Prithviraj Raso – Padmavati Samay | पृथ्वीराज रासो का पद्मावती समय
नमस्कार दोस्तों ! आज हम RPSC द्वारा आयोजित कॉलेज व्याख्याता के पाठ्यक्रम में लगे “Prithviraj Raso – Padmavati Samay | पृथ्वीराज रासो का पद्मावती समय” का अध्ययन करने जा रहे है। आज के नोट्स में हम पृथ्वीराज रासो के पद्मावत समय के 05 पदों की व्याख्या प्रस्तुत कर रहे है। जिसे अच्छे से समझने की कोशिश कीजिये :
Chand Bardai Rachit Prithviraj Raso in Hindi : पृथ्वीराज रासो एक वीर रसात्मक महाकाव्य है। इसकी रचना महाकवि चंदबरदाई ने 12 वीं शताब्दी में की थी। आपको बता दे कि महाकवि चंदबरदाई का जन्म संवत् 1151 में पाकिस्तान के लाहौर में हुआ था। इनके बचपन का नाम बलिद्य था।
ये पृथ्वीराज चौहान तृतीय के दरबार में राजकवि थे। इसके साथ ही वे पृथ्वीराज के प्रिय मित्र, मंत्री एवं सेनापति भी थे। चंदबरदाई का पृथ्वीराज रासो पृथ्वीराज चौहान के जीवन पर ही आधारित महाकाव्य है। इस ग्रन्थ की भाषा पिंगल है।
इस महाकाव्य में 16306 छन्द और 69 सर्ग है। अब तक इस ग्रन्थ के बहुत सारे संस्करण प्राप्त हो चुके है। इनकी समानता के आधार पर इनको चार भागों में विभाजित किया जा सकता है :
- वृहद रूपांतरण
- मध्यम रूपांतरण
- लघु रूपांतरण
- लघुत्तम रूपांतरण
1. वृहद रूपांतरण
इसमें 16306 छन्द और 69 सर्ग प्राप्त होते है तथा सभी संस्करण संवत् 1750 के बाद के प्राप्त होते है। यह उदयपुर राज्य पुस्तकालय में संग्रहित है।
2. मध्यम रूपांतरण
इसमें 7000 छन्द है और इसकी सभी प्रतियाँ संवत् 1700 के बाद की प्राप्त हुई है। इसका संग्रहण जैव ज्ञान भंडार, बीकानेर में है।
3. लघु रूपांतरण
इसमें 3500 छन्द और 19 सर्ग है। यह संस्करण डॉ पी. शर्मा द्वारा सम्पादित एवं प्रकाशित किया गया है। इसको अनूप संस्कृत पुस्तकालय, बीकानेर में संग्रहित किया गया है।
4. लघुत्तम रूपांतरण
इसमें 1300 छंद मिलते है। इसके खोजकर्ता अगर चाँद नाहटा है तथा डॉ दशरथ शर्मा इसे प्रामाणिक रचना मानते है। इस ग्रन्थ की सम्पूर्ण कथा को 5 कथानकों में विभाजित किया जा सकता है।
- पहला कथानक — दिल्ली के राजा अनंगपाल की पुत्री का, अजमेर के राजा सोमेश्वर के साथ विवाह।
- द्वितीय कथानक — पृथ्वीराज चौहान के नाना द्वारा उन्हें गोद लेना।
- तृतीय कथानक — संयोगिता हरण।
- चतुर्थ कथानक — पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच युद्ध।
- पाँचवा कथानक — पृथ्वीराज के शब्दभेदी बाण द्वारा गौरी की मृत्यु।
Prithviraj Raso – Padmavati Samay | पद्मावती समय के पदों की व्याख्या
दोस्तों ! अब हम पृथ्वीराज रासो महाकाव्य के पद्मावत समय का अध्ययन करेंगे। हम इसके महत्वपूर्ण प्रथम 05 पदों की व्याख्या प्रस्तुत करने जा रहे है। तो चलिए समझते है :
पद : 1.
