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Ritibadh Kavya Dhara Ke Kavi | रीतिबद्ध काव्यधारा के अन्य कवि
Ritibadh Kavya Dhara Ke Kavi | रीतिबद्ध काव्यधारा के अन्य कवि : नमस्कार दोस्तों ! हमने आपको पिछले नोट्स में रीतिबद्ध काव्यधारा के 5 प्रमुख कवि और उनकी रचनाओं के बारे में जानकारी दी थी। जैसा कि हमने वादा किया था, आज हम आपको रीतिकाल के अन्य शेष कवियों और उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में भी नोट्स उपलब्ध करा रहे है। तो चलिए समझते है :
मतिराम | Matiram
इनका जन्म 1604 ई. में कानपुर के तिकवापुर गांव में हुआ। मतिराम बहुत से राजाओं के दरबारी कवि रहे थे । जिनमें प्रमुख हैं :
- बूंदी नरेश भावसिंह हाडा
- कुमायूं नरेश ज्ञानचंद
- बुंदेलखंड के स्वरूपसिंह बुंदेला
प्रमुख रचनाएँ :
Ritibadh Kavya Dhara Ke Kavi | रीतिबद्ध काव्यधारा के अन्य कवि : इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नानुसार है :
- फूल मंजरी – 1619 : यह जहांगीर के आश्रय में लिखी गई है।
2. अलंकार पंचाशिका -1690 : यह ज्ञान चंद के आश्रम में लिखी गई है।
3. मतिराम सतसई -1681 : यह रचना भोगनाथ के आश्रम में लिखी गई है।
4. वृत कौमुदी – 1701 : स्वरूप सिंह बुंदेला के आश्रय में लिखी गई है।
5. ललित ललाम : यह भावसिंह हाडा के आश्रम में लिखी गई रचना है।
– यह अलंकार ग्रंथ है। इसमें 100 अर्थालंकारो का चित्रण किया गया है।
6. रसराज :
यह स्वतंत्र रूप से रचित ग्रंथ है। यह 1633 -1643 के मध्य लिखा गया है। यह मतिराम की ख्याति का आधारभूत ग्रंथ है।यह ग्रंथ रस व नायिका भेद से संबंधित है। मतिराम अपने भावों की अकृत्रिमता के लिए भी विख्यात है। गृहस्थ जीवन की सरलता, निष्कपटता, निरीहता की जैसी सुंदर अभिव्यक्ति यहां मिलती है, वैसी अन्यत्र नहीं।
7. साहित्य सार
8. छंदसार पिंगल
9. लक्षण श्रृंगार
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के कथन :
- श्रृंगार, रस व अलंकार की शिक्षा में रसराज व ललित ललाम का अध्ययन, उपयोग बराबर चलता आया है।
- रीतिकाल के प्रतिनिधि कवियों में पद्माकर को छोड़कर और किसी में मतिराम की सी भाषा और सरल व्यंजना नहीं मिलती। इनके यहां नाथ सौंदर्य विद्यमान है।
- इनका कवि हृदय सच्चा था, वे यदि समय की प्रथा के अनुसार रीती की बंधी लकीरों पर चलने के लिए विवश न होते, अपनी स्वभाविक प्रेरणा के अनुसार चल पाते तो और भी सच्ची भाव विभूति दिखलाते, इसमें संदेह नहीं।
- इनके भाव व्यंजक व्यापारों की श्रृंखला सीधी और सरल है। बिहारी के समान चक्करदार नहीं।
- इनमें स्वच्छंद कविता की मनोहारीणी प्रतिभा थी। ये सरस ललित व सुकुमार रचना के धनी थे।
मतिराम की पंक्तियां :
“कुंदन को रंग फीकौ लगे ।
झलकै अति अंगनि चारु गोराई।।“
“है बनमाल हिय लागिए अरु हवै ।
मुरली अधरा रस लीजै।।”
देव | Dev
इनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। इनका जन्म 1673 ई. में हुआ। देव रसवादी आचार्य हैं। देव ने 72 ग्रंथ लिखकर रीतिकाल में सर्वाधिक साहित्य सर्जना की है। यह आजीविका की तलाश में सर्वाधिक नवाबों राजाओं के दरबारों में भटके।
