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Ujaale ke Musahib | उजाले के मुसाहिब – विजयदान देथा
दोस्तों! आज हम कॉलेज लेक्चरर परीक्षा के सिलेबस में लगी कहानी “Ujaale ke Musahib | उजाले के मुसाहिब” का अध्ययन करने जा रहे है। उजाले के मुसाहिब कहानी विजयदान देथा द्वारा लिखित है। विजयदान देथा राजस्थान के प्रसिद्ध लोक कथाकार हैं। आज हम “उजाले के मुसाहिब” कहानी का संक्षिप्त परिचय प्राप्त करेंगे।
इस कहानी के प्रमुख पात्र निम्नलिखित है :
- राजा
- दीवान
- दरबारी
- प्रजा
- जैन मुनि
इस कहानी में पात्रों का कोई नाम नहीं है। कहानी में सभी पात्र राजा, दीवान, प्रजा आदि इन्हीं नामों से वार्तालाप करते दिखाई पड़ते हैं। एक चकवा और चकवी के संवाद से लोक कथाएं अक्सर पक्षी एक-दूसरे को सुनाते हैं। जिस तरह दादी या नानी से लोककथाएँ सुनने में हमें आनन्द मिलता है, ठीक उसी तरह की ये एक आनंददायक कथा है।
लेकिन बहुत सरल शब्दों में कथा को कहते हुए, इसमें वर्तमान स्थिति का चित्रण किया गया है। कहीं ना कहीं जो हमारी भारतीय व्यवस्था में गड़बड़ी है, जो प्रशासनिक व्यवस्था में खामियां हैं अर्थात् सामंतवादी सोच कहीं ना कहीं हमें इस कहानी में देखने को मिलती है।
Ujaale ke Musahib | उजाले के मुसाहिब – कहानी
विजयदान देथा द्वारा रचित “Ujaale ke Musahib | उजाले के मुसाहिब” कहानी कुछ इस प्रकार से प्रारम्भ होती है :
चकवा अपनी चकवी को लम्बी रात्रि काटने के लिए एक राजा की कहानी सुनाता है। एक बार उस राजा के दरबार में एक जैन मुनि तीर्थंकर जी आते है। राजा के दरबार में प्रतिदिन खूब प्रवचन, सत्संग तथा सारे कार्य होते हैं । लेकिन इतने अच्छे-अच्छे और दिखावे वाले कार्य होते रहने के बाद भी राजा बिल्कुल मूर्ख है।
राजा को सही बात समझ में ही नहीं आती है और जैन मुनि का जब आगमन होता है तो वह तीर्थंकर जी उस राजा के घर में खाना ग्रहण नहीं करते है। यह कहते हुए भोजन करने से इंकार कर देते हैं कि जब आपके राज्य में अंधेरा खत्म हो जाएगा, उस दिन मैं आपके घर में भोजन ग्रहण कर लूंगा।
मतलब यह है कि जैन मुनि ज्ञानी व्यक्ति है। थोड़ी देर में ही वे जान जाते है कि यहां स्थिति सही नहीं है। और ये राजा मूर्ख है एवं यहाँ सभी अज्ञानी लोग ही रहते हैं। लेकिन राजा वास्तविक मर्म को ना समझते हुए उस अंधेरे को दूर करने के कई सारे बाहरी उपाय करता है।
इस कहानी में उजाला ज्ञान का प्रतीक है और जैन मुनि जिस अंधकार को मिटाने की बात कहते है, वह अंधकार, ज्ञानरूपी अंधेरा है। यहां अंधेरा अज्ञानता का प्रतीक है।
मतलब यह है कि राज्य से अज्ञानता के अंधेरे को दूर करना है, परंतु वह मूर्ख राजा अंधेरे को मिटाने का क्या-क्या बाहरी उपाय करता है? ये सभी उपाय या राजा द्वारा अँधेरे को मिटाने के लिए किये जाने वाले बाहरी प्रयासों को हम कहानी के माध्यम से जानेंगे।
पहला कार्य :
राजा उस अंधेरे को मिटाने के लिए अंधेरे को उलीचने का कार्य करता है। दीवान और प्रजा रात्रि के समय बाल्टी भर-भर के अंधेरे को उलीचने का कार्य करते हैं। राजा बाल्टी में भर-भर के अंधेरे को बाहर फेंकने का प्रजा को आदेश देता है। और वे लोग पूरी रात अँधेरे को बाल्टी में भर-भर के उलीचने का कार्य करते हैं।
प्रजा और दरबारी गण बिल्कुल चापलूस दिखाए गए हैं। परंतु जैसे ही रात्रि को चंद्रमा उदित होता है। अंधकार चारों तरफ फैल जाता है। लेकिन राजा मानने को तैयार ही नहीं है और फिर वह दूसरी योजना बनाता है।
दूसरा कार्य :
