Dwivedi Yug Ke Kavi | द्विवेदी युग के कवि और उनकी रचनाएँ
नमस्कार दोस्तों ! जैसाकि हम पिछले नोट्स में द्विवेदी काल के बारे में जानकारी ले ही चुके है। आज इसी क्रम में हम Dwivedi Yug Ke Kavi | द्विवेदी युग के कवि और उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में अध्ययन करने जा रहे है।
आज के नोट्स में हम मुख्यतः अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’, जगन्नाथदा, राय देवी प्रसाद, रामचरित उपाध्याय, सत्यनारायण और मैथिलीशरण गुप्त जी के बारे में विस्तार से चर्चा करने जा रहे है। तो चलिए शुरू करते है :
अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ | Ayodhya Prasad Upadhyay ‘Hari Oudh’
Dwivedi Yug Ke Kavi | द्विवेदी युग के प्रमुख कवि : इनका जन्म 1865 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के निजामाबाद तहसील में हुआ। इन्हे हरिऔध भी कहा जाता है। हरी मतलब सिंह और औध मतलब अयोध्या से है अर्थात अयोध्या सिंह।
इन्हें कवि सम्राट कहा जाता है। बाबा सुमेर सिंह इनके साहित्यिक गुरु थे । चाचा ब्रहम सिंह उपाध्याय ने इनका पालन पोषण किया। बाबा सुमेर सिंह ने इन्हें सिख धर्म में दीक्षित किया।
अयोध्या सिंह उपाध्याय की प्रमुख रचनाएँ :
ब्रजभाषा के प्रारंभिक मुक्तक काव्य :
- प्रेमाम्भूप्रश्रवण
- प्रेमाम्भूवारिधि
- प्रेमाम्भूप्रवाह
इन संकलनों में हरिऔध परंपरा प्रेमी कवि के रूप में नजर आते हैं। ये मात्र 17 वर्ष की उम्र के थे, जब इन्होंने “श्री कृष्ण शतक” की रचना की थी।
- प्रियप्रवास
प्रियप्रवास इनकी ख्याति का आधारभूत ग्रंथ है। 1914 में प्रकाशित यह खड़ी बोली हिंदी का पहला महाकाव्य कहलाता है। इसमें 17 सर्ग है।इसमें श्री कृष्ण के बचपन से लेकर मथुरा प्रस्थान तक की कथा कहीं गई है।
सुधारवादी दृष्टिकोण से यह महाकाव्य लिखा गया है। जिसमें राधा को समाज सेविका, विश्वबंधुत्वमय लोक हितकारी व परोपकारी समाज सेविका के रूप में दर्शाया गया है। हालांकि शुक्ल जी ने प्रियप्रवास को महाकाव्य तो क्या, अच्छा प्रबंध काव्य भी नहीं माना है। फिर भी प्रियप्रवास को मंगला प्रसाद पारितोषिक पुरस्कार मिला है।
प्रियप्रवास की पहली पंक्ति :
“दिवस का अवसान समीप था , गगन था कुछ लोहित हो चला”
प्रियप्रवास की भाषा तत्सम प्रधान संस्कृतनिष्ठ खड़ी बोली हिंदी है। इसमें द्रुत विलंबित, मंदाक्रांता, मालिनी आदि छंदों का सुन्दर प्रयोग किया गया है।
गणपति चंद्रगुप्त ने प्रिय प्रवास के आधार पर हरिऔध को आधुनिक हिंदी कविता का सूरदास कहा है। प्रियप्रवास की यह विशेषता है कि इसमें वियोग श्रृंगार के साथ-साथ वियोग वात्सल्य की भी सुंदर अभिव्यक्ति हुई है।
- चर्चित पंक्ति :
“प्रिय पति ! वह मेरा प्राण प्यारा कहां है।”
हरिऔध हरि ने ‘हरिऔध सतसई’ के नाम से भी रचना लिखी है। वैदेही वनवास-1940 (खंडकाव्य) एक प्रबंध काव्य है, जिसमें आर्य समाज का सर्वाधिक प्रभाव दिखाई देता है। इसकी भाषा खड़ी बोली हिंदी है ।
अयोध्या सिंह उपाध्याय की मुक्तक रचनाएँ :
