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Kavi Bihari Aur Bihari Satasai | कवि बिहारी परिचय और बिहारी सतसई


नमस्कार दोस्तों ! आज हम Kavi Bihari Aur Bihari Satasai | कवि बिहारी परिचय और उनके द्वारा रचित प्रमुख रचना “बिहारी सतसई” के बारे में अध्ययन करने जा रहे है। कवि बिहारी रीतिसिद्ध काव्य धारा के विख्यात कवि रहे है। तो चलिए इनके बारे में जानते है :



Kavi Bihari Aur Bihari Satasai | कवि बिहारी और बिहारी सतसई : कवि बिहारी हिंदी साहित्य के रीति काल के प्रसिद्ध कवि रहे हैं। इनका जन्म 1595 ई. में ग्वालियर के बसोवा गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम केशवराय था। बचपन में इनके पिता इन्हें औरछा लाए और उनका बचपन बुंदेलखंड में व्यतीत हुआ। फिर युवावस्था में अपने ससुराल मथुरा में रहा करते थे।

बिहारी दास जयपुर नरेश मिर्जा राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे। राजा जयसिंह अपनी नई पत्नी के प्रेम में डूबे रहते थे और महल के बाहर भी नहीं आते थे। उन्हें महल के राज कार्य करने के लिए बुलाने की शक्ति किसी में नहीं थी । तो इस पर बिहारीदास ने एक दोहा लिखकर राजा के पास भिजवाया, जिसे पढ़कर राजा तुरंत बाहर आए और राजकार्य में संलग्न हो गए। वह दोहा था :

“नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।
अली कली ही सौं बंध्यों, आगे कौन हवाल।।”

इनके एक दोहे ने राजा पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि राजा ने बिहारी से अन्य दोहो की रचना करने को कहा और एक दोहे पर एक अशर्फी देने का वादा किया। जयपुर नरेश के दरबार में रहकर बिहारी ने बहुत धन अर्जित किया।

बिहारी रीतिसिद्ध काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि रहे हैं । उनकी एकमात्र रचना “बिहारी सतसई” है। बिहारी सतसई की रचना उन्होंने 1633 ई. में शुरू की और पूर्ण 1662 ई. में हुई। बिहारी सतसई में 713 दोहे हैं।


Kavi Bihari | कवि बिहारी के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य :

बिहारी निम्बार्क संप्रदाय में दीक्षित थे। इनके साथ-साथ इनके पिता केशवराय भी निम्बार्क संप्रदाय के महंत नरहरीदास द्वारा दीक्षित किए गए। बिहारी का ससुराल मथुरा था और वे यहीं बस गए।यहीं पर बिहारी शाहजहां के संपर्क में आए।

इनके दत्तक पुत्र का नाम कृष्ण कवि था। जो आगे चलकर निरंजन कृष्ण के नाम से विख्यात हुए । इनकी रचना “बिहारी सतसई” पर प्रथम टीका लिखने वाले कृष्ण कवि ही थे। बिहारी सतसई की रचनात्मक प्रेरणा भूमि का प्रारंभिक दोहा था :

“नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।
अली कली ही सौं बंध्यों, आगे कौन हवाल।।”

इसमें अलंकार है : अन्योक्ति अलंकार। इस रचना के माध्यम से व्यंजना शब्द शक्ति में उदबोधन रूप में मिर्जा राजा जयसिंह को चेताया गया है। इसी दोहे पर मिर्जा राजा जयसिंह ने खुश होकर बिहारी को

  1. काली पहाड़ी की जागीर दी।
  2. एक-एक दोहे पर सोने की अशर्फियां देने का वादा किया और
  3. अपने पुत्र राम सिंह का गुरु बिहारी को बना दिया।

Kavi Bihari | कवि बिहारी पर चर्चित रचनाएं :

महाकवि बिहारी पर कई कवियों ने रचनाएँ लिखी है। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण रचनाये निम्नवत है :

