Plato Ka Anukaran Siddhant | प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत


Plato Ka Anukaran Siddhant | प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत : प्लेटो यूनान का महान दार्शनिक प्लेटो (427 ई. पू. – 347 ई.पू.) एक मौलिक चिंतक के रूप में विख्यात है। वह सुकरात का शिष्य था। उसने 388 ई.पू. में एथेंस में एक विद्यालय की स्थापना की तथा अंतिम समय तक उसी में अध्यापन करता रहा। अरस्तु इनका शिष्य था और प्लेटो होमर का समकालीन था।

प्लेटो के समय में कवि को समाज में आदरणीय स्थान प्राप्त था। वह उपदेशक, मार्गदर्शक, संस्कृति का संरक्षक माना जाता था। प्लेटो के साहित्यिक विचार उसके दार्शनिक एवं राजनीतिक सिद्धांतों से पर्याप्त प्रभावित हैं।



होमर प्लेटो का समकालीन ऐसा ही कवि था। यद्यपि होमर के प्रति प्लेटो भी आदर भाव रखता था किंतु वह उसके कवि कर्म को हेय दृष्टि से देखता था। प्लेटो साहित्य का महत्व उसी सीमा तक स्वीकार करता है। जहां तक वह गणराज्य के नागरिकों में सत्य, न्याय और सदाचार की भावना को प्रतिष्ठित करने में सहायक हो। प्लेटो कहता है :

“एक गोबर से भरी हुई टोकरी भी सुंदर कही जा सकती है , यदि वह अपना उपयोग रखती हो अन्यथा
एक स्वर्ण जड़ित चमचमाती हुई दाल भी सुंदर है। यदि वह उपयोग की दृष्टि से महत्वहीन हो।”


Plato Ki Rachnaye | प्लेटो की रचनाएं


प्लेटो की रचनाएं निम्नानुसार है :

  • दी रिपब्लिक
  • द स्टेट्समैन
  • दी लॉज
  • इयोन सिंपोजियम

Plato Ka Anukaran Siddhant | प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत की विशेषताएं


Plato Ka Anukaran Siddhant | प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत की विशेषताएं इस प्रकार से है :

  • दी रिपब्लिक पुस्तक में प्लेटो के कविता संबंधी विचार प्रकट हुए हैं। कविता अनुकरण का अनुकरण है। अतः सत्य से दोगुनी दूर है। प्लेटो मूल आदर्श को ईश्वर कृत वास्तविक सत्ता मानते हैं और दृश्य मान जगत को इस वैचारिक जगत की अनुकृति मात्र मानते हैं।
  • चूँकि कविता अनुकृत जगत का अनुकरण करती है। अतः सत्य से दोगुनी दूर है। इसीलिए प्लेटो इसे असत्य असावधानी एवं भ्रांति से जोड़कर देखते हैं। यह त्याज्य है।
  • प्लेटो कला और अनुकरण का सम्बन्ध तो स्वीकारते हैं लेकिन अनुकरण को कोई गंभीर कार्य न मानकर उसे अज्ञान, भ्रान्ति, असावधानी व उससे प्राप्त उत्तेजना के कारण त्याज्य मानते हैं।
  • प्लेटो का मानना है कि कवि हमारे तर्क और मस्तिष्क को प्रभावित करने के स्थान पर वह हमारे हृदय की भावनाओं से खिलवाड़ करता है और हमें अनैतिक बनाता है। इसलिए आदर्श राज्य में कवि का बहिष्कार है।


इसी संदर्भ में प्लेटो का कथन :

” मैं अपने राज्य में एक मोची को भी वह स्थान दूंगा जो एक कवि को नहीं।”

  • प्लेटो की उपयोगितावादी दृष्टि कवि कर्म को नैतिक मूल्यों की अवहेलना से जोड़कर देखती है। यह साहित्य का प्रयोजन उपयोगितावाद में लोकमंगल को मानते हैं। यह कविता को कवि में ईश्वरीय उन्माद का परिणाम मानते हैं।
  • प्लेटो का अनुकरण यथार्थ वस्तुपरक प्रत्यंकन है। इन्होनें अनुकरण का समर्थन उसी सीमा तक किया है जहां तक अनुकरण योग्य वस्तु शुभ हो और सत्य के समीप हो।
  • इनका मानना है कि कवि यश और कीर्ति के लिए पाठक की वासनाओं को उत्तेजित कर आवेग पूर्ण व उन्माद ग्रस्त स्थिति का चयन करता है। उसका चित्रण करता है। लोकप्रिय बनाता है।
  • ट्रेजडी का कवि हमारे विवेक को नष्ट कर हमारी वासनाओं को जागृत करता है। उनका पोषण करता है और उन्हें पुष्ट बनाता हैI अतः कविता और कवि का आदर्श राज्य में स्थान नहीं है।

ये भी अच्छे से जाने :


एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “Plato Ka Anukaran Siddhant | प्लेटो का अनुकरण सिद्धांत के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

नोट्स अच्छे लगे हो तो अपने दोस्तों को सोशल मीडिया पर शेयर करना न भूले I नोट्स पढ़ने और हमारी वेबसाइट पर बने रहने के लिए आपका धन्यवाद..!


Leave a Comment

Ads Blocker Image Powered by Code Help Pro

Ads Blocker Detected!!!

We have detected that you are using extensions to block ads. Please support us by disabling these ads blocker.

Powered By
Best Wordpress Adblock Detecting Plugin | CHP Adblock
error: Content is protected !!