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Meera Muktavali Saar मीरा मुक्तावली के पदों की व्याख्या (21-25)


Meera Muktavali Saar Edited by Narottamdas Swami in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली” के अगले 21-25 पदों का शब्दार्थ सहित सार समझने जा रहे है। तो चलिए बिना देरी किये शुरू करते है :

नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित मीरा मुक्तावली के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
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Meera Muktavali Saar मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (21-25)


Narottamdas Swami Sampadit Meera Muktavali Ke 21-25 Pad Saar in Hindi : दोस्तों ! “मीरा मुक्तावली” के 21 से लेकर 25 तक के पदों का शब्दार्थ सहित सार निम्नानुसार है :

पद : 21.

Meera Muktavali 21-25 Pad Saar in Hindi

जाबा दे, जाबा दे, जोगी कि‍सका मीत ?
सदा उदास रहै मोरि सजनी! निपट अटपटी रीत।
बोलत बचन मधुर से मानूँ, जोड़त नाहीं प्रीत ।।
मैं जाणूँ या पार निभैगी, छाँडि चले अधबीच।
मीराँ के प्रभु स्‍याम मनोहर प्रेम-पियारा मीत ।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.जाबा देजाने दे
2.मीतमित्र
3.सजनीसखी
4.निपटएकदम
5.अटपटीअनोखी
6.रीतप्रेम
7.जोड़तजोड़ना

व्याख्या :

दोस्तों ! मीरा बाई अपने मनोभावों को व्यक्त करती हुई कहती है कि जाने दे, जाने दे हे जोगी अर्थात् श्रीकृष्ण जी से मीरा जाने के लिये कह रही है। मीरा कहती है कि ये श्रीकृष्ण जी किसके मित्र हो सकते हैं ? हे सखी ! मैं तो सदा उदास ही रहती हूँ और मधुर वचन श्रीकृष्ण जी से बोलती रहती हूँ, परंतु ये श्रीकृष्ण जी मुझसे प्रेम ही नहीं जोड़ते हैं, यह कैसी अनोखी प्रेम की रीत है।

ये तो मुझे बीच में ही छोड़ कर चले गये हैं। अब मेरी प्रेम की नौका कैसे पार लगेगी ? मीराबाई कहती है कि मेरे प्रभु श्याम, आप मनोहर हो, मेरे प्रेम प्यारे हो, मेरे मीत हो, आप मेरे प्रेम का निर्वाह करो, क्योंकि आप चाहोगे तो पार निभैगी। मेरी प्रेम की नौका अंत तक पहुँच जायेगी। अंत तक मेरे प्रेम का निर्वाह होगा।

पद : 22.

Meera Muktavali Saar – Narottamdas Swami in Hindi

जावो निरमोहिया ! जाणो तेरी प्रीत ।
लगन लगी जदि प्रीत और ही, अब कुछ औरि ही रीति।।
इमरत पाइ के विस क्‍यूँ दीजै, कूँण गाँव की रीत ।
मीराँ के प्रभु हरि अविनासी, अपणी गरज के मीत।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.निरमोहियानिष्ठुर
2.लगनप्रेम
3.जदियदि
4.इमरतअमृत
5.कूँणकौन
6.गरजस्वार्थ

व्याख्या :

मीरा बाई अपने श्रीकृष्ण को संबोधित करते हुये कहती है कि हे निर्मोहिया चला जा, मैंने तेरी प्रीत देख ली है। पहले प्रेम करते समय तो कुछ और ही प्रेम की रीत थी और अब कुछ और ही रीत है। तुम्हें प्रेम ही नहीं करना था तो मेरे मन में इस लगन को लगाया ही क्यों था, पहले तो अमृत के समान मेरे हृदय में प्रेम-रस को सींचा और अब मुझे उपेक्षा का विष पिला रहे हो।

ऐसा क्यों कर रहे हो, बताओ। यह कौनसे गांव की रीत है, जो आप निभा रहे हो। मीराबाई कहती है कि मेरे प्रभु हरि है, अविनाशी है। आप तो अपने स्वार्थ के ही मित्र बने हुये हो। हे मेरे प्रभु अविनाशी ! आप ऐसा मत करो।

पद : 23.

