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Bhartendu Yug Ke Kavi | भारतेन्दु युग के कवि और उनकी रचनाएँ


नमस्कार दोस्तों ! हमने पिछले नोट्स में आधुनिक काल और भारतेन्दु हरिश्चंद्र के बारे में चर्चा की थी। इसी क्रम में आज हम “Bhartendu Yug Ke Kavi | भारतेन्दु युग के कवि और उनकी रचनाएँ” के बारे में अध्ययन करने जा रहे है। तो चलिए शुरू करते है :



श्री प्रताप नारायण मिश्र | Pratap Narayan Mishra

ये भारतेंदु मंडल के प्रमुख लेखकों में से एक थे। इन्होंने हिंदी साहित्य के अनेक रूपों में सेवा की। ये कवि होने के साथ उच्च कोटि के निबंधकार और नाटककार भी थे ।

पंडित प्रताप नारायण मिश्र का जन्म 24 सितंबर 1856 ईं को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में हुआ। यह कान्यकुब्ज ब्राह्मण पंडित थे।
यह द्वितीय भारतेंदु के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन्होंने कानपुर से ब्राह्मण पत्रिका निकाली थी। यह कानपुर के रसिक समाज के प्रधान कार्यकर्ता रहे हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने निबंधकार की हैसियत से प्रताप नारायण मिश्र को हिंदी का एडिसन कहा है। मनोविज्ञान के क्षेत्र में आचार्य शुक्ल से पहले ही प्रताप नारायण मिश्र ने अपनी कलम चलाई है। यह ब्रजभाषा के घोर पक्षधर रहे हैं।

श्री प्रताप नारायण मिश्र की रचनाएँ :

  1. मन की लहर
  2. प्रेम पुष्पावली
  3. प्रताप लहरी
  4. लोकोक्ति शतक
  5. दीवान ए बरहमन
  6. संगीत शाकुंतलम्
  7. रसखान शतक
  • इनकी रचना मन की लहर में 31 लावनियां है ।
  • लोकोक्ति शतक में 100 लोकोक्ति व कहावतों पर देशभक्ति की रचनाएं लिखी गई हैं।
  • दीवान -ए- बरहमन में उर्दू कविताओं का संग्रह है।

ब्रज भाषा में रचित कविताएं :

  1. तृप्यन्ताम
  2. हरगंगा

श्री प्रताप नारायण मिश्र की चर्चित पंक्तियां :

“पढ़िय कमाय कीन्हौ कहा हरे देश कलेस
जैसे कंता घर रहे तैसे रहे विदेश।”

“जपो निरंतर एक जबान हिंदी हिंद हिंदुस्तान।”

“कौन करेजो नहीं कसकत सुनि विपत्ति बाल विधवन की।”

“आठ मास बीते जजमान अब तो करो दक्षिणा दान।”

प्रताप नारायण मिस्र की एक समस्या पूर्ति प्रसिद्ध है :

“धुरवान की धावन सावन में”

“पपीहा जब पूछिहै पीव कहाँ”


लाला श्रीनिवास दास | Lala Srinivas Das

लाला श्रीनिवास दास दिल्ली के रहने वाले थे और दिल्ली से सदादर्श पत्रिका निकालते थे। ये भारतेंदु युग के तो है लेकिन भारतेंदु मंडल के नहीं है। ये भारतेंदु की ब्रजभाषा कविताओं के प्रशंसक रहे हैं तथा हिंदी के पहले उपन्यासकार माने जाते हैं। इन्होंने अंग्रेजी ढंग का पहला मौलिक उपन्यास “परीक्षा गुरु”1882 ईस्वी में लिखा है।


बालकृष्ण भट्ट | Balkrishna Bhatt

इनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहबाद में 3 जून, 1844 ई. में हुआ तथा इनकी मृत्यु 20 जुलाई, 1914 ई. में हुई। इनके पिता का नाम पंडित बेणी प्रसाद था । हिंदी साहित्य में यह नाटककार, पत्रकार, उपन्यासकार और निबंधकार के रूप में जाने जाते हैं।

बालकृष्ण भट्ट भारतेंदु मंडल के वरिष्ठ साहित्यकार और निबंधकार है। ये हिंदी के पहले निबंधकार माने जाते हैं। साथ ही इनको हिंदी के पहले आलोचक भी माना जाता है। संयोगिता स्वयंवर पर लिखी गई इनकी आलोचना हिंदी की पहली आलोचना मानी जाती है।

