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Chhayavaad | छायावाद और जय शंकर प्रसाद एवं उनकी रचनाएँ
नमस्कार दोस्तों ! आज हम Chhayavaad | छायावाद और जय शंकर प्रसाद एवं उनकी रचनाएँ के बारे में अध्ययन करने जा रहे है। आज हम मुख्यत: छायावाद के अर्थ, परिभाषा और उसकी प्रमुख विशेषताओं के बारे में चर्चा करने जा रहे है। साथ ही प्रमुख छायावादी कवि जय शंकर प्रसाद तथा उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में भी विस्तार से जानेंगे। तो चलिए समझते है :
आधुनिक हिंदी काव्य में छायावाद को आधुनिक हिंदी साहित्य का स्वर्ण युग कहा जा सकता है। यह युग साहित्य के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ है । इसमें कला पक्ष और भाव पक्ष दोनों दृष्टि से उत्कर्ष का चरम दिखाई देता है। सन् 1918 से 1938 तक के काव्य को छायावाद कहा जाता है।
सर्वप्रथम छायावाद शब्द का प्रयोग मुकुटधर पाण्डेय ने किया था। मुकुटधर पाण्डेय ने 1920 ईस्वी में जबलपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका “श्री शारदा” में “हिंदी में छायावाद” शीर्षक से चार निबंध एक श्रृंखला के रूप में छपवाएं थे।
Chhayavaad | छायावाद का अर्थ और परिभाषा
दोस्तों ! आपको बता दे कि छायावाद के अर्थ को लेकर विद्वानों में कई मतभेद है। यहाँ हम कुछ विद्वानों के नाम दे रहे है, जिन्होंने छायावाद को अलग-अलग तरीकों से परिभाषित किया है। आइए समझते है :
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, — “छायावाद का संबंध रहस्यवाद और विशेष काव्य शैली से हैं।”
- डॉ. रामकुमार वर्मा के अनुसार, — “जब परमात्मा की छाया आत्मा में पड़ने लगती है और आत्मा की छाया परमात्मा में तो यही छायावाद है।” ये भी छायावाद को रहस्यवाद से जोड़ते हैं।
- छायावाद के सुप्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत के अनुसार, — “छायावाद “चित्र भाषा पद्धति” है।”
- डॉ. नगेंद्र के अनुसार, — “स्थूल के प्रति सूक्ष्म का विद्रोह ही छायावाद है।”
- नंददुलारे वाजपेई के अनुसार, — “छायावाद सांसारिक वस्तुओं में दिव्य सौंदर्य का प्रत्यय है।” इन्होने “हिंदी साहित्य : बीसवीं सदी” पुस्तक में इसे “आध्यात्मिक छाया का भान” कहा है।
Chhayavaad | छायावादी कविता की विशेषताएं
छायावादी कविता की विशेषताओं को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से समझा जा सकता है :
- खड़ी बोली हिंदी की खड़खड़ाहट को दूर करते हुए रागात्मकता को स्थापित किया गया।
- चित्रात्मक, अलंकारिक, संगीत प्रधान एवं तत्सम प्रधान शब्दावली का प्रयोग।
- महान बिम्बों की सृष्टि।
- राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना की प्रबल अभिव्यक्ति।
- व्यक्तिकता की प्रधानता ।
- लाक्षणिकता एवं प्रतीकात्मकता।
- प्रकृति प्रेम का काव्य।
- व्यक्तिकता व अनुभूतिप्रवणता।
- नारी, प्रकृति, एवं भाव सौन्दर्य का उदात्त चित्रण।
- कल्पना की रमणीयता।
- रागात्मकता।
- विश्वबन्धुत्व एवं मानवतावाद का काव्य।
- सांस्कृतिक पुनर्जागरण की अभिव्यक्ति।
- रहस्यवाद की अभिव्यक्ति।
- छायावादी कविता में रहस्यवादी भावना का आधार मूलत: लौकिक है। मध्यकालीन रहस्यवाद की भांति मोक्ष की संकल्पना नहीं है।
