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मीरा मुक्तावली का अर्थ Meera Muktavali (51-55)


मीरा मुक्तावली का अर्थ Meera Muktavali-Narottam Das (51-55) in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली” के अगले 51-55 पदों की व्याख्या अर्थ सहित समझने जा रहे है। तो चलिए शुरू करते है :

नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित मीरा मुक्तावली के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
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Meera Muktavali मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (51-55)


Narottamdas Swami Sampadit Meera Muktavali Ke 51-55 Pad in Hindi : दोस्तों ! “मीरा मुक्तावली” के 51 से लेकर 55 तक के पदों का शब्दार्थ सहित अर्थ निम्नानुसार है :

पद : 51.

मीरा मुक्तावली का अर्थ Meera Muktavali Ke 51-55 Pad in Hindi

पिया ! मोहि दरसण दीजै हो।
वेर-वेर मैं टेरहूँ, अहे ! कृपा कीजै हो।।
जेठ महीने जल बिना, पंछी दुख होई हो।
मोर असाढां कुरलहै, घन चात्रग सोई हो।।
सावण में झड़ लागियौ, सखि तीजाँ खेलै हो।
भादरवै नदियाँ बहै, दूरी जिन मेलै हो।।
सीप स्वाति ही झेलती, आसोजाँ सोई हो।
देव काती में पूजहे, मेरे तुम होई हो।।
मंगसर ठंढ बहोत पड़ै, मोहि वेगि सम्हालो हो।
पोस महीं पाला घणाँ, अबही तुम न्हालो हो।।
माह मही बसन्त-पंचमी, फागाँ सब गावै हो।
फागुण फागाँ खेलहैं, वणराइ जरावै हो।।
चैत चित्त में ऊपजी, दरसण तुम दीजै हो।
वैसाख वणराइ फूलवै, कोइल कुरलीजै हो।।
काग उडावत दिन गयो, बूझूँ पिण्डत जोसी हो।
मीराँ बिरहणि ब्याकुली, दरसण कब होसी हो।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.दरसणदर्शन
2.वेर-वेरबार-बार
3.टेरहूँपुकारना
4.कुरलहैकरुण स्वर
5.चात्रगचातक
6.जिन नहीं
7.मैलेरखना
8.वेगिशीघ्र
9.महीधरती
10.वणराइवनस्पति
11.जरावैजल रहा है

व्याख्या :

मीराबाई अपने प्रियतम के दर्शन की गहरी आकांक्षा प्रकट करती है। हे प्रियतम ! मुझे दर्शन दीजिए। मैं आपको बार-बार यह पुकार रही हूँ कि अब मुझ पर कृपा कीजिये। जैसे जेठ के महीने में भयंकर गर्मी पड़ती है, तब पक्षी को दु:ख होता है। वह प्यासा भटकता है। उसी प्रकार मेरे प्रियतम, मैं तुम्हारे दर्शनो की प्यासी हूँ।

जैसे चातक बादलों से प्रेम करता है। वह करुण स्वर में बोलता रहता है। ऐसा ही मेरा मन हो गया है। मैं आपके प्रेम रूपी घन की चातक हूँ।जब सावन में झड़ लग जाती है, मेरी सखियाँ तीज का खेल खेल रही हैं। भाद्रपद में नदियाँ बह रही हैं। ऐसे में आप मुझसे दूरियाँ मत बनाइए।

आश्विन महीने में सीप, स्वाति नक्षत्र की बूंद को ग्रहण करती है, जिससे मोती बनता है। कार्तिक महीने में देवताओं की पूजा की जा रही है, लेकिन हे मेरे श्रीकृष्ण जी ! मेरे तो देव आप ही हो।

मीरा बाई यहाँ विरह के दिनों में अपनी मनोदशा को व्यक्त करती है। मार्गशीर्ष महीने में ठंड बहुत अधिक पड़ती है। मुझे शीघ्र ही संभाल लो, क्योंकि ठंड के कारण विरह और अधिक उद्दीप्त हो रहा है।

मीरा मुक्तावली का अर्थ :

पौष माह में धरती पर पाला अधिक पड़ रहा है। अब तो आप देखो और संभालो। माघ के महीने में धरती पर बसंत पंचमी है। सब फाग खेल रहे हैं। फागुन में सब फाग मना रहे हैं, लेकिन मेरे लिये तो जैसे सारी वनस्पति जल रही हो। चैत्र के माह में तो बार-बार मेरे मन में एक ही बात उत्पन्न हो रही है कि हे प्रभु ! मुझे आप दर्शन दीजिये।

वैशाख माह में वनस्पति फूल रही है और कोयल करुण स्वर में अपने प्रियतम को याद कर रही है। काग उड़ाते-उड़ाते मेरा पूरा दिन चला गया है। अब मैं पंडित और जोशी से भी पूछ रही हूँ कि प्रियतम कब आयेंगे और कब मुझे दर्शन देंगे। मीराबाई कहती है कि हे प्रभु ! मैं तुम्हारे दर्शन की प्यासी हूँ। आप मुझे दर्शन कब देंगे। मुझे शीघ्र दर्शन दीजिये।

पद : 52.

