Contents
Ram Bhakti Shakha | राम भक्ति परम्परा की शुरुआत
नमस्कार दोस्तों ! आज हम भक्तिकाल के ही एक महत्वपूर्ण टॉपिक “Ram Bhakti Shakha | राम भक्ति शाखा और राम भक्ति परम्परा की शुरुआत” के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातों की चर्चा करने जा रहे है। आशा करते है कि आपको आज की जानकारी अच्छे से समझ में आएगी और आपके लिए उपयोगी भी साबित होगी। तो चलिए कुछ नया सीखते है।
Ram Bhakti Shakha | राम भक्ति परम्परा की शुरुआत : राम कथा परंपरा का आदि स्रोत “वाल्मीकि” की “रामायण” है। वाल्मीकि की रामायण भी तुलसीदास की रामायण की भांति सात काण्डों में विभाजित है।
वाल्मीकि रामायण में छठा कांड ‘युद्ध कांड’ है जबकि रामचरितमानस में यह ‘लंका कांड’ के नाम से मिलता है।
- वाल्मीकि के राम यथार्थवादी धरातल पर स्थित है । इन्होने श्रीराम को महापुरुष के रूप में देखा है। यही कारण है कि वाल्मीकि ने “सीता परित्याग और शंबूक वध” घटनाओं को स्थान दिया है ।
- तुलसीदास के राम आदर्शवादी धरातल पर स्थित हैं । उन्होंने श्रीराम को भगवान या अवतारी रूप में देखा है । लेकिन तुलसीदास की रामचरितमानस में इन घटनाओं को स्थान नहीं मिला है।
रामकथा का उल्लेख
राम कथा का उल्लेख निम्न ग्रंथो में देखा जा सकता है :
- महाभारत के आरण्य पर्व, द्रोण पर्व एवं शांति पर्व में रामकथा का उल्लेख मिलता है।
- संहिता ग्रंथों में अगस्त्य संहिता प्रमुख है जिसमें रामकथा मिलती है।
- उपनिषद ग्रंथों में ” राम रहस्योपनिषद “नामक ग्रंथ प्राप्त होता है।
- पुराण ग्रंथों में भागवत पुराण, विष्णु पुराण, वायु पुराण, कुर्म पुराण में रामकथा मिलती है।
- जातक ग्रंथों में राम दशरथ जातक, “अनार्मत जातक” इन में रामकथा मिलती है।
जैन साहित्य में रामायण
जैन साहित्य में स्वयंभू पहले जैन आचार्य है जिन्होंने रामायण लिखी है :
स्वयंभू | पउमचरिऊ |
विमलचंद सूरी | पउमचरिऊम् |
भुवनतुगं सूरी | सियाराम चरिऊ |
पुष्पदंत | महापुराण |
संस्कृत रामायण
संस्कृत रामायण के दो प्रकार है जिन्हे इस प्रकार समझिये :
01. | अध्यात्म रामायण | माधवदास |
- तुलसीदास का रामचरितमानस “अध्यात्म रामायण” से बहुत प्रभावित है।
02. | उत्तररामचरितम् | भवभूति |
- इस रचना में सीता बनवास का उल्लेख है।
उत्तररामचरितम् को “करुण रस का साम्राज्य” का जाता है।
दक्षिण भारत में आलवार राम भक्त
नवीं सदी में दक्षिण भारत में पल्लव राजाओं के शासनकाल में आलवार और नयनार भक्ति आंदोलन चला जिनमें आलवार 12 थे।
1. नक्मालवार (शठकोप /शठ कौरप) :
- यह राम की पादुका के अवतार कह जाते हैं। इन्होंने राम भक्ति से संबंधित सरस ग्रंथ ” तिरुवायमौली ” की रचना की है।
2. कुलशेखर आलवार :
- यह एक भावुक संत राजा थे। एक बार इन्होंने सीता अपहरण के प्रसंग को सुनते हुए इतने खो गए कि अपनी सेना को श्रीलंका चढाई करने का आदेश दे दिया।
3. अंडाल
- अंडाल महिला आलवार संत है । इनकी तुलना मीरा से की जाती है। यह श्रीकृष्ण की प्रेमिका रही हैं।
— हिंदी में सर्वप्रथम पृथ्वीराज रासो के दूसरे समय (दासम सम्यौ) के अंतर्गत रामकथा का चित्रण मिलता है। इसमें रामकथा से संबंधित 48 छंद मिलते हैं।
उत्तर भारत में राम भक्ति परम्परा
