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Kamayani – Jaishankar Prasad | कामायनी महाकाव्य का चिंता सर्ग


Jaishankar Prasad Krit Kamayani in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम जयशंकर प्रसाद कृत महाकाव्य “कामायनी” के चिंता सर्ग का अध्ययन करने जा रहे है। यह RPSC द्वारा आयोजित कॉलेज लेक्चरर के पाठ्यक्रम में लगा है। आप समझ ही सकते है कि पाठ्यक्रम में लगा है तो परीक्षा की दृष्टि से कितना उपयोगी है। आज हम इसके प्रथम सर्ग और कथावस्तु को विस्तारपूर्वक समझने की कोशिश करेंगे :

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Kamayani – Jaishankar Prasad | कामायनी महाकाव्य की कथावस्तु


Jaishankar Prasad Krit Kamayani Ki Kathavastu in Hindi : कामायनी महाकाव्य की कथा का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है :

जल प्लावन की घटना भारतीय संस्कृति की प्रमुख घटना है। ऐसा माना जाता है कि एक निश्चित कल्प या युग के बाद सृष्टि में प्रलय होता है । और पुनः नए रूप में सृष्टि का प्रारंभ होता है। इसी क्रम में भयंकर जल प्लावन के बीच, हिमालय की ऊंची चोटी पर केवल मनु नौका के माध्यम से पहुंच जाते हैं और बच जाते हैं।

मनु देवकुल से संबंधित है। बाकी सब कुछ नष्ट हो जाता है। इसके बाद वहां पर श्रद्धा का आगमन होता है। श्रद्धा उसे उद्बोधित करती है। और कर्म करने के लिए प्रेरित करती है। इसके बाद दोनों में प्रेम होता है। फिर विवाह होता है।

विवाह के बाद श्रद्धा और मनु को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है। परंतु इसके बीच मनु का आकर्षण, प्रेम श्रद्धा के लिए कम होता जाता है। मनु को लगता है कि श्रद्धा उन पर ध्यान नहीं दे रही है। उसके बाद वह श्रद्धा को छोड़ कर चले जाते हैं। वह सारस्वत प्रदेश की ओर चले जाते हैं और वहां सारस्वत प्रदेश की रानी इड़ा के प्रति उनको आकर्षण होता है। और वह उसके साथ रहने लगते हैं।



#कामायनी महाकाव्य की कथा का संक्षिप्त परिचय :

इधर जब श्रद्धा का पुत्र बड़ा हो जाता है तो श्रद्धा मनु को खोजते-खोजते सारस्वत प्रदेश पहुंच जाती है। इड़ा को बुद्धि का प्रतीक माना गया है। श्रद्धा मन का प्रतीक है। जब इड़ा के साथ मनु रहने लगते हैं तब मनु वही गलती करते हैं, जो श्रद्धा के साथ की थी। वो इडा पर अपना प्रभुत्व जमाने की कोशिश करते हैं।

वो इड़ा को दबाने की कोशिश करते हैं। लेकिन इडा बुद्धि का प्रतीक है तो वह मनु को प्रेम भी करती है। उसके प्रति समर्पित भी है। परंतु उसे अपने अस्तित्व का ज्ञान है। वह गलत को बर्दाश्त नहीं करती है। प्रजा भी मनु के गलत कार्यों के लिए विद्रोह करती हैं। मनु को वहां से भी छोड़ कर जाना पड़ता है।

पीछे से श्रद्धा उनकी खोज में जाती है। श्रद्धा अपने पुत्र को इडा को सौंपते हुए मनु की खोज में निकलती है। और जब मनु उन्हें मिल जाते हैं तो वे दोनों कैलाश पर्वत की ओर जाते हैं। निर्वेद की स्थिति में आनंद की खोज में निकलते हैं। और अंत में आनंदात्मक स्थिति में पहुंच जाते हैं।

कामायनी की घटना का उल्लेख शतपथ ब्राह्मण के आठवें अध्याय में मिलता है। श्रद्धा और मनु का नाम ऋग्वेद में ऋषियों की तरह मिलता हैं। श्रद्धा वाले सूक्त में सायण ने श्रद्धा का परिचय देते हुए लिखा है कि श्रद्धा “काम गोत्र की बालिका” है।


Kamayani – Jaishankar Prasad | कामायनी का प्रथम चिंता सर्ग


Kamayani MahaKavya Ka Pehla Chinta Sarg in Hindi : अब हम “कामायनी” महाकाव्य के प्रथम चिंता सर्ग के कुछ महत्वपूर्ण पदों का अध्ययन करने जा रहे है :

पद : 1.

Kamayani Ke Pratham Chinta Sarg Ki Vyakhya in Hindi

हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर,
बैठ शिला की शीतल छाँह
एक पुरुष, भीगे नयनों से,
देख रहा था प्रलय प्रवाह।

अर्थ :

कामायनी महाकाव्य का यह प्रथम सर्ग है। इसमें प्रसाद जी लिख रहे हैं कि हिमालय पर्वत की ऊंची चोटी पर, शिला की शीतल छाया में एक पुरुष बैठा था। और वह अश्रुपूर्ण नेत्रों से जल प्रलय के फलस्वरुप उत्पन्न हुए उस अपार जल राशि को देख रहा था।


पद : 2.