- चौखे चौपदे – 1932
- चुभते चौपदे – 1932
- पद्य प्रसून – 1925
- बोलचाल
- पारिजात
पारिजात में विविध विषयों एवं शैलियों का दर्शन होता है। चौखे चौपदे ,चुभते चौपदे और बोलचाल रचनाओं की भाषा एकदम चलती हुई और सहज है। इसमें ठेठ हिंदी भाषा दिखाई देती है। तथा खड़ी बोली के साथ अरबी फारसी के मुहावरों को भी जगह मिली है। चौखे चौपदे में तो मुहावरों की झड़ी लग गई है।
” क्यों पले पीस कर किसी को।
(चौखे चौपदे)
है बहुत बुरी पालिस तेरी, हम रहे चाहते तुझे पटाना ही
पर पेट तुझ से पटी नहीं मेरी।”
- रस कलश – 1935
रस कलश की भाषा ब्रजभाषा है। रस कलश एक काव्यशास्त्रीय ग्रंथ है। जिसमें रस, अलंकार आदि का विवेचन रीतिकालीन कवियों की भांति किया गया है। हरिऔध “हिंदी साहित्य सम्मेलन” के दो बार हो चुके हैं । इनकी रचना ‘वेनिस का बांका’ है। इनके 3 उपन्यास और 2 नाटक है।
अयोध्या सिंह उपाध्याय के उपन्यास :
- प्रेम कांता
- अधखिला फूल -1899
- ठेठ हिंदी का ठाठ – 1907
अयोध्या सिंह उपाध्याय के नाटक :
- प्रद्युम्न विजय व्यायोग
- रुक्मिणी परिणय
- हरिऔध ने ‘कबीर वचनावली’ का संपादन किया है।
अयोध्या सिंह उपाध्याय की चर्चित पंक्तियां :
“लख अपार प्रसार गिरिन्द में, ब्रज धराय के प्रिय पुत्र का।
(प्रिय प्रवास)
सकल लोग लगे कहने उसे, रख लिया है उंगली पर स्याम ने ।।”
“कविता करके तुलसी न लसे।
(हरिऔध)
कविता पा लसी तुलसी की कला।।”
जगन्नाथदास रत्नाकर | Jagannath Das Ratnakar
Dwivedi Yug Ke Kavi | द्विवेदी युग के प्रमुख कवि : इनका जन्म 1866 ईस्वी में तथा मृत्यु 1932 ईस्वी में हुई। ये उर्दू के शायर थे। जकि उपनाम से शायरी करते थे। ये उर्दू शायरी छोड़कर ब्रजभाषा में आए। ये अयोध्या नरेश प्रताप नारायण सिंह के राज्य के मुख्य सचिव थे।
जगन्नाथदास रत्नाकर की प्रमुख रचनाएँ :
- गंगावतरण
- हिण्डोला
- कल काशी
- वीराष्टक
- उद्धव शतक – 1929
- श्रृंगार लहरी
- हरिश्चंद्र
- बिहारी रत्नाकर – 1929
- उद्धव शतक में भक्ति कालीन और रीतिकालीन कलेवर का उचित मिश्रण हुआ है। वाकचातुरी एवं वर्णन पटुता प्रशंसनीय है। द्विवेदी काल में रत्नाकर और कवि रत्न ही ऐसे कवि रहे हैं, जिन्होंने केवल ब्रजभाषा में रचना लिखी है। जगन्नाथदास रत्नाकर ब्रजभाषा की श्रेष्ठ काव्य परंपरा की अंतिम कड़ी माने जाते हैं ।
राय देवी प्रसाद ‘पूर्ण’ | Ray Devi Prasad ‘Purna’
Dwivedi Yug Ke Kavi | द्विवेदी युग के प्रमुख कवि : इनका जन्म 1868 ईस्वी में हुआ। द्विवेदी काल में ये कुंडलिया छंद में देशभक्ति की कविताएं लिखते थे।
राय देवी प्रसाद ‘पूर्ण’ की प्रमुख रचनाएँ :
- स्वदेशी कुंडल
- बसंत वियोग
- राम रावण विरोध
- मृत्युंजय
- इन्होंने कालिदास के मेघदूत का अनुवाद “धाराधर धावन” नाम से किया है।
रामचरित उपाध्याय | Ramcharit Upadhyay
Dwivedi Yug Ke Kavi | द्विवेदी युग के प्रमुख कवि : इनका जन्म 1872 ईस्वी में हुआ। द्विवेदी काल में यह कवि अपने सूक्ति लेखन के लिए प्रसिद्ध है।
रामचरित उपाध्याय की प्रमुख रचनाएँ :
- सूक्ति मुक्तावली
