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Kavya Dosh | काव्य दोष : अर्थ, परिभाषा एवं प्रकार
Kavy Dosh | काव्य दोष : दोस्तों ! आज के लेख में हम आपको Kavy Dosh | काव्य दोष के बारे में कुछ महत्वपूर्ण नोट्स बताने जा रहे है, जो परीक्षा में आपके लिए उपयोगी सिद्ध होंगे ।
यह काव्य की उदात्तता के बाधक तत्व हैं, जो रस का अपकर्ष करते हैं । सर्वप्रथम आचार्य भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में दोषों का उल्लेख किया है। आचार्य वामन ने पहली बार दोषों को परिभाषित किया है ।
Kavya Dosh | काव्य दोष : अर्थ एवं परिभाषा
Kavy Dosh | काव्य दोष : अर्थ एवं परिभाषा : काव्य दोष की परिभाषा आचार्यों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से दी है जो इस प्रकार है : –
भरतमुनि के अनुसार : दोष, गुण विपर्यय रूप है ।
“ऐते दोषास्तु विज्ञेया सुरभिर्नाटकाश्रया।
एत एव विपर्यस्त: गुणा काव्येषु कीर्तिता ।।”
मम्मट के अनुसार : मुख्य अर्थ का अपकर्ष दोष कहलाता है।
“मुख्यार्थ हति दोर्षो रशस्य मुख्यास्त द्राश्रयादवाच्य:”
आचार्य विश्वनाथ के अनुसार : रस का अपकर्ष दोष कहलाते हैं।
” रसापकर्षक दोष: “
विश्वनाथ के अनुसार : रस के अपकर्ष दोष कहलाते हैं। यह दोष रस प्रतीती में बाधक बन कर काव्य के आस्वाद्य को शिथिल, दोष युक्त एवं विनिष्ट कर देते हैं।
जयदेव के अनुसार : उद्धेग के जनक दोष कहलाते हैं।
“उद्वेग जनको दोष:”
आचार्य वामन के अनुसार :
“गुण विपर्यात्मनो दोष:”
Kavya Dosh | काव्य दोष के प्रकार
Kavya Dosh | काव्य दोष के प्रकार : Kavy Dosh | काव्य दोष के प्रकार इसप्रकार से समझ सकते है :
- आचार्य भरतमुनि ने 10 काव्य दोष बताए हैं।
- आचार्य वामन ने 20 का काव्य दोष गिनाये हैं ।
- भामह ने 21 काव्य दोष गिनाये है ।
- आचार्य विश्वनाथ ने 70 काव्य दोष गिनाये हैं जो सर्वाधिक है।
सामान्यतः दोष के तीन प्रकार होते हैं ।
- शब्द दोष : जो 37 प्रकार के होते हैं।
- अर्थ दोष : यह 27 प्रकार के होते हैं एवं
- रस दोष : यह 10 प्रकार के होते हैं।
आचार्य विश्वनाथ ने साहित्य दर्पण में दोषों के पांच प्रकार गिनाए हैं :
- पद दोष
- पदांश दोष
- वाक्य दोष
- अर्थ दोष
- रस दोष
शब्द दोष :
शब्द दोष : काव्य में शब्दों के द्वारा उत्पन्न दोष शब्द दोष कहलाता है ।
प्रकार : शब्द दोष 9 प्रकार के होते हैं –
- ग्रामत्व दोष *
- श्रुतिकटित्व दोष *
- अश्लीलत्व दोष
- अक्रमत्व दोष *
- च्युतसंस्कृति दोष *
- क्लिष्टत्व दोष *
- अधिक पदत्व दोष
- न्यून पदत्व दोष
- अप्रतीत्व दोष *
अर्थ दोष :
अर्थ दोष : काव्य में उसके अर्थ के द्वारा उत्पन्न दोष अर्थ दोष कहलाता है ।
प्रकार : अर्थ दोष तीन प्रकार के होते हैं –
- प्रसिद्धि विरुद्ध दोष
- पुनरुक्ति दोष
- दुष्क्रमत्व दोष *
रस दोष :
रस दोष : काव्य से मिलने वाले रस में उत्पन्न दोष रस दोष कहते हैं।
प्रकार : रस दोष के भी तीन प्रकार के होते हैं –
- अकाण्ड प्रथन दोष
- अकाण्ड छेदन दोष
- स्वशब्द वाच्यत्व दोष
Kavya Dosh | प्रमुख काव्य दोषों का विवरण
Kavya Dosh | प्रमुख काव्य दोषों का विवरण : उक्त बताएं दोषों में कुछ दोषों का विवरण इस प्रकार है –
श्रुतिकटित्व दोष (शब्द दोष) :
श्रुतिकटित्व दोष (शब्द दोष) : ऐसा काव्य जो सुनने में कानों को अच्छा नहीं लगे वहां श्रुतिकटित्व दोष होता है।
- आचार्य वामन ने इसे कष्ट का नाम दिया है ।
“श्रुति विरस कष्टम”.
