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Sidh Sahitya | सिद्ध साहित्य : प्रमुख सिद्ध और उनकी कृतियां


Sidh Sahitya | सिद्ध साहित्य : आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने अपने हिंदी साहित्य के इतिहास में 84 सिद्ध गिनाए हैं। जिनमें पहला सिद्ध लुहीपा को तथा अंतिम भलिपा को गिनाया है।

सरहपा निम्‍न के प्रवर्तक माने जाते हैं :

  • सिद्ध साहित्य
  • सहजयान
  • महासुखवाद
  • पंचमकार

सिद्ध साहित्य में पंचमकार का भी उल्लेख है। पंच मकार से अर्थ है :

  • मांस
  • मत्स्य
  • मुद्रा
  • मद्य
  • मैथुन


सरहपा सरहपाद, सरोजवज्र, राहुल भद्र आदि नामों से भी जाना जाता है। सिद्धों का समय आठवीं शती से तेरहवीं शती माना जाता है और इनका क्षेत्र रहा है : पूर्वोत्तर भारत, बंगाल, बिहार, उड़ीसा, नेपाल, तिब्बत।

सिद्धों का केंद्र था – श्रीशैल पर्वत और इनकी साधना को गुह्य पद्धति , वामाचार पद्धति या काया साधना भी कहते हैं। सिद्ध साहित्य में महामुद्रा का विशेष महत्व है। महामुद्रा से अर्थ है – स्त्री संसर्ग

सिद्धों ने गृहस्थ जीवन का तो विरोध किया लेकिन स्त्री का विरोध नहीं किया। यह साधना के मार्ग में स्त्री सहयोग को आवश्यक मानते थे।सिद्ध साहित्य ने शास्त्रवाद का विरोध करते हुए लोकवाद का समर्थन किया है।

“पंडिअ सअल सन्त बरवानई ।
देहहि बुद्ध बसंत न जाणइ।।” — सरहपा

“जेहि मन पवन न संचई, रवि ससि नाहि पवेस ।
तेहि घट चित बिसाम करू सरहे कहिये उवेस ।। “

सरहपा का “शबर की कन्या” की महामुद्रा के रूप में अपने साथ रखना जाति-पांति का खुला खंडन तो था ही साथ ही साथ स्त्री की निम्न सामाजिक स्थिति के प्रति भी स्पष्ट सामाजिक विद्रोह था। सिद्धों ने दोहे और चर्याऐ लिखे हैं। चर्यापाद संध्या भाषा के दृष्टिकूट शैली में लिखे गए हैं।

इसी से प्रभावित होकर भक्ति कालीन संत कवियों के यहां उलटबांसिया पैदा हुई। सिद्धों की भाषा को सर्वप्रथम संध्या भाषा का नाम मुनिदत्त ने दिया है। इनके दोहों में मतों का खंडन-मंडन, सामाजिक आडम्बरों, भेदभावों का विरोध किया गया है।

बौद्ध धर्म की शाखाएं :

बौद्ध धर्म की दो शाखाएं हो गई थी :

  • हीनयान और
  • महायान

महायान बाद में चलकर वज्रयान में परिवर्तित हो गया और इन्हीं वज्रयानियों को ही सिद्ध कहा गया है।
यह लोग अपने नाम के पीछे “पा” जोड़ते थे जैसे – सरहपा, लुहीपा, सबरपा, डोम्मिपा आदि ।



Sidh Sahitya | सिद्ध साहित्य के प्रमुख सिद्ध और उनकी कृतियां


Sidh Sahitya | सिद्ध साहित्य : प्रमुख सिद्ध और उनकी कृतियां इस प्रकार है :

सरहपा | Sarhapa

  • दोहा कोश – 769 ई.
  • इन्हें सरहपाद भी कहा जाता है। इनकी 32 रचनाओं का उल्लेख है।

सबरपा | Sabarpa

  • चर्यापाद

लुहीपा | Luhipa

  • इनका स्थान 84 सिद्धों में सबसे ऊंचा है । इनके यहां सर्वाधिक रहस्यात्मकता एवं दार्शनिकता मिलती है। उल्लेख मिलता है कि उड़ीसा के राजा और मंत्री भी इनके शिष्य हुआ करते थे।

डोम्मिपा | Dommipa

इनके गुरु विरूपा थे । इनकी रचनाएं है :

  • अक्षराद्धिकोपदेश
  • डोम्बीगीतिका
  • योगचर्या

कण्हपा | Kanhapa

  • इनके गुरु जलंधरपा थे। इनकी 74 रचनाएं मानी जाती है। इन्होंने सिद्ध साहित्य में सर्वाधिक ग्रंथ लिखे हैं।

कुक्कुरिपा | Kukkuripa

  • इनके गुरु का नाम चर्पटीया था । इनकी 16 रचनाएं मानी जाती है।


Sidh Sahitya | सिद्ध साहित्य को जानने के स्रोत


Sidh Sahitya | सिद्ध साहित्य को जानने के स्रोत : सर्वप्रथम पश्चिमी विद्वान बेंडल ने सिद्ध साहित्य का संपादन शुरू किया। हरप्रसाद शास्त्री ने 1917 ईस्वी में बांग्ला अक्षरों में “बौद्धगान ओ दूहा” दोहा का संपादन किया। इन्होंने नेपाल से पांडुलिपियां प्राप्त की थी।

प्रमोद चंद्र बागची ने “दोहा कोश” का संपादन किया। राहुल सांकृत्यायन ने 1945 ईस्वी में “हिंदी काव्यधारा” का संपादन किया। इन्होंने तिब्बत से पांडुलिपियां प्राप्त की थी। सिद्धों की भाषा प्राचीन “मगही” के समीप है। इनकी भाषा पर मागधी अपभ्रंश का प्रभाव देखा जा सकता है।


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एक गुजारिश :

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