राजा उस अंधेरे को मिटाने के लिए दूसरा कार्य सोचता है। और अपनी बुद्धि का उपयोग करके वह दीवान को आदेश देता है कि अंधेरे की जगह पर पूरे राज्य में सफेद कलर की कलाई पुतवा दो।
प्रजा और समस्त दरबारी गण राजा की आज्ञा का पालन करने में लग जाते हैं। और पूरी रात सभी जगह कलाई पुतवा दी जाती है। परंतु जैसे ही दिन खत्म होता है, अंधेरा फिर कायम हो जाता है। रात होते ही अंधेरा हो जाता है।
उसी रात चांदनी रात होती है तो थोड़ा उजाला रहता है, जिसके कारण उन्हें लगता है कि अंधेरा हम मिटा पा रहे हैं। अब थोड़ा-थोड़ा उजाला होने लग गया है परंतु धीरे-धीरे वही रात होती है और अंधेरा हो जाता है।
इस प्रकार वे वार्तालाप करते हैं :
” हाँ जहांपना! भूल हो गई।
दीवान ने हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा – कुछ तो कलई गाढ़ी थी और कुछ पुताई, डरने की कोई बात नहीं।
ढांढस बंधाने की मंशा से राजा बीच में ही बोला –पहली बार भूल हो ही जाती है.. आगे ध्यान रखना..।
दीवान ने हाथ जोड़कर कहा – पूरा ध्यान रखूंगा गरीब परवर।”
तीसरा कार्य :
इस बार राजा फिर से अपने दीवान और दरबारी गण के साथ योजना बनाता है। और अंधेरा मिटाने के लिए मशाल जलाने का आदेश देता है। प्रजा और समस्त दरबारी गण फिर से राजा के आदेश का पालन करने लगते है। लेकिन ये क्या ? फिर से वे इस कार्य में सफल नहीं हो पाते।
चौथा कार्य :
लेकिन राजा अब भी समझने को तैयार ही नहीं और फिर से एक नयी योजना बना लेता है। अबकी बार वह सूरज की किरणों को बांधने का प्रयास करता है। वह प्रजा को कहता है कि यदि सूरज की किरणों को बांध दिया जाए तो हम अंधेरा फैलने से रोक सकते है। और वह एक बार फिर से असफल हो जाता है।
अंतिम कार्य :
अंत में थक-हार के वह ज्योतिषियों से सलाह लेता है। ज्योतिषी उसे बताते हैं कि भीम तालाब मतलब बड़े तालाब में शगुन चिड़ियाँ के चार घोंसले बनवाये। फिर उन चारों को घोंसलों में शगुन चिड़ियाँ जाकर अलग-अलग घोंसले में अलग-अलग अंडा देगी। तब जाकर आपका यह कार्य पूरा होगा।
मतलब यह है कि राजा वास्तविक समस्या को नहीं समझते हुए बाह्य दिखावे के उपकरण करने में ही लगा रहता है। और समस्या कभी खत्म हो ही नहीं पाती। उसके राज्य में अंधेरा कभी खत्म नहीं हो पाता है, क्योंकि अंधेरे से तात्पर्य है, — अज्ञानता।
और राजा को इसी अज्ञान के अंधकार को मिटाना था। लेकिन वह मूर्ख राजा कभी समझ ही नहीं पाया। और वह इस अज्ञानता को समाप्त करने के लिए बाहरी उपाय करने में ही लगा रहा।
कहानी की वर्तमान प्रासंगिकता
वर्तमान समय में कहानी की प्रासंगिकता यदि हम देखें तो जो शासन व्यवस्था है, वह केवल बाहरी भौतिक उपक्रम करने में लगी है। जहां से प्रजा का वास्तविक कष्ट दूर होगा, वहां से वास्तव में भारत देश की उन्नति होगी। हमारे समाज की उन्नति होगी।
उन कुरीतियों और उन गलत नियमों का विरोध करने एवं उन्हें दूर करने में समय नहीं लग रहा है। बल्कि समय लग रहा है, उन बाहरी क्रियाकलापों में, जिनसे कुछ होने वाला नहीं है।
तो देखा आपने किस प्रकार दरबारी, एक राजा की चापलूसी करते हुए, उसकी बातों को मानते हैं। और किस प्रकार बेचारी प्रजा उन बातों को मानने के लिए बाध्य है। उन सबका चित्रण इस कहानी के माध्यम से देखने को मिलता है।
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एक गुजारिश :
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बहुत उपयोगी सार , धन्यवाद।
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