पूरब दिसि गढ गढनपति, समुद-सिषर अति द्रुग्ग।
तहँ सु विजय सुर-राजपति, जादू कुलह अभग्ग।।
शब्दार्थ :
क्र सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | पूरब दिसि | पूर्व दिशा में |
2. | गढ | दुर्ग |
3. | गढनपति | सर्वश्रेष्ठ |
4. | तहँ | वहाँ |
5. | सु | श्रेष्ठ |
6. | विजय | राजा विजय |
7. | अभग्ग | जिसे भंग न किया जा सके |
अर्थ :
पूर्व दिशा में समुद्र शिखर नामक एक सर्वश्रेष्ठ दुर्ग है। इस दुर्ग में वैभवमयी राजा विजयपाल का राज्य है। ये इन्द्र समान राजा यादव कुल के है। जिन्हे कभी भी पराजय नहीं किया जा सकता।
पद : 2.
हसम हयग्गय देस अति, पति सायर म्रज्जाद।
प्रबल भूप सेवहिं सकल, धुनि निसाँन बहु साद।।
शब्दार्थ :
क्र सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | हसम | वैभव |
2. | हयग्गय | हाथी-घोड़े |
3. | अति | स्वामी |
4. | सायर | सागर |
5. | म्रज्जाद | मर्यादा |
6. | धुनि | ध्वनि |
7. | निसाँन | नगाड़े |
8. | बहु साद | बहुत |
अर्थ :
राजा विजयपाल के वैभव के बारे में चंदबरदाई कह रहे है कि वो राजा वैभवशाली है। उसकी सागर के सामान असीम सीमाएं है। तथा उनके पास बहुत सारे हाथी और घोड़े है। सभी राजा उसकी सेवा में लगे रहते है और नगाड़ो की ध्वनि सभी दिशाओ में गूंजती रहती है।
पद : 3.
धुनि निसाँन बहुसाद नाद सुर पंच बजत दिन।
दस हजार हय-चढत हेम-नग जटित साज तिन।।
गज असंष गजपतिय मुहर सेना तिय सक्खह।
इक नायक, कर धरि पिनाक, घर-भर रज रक्खह।।
दस पुत्र पुत्रिय इक्क सम, रथ सुरंग उम्मर-उमर।
भंडार लछिय अगनित पदम, सो पद्मसेन कूँवर सुघर।।
शब्दार्थ :
क्र सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | निसाँन | नगाड़े |
2. | सुर पंच | पंच स्वर |
3. | नग जटित | नगों से जड़े हुये |
4. | साज | घोड़े का साज-सामान |
5. | गजपतिय | गजराज / विशाल हाथी |
6. | मुहर सेना | हरावल सेना |
अर्थ :
चंदबरदाई जी लिखते है कि राजा विजयपाल के दुर्गा पर निरंतर नगाड़ो की मंगल सूचक ध्वनि सुनाई पड़ती है। वह पांच प्रकार के मंगल वाद्य बजते रहते है। ये मंगल वाद्य है : मृदंग, तंत्री, मुरली, तालवाद्य, प्रतिध्वनि वाद्य । और दस हजार सोने से सुसज्जित घुड़सवार सैनिक है।
राजा असंख्य विशाल हाथियों के स्वामी थे। राजा स्वयं उस मुहर सेना के नायक थे। और उनके हाथ में शिव के धनुष जैसा विशाल धनुष भी शोभायमान है। पिनाक अर्थात शिवजी के सामान धनुष धारण करके अपने सम्पूर्ण साम्राज्य और सेनाओं की रक्षा करता है।
राजा के दस पुत्र और एक पुत्री थी जो बल में बिलकुल समान है अर्थात सभी बड़े बलशाली योद्धा थे। राजा का रथ आकाश को छू रहा था। उनकी रानी का नाम पदमसेन था जो बहुत सुन्दर थी। तथा उनके पास अनगनित भंडार भरे थे।
विशेष : यहाँ छप्पय छंद है तथा अतिश्योक्ति अलंकार का सुन्दर प्रयोग हुआ है।
पद : 4.