  1. देव और बिहारी : कृष्ण बिहारी मिश्र
  2. बिहारी और देव : लाला भगवानदीन
  3. कविवर बिहारी : जगन्नाथदास रत्नाकर
  4. बिहारी की वाग्विभूति : विश्वनाथ प्रसाद मिश्र
  5. बिहारी : विश्वनाथ प्रसाद मिश्र।


Bihari Satasai | बिहारी सतसई की प्रमुख विशेषताएं


इसकी प्रमुख विशेषताएं निम्नानुसार है :

  • इसकी प्रमुख विशेषता है : “भाषा की समासिकता एवं कल्पना की समाहारशक्ति। इसमें साहित्यिक ब्रजभाषा तथा भाषा की लाक्षणिकता एवं बिम्बधर्मिता का प्रयोग किया गया है।
  • इसमें मुख्यत: दोहा छंद और गौणत: सोरठा छंद का प्रयोग किया गया है। बहुग्यता व गागर में सागर भर देना इसकी अनूठी विशेषता है।
  • सतसई में भाव, प्रकृति व नारी सौंदर्य की त्रिवेणी प्रवाहित हुई है। इसमें ध्वन्यात्मकता व नाद सौंदर्य तथा प्रकृति के उद्दीपनकारी रूप का चित्रण मिलता है ।
  • इस रचना में नायिका के हाव-भाव, मनोभावों, अनुभावो की सूक्ष्म चेष्टाओं का निरूपण किया गया है।
  • संयोग श्रृंगार का अधिक चित्रण हुआ है। बिहारी वियोग श्रृंगार के चित्रण में उतने सफल नहीं हुए, जितने संयोग श्रृंगार में सफल हुए हैं। वियोग श्रृंगार के चित्रण में बिहारी का मन कम ही लगा है।
  • बिहारी के वियोग श्रृंगार पर फारसी ऊहात्मकता का प्रभाव देखा जा सकता है। इनका वियोग वर्णन हास्यास्पद बन गया है।
  • यद्यपि बिहारी सतसई दरबारी रचना है तथापि बिहारी सतसई को समाजशास्त्र का खजाना कहा जाता है। इसे रसिकों की गीता भी कहा जाता है।
  • बिहारी ने सतसई की रचना लक्षण ग्रंथ के रूप में नहीं की थी, रीति यहां स्वयं सिद्ध हुई है। इसमें नवीन प्रसंगोद्भावना की शक्ति देखी जा सकती है ।
  • इसमें माधुर्य गुण की प्रधानता है। मुख्य रस श्रृंगार है और अलंकार रूपक है। इनकी रचना में स्वभाविक अलंकार योजना देखी जा सकती है।

“सतसैया के दोहरे ज्यो नावक के तीर।
देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर।।”


Bihari Satasai | बिहारी सतसई पर चर्चित टिकाएं


महाकवि बिहारी की रचना बिहारी सतसई पर कई टीकाएँ लिखी गयी है जिनमें से कुछ चर्चित टीकाओं का विवरण इस प्रकार है :

  • सर्वप्रथम कृष्ण कवि ने सतसई की टीका लिखी और बिहारी के दोहा छंद को सवैया छंद में बदल दिया।
  • लल्लू लाल ने “लाल चंद्रिका” नाम से बिहारी सतसई की टीका लिखी है।
  • ज्वाला प्रसाद मिश्र, लाला भगवानदीन, पदम सिंह शर्मा, जगन्नाथदास रत्नाकर आदि विद्वानों ने बिहारी सतसई की टीका लिखी है।
  • सर्वाधिक प्रमाणिक एवं विख्यात टीका जगन्नाथदास रत्नाकर की बिहारी रत्नाकर-1925 टीका है।
  • मुंशी देवी प्रसाद “प्रीतम” ने बिहारी के दोहों को उर्दू के शेरो में बांध दिया ।
  • अंबिकादत्त व्यास ने “बिहारी विहार” टीका में दोहा छंद को रोला छंद में बांध दिया।
  • भारतेंदु हरिश्चंद्र ने बिहारी के दोहों को कुंडलियां छंद में बदल दिया।
  • पंडित आनंदीलाल ने “फिरंगे सतसई” के नाम से बिहारी सतसई का फारसी भाषा में अनुवाद किया।
  • पंडित परमानंद ने “श्रृंगार सप्तशती” के नाम से बिहारी के दोहों का संस्कृत में अनुवाद किया।
  • सुरति मिश्र ने “अमर चंद्रिका” तथा हरिचरण दास ने “हरि प्रकाश” टीका लिखी।


