Contents

Meera Muktavali Vyakhya मीरा मुक्तावली के पदों की व्याख्या (25-30)


Meera Muktavali Vyakhya Edited by Narottamdas Swami in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली” के अगले 25-30 पदों की शब्दार्थ सहित व्याख्या समझने जा रहे है। आइए इन्हें समझ लेते है :

नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित मीरा मुक्तावली के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
नीचे दी गयी पुस्तकों को खरीद सकते है। ये आपके लिए उपयोगी पुस्तके है। तो अभी Shop Now कीजिये :


Meera Muktavali Vyakhya मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (25-30)


Narottamdas Swami Sampadit Meera Muktavali Ki 25-30 Pad Vyakhya in Hindi : दोस्तों ! “मीरा मुक्तावली” के 25 से लेकर 30 तक के पदों की शब्दार्थ सहित व्याख्या निम्नानुसार है :

पद : 26.

Meera Muktavali 25-30 Pad Vyakhya in Hindi

डारि गयो मन-मोहन पासी।
आँवा की डाळी कोइल इक बोलै, मेरो मरण अरु जग केरी हाँसी।।
बिरह की मारी मैं वन-वन डोलूँ, प्राण तजूँ, करवत ल्‍यूँ कासी।
मीराँ के प्रभु हरि अविनासी, तुम मेरे ठाकुर ! मैं तेरी दासी।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.पासीपाश या बंधन
2.आँवाआम
3.कोइलकोयल
4.अरुऔर
5. हाँसीहँसी
6.तजूँत्यागना

व्याख्या :

मीरा कहती है कि मोहन मेरे ऊपर प्रेम बंधन डाल गया है। वह आगे कहती है कि आम की डाल पर एक कोयल बोल रही है कि अब मेरा मरना निश्चित है और यह सारा संसार मेरी हँसी उड़ा रहा है।

मीरा कह रही है कि इस विरह की आग से जलती हुई मैं वन-वन भटकती फिर रही हूँ। कान्हा के प्रेम में, इससे अच्छा तो मैं प्राण त्याग दूँ। वह कहती है कि आप मेरे अविनाशी प्रभु हो और मैं आपकी दासी हूँ। आप मुझे मारना क्यों चाहते हो ? क्योंकि स्वामी तो दास का सदा उपकार करता है। आप तो कृपालु है।

पद : 27.

Meera Muktavali Vyakhya – Narottamdas Swami in Hindi

जोगिया री प्रीतड़ी है दुखड़ा रो मूळ।
हिलमिल वात वणावत मीठी, पाछै जावत भूल।।
तोड़त जेज करत नहिं सजनी जैसे चंपेली के फूल।
मीरां कहे प्रभु तुमरे दरस विन लगत हिवड़ा में सूल।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.प्रीतड़ीप्रीत
2.मूळजड़ या कारण
3.वणावतबनाते हैं
4.पाछैपीछे
5.हिवड़ाह्रदय
6.सूलकष्ट

व्याख्या :

दोस्तों ! मीरा बाई कहती है कि हे जोगिया अर्थात् श्रीकृष्ण ! आप से प्रीत करना ही सब दुखों का कारण है। पहले आप मिल-जुल कर के बहुत मीठी बातें करते हैं और फिर बाद में भूल जाते हैं। प्रेम करते हैं और फिर उस प्रेम को तोड़ने में बिल्कुल देर नहीं करते हैं।

जैसे चम्पा का फूल टूटने में जरा भी देर नहीं करता है, ऐसे ही श्रीकृष्ण जी है, जो प्रेम को तोड़ते समय बिल्कुल भी देर नहीं करते हैं। इसलिए मीराबाई कहती है कि हे प्रभु ! मुझे अपना दर्शन दीजिए, क्योंकि आपके दर्शन के बिना मेरे हृदय में कष्ट पड़े हुये हैं।

पद : 28.

Meera Muktavali Ki Pad-Vyakhya Shabdarth Sahit in Hindi

जोगिया से प्रीति कियां दुख होई,
प्रीत कियां सुख ना मोरी सजनी! जोगी मिंत न कोइ।
रात-दिवस कल नाहिं परत है, तुम मिलियां विन मोइ।।
जैसी सूरत या जग माहीं, फेरि न देखी सोइ।
मीरां रे प्रभु कब रे मिलोगे, मिलियां आणद होइ।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.मिंतमित्र
2.कलशांति
3.विनबिना
4.मोइमुझे
5.सोइवह

व्याख्या :

मीराबाई कह रही है कि श्रीकृष्ण जी से प्रेम करने पर दु: ख होता है। मीरा अपनी सखी से कहती है कि श्रीकृष्ण जी से प्रेम करके मुझे सुख कहाँ मिला। हे सजनी ! जोगी से प्रेम किया और भला जोगी मित्र कैसे हो सकता है, क्योंकि जोगी के हृदय में तो पहले ही अनासक्ति-विरक्ति के भाव रहते हैं।

मीराबाई कहती है कि आपसे मिले बिना मुझे रात और दिन चैन या शांति नहीं मिलती है।आपकी जैसी सूरत इस संसार में फिर दूसरी देखने को नहीं मिलेगी। हे मेरे प्रभु ! आप तो इस संसार में अपने जैसे केवल अकेले हो। आपके जैसा कोई दूसरा नहीं है और मैं केवल आपको ही प्रेम करती हूँ। इसलिए मीरा से प्रभु आप कब मिलोगे, क्योंकि आपसे मिलकर के मुझे बहुत आनंद मिलेगा। अतः आप मुझे उस आनंद से वंचित ना कीजिए।

पद : 29.