इनके चंद्रोदय निबंध के आधार पर डॉ. बच्चन सिंह ने इन्हें गद्य काव्य का पहला आचार्य कहा है। संपूर्ण भारतेंदु काल में सबसे सशक्त बालकृष्ण भट्ट माने जाते हैं। इनकी हिंदी प्रदीप पत्रिका में देश प्रेम का उत्कृष्ट जज्बा मिलता है।

बालकृष्ण भट्ट की रचनाएँ :

  1. साहित्य सुमन
  2. नूतन ब्रह्मचारी
  3. सौ अजान एक सुजान
  4. बाल विवाह
  5. चंद्रसेन
  6. रेल का विकट खेल


बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ | Badrinarayan Chaudhary ‘Premghan’

इनका जन्म 1855 ई. में मिर्जापुर में हुआ तथा इनकी मृत्यु 1923 ई. में हुई। यह भारतेंदु युग के महत्वपूर्ण कवि हैं। इन्होंने नागरी नीरद और आनन्द कादम्बिनी पत्रिका का संपादन किया था। आचार्य रामचंद्र शुक्ल सबसे पहले प्रेमघन की ‘आनन्द कादम्बिनी’ पत्रिका से जुड़े थे।

बद्रीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ की रचनाएँ :

  1. जीर्ण जनपद
  2. आनंद अरुणोदय
  3. हार्दिक हर्षादर्श
  4. वर्षा बिंदु
  5. मयंक महिमा
  6. अलौकिक लीला
  7. प्रेम पीयूष वर्षा
  8. लालित्य लहरी

प्रेमघन अलौकिक लीला को महाकाव्य के रूप में लिखना चाहते थे लेकिन असामयिक निधन हो जाने के कारण केवल 5 खंड ही प्राप्त होते हैं। इनकी रचना प्रेम पीयूष वर्षा में श्रृंगारिक कवित्त और सवैये संकलित हैं।

प्रेमघन की चर्चित समस्या पूर्ति है :

“चर्चा चलिबे की चलाइय ना”

प्रेमघन ने अपनी रचनाओं में भारतेंदु का अनुकरण किया है। भारतेंदु के ‘अपवर्ग’ व ‘पुरुषोत्तम पंचक‘ की तर्ज पर इन्होनें “ब्रजचंद पंचक” की रचना की। भारतेंदु के “बकरी विलाप” की तर्ज पर “पित्तर प्रलाप” की रचना की।

एक बार दादा भाई नौरोजी को विलायत में काला कह दिया तब प्रेमघन ने बड़ी क्षोभपूर्ण प्रतिक्रिया व्यक्त की :

“अचरज होत तुम्हु सम गोरे बाजत कारे ।
तासों कारे ‘कारे ‘शब्द हु पर है वारे ।।”


अम्बिकादत्त व्यास | Ambikadatta vyasa

भारतेंदु मंडल के प्रसिद्ध कवि अम्बिकादत्त व्यास हैं। इनका जन्म 1858 ई. में तथा मृत्यु 1900 ई. में हुई। जब ये मात्र 12 वर्ष के थे तब स्वयं भारतेंदु ने इन्हें “सुकवि” की उपाधि दी। इन्होनें पीयूष प्रवाह नामक पत्रिका का संपादन किया।

अम्बिकादत्त व्यास की रचनाएँ :

  1. पावन पचासा
  2. बिहारी विहार -1898
  3. सुकवि सतसई
  4. कंस वध
  5. हो-हो होरी
  • इनकी रचना पावन पचासा में 50 कवित्त और सवैया है।
  • बिहारी विहार में बिहारी के दोहों को रोला छंद में बदल दिया। यह बिहारी सतसई की टीका है।
  • इनकी कंस वध रचना अपूर्ण है। कंस वध में खड़ी बोली में अतुकांत छंद मिलते हैं।

अम्बिकादत्त व्यास की गद्य रचनाएँ :

  1. समस्यापूर्ति सर्वस्व
  2. आश्चर्य वृतांत


राधा कृष्ण दास | Radha Krishna Das

ये भारतेंदु के फुफेरे भाई हैं। इनका जन्म 1865 ईस्वी में हुआ। ये नागरी प्रचारिणी सभा के प्रथम अध्यक्ष भी थे। ये प्रसिद्ध सरस्वती पत्रिका के संपादक मंडल में रहे।

राधा कृष्ण दास की रचनाएँ :