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने उत्तर भारत में राम भक्ति परम्परा की विधिवत शुरुआत रामानंद से मानी है। रामचंद्र शुक्ल ने रामानंद का समय 1450 से 1525 ई. के बीच माना है।
आपको बता दे कि रामानंद का जन्म काशी में हुआ। सार्वभौमिक मत है कि रामानंद 14वीं सदी के हैं। रामानंद के गुरु का नाम “राघवानंद” है और राघवानंद की चर्चित पुस्तक “सिद्धांत पंचमात्र” है।
श्री संप्रदाय में राम भक्ति परंपरा
इस संप्रदाय में राम भक्ति परंपरा का उल्लेख प्राप्त होता है।
श्री संप्रदाय के आचार्य :
श्री रंगनाथ मुनि — पुंडरीकाक्ष — राम मिश्र — यमुनाचार्य — रामानुजाचार्य
- रामानुजाचार्य से रामानंद चौदवी पीढ़ी में आते हैं।
रामानुज और रामानंद में अंतर
यद्यपि दोनों की दास्य भाव की भक्ति करते हैं। दोनों ही वर्णाश्रम में आस्था रखते हैं तथापि दोनों में स्पष्ट अंतर है । जिसे निम्न बिन्दुओं के माध्यम से समझा जा सकता है :
- रामानुज के उपदेशों की भाषा संस्कृत रही है जबकि रामानंद की हिंदी रही है।
- रामानुज ने विष्णु रूप की उपासना की है जबकि रामानंद में राम की उपासना बदल दिया है।
- इनका संप्रदाय श्री संप्रदाय है और रामानंद का संप्रदाय रामावत संप्रदाय है।
- रामानुज ने जाति-पाति के भेदभाव को बनाए रखा।जबकि रामानंद ने जाति-पाति के भेद को अस्वीकार किया।
- रामानंद के गुरु का नाम “यादव प्रकाश” और “कांची पूर्ण” मिलता है। रामानुज को “लक्ष्मण या शेषनाग” का अवतार माना जाता है।
- नाभादास की भक्तमाल में रामानंद के बारह शिष्य बताए गए हैं जो निम्नलिखित है :
1. | अनंतानंद |
2. | सुखानंद |
3. | भावानंद |
4. | सुरसुरानंद |
5. | नरहर्यानंद |
6. | कबीर |
7. | धन्ना |
8. | रैदास |
9. | पीपा |
10. | सेन |
11. | सुरसुरी |
12. | पद्मावती |
- कृष्णदास पयहारी ने गलताजी में रामानंदी पीठ की स्थापना की जिसे उत्तर भारत की “तोताद्री” कहा जाता है।
- रामानंद ने अपनी शिक्षा में जाति-पाति, ऊंच-नीच, निर्गुण-सगुण और स्त्री-पुरुष का भेद नहीं किया । यही कारण है कि “हजारी प्रसाद द्विवेदी“ने रामानंद को “आकाश धर्मा गुरु “की संज्ञा दी है।
रामानंद की रचनाएं
इनकी प्रमुख रचनाये इस प्रकार है :
- वैष्णव मताब्ज भास्कर
- श्री रामार्चन पद्धति
- रामाष्टक
- राम रक्षा स्त्रोत
- योग चिंतामणि
- ब्रह्म सूत्र व गीता पर भाष्य भी लिखें।
- रामावत सम्प्रदाय का आधारभूत दार्शनिक ग्रंथ “वैष्णव माताब्ज भास्कर” है। श्री रामार्चन पद्धति मे गुरु परंपरा का विस्तार से उल्लेख किया गया है।
- रामानंद की लिखी आरती है :
“आरती कीजे हनुमान लला की”
- रामानंद ने “दशधा भक्ति” का प्रवर्तन किया। रामानंद की भक्ति भावना सगुण राम के प्रति दास्यभाव की रही है। उक्त अनुसार राम भक्ति परंपरा की शुरुआत मानी जाती है।
उम्मीद करते है कि आप “रामभक्ति परंपरा की शुरुआत” के बारे में अच्छे से समझ गए होंगे। इसी टॉपिक को लेकर हम अगले नोट्स में भी चर्चा करेंगे जिसमे हम “रामभक्त कवि और उनकी रचनाओं ” को समझेंगे। आज के लिए इतना ही।
यह भी जरूर पढ़े :
एक गुजारिश :
दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “Ram Bhakti Shakha | राम भक्ति शाखा” के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I
नोट्स अच्छे लगे हो तो अपने दोस्तों को सोशल मीडिया पर शेयर करना न भूले I नोट्स पढ़ने और HindiShri.com पर बने रहने के लिए आपका धन्यवाद..!
Thanks