पद्मसेन कूँवर सुघर ता घर नारि सुजान।
तार उर इक पुत्री प्रकट, मनहुँ कला ससभान।।
शब्दार्थ :
क्र सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | ता | उसके |
2. | सुजान | चतुर |
3. | उर | हृदय / गर्भ |
4. | ससभान | चन्द्रमा के समान |
अर्थ :
राजा विजयपाल की रानी पद्मसेन के गर्भ से एक अत्यंत सुन्दर पुत्री का जन्म हुआ। अर्थात समुन्द्र शिखर नामक दुर्ग के राजा विजयपाल के घर में एक पुत्री का जन्म हुआ। यह पुत्री चंद्रमा के समान सुन्दर है।
पद : 5.
मनहुँ कला ससभान कला सोलह सो बन्निय।
बाल वैस, ससि ता समीप अम्रित रस पिन्निय।।
बिगसि कमल-सिग्र, भ्रमर, बेनु, खंजन, म्रिग लुट्टिय।
हीर, कीर, अरु बिंब मोति, नष सिष अहि घुट्टिय।।
छप्पति गयंद हरि हंस गति, बिह बनाय संचै सँचिय
पदमिनिय रूप पद्मावतिय, मनहुँ, काम-कामिनि रचिय।।
शब्दार्थ :
क्र सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | मनहुँ | मानो |
2. | ससभान | चन्द्रमा के समान |
3. | कला सोलह | सौलह कला |
4. | अम्रित रस पिन्निय | अमृत पान करना |
5. | बिगसि | विकसित |
6. | लुट्टिय | लूट लिया हो |
7. | कीर | तोता |
8. | गयंद | हाथी |
9. | हरि | शेर |
10. | बिह | विधि |
11. | काम-कामिनि | कामदेव की पत्नी रति |
12. | संचै सँचिय | सांचे में ढाल कर |
अर्थ :
राजा विजयपाल के घर पुत्री का जन्म हुआ है और उस पुत्री की सुंदरता वर्णन यहाँ कवि चंदबरदाई कर रहे है। उनकी पुत्री चन्द्रमा की सौलह कलाओं के समान सुन्दर थी। उसके मुख का लावण्य ऐसा था कि चन्द्रमा भी उसके पास आकर उससे ही अमृतपान किया हो।
अर्थात् चन्द्रमा को भी शीतलता और मधुरता उसके बाल मुख से ही मिली हो। ऐसा प्रतीत होता है कि मानो चन्द्रमा उसके सुन्दर मुख का पान करके ही इतना चमक रहा हो।
विजयपाल की पुत्री का खिलता हुआ मुख, नेत्र, उसके चरण और हाथ एक विकसित कमल के समान है । उसके केश अर्थात बालों का रंग काले भँवरे के समान है । उसके नेत्र इतने सुन्दर है कि ऐसा लगता है जैसे खंजन और मृगो को भी उसने लूट लिया हो अर्थात हिरन के समान उसके नेत्र है।
वो जब भी बोलती है तो मानो बंसी बज रही हो। उसके दांतो की पंक्ति हीरे के समान और पतली नासिका तोते के समान है। तथा उसके होठ बिम्ब फल तथा नाख़ून मोती के समान है।
आगे कवि चंदबरदाई कह रहे है कि विजयपाल की पुत्री की चाल हाथी, शेर एवं हंस के समान है। ऐसा लगता है मानो विधि ने उसे किसी सांचे में ढाल कर बनाया हो और वह कामदेव की पत्नी रति का ही दूसरा रूप हो। भाव यह है कि पद्मिनी रति के समान सुन्दर थी।
विशेष : नख-शिख सौंदर्य वर्णन किया गया है। तथा इसमें श्रृंगार रास का भाव दिखाया गया है।
डिंगल-पिंगल भाषा का प्रयोग हुआ है।
अंतिम बात :
तो दोस्तों ! ये Prithviraj Raso – Padmavati Samay | पृथ्वीराज रासो का पद्मावती समय के प्रारंभिक 05 पद है। जिनकी आज हमने विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की है। उम्मीद है कि आपको जरूर समझ आया होगा। प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से इन्हे अच्छे से तैयार कर लेवें।
ये भी अच्छे से समझे :
एक गुजारिश :
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