Ritimukt Kavi | रीतिमुक्त काव्य धारा के प्रमुख कवि और रचनाएँ
नमस्कार दोस्तों ! हम पिछले नोट्स में रीतिकाल के नामकरण और विभाजन तथा रीतिकाल के रीतिबद्ध कवियों के बारे में विस्तार से चर्चा कर चुके है। आज हम रीतिकाल के “Ritimukt Kavi | रीतिमुक्त काव्य धारा के प्रमुख कवि और रचनाएँ” के बारे में बात करने जा रहे है। तो चलिए शुरू करते है :
रीतिमुक्त कवि उन्हें कहा जाता है जो रीति के बंधन से पूर्णतया मुक्त हो। ऐसे कवि जिन्होंने काव्यांग निरूपण करने वाले लक्षण ग्रंथों की रचना नहीं की है। रीतिमुक्त काव्य धारा के प्रमुख कवि है : आलम, बोधा, घनानंद, ठाकुर, द्विजदेव।
Ritimukt Kavi | रीतिमुक्त काव्य धारा के प्रमुख कवि
आलम | Aalam
यह ब्राह्मण जाति के थे, परंतु एक रंगरेज से विवाह करने के बाद मुसलमान बन गए। यह औरंगजेब के पुत्र मुअज्जमशाह (बहादुर शाह) के समकालीन थे।
” दिल से दिलासा दीजै हाल के न ख्याल हूजै
बेखुदी फकीर वह आशिक दीवाना है।।”
डॉ. बच्चन सिंह ने आलम को फकीराना ठाठ और आशिकी का कवि कहा है।
आलम : “कनक छरी सी कामिनी काहे को कटी छीन।
शेख भणिती (रंगरेजिन) : कटी को कंचन काटि के कुचन मध्य धरी दीन।।”
आचार्य रामचंद्र शुक्ल :
“यह प्रेमोन्मत कवि थे और अपनी तरंग के अनुसार कविता रचना करते थे।
प्रेम की पीर या इश्क का दर्द इनके एक-एक वाक्य में भरा पाया जाता है।”
“प्रेम की तन्मयता की दृष्टि से आलम की गणना रसखान व घनानंद की कोटि में करनी चाहिए।”
आलम की प्रमुख रचनाएँ :
- आलम केलि
- सुदामा चरित
बोधा | Bodha
यह बांदा जिला उत्तर प्रदेश के राजापुर के रहने वाले थे। इनका वास्तविक नाम – बुद्धि सेन था। यह पन्ना नरेश खेत सिंह के दरबार में रहते थे और दरबार की नर्तकी सुभान से प्रेम करते थे।
बोधा की प्रमुख रचनाएँ :
- विरह वारीश (माधवानल कामकंदला चरित)
- इश्कनामा (विरही सुभान दम्पति विलास)
बोधा की चर्चित पंक्तियां :
“दाता कहा सूर कहा, सुंदर सुजान कहा।
आप को न चाहिए, ताकि बाप को न चाहिए।।”
“प्रेम को पंथ कराल महा।
तरवार की धार पै धावनो है।।“
ठाकुर | Thakur
ठाकुर का जन्म ओरछा बुंदेलखंड में हुआ था। यही कारण है कि ठाकुर की रचनाओं में बुंदेलखंडी धरती की सौंधी महक मिलती है।
रामचंद्र शुक्ल का कथन :
“ठाकुर बहुत ही सच्ची उमंग के कवि थे। इसमें कृत्रिमता का लेश नहीं। न तो कहीं व्यर्थ का शब्दाडम्बर है। न हीं कल्पना की झूठी उड़ान और न अनुभूति के विरुद्ध भावों का उत्कर्ष, स्थान-स्थान पर लोकोक्तियों का जो सुंदर विधान इस कवि ने किया है। इससे उक्तियों में और भी स्वभाविकता आ गई है।”
ठाकुर ने हिम्मत बहादुर के दरबार में यह ओजमय छंद पढ़ा था :
“सेवक सिपाही हम उन राजपूतन के, दांन जुद्ध जुरबे में,जो नेकू न मुरबे।
नीति देन वारे हैं महि के महिपालन को, कवि उन्ही के जै सनेही सांचें उर के।
चोजिन के चाज, राम मोजिन के पातसाही, ठाकुर कहावत पै चाकर चतुर के।।”
“
“डेल सो बनाय आय, मेलत सभा के बीच।
लोगन्ह कवित्त कीन्हौ खैर करि जान्यो है।।”
घनानंद | Ghananand
