Contents

Meera Muktavali मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (1-5)


Meera Muktavali Edited by Narottamdas Swami in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज के अध्याय में हम “मीरा मुक्तावली” के पदों की व्याख्या शुरू करने जा रहे है। मीरा मुक्तावली के संपादक नरोत्तमदास स्वामी है। मीरा की भक्ति माधुर्य भाव की है, क्योंकि मीरा ने श्रीकृष्ण जी को अपना पति माना है। तो चलिए आज हम “मीरा मुक्तावली” को इसके 1-5 पदों की व्याख्या के साथ शुरू करते है।

नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित मीरा मुक्तावली के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
नीचे दी गयी पुस्तकों को खरीद सकते है। ये आपके लिए उपयोगी पुस्तके है। तो अभी Shop Now कीजिये :


Meera Muktavali मीरा मुक्तावली के पदों की विस्तृत व्याख्या (1-5)


Narottamdas Swami Sampadit Meera Muktavali Ke 1-5 Pad in Hindi : दोस्तों ! “मीरा मुक्तावली” के प्रारंभिक 1 से लेकर 5 तक के पदों की व्याख्या निम्नानुसार है :

पद : 1.

Meera Muktavali Ke Pratham Pad Ki Vyakhya in Hindi

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई।।
जाके सिर है मोरपखा मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु आपनो न कोई।।
छांड़ि दई कुलकी कानि कहा करिहै कोई।।
संतन ढिग बैठि बैठि लोकलाज खोई।।
चुनरीके किये टूक ओढ़ लीन्हीं लोई।
मोती मूंगे उतार बनमाला पोई।।
अंसुवन जल सींचि-सींचि प्रेम-बेलि बोई।
अब तो बेल फैल गई आणंद फल होई।।
दूध की मथनियां बड़े प्रेम से बिलोई।
माखन जब काढ़ि लियो छाछ पिये कोई।।
भगति देखि राजी हुई जगत देखि रोई।
दासी मीरा लाल गिरधर तारो अब मोही।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.सोईवही (श्रीकृष्ण जी)
2.कानिइज्जत
3.ढिगपास
4.अंसुवन जलआंसू रूपी जल
5.आणंद फलआनंद रूपी फल
6.मथनियांदही बिलाने का पात्र
7.घृतघी
8.छोयीछाछ
9.विलोयीमथना
10.तारोंउद्धार
11.मोहिमेरा

व्याख्या :

मीरा कहती है कि जिसके सिर पर मोर मुकुट है, मेरा पति वही है। मैंने अपने कुल की इज्जत की परवाह नहीं की है, कोई मेरा क्या कर लेगा। संतो के पास बैठ-बैठ कर मैंने इस लोक की लज्जा को खो दिया। मैंने प्रेम रूपी बेली को आँसू रूपी जल से सींच दिया। अब तो यह प्रेम रूपी बेली फैल गई है। अब इससे तो आनंद रूपी फल की प्राप्ति होगी।

दूध की मथानियाँ बड़े प्रेम से मैंने बिलोई है। अब मैंने उसमें से घी तो निकाल लिया और छाछ को मैंने छोड़ दिया, फेंक दिया। घी अर्थात् श्रीकृष्ण जी का प्रेम तो मैंने पा लिया और छाछ अर्थात् सांसारिकता को फेंक दिया। दूध अर्थात् श्रीकृष्ण जी की भक्ति। श्रीकृष्ण-भक्ति रूपी दूध को मथने पर श्रीकृष्ण-प्रेम रूपी घी निकाल लिया और सांसारिकता रुपी छाछ को फेंक दिया।

लेकिन मैं इस संसार की सांसारिकता को देखकर रोती हूँ और भक्तों को देखकर खुश होती हूँ। मीरा कहती है कि मैं तो दासी हूँ अपने गिरधर की और अब आप मेरा उद्धार कर दीजिये।

पद : 2.