कवि बिहारी और बिहारी सतसई पर चर्चित कथन


Kavi Bihari Aur Bihari Satasai | कवि बिहारी और बिहारी सतसई : महाकवि बिहारी और उनकी रचना बिहारी सतसई पर कई विद्वानों ने अपने कथन दिए है जिनमें से कुछ चर्चित कथन इसप्रकार से है :

पदम सिंह शर्मा के अनुसार :

पदम सिंह शर्मा ने 1907 ई. में बिहारी और फारसी कवि सादी की तुलना लिखी। यहीं से तुलनात्मक आलोचना की शुरुआत मानी जाती है। इन्होंने “बिहारी सतसई की भूमिका “की रचना भी की है।

बिहारी सतसई शक्कर की रोटी है,
जहां से भी खाओ मीठी लगती है।

पदम सिंह शर्मा ने खड़ी बोली को
नीरस व कर्ण कटु “की संज्ञा दी है।

हिंदी कवियों में
श्री महाकवि बिहारी लाल का
आसन सबसे ऊंचा है।

पदम सिंह शर्मा ने बिहारी के
“विरह वर्णन “ को उत्कृष्ट कहा है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार :

“एकमात्र रचना लिखकर बिहारी साहित्य में अमर हो गए।”

“यह बात साहित्य के क्षेत्र में इस तथ्य की स्पष्ट घोषणा कर रही है कि
किसी कवि का यश उसकी रचनाओं के परिमाण (मात्रा) से नहीं होता,
उनके गुण के हिसाब से होता है।”

“प्रबंध काव्य यदि विस्तृत वनस्थली की भांति है तो
मुक्तक काव्य फूलों का चुना हुआ गुलदस्ता है।”

“कविता उनकी श्रृंगारी है लेकिन प्रेम की उच्च भाव भूमि
पर नहीं पहुंचती, नीचे ही रह जाती है।”



राधाचरण गोस्वामी के अनुसार :

“बिहारी ऐसा पीयूषवर्षी घनश्याम है,
जिसके उदय होते ही वे सूरदास व तुलसीदास
पर भी आच्छादित हो जाते हैं।”

लाला भगवानदीन के अनुसार :

“सूरदास, तुलसी एवं केशव दास के पश्चात
बिहारी हिंदी साहित्य के चौथे रत्न हैं।”

“भांति-भांति रचना सरस, देवगिरा ज्यों व्यास ।
त्यों भाषा सब कविन में, विमल बिहारी दास ।।”

— (जगन्नाथदास रत्नाकर)

इसप्रकार दोस्तों ! अब आपको Kavi Bihari Aur Bihari Satasai | कवि बिहारी और बिहारी सतसई के साहित्यिक जीवन का अच्छे से परिचय प्राप्त हो गया होगा। साथ ही बिहारी सतसई की प्रमुख विशेषताएं और कवि बिहारी के बारे में चर्चित कथन, बिहारी सतसई पर चर्चित टिकाएं एवं उन पर लिखी गयी चर्चित रचनाओं के बारे में भी समझ आ गया होगा। इसे बार-बार दोहराकर अच्छे से तैयार कर लीजिये।

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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “Kavi Bihari Aur Bihari Satasai | कवि बिहारी परिचय और बिहारी सतसई” के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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