Contents
I. A. Richards | आई. ए. रिचर्ड्स का मूल्य और संप्रेषण सिद्धांत
I. A. Richards | आई. ए. रिचर्ड्स : पाश्चात्य समीक्षकों में आई. ए. रिचर्ड्स का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। यह बीसवीं सदी के मूल्यवादी समीक्षक हैं।
इनका पूरा नाम आइवर आर्मस्ट्रांग रिचर्ड्स (Ivor Armstrong Richards) है । इनका जन्म 1893 ईस्वी में इंग्लैंड के चेशायर शहर में हुआ था ।
आई. ए. रिचर्ड्स अर्थशास्त्र एवं मनोविज्ञान के विद्यार्थी थे। रिचर्ड्स ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर के रूप में अनेक वर्षों तक कार्य किया । वहीं से इन्होंने डी .लिट की उपाधि प्राप्त की । रिचर्ड्स ने लगभग एक दर्जन ग्रंथ लिखे जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण “प्रिंसिपल ऑफ लिटरेरी क्रिटिसिजम” है।
आई. ए. रिचर्ड्स मनोविज्ञान के क्षेत्र से साहित्य के क्षेत्र में आए थे। इसलिए उनके काव्य सिद्धांत मनोवैज्ञानिक आधार पर स्थित है।
ये आचार्य रामचंद्र शुक्ल के प्रिय आलोचक हैं। रिचर्ड्स की आलोचना का केंद्र बिंदु है :
“कला को जीवन के लिए उपयोगी सिद्ध करना”।
रिचर्ड्स “बेंथम” और “मिल” के उपयोगितावाद से पर्याप्त प्रभावित रहे हैं।
I. A. Richards | आई. ए. रिचर्ड्स की प्रमुख रचनाएं
I. A. Richards | आई. ए. रिचर्ड्स की प्रमुख रचनाएं : आई. ए. रिचर्ड्स की प्रमुख रचनाएं इस प्रकार से है : –
- द फाउंडेशन ऑफ एसथेटिक्स :1922 – यह रचना सी. के. ऑक्डेन और जेंम्स वुड के साथ मिलकर लिखी है।
- मीनिंग ऑफ मीनिंग (अर्थ का अर्थ) :1923 – यह भी सी .के. ओक्डेन के साथ मिलकर लिखी है।
- प्रिंसिपल्स ऑफ लिटरेरी क्रिटिसिज्म (साहित्य आलोचना ) : 1924
- साइंस एंड पोयट्री (विज्ञान और कविता) : 1925
- प्रैक्टिकल क्रिटिसिज्म (व्यवहारिक आलोचना) :1929
- कॉलरिज आ्ंन इमैजिनेशन (कॉलेरिज की कल्पना शक्ति) : 1935
- द फिलॉसफी ऑफ रिटोरिक (शब्दता का दर्शन) : 1936
I. A. Richards | आई. ए. रिचर्ड्स के प्रमुख सिद्धांत :
I. A. Richards | आई. ए. रिचर्ड्स के प्रमुख सिद्धांत : आई. ए. रिचर्ड्स के दो सिद्धांत विशेष उल्लेखनीय हैं :-
- मूल्य सिद्धांत
- संप्रेषण सिद्धांत
1. रिचर्ड्स का संप्रेषण सिद्धांत
रिचर्ड्स का संप्रेषण सिद्धांत : संप्रेषण सिद्धांत को सम्प्रेषणीयता का सिद्धांत भी कहा जाता है।
रिचर्ड्स का मानना है कि किसी अन्य की अनुभूति को अनुभूत करना ही प्रेषणीयता है । विषय की रोचकता व रमणीयता से संप्रेषण में पूर्णता का समावेश होता है।
कवि जब स्वयं अपनी अनुभूतियों के साथ एक रस नहीं हो जाता तब तक वे अनुभूतियां प्रेषणीयता का गुण ग्रहण नहीं कर सकती।
संप्रेषण एक स्वाभाविक व्यापार है जिसमें निश्चय ही कवि प्रतिभा स्वत: अज्ञात रूप से कार्य करती है। अनुभूतियों का सहज प्रस्तुतीकरण उस प्रभाव दशा का निर्माण कर देता है जो कवि ने अनुभूत की थी। संप्रेषण की प्रक्रिया में भाषा का विशेष योगदान है।
शब्दों के अर्थ बोध एवं बिम्ब ग्रहण से काव्यार्थ का बोध होता है। इस बोध से ही भावों एवं भावात्मक दृष्टि की अनुभूति होती है।
रिचर्ड्स का विचार है की संप्रेषण कला का तात्विक धर्म है। एक कलाकार का अनुभव विशिष्ट और नया होने के कारण उसकी सम्प्रेषणयीता समाज के लिए मूल्यवान है। रचना में जितनी प्रबल और प्रभावशाली सम्प्रेषणयीता होती है उतना ही बड़ा कवि या कलाकार होता है।
प्रेषणीयता को प्रभावी बनाने के लिए आवश्यक बातें :
रिचर्ड्स का विचार है कि प्रेषणीयता को प्रभावी बनाने के लिए इन बातों की आवश्यकता होती है।
- कवि या कलाकार की अनुभूति व्यापक और प्रभावशाली होनी चाहिए।
- अनुभूति के क्षणों में आवेगों का व्यवस्थित ढंग से संतुलन होना चाहिए।