प्रमुख रचनाएँ :
Ritibadh Kavya Dhara Ke Kavi | रीतिबद्ध काव्यधारा के अन्य कवि : इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नानुसार है :
1. भावविलास – 1689 ई. :
यह देव की पहली रचना है। यह औरंगजेब के पुत्र आजमशाह को सुनाने के लिए लिखी गई थी। यह रचना रस व नायिका भेद से संबंधित है।
2. देव शतक :
यह अध्यात्म विषयक ग्रंथ है। इसमें जीवन जगत की असारता का चित्रण किया गया है। इसकी भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है।
3. देव चरित :
यह कृष्ण पर रचित एक प्रबंधात्मक रचना है। इसकी भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है।
4. अष्टयाम :
यह रचना अजय साहू के लिए लिखी गई थी। इसमें नायक-नायिका के विविध विलासों का चित्रण किया गया है।
5. रसविलास :
यह रस व नायिका भेद से संबंधित ग्रंथ है। राजा भोगीलाल को सुनाने के लिए यह रचना लिखी गई।
6. प्रेमचंद्रिका :
यह रचना उद्योत सिंह वैस के लिए लिखी गई। इसमें प्रेम के महात्म्य का चित्रण मिलता है।
7. कुशल विलास :
यह रचना फफूंद रियासत के राजा कुशल सिंह के लिए लिखी गई है।
8. राग रत्नाकर :
यह रचना संगीत से संबंधित रचना है।
9. देव माया प्रपंच :
यह नाटक है। प्रबोध चंद्रोदय संस्कृत नाटक का यह पद्यमय अनुवाद है। इसकी भाषा ब्रजभाषा है।
10. शब्द रसायन (काव्य रसायन) :
यह सर्वांग निरूपक ग्रंथ है। इस रचना के आधार पर देव आचार्य कहलाए। यह इनकी ख्याति का आधारभूत ग्रंथ है। यह स्वतंत्र रूप से रचित है।
11. प्रेम तरंग :
इसमें भी प्रेम के महात्म्य का चित्रण किया है।
12. राधिका विलास
13. वृक्ष विलास
14. प्रेम दीपिका
15. सुख सागर तरंग :
इसमें रस व नायिकाभेद से संबंधित कवित्त वह सवैयों का संग्रह किया गया है।
16. जाति विलास :
इस रचना में विभिन्न प्रदेशों की भिन्न भिन्न स्वभाव वाली स्त्रियों का चित्रण किया गया है।
17. सुजान विनोद :
राजा सुजान मणी के लिए लिखी गई रचना है।
- देव आवेगात्मक नयनोत्सव के कवि हैं। यह मानने वालों में आचार्य रामचंद्र शुक्ल और डॉ. बच्चन है। देव की भाषा साहित्य ब्रजभाषा है। देव अपने काव्य सौष्ठव के लिए प्रसिद्ध हैं।
- शिव सिंह सेंगर के अनुसार देव 72 ग्रंथों के रचयिता हैं। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने देव को प्रगल्भ और प्रतिभा संपन्न कवि कहा है।
देव की कविताई का गुण :
- लक्षणों की सुबोधता
- विभेदीकरण
- मौलिक उदभावना
देव की कविताई का दोष :
- उदाहरणों व लक्षणों मैं असंगतता व अस्पष्टता
देव ने श्रृंगार रस के दो भेद किए हैं :
- प्रच्छन्न
- प्रकाश
- देव ने तात्पर्य नामक चतुर्थ शब्द शक्ति की परिकल्पना भी की है। देव ने 34 वें सचांरी के रूप में छल नामक संचारी की उद्भावना की है ।
- जिसे रामचंद्र शुक्ल ने अवहित्था में शामिल कर लिया है।
देव की चर्चित पंक्तियाँ :
“प्रेम सो कहत ठाकुर न एठों सुन।
बैठो गडी गहरे तो पैठो प्रेम सर में।।“
”अभिधा उत्तम काव्य है, मध्य लक्षणालीन।
अधम व्यंजना रस विरस सदा, उलटी कहत नवीन।।”