- छायावाद में रहस्यवाद इसी जीवन जगत में मुक्ति की तलाश करता है।
- अलौकिकता, आध्यात्मिकता से छायावादी रहस्यवाद का कोई संबंध नहीं है।
- अलंकारिक भाषा एवं उपचार वक्रता छायावाद की विशेषता है।
प्रमुख छायावादी कवि : जयशंकर प्रसाद | Jaishankar Prasad
जयशंकर प्रसाद का जन्म 1889 ईस्वी और मृत्यु 1937 ईस्वी में हुई। इनके बचपन का नाम झारखंडी है। यह छायावाद के आधार स्तंभ माने जाते हैं। प्रसाद छायावाद के ब्रह्मा कहलाते हैं । ये ब्रज भाषा में कलाधर के उपनाम से रचनाएं लिखते थे। ये छायावाद के सुमेरु और कालिदास है। ये प्रेम प्रकृति एवं सौंदर्य के कवि कहलाते हैं।
प्रसाद बहुमूल्य प्रतिभा के धनी हैं। ये कवि होने के साथ-साथ नाटककार, कहानीकार, उपन्यासकार एवं निबंधकार भी रहे हैं। जयशंकर प्रसाद सर्वमान्य मत के अनुसार छायावाद के प्रवर्तक माने जाते हैं। ये छायावाद में अपनी दार्शनिक चेतना, इतिहास बोध एवं सांस्कृतिक चेतना के लिए प्रसिद्ध है।
झरना (1918) ईस्वी से Chhayavaad | छायावाद का प्रवर्तन होता है। प्रसाद की पहली कविता “सावन पंचक” मानी जाती है। रामस्वरूप चतुर्वेदी के अनुसार प्रसाद की पहली छायावादी कविता “प्रथम प्रभात” है।
शुक्ल जी ने प्रसाद को “मधुचर्या का कवि” तथा अज्ञेय ने प्रसाद को “विश्वविद्यालयों का कवि” कहा है।
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएँ :
जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाओं का नीचे दी गयी तालिका से अध्ययन कीजिए :
उर्वशी – चंपू काव्य | 1909 |
वन मिलन | 1909 |
प्रेम राज्य | 1909 |
अयोध्या का उद्धार | 1910 |
शोकोच्छवास | 1910 |
वभ्रुवाहन | 1911 |
कानन कुसुम – यह प्रसाद का खड़ी बोली कविताओं का पहला संग्रह माना जाता है। | 1912 |
करुणालय – यह हिंदी का पहला गीत नाटक माना जाता है। | 1913 |
महाराणा का महत्व | 1914 |
प्रेम पथिक | 1914 |
चित्र धार – इसमें ब्रजभाषा की रचनाओं का संकलन है। | 1918 |
झरना – यह काव्य संग्रह है। | 1918 |
आंसू – यह लम्बी प्रगीतात्मक कविता है। | 1925 |
लहर – यह काव्य संग्रह है। | 1933 |
कामायनी – यह एक प्रबंध काव्य है। | 1935 |
झरना : 1918
- यह छायावाद की प्रयोगशाला कहलाता है।
- झरना का समर्पण इस प्रकार है :
“हृदय ही तुम्हें दान कर दिया, क्षुद्र था उसने गर्व किया।
तुम्हें पाया अगाध गंभीर; कहां जलबिंदु कहां निधिक्षीर।।”
आंसू : 1925
- इस रचना को छायावाद का मेघदूत कहा जाता हैं।
- इसमें 133 प्रकार के छंद है।
- यह एक लम्बी मानवीय विरह की प्रगीतात्मक कविता है।
- यह “सखि छंद” में लिखा गया है, जो प्रसाद का प्रिय छंद है।
- इसकी पहली और अंतिम पंक्ति इस प्रकार है :
” इस करुणा कलित हृदय में क्यों विकल रागिनी बजती।” — पहली पंक्ति
“सबका निचोड़ लेकर तुम सुख से सुखी जीवन में।
बरसों प्रभात हिमकण – सा आंसू इस विश्व सदन में।।” — अंतिम पंक्ति
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने आंसू को संकेतित करते हुए कहा है, — “यह प्रसाद की पहली काव्य कृति है, जिसने अधिकांश लोगों का ध्यान आकर्षित किया है।”
लहर : 1933
- लहर प्रसाद के सर्वश्रेष्ठ प्रगीतों का संग्रह है इसमें निम्न कविताएं संकलित है :
- उठ-उठ री लघु-लघु लोल लहर