Meera Muktavali Vyakhya – Narottamdas Swami in Hindi

चालो मन गंगा जमुना तीर।
गंगा जमुना निरमल पाणी सीतल होत सरीर।
बंसी बजावत गावत कान्हो, संग लियो बलबीर।।
मोर मुगट पीताम्बर सोहे कुण्डल झलकत हीर।
मीराके प्रभु गिरधर नागर चरण कंवल पर सीर।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.तीर किनारा
2.बलवीरबलराम
3.झलकतजगमगाते हैं
4.सीरसिर, माथा

व्याख्या :

मीरा कहती है कि हे मेरे मन ! जमुना के किनारे चल, क्योंकि यमुना नदी का भाव श्रीकृष्ण जी से गहरा जुड़ा हुआ है। वह कहती है कि उस जमुना का पानी बहुत निर्मल है और उस निर्मल पानी से शरीर शीतल हो जाता है। भक्ति भावना में डूबकर भी मन और शरीर को शीतलता प्राप्त होती है।

वहाँ बंसी को बजाता हुआ, गाता हुआ, कान्हा मिलेगा। कान्हा वहाँ बलराम के साथ बंसी बजाते हुए घूमते हुये मिलेंगे। उन्होंने मोर मुकुट और पीले वस्त्र धारण किये हैं और सिर पर कुंडल शोभायमान हो रहे हैं। मीरा के प्रभु आप तो गिरधर नागर प्रभु हो। मेरा मस्तक आपके कमल रूपी चरणों पर है।

पद : 3.

Meera Muktavali Ki Pad-Vyakhya Shabdarth Sahit in Hindi

आली, म्हांने लागे वृन्दावन नीको।
घर घर तुलसी ठाकुर पूजा दरसण गोविन्दजी को।।
निरमल नीर बहत जमुना में, भोजन दूध दही को।
रतन सिंघासन आप बिराजैं, मुगट धर्‌यो तुलसी को।।
कुंजन कुंजन फिरति राधिका, सबद सुनन मुरली को।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, बजन बिना नर फीको।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.नीको अच्छा
2.आलीसखी
3.म्हानैमुझे
4.सबदस्वर या शब्द

व्याख्या :

मीरा कहती है कि हे सखी ! मुझे तो वृंदावन बहुत अच्छा लगता है। वहाँ घर में तुलसी और ठाकुर जी की पूजा होती है। तुलसी-ठाकुर की पूजा का संबंध राधा-कृष्ण की पूजा से है। वहाँ गोविंद जी का दर्शन प्राप्त होता है। वृंदावन में यमुना का निर्मल जल बहता है। वहाँ भोजन भी दूध और दही का मिलता है।

इसलिए हे मन ! तू वहां चल। रत्नों के सिंहासन पर वे स्वयं विराजमान है अर्थात् श्रीकृष्ण जी विराजमान है। उन्होंने तुलसी का मुकुट धारण कर रखा है। वहां के कुंज-कुंज में राधिका जी, श्रीकृष्ण जी की मुरली की वाणी सुनते हुये फिर रही हैं। मीरा कहती है कि बिना ईश्वर जी के भजन के मनुष्य का जीवन फीका है। मीरा के तो प्रभु गिरधर नागर है।

पद : 4.

Meera Muktavali Vyakhya with Hard Meanings in Hindi

बसो मेरे नैनन में नंदलाल।
मोहनी मूरत, साँवरी सूरत, नैना बने बिसाल।
अधर सुधारस मुरली राजत, उर बैजंती माल।।
छुद्रघंटिका कटितट सोभित, नूपुर सबद रसाल।
मीरां प्रभु संतन सुखदाई भगत बछल गोपाल।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.बसो बस जाइए
2.अधरहोंठ
3.राजत विराजमान
4.उरहृदय
5.छुद्रछोटी-छोटी
6.नूपुर पाजेब

व्याख्या :

