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Meera Muktavali Arth मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (6-10)


Meera Muktavali Arth Edited by Narottamdas Swami in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! जैसाकि हम नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली” के पद पढ़ रहे है। उसी श्रृंखला में आज हम इसके अगले 6-10 पदों की शब्दार्थ सहित व्याख्या समझने जा रहे है :

नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित मीरा मुक्तावली के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
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Meera Muktavali Arth मीरा मुक्तावली के पदों की विस्तृत व्याख्या (6-10)


Narottamdas Swami Sampadit Meera Muktavali Ke 6-10 Pad Arth in Hindi : दोस्तों ! “मीरा मुक्तावली” के 6 से लेकर 10 तक के पदों की व्याख्या निम्नानुसार है :

पद : 6.

Meera Muktavali 6-10 Pad Arth in Hindi

सखी ! म्हारौ कानूड़ो कलेजा री कोर।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहे, कुंडल की झकझोर।।
वृंदावन की कुंज-गलिन में, नाचत नंद किशोर।
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर,चरण कमल चितचोर।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.म्हारौ मेरा
2.कानूडोकान्हा जी, श्रीकृष्ण
3.कोर टुकड़ा
4.कलेजेहृदय
5.झकझोरजगमगाहट, चौंधिंया देने वाला प्रकाश
6.चितचोरमन को चोरने वाला

व्याख्या :

दोस्तों ! मीरा कहती है कि हे सखी ! मेरा श्रीकृष्ण मेरे हृदय का टुकड़ा है। उसने मोर मुकुट धारण कर रखा है। वह पीले वस्त्रों में शोभायमान है। उसके कानों के कुंडल की जगमगाहट ऐसी है कि आँखें ही चौंध जाये। वृंदावन की कुंज गलियों में वे नंद के पुत्र नाच रहे हैं। हे मीरा के प्रभु गिरिधर नागर ! मैं तो आपके कमल रूपी चरणों पर ही आसक्त हूँ। अब आपने मेरे मन को चुरा लिया है।

पद : 7.

Meera Muktavali Arth – Narottamdas Swami in Hindi

हरि मेरे जीवन प्राण अधार।
और आसरो नांही तुम बिन, तीनूं लोक मंझार।।
आप बिना मोहि कछु न सुहावै, निरख्यौ सब संसार।
मीरा कह मैं दासि रावरी, दीज्यो मती बिसार।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.आसरोसहारा
2.मंझारमें
3.सुहावैअच्छा लगना
4.दीजोदेना
5.मती नहीं
6.बिसारभुला देना

व्याख्या :

दोस्तों ! मीरा कह रही है कि हे श्रीकृष्ण जी ! आप मेरे जीवन के प्राणों के आधार हैं। तीनों लोको में मैंने देख लिया है कि आपके बिना मेरा और कोई सहारा नहीं है। आपके बिना मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। मैं सारे संसार को देख चुकी हूँ। मीरा कह रही है कि हे प्रभु जी ! मैं तो आपकी दासी हूँ। आप मुझे भुला मत देना।

पद : 8.

Meera Muktavali Ki Pad-Arth Shabdarth Sahit in Hindi

राम ! मोरी बांहड़ली जी गहो।
या भवसागर मंझधार में थे ही निभावण हो।।
म्हाने औगण घणा रहै प्रभुजी !थे ही सहो तो सहो।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी, लाज बिरद की बहो।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.रामश्रीकृष्ण जी
2.मोरीमेरी
3.गहोग्रहण कर लीजिए, पकड़ लीजिए
4.भवसागरसंसार रूपी समुद्र
5.मंझधारमध्य की धारा
6.औगणअवगुण
7.अविनाशीजिसका नाश नहीं हो
8.विरद कीर्ति, प्रसिद्धि
9.वहोधारण करो

व्याख्या :

मीरा कह रही है कि हे श्रीकृष्ण जी ! मेरी बाँह पकड़ लीजिए। मुझे सहारा दे दीजिए। इस संसार रूपी समुद्र की मध्य की धारा में, मैं फँस गई हूँ। अब आप ही निभाने वाले हो। संसार रूपी सागर की मझधार से आप ही निकाल सकते हो। मीरा अपनी विनम्रता को प्रकट करती हुई कहती है कि मुझमें अवगुण बहुत है मेरे प्रभु जी ! अब केवल आप ही सहन कर सकते हो। मीरा के प्रभु आप तो अविनाशी हो। आप मेरा भी उद्धार कर दीजिए।

पद : 9.