- बीती विभावरी जाग री
- शेर सिंह का शस्त्र समर्पण
- पेशोला की प्रतिध्वनि
- प्रलय की छाया
- आत्मकथांक
- ले चल मुझे भुलावा देकर – इस कविता के आधार पर छायावादी कविता पर पलायनवाद का आरोप लगाते हैं।
कामायनी : 1935
- शतपथ ब्राह्मण की जल प्रलय घटना को आधार बनाकर यह रचना लिखी गई है। इस पर शैव प्रत्यभिज्ञ दर्शन का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। साथ ही इस पर कश्मीरी शैव दर्शन का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है।
- कामायनी भाव प्रधान महाकाव्य है, जो नायिका प्रधान है। इसमें गांधीवाद का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है ।
- कामायनी छायावाद की प्रतिनिधि रचना है। इसे छायावाद का उपनिषद् कहा गया है। कामायनी का दर्शन सैद्धांतिक नहीं बल्कि व्यावहारिक रूप में प्रस्तुत हुआ है। इसका घोषित उद्देश्य उद्देश्य – समरसतावाद और आनंदवाद की स्थापना है।
- यह प्रकृति चिंतन का महान महाकाव्य है। इसमें प्रकृति और मनुष्य के मध्य रागात्मक संबंधों की स्थापना प्रबल है। साथ ही इसमें प्रतीकों का निर्वाह हुआ है, इसलिए कामायनी रूपक महाकाव्य है। कामायनी में भाव, प्रकृति एवं नारी सौंदर्य की त्रिवेणी प्रवाहित हुई है।
कामायनी 15 सर्गों में विभक्त है :
- चिंता
- आशा
- श्रद्धा
- काम
- वासना
- लज्जा
- कर्म
- ईर्ष्या
- इडा
- स्वप्न
- संघर्ष
- निर्वेद
- दर्शन
- रहस्य
- आनंद।
कामायनी से प्रमुख पंक्तियां :
“हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर बैठ शिला की शीतल छांह।”— पहली पंक्ति
“चेतनता एक विलासती आनंद अखंड घना था।” — अंतिम पंक्ति
“नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत नग-पग तल में।” — लज्जा
“तुम भूल गए पुरुषत्व मोह में, कुछ सत्ता है नारी की।
समरसता ही संबंध बनी, अधिकार और अधिकारी की।।” — काम
कामायनी की प्रतीकात्मक योजना :
- कामायनी शांत रस प्रधान रचना है। इसमें आल्हा छंद का प्रयोग हुआ है तथा प्रतीकात्मक योजना देखने को मिलती है। जो इसप्रकार है :
मनु – | मन का या मनोमय कोश में स्थित जीव का प्रतीक है। |
श्रद्धा – | हृदय की रागात्मक प्रवृत्ति का, नवजागरण के अग्रदूत, विश्व बंधुत्व की भावना का प्रतीक है। |
इडा – | बुद्धि का प्रतीक है। |
मानव – | आधुनिक पीढ़ी का प्रतीक है। |
आसूरि व विलात – | राक्षसी वृतियों का प्रतीक। |
वृषभ – | धर्म का प्रतीक है। |
सोमलता – | भोग का प्रतीक है। |
सोमलता से आवृत वृषभ – | भोग संयुक्त धर्म का प्रतीक है। जिस का त्याग करके मनुष्य चिरानन्द में लीन हो जाता है। |
जयशंकर प्रसाद के प्रमुख कहानी संग्रह :
जयशंकर प्रसाद के प्रमुख कहानी संग्रह निम्नानुसार है :
छाया | 1912 |
प्रतिध्वनि | 1926 |
आकाशदीप | 1929 |
आँधी | 1931 |
इंद्रजाल | 1936 |
इस प्रकार दोस्तों ! आज हमने “Chhayavaad | छायावाद और जय शंकर प्रसाद एवं उनकी रचनाएँ ” के बारे में विस्तार पूर्वक जाना। उम्मीद करते है कि आपको छायावाद और जयशंकर प्रसाद के बारे में जानकारी उपयोगी लगी होगी। इस अध्याय को बार-बार दोहराकर अच्छे से तैयार कर लीजिये।
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एक गुजारिश :
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