- केशव दास ने इस दोष को कर्णकटु की संज्ञा दी है।
“कहन न नीको लागई सो कहियत कटुकर्ण।
केशवदास कवित्व में भूलि न ता को वर्ण।।”
- इस दोष में (ट,ठ,ड,ढ,ण) वर्णों का मुख्यतः प्रयोग होता है।
- ओज गुण की भी यह विशेषता है । अतः श्रुति कटित्व दोष मुख्यतः ओज गुण में पाया जाता है। जैसे:-
“वर्ण वर्ण सदैव जिनके हो विभूषण कर्ण के।
क्यों न बनते कवि जनों के ताम्रपत्र सुवर्ण के।।”
“लटिक लटिक लटकतु चलतू – डटतु मुकुट की छांह।
चटक भरयो नटक मिलिगयो अटक – बटक बट मांह।।”
“कहुं रुण्ड – रुण्ड कहुं कुंण्ड भरे श्रोनित के”
ग्रामत्व दोष (शब्द दोष) :
ग्रामत्व दोष (शब्द दोष) : काव्य में जहां ग्रामीण शब्दों का प्रयोग हो वहां ग्रामत्व दोष होता है।
“लोक मात्र प्रियुक्तम ग्राम्यम”
“ताहि अहीर की छोरियां छछिया भरे छाछ पे नाच नचावे”
“पंथ के साथ ज्यो लोग लुगाई”
क्लिष्टत्व दोष (शब्द दोष) :
क्लिष्टत्व दोष (शब्द दोष) : काव्य में प्रयुक्त दुर्बोध एवं कठिन अर्थ दुसाध्य शब्दों का प्रयोग क्लिष्टत्व दोष कहलाता है। इसमें जटिल शब्दावली का प्रयोग होता है, जिसका अर्थ दुसाध्य होता है।
“मंदिर अरध अवधि हरि बदि गए हरि अहार चलिजात”
- दृष्टीकूट पदों में एवं संतों की उलटबांसियों में क्लिष्टत्व दोष पाया जाता है।
अप्रतीत्व दोष (शब्द दोष) :
अप्रतीत्व दोष (शब्द दोष) : जब काव्य में किसी विशेष शास्त्र के परिभाषिक शब्द का प्रयोग किया जाए, वहां अप्रतीत्व दोष होता है। यह पारिभाषिक शब्द लोक व्यवहार में प्रसिद्ध नहीं होता।
“तत्व ज्ञान पाकर हुये आशय दलित समस्त”
- यहां ‘आशय’ शब्द योग शास्त्र का परिभाषिक शब्द है जिसका अर्थ ‘वासना’ है।
“बहुत देखे तेरे यह अनुभाव”
- यहां ‘अनुभाव ‘ साहित्य शास्त्र का पारिभाषिक शब्द है, जिसका अर्थ है : आश्रय की चेस्टाएं।
अक्रमत्व दोष (शब्द दोष) :
अक्रमत्व दोष (शब्द दोष) : यह एक शब्द दोष है । काव्य के शब्द प्रयोग में व्यतिक्रम हो जाना ही अक्रमत्व दोष कहलाता है।
छंद के पद प्रयोग में व्यतिक्रम हो जाना है , अक्रमत्व दोष है।
“क्यों नहीं करुणा तुम्हारी छलकती है मूक।”
- यहां ‘मूक’ शब्द करुणा का विशेषण है, जो पद के अंत में रखा हुआ है।
च्युतसंस्कृति दोष (शब्द दोष) :
च्युतसंस्कृति दोष (शब्द दोष) : यह एक व्याकरण दोष है। आचार्य वामन ने इसे ‘असाधु’ का नाम दिया है।
“शब्द स्मृति विरुद्ध असाधु”
- व्याकरण विरुद्ध शब्दावली का काव्य में प्रयोग च्युतसंस्कृति दोष कहलाता है।
- व्याकरण की दृष्टि से दोषपूर्ण शब्दों का प्रयोग :
“मरम वचन सीता जब बोला
हरि प्रेरित लछमन मन डोला”
- यहां ‘अवधि’ भाषा में सीता स्त्रीलिंग के साथ ‘बोला’ क्रिया रूप असंगत है।
दुष्क्रमत्व दोष (अर्थ दोष) :
दुष्क्रमत्व दोष (अर्थ दोष) : यह अर्थ दोष है । लोक या शास्त्र के विरुद्ध क्रम या दुष्क्रम।
- इस दोष में लोक और शास्त्र की निर्धारित मान्यताओं का क्रम उलट दिया जाता है । आचार्य भामह ने इसे ‘अपक्रम ‘ का नाम दिया है।
“मारुत नंदन मारुत को मन को खगराज को वेग लजायो।”
- यहां मन का वेग आ जाने के पश्चात खगराज के वेग का कोई औचित्य नहीं है।
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