Meera Muktavali Ka Pad-saar Shabdarth Sahit in Hindi

हो जी हरि ! कित गये नेह लगाय ?
नेह लगाय मेरो हर लीयो, रस भरि टेर सुनाय।
मेरे मन में अैसी आवै, मरूँ जहर-बिस खाय।।
छाड़ि गये बिसवासघात करि, नेह केरी नाव चढ़ाय।
मीराँ के प्रभु कब रे मिलोगे, रहे मधुपुरी छाय।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.नेहप्रेम
2.टेररट
3.केरिकी
4.मधुपुरीमथुरा नगरी
5.छायछाये हुए हो

व्याख्या :

मीरा कहती है कि मेरे प्रभु तो दूज के चाँद हो गये हैं अर्थात् दूज का चाँद बहुत दिनों बाद दिखाई देता है, उसी प्रकार हे मेरे प्रभु ! आप प्रेम-लगन लगाकर के कहाँ चले गये हो। आपने प्रेम लगाकर मेरे मन को हर लिया है। आपने रस की बातों की टेर सुना-सुनाकर मेरे मन को अपने वश में कर लिया है।

मीरा बाई कह रही है कि मेरे मन में ऐसा आ रहा है कि मैं जहर खाकर मर जाऊँ। हे प्रभु ! मुझसे आपकी जो उदासीनता हो रही है, उससे मेरे मन में ऐसा आ रहा है कि जहर खाकर अपने प्राण त्याग दूँ। आपने मेरे साथ विश्वासघात किया है।

प्रेम की नाव पर पहले मुझे चढ़ा दिया है और आप मेरे साथ विश्वासघात कर रहे हो। आपने मुझे स्नेह की नाव पर चढ़ा दिया है तो अब मैं प्रेम-समुद्र कैसे पार करुँगी। मीरा बाई कह रही है कि हे मीरा के प्रभु ! आप मुझे कब दर्शन दोगे। आप तो पूरी मथुरा नगरी में छाये हुये हो। मुझे कब मिलोगे?

पद : 24.

Meera Muktavali Saar with Hard Meanings in Hindi

प्रभुजी ! थे कहाँ गया नेहड़ी लगाय ?
छांड गया बिस्वास संघाती प्रेम की बाती बराय।।
विरह-समंद में छांड गया छो, नेह की नाव चढ़ाय।
मीरां के प्रभु कब रे मिलोगी, तुम बिन रहोइ न जाय।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.थेतुम
2.नेहडीनेह, प्रेम
3.बरायजलाकर
4.विरह-संमदविरह रूपी समुद्र
5.सघांतीघात करने वाला

व्याख्या :

मीराबाई कहती है कि हे प्रभु ! आप प्रेम लगाकर कहाँ चले गये हो। पहले तो मेरे मन में प्रेम की बाती जला दी, फिर विश्वासघाती, मेरा साथ छोड़कर चला गया। आप मुझे प्रेम की नाव चढ़ाकर विरह के समुद्र में छोड़ कर चले गये हो। इसे मैं अकेले कैसे पार करुँगी ? हे मीरा के प्रभु ! आप मुझे कब मिलोगे, क्योंकि आपके बिना मैं रह नहीं सकती हूँ।

पद : 25.

Meera Muktavali Ke Pad 21-25 Ka Saar in Hindi

होइ गये स्याम दुइज के चंदा,
मधुवन जाइ भये मधुवनियाँ, हम पर डारो प्रेम को फंदा।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, अब तो नेह परो कुछ मंदा।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.दूइजदूज
2.मधुबनमथुरा
3.डारोडाल दिया
4.फंदाबंधन
5.मंदाकम

व्याख्या :

मीराबाई कहती है कि हे श्याम ! आप तो दूज के चंदा हो गये अर्थात् लंबे समय तक दिखलाई ही ना देना। आपके दर्शन ही दुर्लभ हो गये हैं। आप तो मधुबन अर्थात् मथुरा जाकर वहाँ के ही वासी हो गये हो और हम पर आपने प्रेम का फंदा डालकर रखा है अर्थात् आप तो मेरा साथ ही नहीं दे रहे हो।

आपके तो दर्शन ही नहीं हो रहे हैं। अपने प्रेम के बंधन में या प्रेम-पाश में बांधकर छोड़ दिया है। मीराबाई कहती है कि हे प्रभु मेरे गिरिधर नागर ! अब आपका प्रेम कुछ शिथिल पड़ गया है, मंदा पड़ गया है।

इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने “मीरा मुक्तावली” के 21-25 पदों का शब्दार्थ सहित सार समझा। अब तक हमने कुल 25 पदों को समझ लिया है। आप इन्हें अच्छे से तैयार अवश्य करते चले। आगे के कुछ पद लेकर फिर हाज़िर होंगे। धन्यवाद !


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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “Meera Muktavali Saar मीरा मुक्तावली के पदों की व्याख्या (21-25)” के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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