” सबद सुमति मुख ते कठे ले पद वचननि अर्थ।
छंद भाव भूषण सहित सौ कहीं काव्य समर्थ।।”
“बेगी ही बूडी गई पंखियाँ।
अंखियाँ मधुकी मखियाँ भई मेरी।।”
“आंख खोली देखा तो न घन है न श्याम।
वे ही छाई बूंदे मेरे आंसू है दृगन में।।”
“साँसन ही में समीर गयो अरु।
आँसुन ही सौ नीर गयो ढरि।।”
जसवंत सिंह | Jaswant Singh
इनका जन्म 1626 ई. में तथा मृत्यु 1678 ई. में हुई। इनकी चर्चित पुस्तक भाषा भूषण है। यह एक अलंकार ग्रंथ है।
सेनापति | Senapati
सेनापति भी केशवदास की भांति भक्ति काल और रीतिकाल की संधि रेखा पर स्थित कवि है। सेनापति प्रकृति के चितेरे कवि हैं ।
ये भी केशवदास की भांति भक्त और श्रृंगारी कवि दोनों हैं। ये रीतिकाल में प्रकृति के सबसे बड़े कवि हुए हैं। इन्होंने प्रकृति का एकांतिक चित्रण किया है। इन्हें रीतिकाल का वर्ड्सवर्थ भी कहा जाता है।
प्रमुख रचनाएँ :
Ritibadh Kavya Dhara Ke Kavi | रीतिबद्ध काव्यधारा के अन्य कवि : इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नानुसार है :
- कवित रत्नाकर – 1649 : यह राम भक्ति से संबंधित है।
- काव्य कल्पद्रुम : इसमें प्रकृति चित्रण है ।
- रीतिकाल में प्रकृति का मुख्यत: उद्दीपनकारी चित्रण ही हुआ है। सेनापति के यहां भी मुख्यत: उद्दीपनकारी रूप मिलता है। लेकिन आलंबन रूप के भी छींटें मिल जाते हैं।
- सेनापति प्रसिद्ध राम भक्ति कवि रहे हैं। इनका प्रिय अलंकार श्लेष और यमक है।
“सेवक सीतापति को सेनापति कवि सोई।
सीतापति के प्रसाद जाकी सब कवि कान दें सुनत कविताई है।।”
“जाकि द्वै अरथ कविता निरवाह की “
ग्वाल कवि | Gwal Kavi
इनका जन्म 1791 ई. में वृंदावन में तथा मृत्यु 1868 ई. में हुई। इनका वास्तविक नाम रसिकानंद था। यह उत्तर प्रदेश के नाभा रियासत के राजा जसवंत सिंह के दरबारी कवि थे। यह रीतिकाल के अंतिम कवि माने जाते हैं।
- रामचंद्र शुक्ल ने इनके ग्यारह ग्रंथ माने हैं। इनका चर्चित ग्रंथ रसरंग – 1853 ई. है। यह रचना रीतिकाल की अंतिम रचना मानी जाती है।
प्रमुख रचनाएँ :
Ritibadh Kavya Dhara Ke Kavi | रीतिबद्ध काव्यधारा के अन्य कवि : इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नानुसार है :
- रसरंग
- रसिकानंद
- यमुना लहरी
- कवि हृदयविनोद
- हम्मीर हट्ट
- अलंकार भ्रमभंजन
- विजय विनोद
- नेह निवाह
- गोप पच्चीसी
- नख – शिख
चंद्रशेखर | Chandrashekhar
इनकी रचना हम्मीर हठ है जो एक प्रबंध रचना है । आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हम्मीर हठ के एक-एक दोहे को हिंदी साहित्य का रत्न माना है।
यही बात शुक्ल जी ने बिहारी सतसई के लिए कही है।
- इनका चर्चित दोहा है :
“सिंह गमन, सत्पुरुष वचन, कदली फलै इक बार।
त्रिया तेल, हमीर हठ, चढ़ै न दूजी बार।।”
सैयद गुलाम नबी (रसलीन) |Syed Ghulam Nabi “Rasleen”
इनका जन्म 1696 ई. में हुआ।
प्रमुख रचनाएँ :
Ritibadh Kavya Dhara Ke Kavi | रीतिबद्ध काव्यधारा के अन्य कवि : इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नानुसार है :
- अंग दर्पण – 1737 ई.