मीरा मुक्तावली का अर्थ Meera Muktavali– Narottamdas Swami in Hindi

जोगी ! म्‍हाँने दरस दियाँ सुख होइ।
ना‍तरि दुखी जग माहिं जीवड़ो, निसदिन झूरै तोइ।।
दरद-दिवानी भयी बावरी, डोली सबही देस।
मीराँ दासी भयी है पंडर, पळट्या काळा केस।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.म्‍हाँनेमुझे
2.नातरिनहीं तो /अन्यथा
3.जीवड़ोप्राण
4.झूरैरोती है
5.तोइतेरे लिये
6.पळट्याबदल गये
7.काळाकाले

व्याख्या :

मीराबाई कह रही है कि मुझको दर्शन दीजिये। उसी से मुझे तो सुख प्राप्त होगा, नहीं तो इस संसार में मेरे प्राण बहुत दुखी है। मेरे प्राण रात-दिन आपके लिए रोते रहते हैं। प्रभु के प्रेम में विरह पीड़ा मिली और मैं उस दर्द की दीवानी हूँ। उस दर्द में मैं पागल हो गई हूँ।

आपको खोजते-खोजते सभी देश घूम रही हूँ। आपकी मीरा विरह में बिल्कुल पीली हो गई है। मेरे काले केश भी बदल गये है, सफेद हो गये हैं। हे मेरे प्रभु ! मुझे अब तो दर्शन दीजिये। बहुत समय व्यतीत हो गया है।

पद : 53.

मीरा मुक्तावली का अर्थ Meera Muktavali Arth Shabdarth Sahit in Hindi

जोगिया नै कहज्यों जी आदेस।
जोगियां चतर सुजाण सजनी ! ध्यावै संकर-सेस।।
आउंगी मैं, नांहि रहूंगी, रे (म्हारा) पीव बिना परदेस।
करि किरपा प्रतिपाळ मो परि, रखो न अपर्ण देस।।
माळा मुदरा मेखळा, रे वाला, खपर लूंगी हाथ।
जोगणि होइ जग ढूँढसूँ , रे म्हारा रावलिया री साथ।।
सावण आवण कह गया, वाला, कर गया कौल अनेक।
गिणतां-गिणतां घिस गयी रे म्हारी, आंखलिया री रेख।।
पिच कारण पीळी पड़ी, वाला, जोबन बाळी वेस।
दासि मीराँ राम भजि कै तन-मन कीन्हो पेस।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.कहज्योंकहना
2.आदेसजुहार करना/ प्रार्थना करना
3.अपर्ण अपने
4.प्रतिपालपालना
5.मुदरामुद्रिका
6.मेखला करधनी
7.रावलिया राजा
8.कौलप्रतिज्ञा/ वादा
9.आंखलियाउंगलियाँ
10.पिचप्रियतम
11. वेसआयु
12.पेस भेंट करना

व्याख्या :

मीरा बाई कह रही है कि मेरे जोगिया अर्थात् श्रीकृष्ण जी से प्रार्थना करना हे सखि ! कि वे बहुत चतुर सुजान है। उनका तो स्वयं भगवान शंकर जी और शेषनाग जी भी ध्यान करते हैं। मैं भी आऊँगी। मैं यहाँ नहीं रहूँगी। मैं भी अपने प्रीतम के पास जाऊँगी। अपने प्रियतम के बिना इस परदेस में नहीं रहूँगी। मुझ पर कृपा करो। मेरी परिपालना करो हे मेरे प्रभु ! मुझे अपने देश में अपने पास ही रखो।

माला, मुद्रिका, कणकती (कमर में पहनने वाली), जो महिला के शोभावर्धक आभूषण हैं, उन सब को त्याग दूँगी और खप्पर हाथ में लूँगी, जोगण बन जाऊँगी आपके लिये। इस जगत में आपको ढूढूँगी। मुझे तो मेरे रावलिया (राजा) का ही साथ चाहिए। उन्होंने कहा था कि मैं सावन में आऊँगा। वे बहुत सारी प्रतिज्ञा और वादा करके चले गये, पर वे नहीं आये।

दिन गिनते–गिनते मेरी अंगुलियों की रेखायें घिस गई है। मीरा कहती है कि मैं पीली पड़ गई हूँ और मेरे जोबन वाली सुंदर आयु भी पीली पड़ गई है अर्थात् जर्जर हो गई है। दासी मीरा कहती है कि मैं अपना तन-मन पेश करती हूँ। अपने राम को भेंट करती हूँ अपने प्रियतम पर।

पद : 54.