घनानंद Ritimukt Kavi | रीतिमुक्त काव्य धारा के प्रमुख कवि रहे है। इनका जन्म 1689 ई. में बुलंदशहर में हुआ था और उनकी मृत्यु 1739 ई. में वृंदावन में नादिरशाह के सैनिकों के आक्रमण में हुई। घनानंद श्रृंगारी कवि हैं। ये मोहम्मद शाह रंगीला के यहां मीर मुंशी थे। ये स्वच्छंद काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं।
मोहम्मद शाह रंगीला के दरबार में सुजान नामक नर्तकी थी, जिससे घनानंद प्रेम करते थे। घनानंद गाना बहुत अच्छा गाते थे। इसलिए एक बार मुहम्मदशाह रंगीला ने उन्हें गाने के लिए कहा। तब उन्होंने मना कर दिया। तब अन्य दरबारियों ने कहा कि घनानंद को यदि सुजान कहे तो वह गाना गाएंगे। तब सुजान को बुलाया गया तब घनानंद ने गाना गाया।
गाना तो राजा को पसंद आ गया पर उन्हें शहर से बाहर जाने को कहा क्योंकि दरबार में घनानंद सुजान की तरफ मुंह करके बैठे थे और राजा की तरफ पीठ करके बैठे थे। दरबार छोड़ने पर सुजान को साथ चलने को कहा तो उसने मना कर दिया। जिससे उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया।
दरबार छोड़ने के पश्चात घनानंद वृंदावन में गए और निम्बार्क संप्रदाय में दीक्षित हो गए। इनके गुरु नारायण देव या वृंदावन देव माने जाते हैं।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने घनानंद को प्रेम की पीर का कवि कहा है।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल का चर्चित कथन :
“प्रेम की पीर लेकर इनकी वाणी का प्रादुर्भाव हुआ। प्रेम मार्ग का ऐसा धीर पथिक एंव जबांदानी का दावा रखने वाला ब्रजभाषा का दूसरा कवि नहीं हुआ। इनके यहां जो कुछ है, भीतरी हलचल है। इनकी भाषा मौन मधिर पुकार है। यह साक्षात रसमूर्ति हैं।”
घनानंद का प्रिय अलंकार विरोधाभास है :
” उजरनि बसी है हमारी अंखियां देखो।”
घनानंद की प्रमुख रचनाएँ :
- वियोग वैली
- सुजान हित प्रबंध
- विरह लीला
- इश्क लता
- दानघटा
- गोवर्धन लीला
- कोकसार
- कृपा कन्द
- रस केलीवल्ली
- सुजान सागर
घनानंद की चर्चित पंक्तियां :
“तुम कौन धौं पाटि पढ़े हौ लला।
मन लेहु पै देहु छटांक नहीं ।।”
“यह कैसो संजोग न जानी परि है।
जो वियोग हूं क्यो न बिछोहत है।।”
“अति सूधो सनेह को मारग है, जहाँ नेकु सयानपन बाँक नहीं।
तहाँ साँचे चलैं तजि आपुनपौ, झिझकैं कपटी जे निसाँक नहीं।।“
- चकोर इनके प्रेमी जीवन का प्रिय प्रतीक है।
“रैन दिन घुटेबौ करै प्राण, झरै दुखिया झरना सी।”
बाद में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने सुंदरी तिलक नाम से घनानंद के बृज भाषा के मुक्तको का संकलन किया। घनानंद सुजान नर्तकी पर आसक्त थे।बाद में यही सुजान कृष्ण के रूप में बदल गया।
यह सत्य है कि घनानंद की कविता में प्रेम का दिव्य चित्रण हुआ है। प्रेम की पावनता और एकनिष्ठता, अलौकिक प्रेम का आभास जरूर कराता है लेकिन घनानंद को भक्त कवि नहीं कहा जा सकता। कवि तो यह श्रृंगारी ही माने जाएंगे।
ब्रजनाथ ने घनानंद कविता नाम से इनकी कविताओं का प्रकाशन किया था। विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने घनानंद ग्रंथावली और घनानंद कवित्त का संपादन किया है।
