Vidyapati | विद्यापति का जीवन परिचय एवं रचनाएं
Vidyapati | विद्यापति : भारतीय साहित्य की श्रृंगार परंपरा एवं भक्ति परंपरा में विद्यापति का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह मैथिली भाषा के सर्वोच्च कवि हैं। इसलिए इन्हें मैथिल कोकिल की संज्ञा दी गई है।
विद्यापति का जन्म 1380 ईस्वी में बिहार के दरबंगा के विपसी गांव में हुआ था। इनकी मृत्यु 1460 ईस्वी में हुई। विद्यापति ने संस्कृत अवहट्ठ एवं मैथिली में कविताएं रची।
Vidyapati | विद्यापति की रचनाएं
Vidyapati Ki Rachnaye (विद्यापति की रचनाएं) : विद्यापति की रचनाएं इस प्रकार है :-
- मैथिली में -पदावली
- अवहट्ठ मे-कीर्तिलता
- कीर्तिपताका
Vidyapati Ki Rachnaye (विद्यापति की रचनाएं) : संस्कृत भाषा में लिखी रचनाएं :-
- शैव सर्वस्वसार
- लिखनावली
- प्रमाणभूत प्रमाण संग्रह
- वर्षकृत्य
- दान पत्तलक
- गया पत्तलक
- दुर्गा भक्ति तरंगिणी
- विभागसार
- गंगावाक्यावली
- भू परिक्रमा
- पुरुष परीक्षा
- गोरक्ष विजय नाटक
पुरुष परीक्षा (Purush Pariksha) :
यह रचना ज्योतिष शास्त्र से संबंधित है। इस रचना में कामशास्त्र, नीति शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र तीनों का समन्वय हुआ है।
दुर्गा भक्ति तरंगिणी (Durgavati Tarangini) :
यह रचना विद्यापति के पिता गणपति ठाकुर की अधूरी रचना है जिसे विद्यापति ने पूर्ण किया।
गोरक्ष विजय नाटक (Goraksha Vijay Natak) :
इसमें संस्कृत एवं मैथिली दोनों भाषाओं का प्रयोग हुआ है। मिश्रबंधुओं ने इसी रचना के आधार पर विद्यापति को हिंदी का पहला नाटककार कहा है।
कीर्ति लता और कीर्ति पताका में कवि का दरबारी रूप दिखाई देता है। यह दोनों वीर रस में लिखी गई प्रशस्तियां है।
कीर्ति लता से महत्वपूर्ण तथ्य :
विद्यापति की रचना “कीर्ति लता” से महत्वपूर्ण तथ्य इसप्रकार है :-
- हरप्रसाद शास्त्री ने नेपाल के राजकीय पुस्तकालय से कीर्तिलता की खोज की ।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कीर्तिलता की भाषा को पूर्वी अपभ्रंश या टकसाली अपभ्रंश की संज्ञा दी है।
- कीर्तिलता विद्यापति की ऐतिहासिक रचना है।
- विद्यापति के आश्रयदाता राजा कीर्ति सिंह की वीरता व उदारता और गुण ग्राहकता का वर्णन कीर्तिलता में किया है।
- कीर्तिलता विद्यापति की पहली रचना मानी जाती है।
- हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कीर्ति लता को “भृंग -भृंगी संवाद” माना है।
- विद्यापति ने कीर्तिलता में स्वयं को राजा कीर्ति सिंह का “लेखन कवि” बतलाया है।
- विद्यापति ने कीर्ति लता को “कहाणी” कहा है।
“पुरुष कहाणी हौ कत्थौ जसु पत्थावौ पुत्तु।”
- विद्यापति ने कीर्ति लता को “देसिल बयना (अवहट्ठ)” में रचित माना है।
“देसिल बयना सब जन मिठ्ठा।
तै तैसन जम्पनो अवहट्ठा।।”
- विद्यापति की कीर्तिलता में अवहट्ठ शब्द का प्रयोग मिलता है।
“सक्कअ वाणी बहुअण भावइ, पावइ रस को मम्म न पावइ।”
“बालचंद बिज्जावइ भाषा, दुह नहि लग्गई दुज्जन हासा।”
पदावली के महत्वपूर्ण तथ्य :
विद्यापति की रचना “पदावली” के महत्वपूर्ण तथ्य इसप्रकार है :-
- पदावली विद्यापति की ख्याति का आधारभूत ग्रंथ है।
- विद्यापति मूलतः शैव भक्त हैं लेकिन राधा कृष्ण के प्रेम में रमे है।
- इसमें भक्ति व श्रृंगार रस दोनों देखा जा सकता है।
- निराला ने पदावली को “नागिन की मादक लहर” कहा है।
- पदावली की भाषा मैथिली है और पदावली एक गीतिकाव्य है।
इसी रचना के आधार पर विद्यापति को “मैथिल कोकिल” कहा जाता है।
- पदावली सुवान्त: सुखाय रचना है। इसमें राजा शिव सिंह एवं लखिमा देवी का प्रतिकार्थ उल्लेख मिलता है।