मीरा कहती है कि हे नंदलाल ! मेरे नैनों में बस जाइये। आप की आकृति बहुत ही सुंदर है। आपकी सांवली सी सूरत, आपके सुंदर नैन बहुत ही विशाल हैं। आप के रसमय होठों पर सुंदर मुरली विराजमान है और हृदय पर आपने वैजयंती माला धारण की हुई है।

आपकी कमर पर छोटी-छोटी घंटियाँ बंधी हुई है, जो शोभायमान हो रही है। आपकी पाजेब की ध्वनि बहुत ही मीठी है। मीरा कहती है कि हे प्रभु ! आप अपने भक्तों के लिये बहुत ही सुखदायी हैं। हे मेरे गोपाल ! आप अपने भक्तों से बहुत ही वात्सल्य रखते हैं।

पद : 5.

Meera Muktavali Ke Pad 1-5 Ki Vyakhya in Hindi

माई री ! मैं तो लियो गोविंदो मोल।
कोई कहै छानै, कोई कहै छुपकै, लियो री बजता ढोल।
कोई कहै मुहंघो, कोई कहै सुहंगो, लियो री तराजू तोल।
कोई कहै कारो, कोई कहै गोरो, लियो री अमोलिक मोल।
या ही कूं सब जाणत है, लियो री आँखी खोल।
मीरा कूं प्रभु दरसण दीज्‍यो, पूरब जनम को कोल।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.गोविंदोश्री कृष्ण
2.माई री सामान्य संबोधन
3.छानैछुपकर
4.छुपकैचुपचाप छुपकर
5.बजता ढोलखुलेआम
6.मुहंघोमहंगा (महार्घ)
7.सुहंगोसस्ता (समर्घ)
8.तोल हृदय रूपी तराजू
9.अमोलिक अमूल्य
10.मोल मूल्य

व्याख्या :

मीरा कहती है कि मैंने तो गोविंदा को मोल ले लिया है, क्योंकि मैंने उनका मूल्य दिया है। यदि मैंने श्रीकृष्ण जी को प्राप्त किया है तो बदले में मैंने संसार को छोड़ दिया है। कोई कहता है कि मैंने चुपचाप छुपकर लिया है। कोई कहता है कि ढोल बजाकर लिया है अर्थात् खुलेआम प्रकट रूप में लिया है।

कोई कहे मंहगा लिया है, कोई कहे सस्ता लिया है। पर मैंने तो हृदय रूपी तराजू पर तोल कर लिया है। कोई कहता है काला है, कोई कहता है गोरा है अर्थात् भक्ति का रंग उज्जवल है। मैंने उस अमूल्य को मूल्य देकर लिया है।

सब लोग यही बात जानते हैं कि मैंने आँखें खोल कर लिया है अर्थात् देखभाल करके लिया है। (मीराबाई को पौराणिक गोपी ललिता का अवतार माना गया है।) इसलिए मीरा को प्रभु जी दर्शन दीजिये। आपने पूर्व जन्म में वादा किया था।

इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने “मीरा मुक्तावली” के 1-5 पदों की शब्दार्थ सहित व्याख्या को समझा। फिर मिलते है अगले कुछ पदों के साथ। तब तक आप इन पदों को अच्छे से तैयार अवश्य कर लेवे।


यह भी जरूर पढ़े :


एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “Meera Muktavali मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (1-5)” के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

नोट्स अच्छे लगे हो तो अपने दोस्तों को सोशल मीडिया पर शेयर करना ना भूले I नोट्स पढ़ने और HindiShri पर बने रहने के लिए आपका धन्यवाद..!


Leave a Comment

Ads Blocker Image Powered by Code Help Pro

Ads Blocker Detected!!!

We have detected that you are using extensions to block ads. Please support us by disabling these ads blocker.

Powered By
Best Wordpress Adblock Detecting Plugin | CHP Adblock
error: Content is protected !!