- रस प्रबोध – 1741 ई.
- अलंकार दर्पण
इनका चर्चित कथन :
“अमीय हलाहल मद भरे स्याम स्वेत रतनार।
जीयत मरत झुकि – झुकि परत जेहि चितवन एक बार।।”
बेनी प्रवीण | Beni Praveen
इनकी रचनाएँ है :
- नवरस तरंग – 1817
- श्रृंगार भूषण
तोष | Tosh
इनका जन्म 1734 ई. में हुआ।
इनकी रचनाएँ है :
- सुधा निधि
अली मुहिब खां “प्रीतम” | Ali Muhib Khan “Pritam”
इनकी रचनाएँ है :
- खटमल बाईसी
बेनी बंदीजन | Beni Bandijan
इनकी रचनाएँ है :
- टिकैतराय प्रकार (वीर रस)
- भड़ौवा संग्रह (हास्य रस)
- रसविलास
प्रताप शाही | Pratap Shahi
इनकी रचनाएँ है :
- व्यंग्यार्थ कौमुदी – 1825
- श्रृंगार शिरोमणि
- अलंकार चिंतामणि
- रत्न चंद्रिका
- काव्य विनोद
- यह चरखारी नरेश विक्रम साही के दरबार में रहते थे। प्रताप साही ने मती राम के रसराज की टीका लिखी है।
- रीतिकाल के लक्षण ग्रंथों में प्राय: पहले लक्षण दिए होते हैं, बाद में उदाहरण। जबकि व्यंग्यार्थ कौमुदी में पहले लक्ष्य (उदाहरण) दिए गए हैं, बाद में लक्षण। व्यंग्यार्थ कौमुदी का घोषित विषय नायिका भेद है।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने प्रताप साही के आचार्यत्व एवं कवित्व दोनों की भूरी-भूरी प्रशंसा की है।
विक्रम साही | Vikram Shahi
इनकी रचनाएँ है :
- विक्रम सतसई :
इसमें इन्होंने बिहारी सतसई का अनुकरण करने का प्रयास किया है।
गणपति चंद्रगुप्त के अनुसार :
“यद्यपि यह रचना बिहारी सतसई के अनुकरण पर लिखी गई है
लेकिन बिहारी सतसई से भी अधिक श्रेष्ठ है”
“बिहारी सतसई खदान से निकाले गये कच्चे सोने की भांति है, जिसे विक्रम सतसई में
तपाकर खरा कुंदन का रूप दे दिया”
कुलपति मिश्र | Kulpati Mishra
ये बिहारी के भांजे हैं। ये हिंदी के पहले आचार्य हैं जिन्होंने काव्य हेतु एवं काव्य प्रयोजन पर विस्तार से चर्चा की है।
इनकी रचनाएँ है :
- रस रहस्य – 1670 ई.
- दुर्गा भक्ति तरंगिणी
- भक्ति तरंगिणी
- संग्राम सार
- रस रहस्य 8 वृत्तांतो में विभाजित मिलती है।
इस प्रकार दोस्तों ! आपको रीतिकाल के बारे में हमने सम्पूर्ण जानकारी दे दी है। उम्मीद करते है कि आपको रीतिकाल काव्य धारा और उसके प्रमुख कवियों के बारे में अच्छी जानकारी हो गयी होगी।
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दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “Ritibadh Kavya Dhara Ke Kavi | रीतिबद्ध काव्यधारा के अन्य कवि“ के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I
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