Kavya Riti | काव्य रीति | काव्य शास्त्र
नमस्कार दोस्तों ! आज के लेख में हम आपको Kavya Riti | काव्य रीति और उसके प्रकार के बारे में बताने जा रहे है। काव्य रीति एक महत्वपूर्ण टॉपिक है। हम यहाँ बिल्कुल सटीक और परीक्षा में आने योग्य बिन्दुओ पर ही प्रकाश डाल रहे है।
Kavya Riti | काव्य रीति : संस्कृत साहित्य में रीति शब्द का प्रयोग “वामन” ने किया। रीति संप्रदाय के प्रवर्तक आचार्य वामन है।
आचार्य वामन आठवीं सदी के आचार्य हैं। इनकी रचना “काव्यालंकार सूत्रवृत्ति” है। कल्हण की ‘राज तरंगिणी’ में उल्लेख मिलता है कि वामन कश्मीर के राजा जयापीड़ के मंत्री थे।
वामन पहले आचार्य हैं जिन्होंने काव्य के संदर्भ में ‘आत्मा’ शब्द का प्रयोग किया है।
आचार्य वामन से पहले अलंकारों को गुणों के साथ विवेचित किया जाता था। वामन पहले आचार्य हैं जिन्होंने अलंकारों की सत्ता से गुणों को पृथक किया। आचार्य वामन ने गुण को रीति के साथ परस्पर अविभाज्य कर दिया।
वामन ने रीति संप्रदाय में गुणों को इतना महत्व दिया है कि रीति संप्रदाय का दूसरा नाम ‘गुण संप्रदाय’ ही पड़ गया। आचार्य वामन ने अलंकारों में उपमा अलंकार को प्रमुख अलंकार माना है।
आचार्य वामन के अनुसार :
“सौंदर्योमलंकार :”
- वामन ने पांचाली रीति का आविर्भाव किया लेकिन सर्वश्रेष्ठ रीति वैदर्भी रीति को माना है।
“वैदर्भी समग्रगुणा :”
- वामन ने रीति को काव्य के विशेष तत्व के रूप में प्रतिपादित करते हुए कहा है:-
” विशिष्टा पद रचना रीति :”
- अर्थात् रीति कोरी पद रचना ने होकर विशिष्ट पद रचना है और “विशेष” शब्द को इस प्रकार स्पष्ट किया है:-
“विशेषो गुणात्मा, रीतिरात्मा काव्यस्य “
- अर्थात् काव्य में विशिष्टता गुणों के संयोजन से आती है। गुण रीति का सर्वस्व है और गुणों से युक्त रीति ही काव्य की आत्मा है।
वामन के पूर्ववर्ती आचार्य भरत व भामह ने गुणों का संबंध काव्य के सामान्य स्वरूप से माना है।
भरत ने – | 10 गुणों का उल्लेख किया है । |
भामह ने – | 3 गुणों का उल्लेख किया है। |
आचार्य वामन ने – | 20 गुण माने हैं। जिसमें – शब्द गुण =10 तथा अर्थ गुण =10 |
आचार्य वामन ने गुणों के भीतर अलंकार और रस का भी समावेश किया जिससे गुणों को व्यापकता मिली।
Kavya Riti | काव्य रीति के प्रकार
Kavya Riti | काव्य रीति के प्रकार : आचार्य वामन ने रीतियों की संख्या तीन बतलाई है जिन्हें इस प्रकार समझा जा सकता है:-
- वैदर्भी रीति
- गौडी रीति
- पांचाली रीति
रीति | गुण | वृत्ति | सम्बंधित रस |
---|---|---|---|
वैदर्भी | माधुर्य गुण | उपनागरिका वृत्ति | करुण, श्रृंगार, भक्ति, वात्सल्य |
गौड़ी | ओज गुण | परुषा वृत्ति | वीर, रौद्र, वीभत्स |
पांचाली | प्रसाद गुण | कोमला वृत्ति | सभी रसों में |
1. वैदर्भी रीति
वैदर्भी रीति : “अर्थ गाम्भीर्य” तथा वक्रोक्ति से रहित स्पष्ट, सरल, कोमल, तथा स्वभावोक्ति से परिपूर्ण संगीत के समान श्रुति मधुर रचना विन्यास वैदर्भ मार्ग है। उदाहरण :-
“तुम कनक किरण के अंतराल में लुक छिपकर चलते हो क्यों ?
हे ! लाज भरे सौंदर्य बता दो मौन बने रहते हो क्यों ।।” — माधुर्य गुण
2. गौडी रीति
गौडी रीति : ओज और कांति से संबंधित गौडी रीति में माधुर्य व सुकुमारता का अभाव रहता है।
आचार्य वामन के अनुसार :
“माधुर्य सौकुमार्योपभावाल समास बहुला “
3. पांचाली रीति
पांचाली रीति : इसमें शब्द और अर्थ का समान गुम्फन (मिश्रण) पाया जाता है। गाढ बंधत्व का अभाव, समास बहुलता का अभाव किंतु माधुर्य वह सौकुमार्य गुण से युक्त रीति, पांचाली रीति कहलाती है।
“माधुर्य सौकुमार्योपन्ना पांचाली “
वामन ने समस्त काव्य को इन 3 रीतियों में समाविष्ट किया है।
दोस्तों ! हम आपको बता दें कि रीति संप्रदाय अपने मूल रूप में आगे चलकर मान्य नहीं हुआ, क्योंकि यह काव्य के बाह्य पक्ष को निर्धारित करता है, जबकि परवर्ती आचार्य काव्य के अन्त: पक्ष को उद्घाटित करने में प्रयत्न करते रहे हैं।
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