Meera Muktavali Vyakhya with Hard Meanings in Hindi

माई ! मेरा पिया विन अलूणो देस।
राग-रंग सिणगार न भावै, खुलि रहे सिर के केस।।
सावण आयो, साहिब दूरे, जाइ रहे परदेस।
सेझ अलूणी, भवन अकेली, रैण भयंकर भेस।।
आव सलूणे प्रीतम प्यारे ! वीते जोबन-वैस।
मीरां के प्रभु हरि अविनासी, तन मन करूँ सब पेस।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.अलूणोबेस्वाद या निरानन्द
2.भावैअच्छा लगना
3.सेझशैय्या
4. रैणरात
5.भेसवेश
6.सलूणेसुहावना
7.वैसउम्र

व्याख्या :

मीराबाई कहती है कि मेरे प्रियतम के बिना यह संसार मेरे लिए बेस्वाद या निरानन्द है। मुझे कोई भी राग, रंग-श्रृंगार अच्छा नहीं लगता है और मेरे सिर के केश भी खुले हुये हैं, मैं उन्हें भी नहीं सँवारती हूँ।

सावन भी आ गया है और मेरे प्रियतम श्रीकृष्ण जी मुझसे दूर हैं। वे परदेस में बसे हुये हैं। मेरी शैय्या भी मुझे बेस्वाद लगती है। घर में मैं अकेली हूँ और रात्रि ने भी भयंकर वेश धारण कर रखा है, क्योंकि रात्रि में विरह और भी भयंकर हो जाता है। अब आ जाइये मेरे सुहावने प्रियतम प्यारे ! मेरा यौवन बीतता जा रहा है और मेरी उम्र बीतती जा रही है।

आपके आने का यह उत्तम समय है। आप मुझे दर्शन दीजिये। मीराबाई अपने संपूर्ण समर्पण भाव के साथ कहती है कि मीरा के प्रभु ! आप हरि अविनाशी हैं। मैं तन और मन आपको भेंट करती हूँ।

पद : 30.

Meera Muktavali Ke Pad 25-30 Ki Vyakhya in Hindi

पिया विन सूनो छै जी म्हांरो देस।
अैसा है कोई पिव कूँ मिलावै, तन-मन करूँ सब पेस।।
तेरे कारण वन-वन डोलूं, कर जोगण को भेस।।
अवधि वदिती, अजहुँ न आये, पंडर होइ गये केस।
मीरां के प्रभु कब रे मिलोगे, तज दियो नगर नरेस।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.विनबिना
2.सूनो शून्य, निरानंद
3.पेसभेंट करना
4.वदिती व्यतीत होना
5.पंडरपांडुर ,श्वेत होना
6.तजत्यागना
7.नरेसराजा, स्वामी

व्याख्या :

मीराबाई कहती है कि प्रियतम के बिना मेरा संसार सूना है। कोई ऐसा है क्या, जो मेरे प्रियतम को मिला दे। प्रियतम को मैं तन-मन सब भेंट करुँगी। आगे मीराबाई कहती है कि मेरे प्रियतम आपके कारण जोगणिया का वेश धारण करके मैं वन-वन फिर रही हूँ।

बहुत समय बीत गया है,आज भी आप नहीं आये। अब तो मेरे बाल भी श्वेत होने लग गये हैं। हे मेरे गिरिधर नागर ! आप मुझसे कब मिलोगे। हे मेरे स्वामी ! इस नगर को आपने त्याग दिया है।

इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने “मीरा मुक्तावली” के 25-30 पदों की शब्दार्थ सहित व्याख्या समझी। आप इन पदों को अच्छे से तैयार करते चले। आगे के पदों को लेकर फिर से हाज़िर होंगे। धन्यवाद !


यह भी जरूर पढ़े :


एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “Meera Muktavali Vyakhya मीरा मुक्तावली के पदों की व्याख्या (25-30)” के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

नोट्स अच्छे लगे हो तो अपने दोस्तों को सोशल मीडिया पर शेयर करना ना भूले I नोट्स पढ़ने और HindiShri पर बने रहने के लिए आपका धन्यवाद..!


Leave a Comment

Ads Blocker Image Powered by Code Help Pro

Ads Blocker Detected!!!

We have detected that you are using extensions to block ads. Please support us by disabling these ads blocker.

Powered By
100% Free SEO Tools - Tool Kits PRO
error: Content is protected !!