- राष्ट्र भारती
- देवदूत
- देव सभा
- विचित्र विवाह
- रामचरित चिंतामणि – महाकाव्य
सत्यनारायण कविरत्न | Satyanarayan Kaviratna
Dwivedi Yug Ke Kavi | द्विवेदी युग के प्रमुख कवि : इनका जन्म 1880 ईस्वी तथा मृत्यु 1918 ईस्वी में हुयी। ये “ब्रज कोकिल” के नाम से जाने जाते हैं।
सत्यनारायण कविरत्न की प्रमुख रचनाएँ :
- वंदे मातरम
- करुणा क्रंदन
- हृदय तरंग – प्रेमकली, भ्रमरदूत
भ्रमरदूत की रचना नंददास की रास पंचाध्याई के ढंग पर की गई है। कविरत्न की विशेषता है कि इन्होंने भ्रमर के परंपरागत प्रसंग में भी देशप्रेम का समावेश कर दिया है। भ्रमरदूत में वियोग वात्सल्य रस की प्रधानता है। यशोदा भारत माता का प्रतीक है।
कवि ने भ्रमरदूत के प्रसंग को स्त्री शिक्षा, नारी चेतना व राष्ट्रीय शिक्षा से जोड़ दिया है। कविरत्न ने सांस्कृतिक महापुरुषों पर अनेक कविताएं लिखी है। जैसे:
- सरोजिनी नायडू षट्पदी
- श्री तिलक वंदना
- गांधीस्तव
- श्री रामतीर्थाष्टक
- श्री रविन्द्र वंदना आदि ।
कविरत्न ने लॉर्ड मैकाले की प्रसिद्ध रचना “होरेशस” का अनुवाद किया ।
मैथिलीशरण गुप्त | Maithili Sharan Gupt
Dwivedi Yug Ke Kavi | द्विवेदी युग के प्रमुख कवि : इनका जन्म 1886 ईस्वी में उत्तर प्रदेश के झांसी के चिरगांव नामक स्थान पर और मृत्यु 1964 ईस्वी में हुई। इनके बचपन का नाम लाला मदन मोहन जू था। इसे बदलकर फिर इन्होंने मिथिला दीप नन्दिनी शरण रखा और अंततः मैथिलीशरण गुप्त कहलाये।
प्रारंभ में गुप्त जी की ब्रजभाषा की कविताएं कोलकाता से निकलने वाली “वैश्योपकारक पत्रिका” में छपती थी। ये निम्न नामों से कविताये लिखा करते थे :
- रसिकेश
- रसिक बिहारी
- रसिकेन्द्र
- मधुप
- स्वदेश
- गुप्त जी
मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएँ :
- रंग में भंग – 1909
- जयद्रथ वध – 1910
- भारत भारती – 1912
- पंचवटी – 1925
- झंकार – 1929
- साकेत – 1931
- यशोधरा – 1932
- द्वापर – 1936
- जय भारत – 1952
- विष्णु प्रिया – 1957
- रत्नावली – 1960
गुप्तजी ने 19 खंड काव्य और 3 महाकाव्य — साकेत, जय भारत, विष्णुप्रिया लिखे हैं । इसलिए इन्हें प्रबंध शिरोमणि कहा जाता है। हरिगीतिका मैथिलीशरण गुप्त का प्रिय छंद है।
मैथिलीशरण गुप्त की खड़ी बोली में रचित पहेली कविता जो सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई थी वह “हेमंत – 1905” है। इनका रंग में भंग ऐतिहासिक खंडकाव्य है। जबकि जयद्रथ वध इनका पहला पौराणिक खंडकाव्य माना जाता है।
- मुसद्दस -ए- हाली
भारत भारती रचना को ब्रिटिश सरकार ने जप्त कर लिया था। यह रचना मुक्तक काव्य संग्रह की श्रेणी में आती है। इस रचना में नवजागरण का स्वर इतना प्रबल है कि गुप्त जी राष्ट्र कवि के रूप में विख्यात हो गए। महात्मा गांधी ने जनता की तरफ से 1934 ईस्वी में गुप्त जी को राष्ट्रकवि की औपचारिक उपाधि दी है।
भारत भारती की रचना मुसहास मद्दोजजे इस्लाम (मुसद्दस -ए- हाली) की प्रतिक्रिया में हुई। यद्यपि हाली की प्रतिक्रिया में भारत भारती से 7 वर्ष पूर्व दत्तात्रेय बृजमोहन कैफ़ी की रचना मुसद्दस -ए- कैफ़ी (भारत दर्पण) की रचना हो चुकी थी।
