग पक्ष प्रधान है। अंतरंग पक्ष से तात्पर्य कल्पना अनुभूति संवेदनाएं एवं विचार से है। अरस्तु के अनुसार अनुकरण वस्तु के यथार्थ रूप का नहीं बल्कि वस्तु के इन तीन रूपों का होता है :
- प्रतियमान– जैसा अनुकर्ता को प्रतीत होता है।
- संभाव्य रूप – जैसा संभव हो सकता है।
- आदर्श रूप – जैसा होना चाहिए।
- इस प्रकार अरस्तु का अनुकरण वस्तु के यथार्थ रूप के अनुकरण की बात नहीं करता है। यह अनुकरण कल्पनात्मक, भावपरक अनुकरण है। असल में अरस्तु के अनुकरण को जीवन अनुभूति का पुन: सर्जन करने वाली प्रक्रिया कह सकते हैं।
- अरस्तु के अनुसार कवि या कलाकार प्रकृति का अनुकरण करता है। प्रत्येक वस्तु पूर्ण विकसित होने पर जो होती है, उसे हम उसकी प्रकृति कहते हैं।
- प्रकृति अपने इसी आदर्श रूप की प्राप्ति के लिए निरंतर बढ़ती रहती है। अनेक अवरोधक कारणों से प्रकृति अपनी इस पूर्णता को प्राप्त नहीं कर पाती।
- कवि या कलाकार प्रकृति की सृजन प्रक्रिया का अनुकरण करता हुआ प्रकृति के अधूरे कार्य को पूर्ण करता है। कवि या कलाकार को अनुकरण प्रकृति की प्रति छाया का कोरा अनुकरण नहीं होता।
- यदि यह कोरा अथवा यांत्रिक अनुकरण मात्र होता तो हमें मूल प्रकृति से ज्यादा अनुकरण रूप कैसे आनंद देता। प्रकृति का अनुकरण रूप हमें आनंद देता है।
- अरस्तू कहते हैं कि डरावने जानवर साक्षात देखकर हमें भय प्राप्त होता है ; किंतु उन्हीं का अनुकरण रूप हमें आनंद प्रदान करता है। अरस्तु के अनुकरण सिद्धांत में आनंद तत्व तथा आत्म तत्व का प्रकाशन निहित है।
- अरस्तू ने अनुकरण के लिए ग्रीक शब्द में मीमेसिस | Mimesisशब्द का प्रयोग किया है। इन्होनें अपने अनुकरण सिद्धांत में काव्य के सत्य और इतिहास के सत्य पर विचार किया है।
काव्य के सत्य और इतिहास के सत्य में अंतर :
इनमें अंतर निम्न बिंदुओं से स्पष्ट होता है :
- काव्य सामान्य की अभिव्यक्ति है और इतिहास विशेष की अभिव्यक्ति है।
- इतिहास का सत्य देशकाल के बंधन से बंध जाने के कारण मूर्त , अव्यापक, अभव्य एवं अदार्शनिक होता है।
- जबकि काव्य का सत्य युग-युगीन, सार्वभौमिक संभावनाओं पर कभी भी कहीं भी घटित हो सकता है।
- इसलिए काव्य का सत्य अमूर्त, व्यापक, भव्य एवं दार्शनिक होता है।
Arastu Ka Anukaran Siddhant | अरस्तु का अनुकरण सिद्धांत का महत्व
अरस्तु ने अपने अनुकरण सिद्धांत के द्वारा यह स्थापित किया है कि कला या कविता प्रकृति का कोरा (यांत्रिक) अनुकरण नहीं है बल्कि यह अनुकरण मूल से भी अधिक आकर्षक व रमणीय है।
इसके साथ ही अरस्तू ने प्लेटो द्वारा कविता पर लगाए पावित्र्यदुष्कता के आरोप को मिथ्या साबित किया तथा काव्य का महत्व स्थापित किया। प्लेटो अरस्तु की बुद्धिमत्ता पर एक बार कहा था :
“मेरे विद्यापीठ के दो भाग हैं। एक है शरीर और दूसरा मस्तिष्क ;
अन्य सभी छात्र शरीर हैं और अरस्तू मस्तिष्क”।
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