  1. देश दशा
  2. भारत बारहमासा

राधा कृष्ण दास की चर्चित पंक्ति :

“जेहि विषया संतन तजि मूढ ताहि लिपटात।
जे नर डारत वमन करि स्वान स्वाद सो खात।”


ठाकुर जगमोहन सिंह | Thakur Jagmohan Singh

इनका जन्म 4 मार्च, 1899 ईस्वी में मध्यप्रदेश में हुआ। ये हिंदी के अतिरिक्त संस्कृत साहित्य के भी अच्छे ज्ञाता थे। इन्होनें कालिदास के ऋतुसंहार, कुमारसंभव एवं मेघदूत आदि रचनाओं का अनुवाद किया। इन्होंने अंग्रेजी कवि ‘बायरन | Byron‘ की रचनाओं का अनुवाद “शीलन का बंदी” नाम से किया।

ठाकुर जगमोहन सिंह की रचनाएँ :

  1. श्याम लता
  2. श्याम सरोजनी
  3. प्रेम संपत्ति लता
  4. देवयानी
  5. प्रेम रत्नाकर
  6. ओंकार चंद्रिका

राधाचरण गोस्वामी | Radhacharan Goswami

ये वृंदावन के थे और वृंदावन से भारतेंदु पत्रिका का प्रकाशन किया।

राधाचरण गोस्वामी की रचनाएँ :

  1. नव भक्तमाल
  2. शिशिर सुषमा
  3. भंवर गीत
  4. इश्क चमन
  5. विधवा विलाप
  6. भारत संगीत

राधाचरण गोस्वामी की कविताएं :

  1. यमलोक यात्रा
  2. नापित स्तोत्र
  3. रेलवे स्तोत्र


सुधाकर द्विवेदी | Sudhakara Dvivedi

ये अपने आशु कवित्व के लिए प्रसिद्ध थे। स्वयं भारतेंदु ने इनके आशु कवित्व पर प्रसन्न होकर उन्हें पुरस्कृत किया था। इनका काव्य सौष्ठव तो इतना सुंदर नहीं है, लेकिन इनका ध्यान नए-नए विषयों की तरफ जाता था।

इन्होनें लगभग 30 से अधिक पुस्तकें संस्कृत में लिखी है, जिनका विषय ज्योतिष और गणित है।

सुधाकर द्विवेदी की रचनाएँ :

  1. राम कहानी
  • ये एक प्रसिद्ध रचना है। इसमें अनेक विषयों की कहानियां दी गई है और अंत में एक दोहा रख दिया गया है।

फ्रेडरिक पिन्काट महोदय | Frederic Pincott sir

इनका जन्म 1826 ई. और मृत्यु 1896 ई. में हुई। भारतेंदु काल का ऐसा कोई साहित्यकार नहीं है जिनका पिन्काट महोदय से पत्र व्यवहार न हुआ हो। इंग्लैंड में रहते हुए हिंदी के रचनात्मक कार्यों में सहयोग देना, प्रशासनिक सेवाओं के लिए हिंदी के ग्रंथों का अंग्रेजी में अनुवाद करना आदि महत्वपूर्ण कार्य पिन्काट महोदय ने किए।

इन्होनें हिंदी को सरल व सुबोध बनाने का जो प्रयास किया। वह चिरस्मरणीय तो रहेगा ही, साथ ही साथ आधुनिक युग में प्रासंगिक भी है।


Bhartendu Yug Ke Kavi | भारतेंदु युग के अन्य कवि और रचनाएं


01.नवनीत चतुर्वेदी कुब्जा पच्चीसी
02.दिवाकर भट्ट नवोढा रत्न
नख- शिख
03.गोविंद गिल्लाभाई श्रृंगार सरोजनी
राधामुख षोडसी
पावस पयोनिधि
षड़ ऋतु
नीति विनोद
04.दुर्गादास व्यासअधमोद्धार शतक
05.गुलाब सिंहप्रेम सतसई
06.राय कृष्णदेव धारण ‘गोप’प्रेम संदेशा

अच्छा दोस्तों ! आपको भारतेन्दु युग के सभी प्रमुख और अन्य कवियों और उनकी प्रमुख रचनाओं का परिचय मिल गया होगा। उम्मीद करते है कि ये जानकारी आपके लिए लाभदायक सिद्ध होगी।


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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Bhartendu Yug Ke Kavi | भारतेन्दु युग के कवि और उनकी रचनाएँ के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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