इस प्रकार गुप्तजी ने शैली हाली से ली है और जमीन कैफी से ली है। और इसमें अपना भारतीयता का रंग चढ़ा दिया है।
- साकेत
साकेत खड़ी बोली हिंदी में लिखा गया पहला रामकथा महाकाव्य है। साकेत पर गांधीवादी प्रभाव सबसे अधिक पड़ा है। डॉ. नगेंद्र ने साकेत को जीवनवादी काव्य की संज्ञा दी है। इसमें 12 सर्ग है। जिसका नवां सर्ग उर्मिला विरह वर्णन है।
मैथिलीशरण गुप्त की अन्य रचनाएँ :
किसान -1917 | स्वदेश संगीत – 1925 | शक्ति – 1928 | निकटभट – 1929 |
जेनी – कार्ल मार्क्स की पत्नी पर लिखी गई | हिडिंबा | पृथ्वी पुत्र | काबा और कर्बला |
बकसंहार | मेघनाथ वध | प्लासी का युद्ध | शकुंतला |
हिंदू | मंगल घट | गुरुकुल | नहुष |
जय सिंह सिद्धराज | वैतालिक | वन वैभव | सैरन्ध्री |
मैथिलीशरण गुप्त के गीति नाटक :
- तिलोत्तमा -1916
- चंद्रहास
- अनघ – 1925
- मैथिलीशरण गुप्त को द्विवेदी काल का प्रतिनिधि कवि तथा शीर्षस्थ कवि कहा जाता है।
- ये आधुनिक हिंदी कविता की सबसे बड़े पुनरुत्थान वादी कवि माने जाते हैं।
- इन्हें आधुनिक युग का वैतालिक कहा जाता है ।
- गुप्त जी को महावीर का प्रसाद कहा जाता है।
- इन्हें युग प्रवर्तक कवि का जाता है।
मैथिलीशरण गुप्त की चर्चित पंक्तियां :
“अबला जीवन हाय, तुम्हारी यही कहानी ।
(यशोधरा)
आंचल में है दूध, आंखों में पानी ।।“
“सखि ! वे मुझसे कहकर जाते ।”
(यशोधरा)
“राम तुम मानव हो, ईश्वर नहीं हो क्या।
(साकेत)
तब मैं नारीश्वर हूं, ईश्वर मुझे क्षमा करें।।“
“संदेश यहां मैं नहीं स्वर्ग का लाया।
(साकेत)
इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया।।“
“री अभाव की आत्मजे !
(साकेत)
वेदना तू भी भली बनी
पाई मैंने आज तुझी में अपनी चाह घनी।”
“निरख सखी ये खंजन आये।“
(साकेत)
“दोनों ओर प्रेम पलता है।“
(साकेत )
“सहने के लिए बनी है तू
(विष्णुप्रिया)
सह तू दुखिया नारी ।“
“भू लोक का गौरव प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहाँ है।”
(भारत भारती)
“हम कौन थे, क्या हो गए और क्या होंगे अभी।”
(भारत भारती)
“नीलाम्बर परिधान हरित पट पर सुन्दर है।
(भारत भारती)
हे मातृभूमि तू सत्य ही, सगुण मूर्ति सर्वेश की।।“
“अधिकार खोकर बैठना यह महा दुष्कर्म है।
(जयद्रथ वध)
न्यायार्थ अपने बंधू को भी दंड देना धर्म है।।“
“चातक खड़ा चोंच खोले है,
(झंकार)
सम्पुट खोले सीप खड़ी,
मैं अपना घट लिये खड़ा हूँ,
अपनी-अपनी हमें पड़ी ।।“
“चारु चंद्र की चंचल किरणे ।
(पंचवटी)
खेल रही है जल – थल में ।।“
इसप्रकार दोस्तों ! अब आप Dwivedi Yug Ke Kavi | द्विवेदी युग और उसके प्रमुख कवियों के बारे में परिचित हो गए है। साथ ही इनकी प्रमुख रचनाओं के बारे में भी आपने अच्छी जानकारी प्राप्त कर ली है। हमें पूर्ण विश्वास है कि आपको ये जानकारी अत्यंत उपयोगी लगी होगी और समझ भी आयी होगी। धन्यवाद !
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