Jaishankar Prasad Krit Kamayani Mahakavya Ka Pahla Sarg in hindi

नीचे जल था ऊपर हिम था,
एक तरल था एक सघन,
एक तत्व की ही प्रधानता,
कहो उसे जड़ या चेतन।

अर्थ :

प्रसाद जी कह रहे हैं कि उस पुरुष के नीचे जल और ऊपर हिम था। वह अपने चारों तरफ जल तत्व की ही प्रधानता देखता है। एक तरल रूप में था तो दूसरा ठोस रूप में था। जल तत्व एक होते हुए भी दो रूपों में विद्यमान था। एक सघन और एक तरल रूप में था। उसी प्रकार ईश्वर की सत्ता एक होने पर भी सृष्टि में विविध रूपों में परिभाषित होती है।

अर्थात् ईश्वर जड़ या चेतन आत्मा दोनों में ही व्याप्त होते है। सृष्टि में उनकी सत्ता दृष्टिगोचर होती है। प्रस्तुत पंक्तियां शंकराचार्य के अद्वैतवाद से प्रभावित है। प्रसाद जी ने यहां एक ही ब्रह्म की व्यापकता को सिद्ध करने के लिए, चेतन जल और जड़ हिम का उदाहरण प्रस्तुत किया है।



पद : 3.

Kamayani – Jaishankar Prasad Rachit Mahakavya Pad in Hindi

दूर दूर तक विस्तृत था हिम,
स्तब्ध उसी के हृदय समान,
नीरवता-सी शिला-चरण से,
टकराता फिरता पवमान।

अर्थ :

प्रसाद जी आगे कहते है कि दूर-दूर तक विस्तार के साथ फैला हुआ हिम (बर्फ) बिल्कुल जड़ सा जान पड़ता था। अर्थात् उसमें किसी प्रकार की चेतना विद्यमान नहीं थी। उसी प्रकार उस व्यक्ति का हृदय भी सर्वथा स्पंदनहीन ही जान पड़ता था।

और वह पूर्णत: निश्चेष्ट बैठा हुआ था। चट्टाने पूर्णतः शांत थी और वायु के झकोरे उन्हीं चट्टानों से टकराकर प्रवाहित होते थे। परंतु वे किसी भी प्रकार से उसकी निश्चेष्टता को भंग नहीं कर सकते थे।


पद : 4.

Kamayani – Jaishankar Prasad Krit Mahakavya Ke Chinta Sarg Ka Arth Bhaav in Hindi

तरूण तपस्वी-सा वह बैठा,
साधन करता सुर-श्मशान,
नीचे प्रलय सिंधु लहरों का,
होता था सकरूण अवसान।

अर्थ :

वह किसी इच्छित सिद्धि की प्राप्ति के लिए श्मशान भूमि में बैठा था। उसकी साधना भूत-प्रेत या देवों को प्रसन्न करने के लिए, आंतरिक पद्धति से की जाने वाली साधना के समान थी।

अर्थात् वह तरुण पुरुष किसी सिद्धि की साधना में लीन जान पड़ता था । और जल प्रलय के कारण एकत्र जल के समान प्रतीत होता था। इस प्रलयकालीन सागर की लहरें शिलाखंड से आकर टकराती थी। और अत्यंत करुणा पूर्ण ध्वनि उत्पन्न करती थी।

इन पंक्तियों में तांत्रिकों की भाँति मनु किसी प्रकार की श्मशान साधना नहीं करते हैं। परंतु फिर कवि ने यहां श्मशान साधना से केवल साधना का ही अभिप्राय ग्रहण किया है। इसलिए उन्हें साधक ही कहा गया है।

इस प्रकार मनु एक शांत तपस्वी की भाँति जान पड़ते हैं। और देवताओं की सृष्टि भी विनष्ट हो चुकी थी। अतः वह स्थान श्मशान भूमि अवश्य कहा जा सकता है।


पद : 5.

Kamayani – Jaishankar Prasad Rachna Ke First Sarg Ka Bhaav Saar in Hindi

उसी तपस्वी-से लंबे थे,
देवदारु दो चार खड़े,
हुए हिम-धवल, जैसे पत्थर,
बनकर ठिठुरे रहे अड़े।

अर्थ :

वहीं पास में ही उस तरुण तपस्वी की दीर्घ आकृति के समान, लंबे-लंबे कुछ देवदारू के वृक्ष थे। ये बर्फ से ढक जाने के कारण बिल्कुल सफेद दिखाई दे रहे थे। ऐसा लगता था कि मानो शीत से ठिठुर जाने के कारण, वे पत्थर के समान अकड़ कर रहे गये हो। अब उनमें किसी प्रकार की गति या कंपन शेष नहीं रह गया।

यहां कवि देवदारू के वृक्षों से उस व्यक्ति के आकार की तुलना कर रहे है। और इससे मनु की शारीरिक स्थिति की व्याख्या की है। साथ ही मनु के आसपास के वृक्षों को शीत के प्रकोप से ठिठुरा हुआ दिखाया है। उन्होंने इसके माध्यम से, मनुष्य के दु:ख से प्रकृति का भी विषादमग्न होना चित्रित किया है।

कवि यह भी चित्रित करना चाहते हैं कि किस प्रकार हिमपात और सर्दी की ठिठुरन सहकर भी देवदारू के वृक्ष जीवित थे। उसी प्रकार प्रलय के अनेक कष्टदायी आघातों को सहकर भी मनु जीवित थे।



दोस्तों ! आज हमने Kamayani – Jaishankar Prasad | कामायनी महकाव्य के प्रथम सर्ग के प्रारम्भिक 5 पदों का अध्ययन कर लिया है। इसी क्रम में हम अगले पदों की विस्तृत व्याख्या लेकर फिर मिलेंगे। तब तक आप इन्हें अच्छे से तैयार कर लीजिये। धन्यवाद !

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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Kamayani – Jaishankar Prasad | कामायनी महाकाव्य के चिंता सर्ग के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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