मीरा मुक्तावली का अर्थ Meera Muktavali with Hard Meanings in Hindi

जोगिया जी ! निसि-दिन जोऊँ बाट।
पाँव न चालै, पंथ दुहेलो, आडा औघट घाट।।
नगर आइ जोगी रम गया रे, मो मन प्रीत न पाइ।
मैं भोळी भोळापन कीन्‍हौ, राख्‍यौ नहिं बिलमाइ।।
जोगिया कूँ जोवत बोहो दिन बीता, अजहूँ आयो नाहिं।
विरह बुझावण अन्‍तरि आवो, तपत लगी तन माहिं।।
कै तो जोगी जग में नहीं, कै र विसारी मोइ।
काँइ करूँ, कि‍त जाऊँरी सजनी ! नैण गमाया रोइ।।
आरति तेरी अंतरि मेरे, आवो अपनी जाण।
मीराँ व्‍याकुल बिरहिणी रे, तुम बिनि तळफत प्राण।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.जोऊँदेखना
2.बाटमार्ग
3.औघटदुर्गम
4.घाटघटियाँ
5.बिलमाइभूल गई
6.अन्‍तरिभीतर
7.विसारिभूल गया
8.गमायानष्ट किया
9.जाणजान कर
10.बिनिबिना
11.तळफततड़पता है
12.आरतीलालसा / इच्छा

व्याख्या :

मीराबाई कहती है कि जोगिया जी मैं रात-दिन आपका मार्ग देखती रहती हूँ। आपका इंतजार करती रहती हूँ। मेरे पाँव चलते ही नहीं है, क्योंकि रास्ता बहुत ही कठिन है और बीच में दुर्गम घाटियाँ है।

मीराबाई कहती है कि हे मेरे प्रियतम ! जिस परदेस में आप गये हो, वहाँ का रास्ता बहुत कठिन है। इस नगर में आप आकर रम गये हो। लेकिन मेरा मन प्रीत नहीं पा सका अर्थात् श्रीकृष्ण जी से प्रीत ना मिल सकी। मैं तो भोली थी, जो भोलापन में रह गई और मैं उस प्रेम को भूल गई। जोगी की राह देखते बहुत दिन हो गये, लेकिन वह अभी तक आया नहीं है।

मेरे विरह को बुझाने के लिये अंदर आइये। प्रभु मेरे शरीर में विरह वेदना की तपन लगी है, उसे बुझाने के लिये मेरे हृदय में प्रविष्ट कीजिये। अब या तो यह जोगी इसमें नहीं रह गया है या फिर मुझे ही भूल गया है।

अब मैं क्या करूँ और कहाँ जाऊँ। रो-रोकर मैंने अपने नेत्रों को नष्ट कर लिया है। अब तो मेरी यही इच्छा है कि मेरे हृदय में समा जाओ, मुझे अपनी जानकर मेरे हृदय में आ जाओ, यही मेरी लालसा रह गई है। आपके बिना मेरे प्राण तड़पते हैं।

पद : 55.

मीरा मुक्तावली का अर्थ Meera Muktavali Ki Vyakhya in Hindi

सजन ! सुध ज्‍यूँ जाणै ज्‍यूँ लीजै हो।
तुम बिन मोरे और न कोई, कृपा रावरी कीजै हो।।
दिन नहिं भूख, रैण नहिं निंदरा, यूं तन पल-पल दीजै हो।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, मिल बिछ गनमत दीजै हो।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.सुधयाद
2.ज्‍यूँजैसे संभव हो
3.जाणै जैसे ठीक लगे
4.रावरीआपकी
5.रैण रात्रि
6.निंदरानींद
7.बिछ बिछड़ना
8.दीजैदेना

व्याख्या :

मीराबाई कहती है कि हे प्रियतम ! आपके लिये जैसे भी संभव हो, जैसे भी आपको ठीक लगे, वैसे ही मेरी सुध लीजिये। मुझे दर्शन दीजिये। आपके बिना मेरा कोई और नहीं है। मैं तो आपकी ही हूँ। मुझ पर अपनी कृपा कीजिये।

दिन में भूख नहीं है और रात में नींद नहीं है। मेरा तन पल-पल दु:ख पा रहा है। हे प्रभु ! कृपा करके मुझे दर्शन दीजिये। हे मीरा के प्रभु गिरिधर नागर ! आप मुझसे मिल करके बिछड़ मत जाना। हे प्रभु ! आप जब मुझे मिल गये हो तो बिछड़ना कहाँ ठीक रहेगा। आप मुझे दर्शन क्यों नहीं दे रहे हो ?

इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने “मीरा मुक्तावली” के अगले 51-55 पदों का अर्थ जाना और समझा। अगले अंक में फिर से हाजिर होंगे कुछ नये पदों के साथ।


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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “मीरा मुक्तावली का अर्थ Meera Muktavali (51-55)” के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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