घनानंद और बिहारी में तुलना
तत्व | बिहारी | घनानंद |
---|---|---|
मुहावरे | आसक्तिमूलक | वेदनामूलक |
प्रेम | क्रीड़ा परक | पीड़ा परक |
सौंदर्य चेतना | वस्तुनिष्ठ | विषयनिष्ठ |
श्रृंगार चित्रण | संयोग श्रृंगार | वियोग श्रृंगार |
प्रिय अलंकार | रूपक | विरोधाभास |
- बिहारी ने कुलवधू का चित्रण भी ऐसे किया जैसे गणिका हो। लेकिन घनानंद ने गणिका को ही कुलवधू या ईश्वर जैसा दर्जा प्रदान किया।
- बिहारी शास्त्रीय अनुकरण में आस्था रखते हैं लेकिन घनानंद का कोई विश्वास नहीं है।
“समुझि-समुझि बात न बोली वो काम आवै।
छावै घनानंद का जो लौ न नेह बौराह।।”
- प्रेम की उदात्तता का जितना सुंदर चित्रण घनानंद कर पाते हैं उतना बिहारी नहीं।
- बिहारी की कविता को समझने के लिए बुद्धि नेत्रधारी होना आवश्यक है जबकि घनानंद की कविता को समझने के लिए हृदय नेत्रधारी होना आवश्यक है।
- बिहारी की कविता पाठक को चमत्कृत करती है आंदोलित नहीं जबकि घनानंद की कविता पाठक को आंदोलित करती है चमत्कृत नहीं।
द्विजदेव | Dwijdev
इनका वास्तविक नाम मानसिंह था। जो अयोध्या के राजा थे। रसिक बिहारी और लछिराम इनके दरबारी कवि थे। ये रीतिमुक्त काव्यधारा के अन्तिम कवि माने जाते हैं।
द्विजदेव की प्रमुख रचनाएँ :
- श्रृगार लतिका सौरभ
भक्ति काल में रचित कृति तत्वों से युक्त रचनाएं
रचनाकार | कृति तत्वों से युक्त रचनाएं |
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कृपाराम | हित तरंगिणी -1541 डॉ नगेंद्र ने इसे प्रथम रीति परंपरा का ग्रंथ माना है) |
सूरदास | साहित्य लहरी -1550 |
नंददास | रसमंजरी -1550 |
बलभद्र | शिख – नख |
न्यामत खां जान | रस कोश कवि वल्लभ सिंगार तिलक रसमंजरी |
मुबारक कवि | तिल शतक अलक शतक |
रहीम | नगर शोभा बरवै नायिका भेद |
रीतिकाल में रचित प्रबंध रचनाएं
यद्यपि रीतिकाल में मुक्तक रचनाएं अधिक लिखी गई है तथापि कतिपय प्रबंध रचनाएं लिखी गई है :
रचनाकार | प्रबंध रचनाएं |
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चिंतामणि त्रिपाठी | रामायण कृष्ण चरित रामाश्वमेघ |
मंडन कवि | पुरंदर माया जानकी जू का ब्याह |
कुलपति मिश्र | संग्राम सार |
सोमनाथ | सुजान विलास पंचाध्यायी |
लाल कवि | चंद्र प्रकाश |
चंद्रशेखर वाजपेयी | हम्मीर हठ |
रसिक गोविंद | रामायण सूचनिका |
सुरति मिश्र | रामचरित श्री कृष्ण चरित् |
ग्वाल कवि | हमीर हठ गोप पचीसी विजय विनोद |
राम सिंह | जुगल विकास |
गुमान मिश्र | नैषध चरित |
सूदन | सुजान चरित |
पद्माकर | हिम्मत बहादुर विरुदावली |
इसप्रकार दोस्तों ! आप रीतिकाल और उसके रीतिबद्ध और रीतिमुक्त कवियों और उनकी रचनाओं के बारे में अच्छे से जान गए होंगे। आज हमने Ritimukt Kavi | रीतिमुक्त काव्य धारा के प्रमुख कवियों आलम, बोधा, घनानंद, ठाकुर, द्विजदेव के बारे में अध्ययन किया है। उम्मीद करते है कि आपको समझ आया होगा
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एक गुजारिश :
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