“सखि ! हे कि पूछसि अनुभव मोय।”
Vidyapati | विद्यापति भक्तकवि है या श्रृंगारी कवि
यह विवाद पदावली से ही उठता है कि विद्यापति भक्त है या श्रृंगारी ।
विद्यापति को कुछ विद्वान श्रृंगारी कवि, कुछ भक्त कवि तो कुछ रहस्यवादी कवि मानते हैं जिन्हें स्पष्ट रूप से इस प्रकार समझ सकते हैं-:
रहस्यवादी कवि मानने वाले विद्वान :
विद्यापति को रहस्यवादी कवि मानने वाले विद्वान हैं :-
- जॉर्ज ग्रियर्सन
श्रृंगारी कवि मानने वाले विद्वान :
विद्यापति को श्रृंगारी कवि मानने वाले विद्वान हैं :-
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल
- रामकुमार वर्मा
- रामवृक्ष बेनीपुरी
- डॉ.बच्चन सिंह
- हरप्रसाद शास्त्री
भक्त कवि मानने वाले विद्वान :
विद्यापति को भक्त कवि मानने वाले विद्वान हैं :-
- हजारी प्रसाद द्विवेदी
- चैतन्य महाप्रभु
- श्यामसुंदर दास
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने विद्यापति को श्रृंगारी कवि मानते हुए पदावली के संदर्भ में लिखा है –
“आध्यात्मिकता रंग के चश्मे आजकल बहुत सस्ते हो गए हैं।”
डॉ बच्चन सिंह ने कहा है कि
“विद्यापति को भक्त कवि कहना उतना ही मुश्किल है
जितना खजुराहो के मंदिरों को आध्यात्मिक कहना।”
हरप्रसाद शास्त्री ने विद्यापति को पंचदेवोपासक माना है।
Vidyapati | विद्यापति की उपाधियां
Vidyapati Ki Upadhiya (विद्यापति की उपाधियां) : विद्यापति की उपाधियां इस प्रकार है –
- मैथिल कोकिल
- अभिनव जयदेव (यह उपाधि राजा शिव सिंह ने दी है )
- लेखन कवि
- खेलन कवि
- वय:संधि के कवि
- दशावधान
- कवि कंठहार
Vidyapati | विद्यापति से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्य :
- विद्यापति आदिकाल में समन्वय के कवि माने जाते हैं।
- यह आदिकाल को भक्तिकाल से जोड़ने वाले सेतु है।
- हिंदी में गीति काव्य परंपरा का या कृष्ण गीति काव्य परंपरा का प्रवर्तन करने वाले विद्यापति ही हैं।
- विद्यापति हिंदी के पहले ऐसे कवि हैं जिनकी कविता में भक्ति, श्रृंगार एवं वीर रस की त्रिवेणी प्रवाहित हुई है।
- भ्रमरगीत परंपरा की तरफ संकेत करने वाले पहले कवि विद्यापति ही हैं। बाद में भ्रमरगीत परंपरा की व्यवस्थित शुरुआत सूरदास ने की।
- विद्यापति की पदावली से भक्ति और श्रृंगार की द्वन्दात्मक परंपरा शुरू हुई।
- विद्यापति की राधा का स्वरूप परकीया है।
- इनके प्रिय कवि जयदेव हैं।
- इनका प्रिय ग्रंथ जयदेव का गीत गोविंद है।
“माधव सुन सुन वचन हमार।”
- विद्यापति के पदों में गेयता व मधुरता का गुण विद्यमान है।
अयोध्या सिंह उपाध्याय “हरिऔध” ने उनके काव्य की प्रशंसा करते हुए कहा है कि –
“गीत गोविंद के रचनाकार जयदेव की मधुर पदावली पढ़कर जैसा अनुभव होता है, वैसा ही विद्यापति की पदावली पढ़कर।”
विद्यापति दरबारी कवि थे और उनके प्रत्येक पद पर उनका दरबारी रूप हावी है। विद्यापति की कविता श्रृंगार व विलास के रूप में है और मूलतः श्रृंगार रस का प्रयोग किया है।
डॉ. श्याम सुंदर दास कहते हैं कि हिंदी के वैष्णव साहित्य के प्रथम कवि विद्यापति हैं। उनकी रचनाएं राधा – कृष्ण के पवित्र प्रेम से ओतप्रोत हैं।
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एक गुजारिश :
दोस्तों ! इस प्रकार विद्यापति के बारे में हमनें आपको परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य बताए हैं। आशा करते है कि आपको “Vidyapati | विद्यापति का जीवन परिचय एवं रचनाएं” के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I
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