Meera Muktavali Arth with Hard Meanings in Hindi

तनक हरि ! चितवौ जी मोरी ओर।
हम चितवत, तुम चितवत नाहीं, दिल के बड़े कठोर।।
मेरे आसा चितनि तुम्हरी, और न दूजी ठौर।
तुमसे हमकूं कब रे मिलेंगे, हम-सी लाख करोर।।
ऊभी-ठाड़ी अरज करत हूं, अरज करत भै भोर।
मीरा के प्रभु हरि अबिनासी, देस्यूं प्राण अंकोर।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.तनकथोड़ा सा
2.चितवोदेखना
3.ओरतरफ
4.चितवतदेखना
5.ठौरस्थान
6.करोरकरोड़
7.देस्यूंकर दूँ
8.अंकोरन्योछावर कर दूँ

व्याख्या :

मीरा कहती है कि हे प्रभु ! आप मेरी और थोड़ा देख तो लीजिए। हम तो आपकी ही तरफ देखती रहती हैं। आप हमारी तरफ नहीं देखते हो। आप दिल के बहुत कठोर हो। आप मेरी तरफ कब देखोगे। मेरी बस यही आशा है। अब दूसरा मेरे लिए कोई स्थान नहीं है। आपके जैसे हमारे लिये और कोई नहीं है।

हे प्रभु जी ! हमारे जैसी दासी तो आपके लिए करोड़ों है, लेकिन हमारे लिए केवल आप ही हो। मैं खड़ी हुई आपसे प्रार्थना कर रही हूँ और प्रार्थना करते करते भोर हो गई है अर्थात् सुबह हो गई है। हे मीरा के प्रभु अविनाशी ! मैं आप पर अपने प्राण न्योछावर करती हूँ। अब तो मेरी मुक्ति कीजिए। अपने चरणों में मुझे स्थान दीजिए।

पद : 10.

Meera Muktavali Ke Pad 6-10 Ki Vyakhya in Hindi

स्याम! मने चाकर राखो जी,
गिरधारिलाल! चाकर राखो जी।।
चाकर रह सूँ, बाग लगा सूँ, नित उठ दरसण पासूँ।
बिंद्राबन की कुंज-गलिन में, तेरी लीला गासूँ।।
चाकरी में दरसण पाऊँ, सुमिरन पाऊँ खरची।
भाव-भगति जागीरी पाऊँ, तीनूँ बाताँ सरसी।।॥
मोर मुगट पीतांबर सोहे, गल बैजंती माला।
बिंद्राबन में धेनु चरावे, मोहन मुरली वाला।।

हरे हरे नित बाग लगाऊँ, बिच-बिच राखूँ क्यारी।
साँवरिया के दरसण पाऊँ, पहर कुसुम्भी सारी।।
जोगी आया जोग करण कूँ, तप करणे संन्यासी।
हरि भजन कूँ साधु आयो, बिंद्राबन के बासी।।
मीरा के प्रभु गहिर गंभीरा, सदा रहो जी धीरा।
आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें, जमनाजी के तीरा।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.मनैमुझे
2.चाकरनौकर
3.पासूँपाऊंगी
4.गासूँगाऊंगी
5.चाकरीनौकरी
6.खरचीहाथ खर्चा
7.सरसीसरस
8.बाताँ बात
9.वन्नवन
10.बनाऊँलगाऊँगी
11.सारीसाड़ी
12.कुसुंभीकुसुमी रंग
13.करणकरने के लिये
14.गहिर गंभीरागंभीर स्वभाव वाले
15.धीराधैर्य रखना
16.देहैदीजिए
17.तीराकिनारे

व्याख्या :

मीरा कह रही है कि मुझे नौकर बना कर रख लो। जी, मैं आपकी नौकर बन कर रहूँगी। आप के बाग बगीचे को लगाऊँगी। रोज उठकर आपके नित्य दर्शन पाऊँगी। वृंदावन की कुंज गलियों में आपकी लीला का गायन करुँगी और चाकर बनकर चाकरी में आपके दर्शन पाऊँगी और हाथ-खर्ची तो मैं आपके सुमिरन के रूप में पा जाऊँगी। जागीरी के रूप में भाव और भक्ति पाऊँगी। और यह तीनों ही बातें मेरे लिये सरस रहेंगी।

आपने मोर मुकुट और पीतांबर वस्त्र धारण किये हुये हैं। गले में वैजयंती माला शोभायमान हो रही है। वृंदावन में गाये चराते हुये मोहन मुरली वाले घूम रहे है। हे श्रीकृष्ण जी ! मैं आपके लिये नित्य हरे-हरे वन लगाऊँगी और बीच-बीच में क्यारियाँ बनाऊँगी। और कुसुमी रंग की साड़ी पहनकर मेरे साँवरिया के नित्य दर्शन पाऊँगी।

मीरा कहती है कि जोग करने के लिये जोगी आया, तप करने को सन्यासी और भजन करने के लिये साधु आया। यह सब वृंदावन में बसते हैं। योगी यहाँ योग करते हैं और सन्यासी तप करते हैं। हरि भजन करने यहाँ साधु आते हैं। ये सब वृंदावन के वासी हैं।

मीराबाई कहती है कि मीरा के प्रभु गंभीर स्वभाव वाले हैं और सदा धैर्य धारण करते हैं। इसलिए मीरा स्वयं से कहती है कि अपने मन में धैर्य धारण करो, प्रभु तुम्हें मिलेंगे। हे प्रभु जी ! यमुना जी के तीर पर मुझे अब आधी रात दर्शन दीजिए।

इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने “मीरा मुक्तावली” के 6-10 पदों का शब्दार्थ सहित अर्थ समझा। अगले अध्याय में फिर मिलते है अगले पदों के साथ।


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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “Meera Muktavali Arth मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (6-10)” के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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