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मीरा मुक्तावली का सार Meera Muktavali (66-70)


मीरा मुक्तावली का सार Meera Muktavali-Narottam Das (66-70) in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली” के अगले 66-70 पदों का सार शब्दार्थ सहित समझने जा रहे है। तो बिना देरी किये शुरू करते है :

नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित मीरा मुक्तावली के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
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Meera Muktavali मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (66-70)


Narottamdas Swami Sampadit Meera Muktavali Ke 66-70 Pad in Hindi : दोस्तों ! “मीरा मुक्तावली” के 66 से लेकर 70 तक के पदों का शब्दार्थ सहित सार निम्नानुसार है :

पद : 66.

मीरा मुक्तावली का सार Meera Muktavali Ke 66-70 Pad in Hindi

म्हारै घर रमतो ही आयो रे
तूं जोगिया ! म्हारै घर रमतो ही आयी रे !
कानां विच कुंडळ, गळै विच सेली
अंग भभूत रमायी रे !
तुम देख्यां विन कल न परत है,
ग्रिह-अंगणा न सुहायी रे !
मीरां के प्रभु हरि अविनासी !
दरसण दयो मोकूं आयी रे !

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.म्हारैमेरे
2.रमतोविचरते हुये
3.आयो आना
4.सेलीजोगियों की गले में पहनने वाली माला
5.भभूतभस्म
6.सुहायीअच्छा लगना

व्याख्या :

मीराबाई कह रही है कि हे श्रीकृष्ण जी ! विचरण करते हुये मेरे घर आ जाइये। आपने कानों में कुंडल धारण कर रखे हैं। अपने गले में जोगियों की गले में पहनने वाली माला धारण कर रखी है और अंगों पर भस्म लगाई हुई है।

आपको देखे बिना मुझे शांति नहीं पड़ती है। मुझे घर का आंगन भी अच्छा नहीं लगता है। मीरा के प्रभु हरि ! आप अविनाशी हो। हे प्रभु ! आकर के मुझे दर्शन दीजिये।

पद : 67.

मीरा मुक्तावली का सार Meera Muktavali Saar – Narottamdas Swami in Hindi

वंसीवारा ! आज्यो म्हारै देस।
थांरी सांवरी सूरत, बाळी वेस।।
‘आऊं, आऊं’ कर गया सांवरा, कर गया कौल अनेक।
गिणतां-गिणतां घस गयी म्हारी, आंगळिया री रेख।।
मैं वैरागण आदि की, थारे म्हारे कद रो सनेस।
विन पाणी विन सावण सांवरा ! होइ गयी धोइ सपेत।।
जोगण होय जंगळ सब हेरूं, नांव न पायो भेस।
तेरी सूरत कै कारणै धर लिया भगवां भेस।।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहै, घूँघरवाला केस।
मीरां के प्रभु गिरधर मिलियाँ, दूणो वधै सनेस।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.कौलवादा
2.आदिशुरू से
3.थारेतुम्हें
4.सनेसप्रेम
5.सपेतसफेद
6.हेरूंखोजना
7.नांवनाम
8.सोहैशोभायमान
9.वधैबढ़ गया है

व्याख्या :

मीराबाई कह रही है कि हे बंसीवाले श्रीकृष्ण जी ! हमारे देश आ जाइये। आपकी सांवली सूरत है और आपका बालपन वाला वेश मेरी आंखों से निकलता ही नहीं है। ये मेरे दिल में समाया हुआ है। मैं आऊँगा-आऊँगा, ऐसा कह गये है साँवरियाँ (श्रीकृष्ण जी) । आने के अनेक वादे आप कर गये, लेकिन हे मेरे प्रभु श्रीकृष्ण जी ! आप नहीं आये।

गिनते-गिनते मेरी उंगलियों की रेखाएँ भी घिस गई है। अरे मेरे श्रीकृष्ण ! मैं तो हमेशा से आपकी विरहणी हूँ, लेकिन आप मुझसे प्रेम नहीं करते हो। मेरा जीवन आपके बिना ऐसा शुष्क हो गया है, जैसे सावन में बिना पानी बरसे ही सावन चला जाता है। मैं एकदम श्वेत हो गई हूँ। मैं अब जर्जरता को प्राप्त कर रही हूँ और जंगल-जंगल आपको खोजती फिरती हूँ, लेकिन आपका नाम भी मुझे नहीं मिला।

केवल आपकी सांवली सूरत के कारण मैंने भगवा वेश धारण कर लिया है। हे प्रभु ! मोर मुकुट आपने धारण कर रखा है। पीतांबर वस्त्र आपने धारण कर रखे हैं और घुंघराले बाल शोभायमान है, जिससे मेरा स्नेह दोगुना हो गया है। हे मेरे गिरिधर नागर प्रभु ! अब तो मुझे दर्शन दीजिये।

पद : 68.