- वस्तु या स्थिति के पूर्ण बोध के लिए कवि में जागरूक निरीक्षण शक्ति होनी चाहिए।
- कवि के अनुभव और सामाजिक अनुभवों में तालमेल होना चाहिए। यदि दोनों में अंतर हो तो कल्पना की सहायता से भावों व विचारों का संप्रेषण होना चाहिए।
- संप्रेषण के लिए तीन बातों की आवश्यकता होती है : –
— (क) वे एक सी हो।
— (ख) वह विविध हो।
— (ग) उत्तेजनाओ से प्रेरित होने वाली हो।
- समान प्रतिक्रियाओं को प्रकट करने के लिए उत्तेजना का काम करने वाले घटक तत्व अलग-अलग कलाओं के लिए अलग-अलग होते हैं । जैसे :-
— (क) संगीत के लिए : लय, स्वर, समायोजन, ताल, आरोह, अवरोह।
— (ख) कविता के लिए : लय, छंद, समायोजन।
— (ग) चित्रकला के लिए : रूपरेखा व रंग।
— (घ) मूर्तिकला के लिए : आकार, उधार।
भाषा की दो श्रेणियां :
रिचर्ड्स भाषा की दो श्रेणियां स्वीकार करते हैं :-
- वैज्ञानिक
- रागात्मक
वैज्ञानिक भाषा में सूचनात्मक, तथ्यात्मक अथवा अभिधात्मक भाषा का प्रयोग होता है।
जबकि काव्य की भाषा भाषा रागात्मक होती है। काव्य की भाषा में भावात्मक अर्थ की प्रधानता होती है।
रिचर्ड्स ने “प्रैक्टिकल क्रिटिसिजम” में ‘अर्थ’ के चार प्रकार गिनाए हैं :
- वाच्यार्थ (सेन्स) : यह वस्तु स्थिति से परिचित कराने वाली शक्ति है
- भाव (फीलिंग) : वक्ता की वह भावना जो शब्दों के प्रयोग से व्यक्त करना चाहता है।
- स्वर / लहजा (टोन) : टोन के माध्यम से लेखक का श्रोता या पाठक के प्रति दृष्टिकोण प्रकट होता है
- अभिप्राय (इंटेंशन) : इसके द्वारा वक्ता /लेखक अपना अभिप्राय व्यक्त करता है।
2. रिचर्ड्स का मूल्य सिद्धांत
रिचर्ड्स का मूल्य सिद्धांत : मूल्य सिद्धांत को कला का मूल्यवादी सिद्धांत या उपयोगितावादी सिद्धांत भी कहा जाता है ।
ये एक मूल्यवादी समीक्षक है । हिंदी में रामचंद्र शुक्ल रिचर्ड्स के सिद्धांतों के समर्थक और प्रशंसक रहे हैं । यह दोनों ही मूल्यवादी समीक्षक हैं । रिचर्ड्सने ब्रेडले के “कला कला के लिए है” सिद्धांत का खंडन करते हुए “कला व नीति का परस्पर संबंध” स्वीकार किया है।
रिचर्ड्स कहते हैं :
“एक श्रेष्ठ कला वह है जो मानव सुख की अभिवृद्धि में संलग्न हो, पीड़ितों के उद्धार या हमारी पारस्परिक सहानुभूति के विस्तार से जुड़ी हुई हो, जो हमारे नूतन और पुरातन सत्य का आख्यान करें, जिससे इस भूमि पर हमारी स्थिति और अधिक सुदृढ़ हो, तो वह महान कला होगी।”
रिचर्ड्स का विचार है कि सृजन के क्षणों में कलाकार सर्वोत्तम स्थिति में होता है, काव्य की उपयोगिता भी यही है कि पाठक भी उस मानसिक स्थिति के निकट पहुंचे। रिचर्ड्स ने इसे ही काव्य का मूल्यवान रूप माना है और आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इसे ही “हृदय की रसदशा” का नाम दिया है।
यह भी जरूर पढ़े :
एक गुजारिश :
दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “I. A. Richards | आई. ए. रिचर्ड्स का मूल्य और संप्रेषण सिद्धांत” के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I
नोट्स अच्छे लगे हो तो अपने दोस्तों को सोशल मीडिया पर शेयर करना न भूले I नोट्स पढ़ने और हमारी वेबसाइट पर बने रहने के लिए आपका धन्यवाद..!
Very very helpfull for me🙏
Thanks and welcome to Hindishri.com. plz.. invite ur friends and share on social media.
Thanks and welcome to Hindishri.com. plz.. invite ur friends and share on social media.
धन्यवाद बहुत अच्छा प्रयास है आपसे निवेदन है की आप यूट्यूब पर भी साहित्य संबंधी विडियो बनाकर प्रस्तुत करें क्योंकि बहुत बार ऐसा होता है की अब लोग यूट्यूब पर भी ईस तरह के प्रश्नों आदि का उत्तर खोजते हैं। और वहां इसके तुलना में अधिक सरलता और सहजता से बहुत लोगों तक पहुंचा जा सकता है। इति सिद्धार्थ