मीरा मुक्तावली का सार Meera Muktavali Saar Shabdarth Sahit in Hindi

बादळ देख डरी।
हो स्याम ! मैं बादळ देख डरी।।
काळी-पीळी घटा ऊमड़ी, वरस्यो एक घरी।
जित जाऊँ तित पाणी-पाणी हुइ-हुइ भोम हरी।।
जा का पिय परदेस वसत है, भीजै बाहर खरी।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर ! कीज्यो प्रीत खरी।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.वरस्योवर्षा कर दो
2.घरीघड़ी भर
3.ऊमड़ीउमड़ी
4.भोम धरती
5.हरी हरियाली
6.खरी खड़ी
7.खरीशुद्ध, सच्ची

व्याख्या :

मीराबाई कह रही है कि हे मेरे श्रीकृष्ण जी ! मैं बादल देखकर डर रही हूँ। आसमान में काली-पीली बादलों की घटा उमड़ रही है। हे मेरे प्रियतम ! एक बार आप भी वर्षा कर दीजिये अर्थात् मुझे दर्शन दे दीजिये।

मैं जहाँ जाऊँ, वहाँ पानी ही पानी दिख रहा है और पूरी धरती पर हरियाली छा रखी है, लेकिन हे मेरे प्रियतम ! जिसके प्रियतम परदेस में बसते हैं, जैसे कि मैं, अपने प्रियतम की प्रतीक्षा करते-करते, बाहर खड़ी-खड़ी उस वर्षा में भीगने के अलावा मेरे पास विकल्प ही क्या है ?

हे प्रभु ! मेरी भी वैसी ही दशा आपके वियोग में हो रही है। हे मीरा के प्रभु गिरिधर नागर ! अपने शुद्ध प्रेम को स्थापित कीजिये और मुझे दर्शन दीजिये।

पद : 69.

मीरा मुक्तावली का सार Meera Muktavali Saar with Hard Meanings in Hindi

मतवारो वादर आयै,
हरि को सनेसो कबहूँ न लायै।।
दादुर मोर पपीहा बोले, कोयल सबद सुणायै।
कारी अंधियारी विजारी चमकै, विरहिणी अति डरपायै।।
गाजै, वाजै पवन मधुरिया, मेहा अति झड़ लायै।
इककारि, विरहा अति जारी, मीरां मन हरि भायै।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.मतवारोमतवाला
2.सबदमीठी वाणी
3.दादुर मेंढक
4.गाजैगर्जना
5.वाजैचलती
6.मेहावर्षा
7.जारी जल रही है

व्याख्या :

मीराबाई कह रही है कि मतवाला बादल आया है, लेकिन हरि का संदेश नहीं लेकर के आया है। मेंढक, पपीहा बोल रहे हैं और कोयल अपनी मीठी वाणी सुना रही है। काली और अंधियारी रात है और बिजली चमक रही है। ऐसे में मुझ विरहिणी को बहुत डर लग रहा है, क्योंकि मेरे प्रियतम, आप मेरे साथ नहीं हो।

हवाएँ भी गर्जना करती हुयी मधुर-मधुर चल रही है और निरंतर वर्षा होती जा रही है। एक ये काली रात है, जो विरहिणी को अत्यधिक जला रही है। मीरा के मन तो हरि भा गये है, इसलिए हे मेरे प्रभु ! मुझे दर्शन दीजिये।

पद : 70.

मीरा मुक्तावली का सार Meera Muktavali Saar in Hindi

वरसै वदरिया सावन की।
सावण की, मन-भावण की।।
सावण में उमग्यो मेरो मनवा, भनक सुणी हरि आवण की।
उमड़-घुमड़ चहुं दिसि तें आयो, दामण दमक झर लावण की।।
नन्हीं-नन्हीं बूंदन मेहा बरसै सीतल पवन सुहावण की।
मीरां के प्रभु गिरधर नागर ! आनंद-मंगल गावण की।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.उमग्योउमडना
2.मनवामन
3.भनक आवाज
4.सुणीसुनना
5.आवण आने की
6.चहुंचारों और
7.दिसिदिशा
8.दामणबिजली
9.दमकचमक
10.लावणले आया है

व्याख्या :

मीराबाई कहती है कि सावन की बदरिया बरस रही है और सावन की बदरिया मन भा रही है। सावन में मेरा मन उमड रहा है, क्योंकि हरि के आने की भनक सुनी है। प्रियतम आने वाले हैं। चारों दिशाओं से उमड़-घुमड़ कर बादल आ रहे हैं। बिजली चमक रही है और बादल झर ले आया है।

वर्षा की नन्ही-नन्ही बूँदे बरस रही है और सुहाने वाली शीतल पवन चल रही है। अब तो प्रियतम के स्वागत के लिये आनंद के और मंगल के गीत गा रही हूँ। हे मेरे प्रभु ! अब तो दर्शन दीजिये।

इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने “मीरा मुक्तावली” के अगले 66-70 पदों का सार समझा। अगले अंक में फिर से हाजिर होंगे कुछ नये पदों की व्याख्या के साथ।


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एक गुजारिश :

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