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Kamayani Ke Chinta Sarg Ki Vyakhya | कामायनी का चिंता सर्ग भाग – 6


नमस्कार दोस्तों ! हमने पिछले नोट्स में कामायनी के कुछ महत्वपूर्ण पदों का अध्ययन किया था। आज हम Kamayani Ke Chinta Sarg Ki Vyakhya | कामायनी के चिंता सर्ग की पद संख्या 33-40 तक की विस्तृत व्याख्या करने जा रहे है। तो चलिए ध्यान से समझने की कोशिश कीजिये :

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Kamayani | कामायनी के चिंता सर्ग के पदों की व्याख्या


Jaishankar Prasad Rachit Kamayani Ke Chinta Sarg Ki Vyakhya in Hindi : कामायनी महाकाव्य के चिंता सर्ग के 33-40 पदों की विस्तृत व्याख्या इसप्रकार से है :

पद : 33.

Kamayani Ke Chinta Sarg Ka Arth in Hindi

भरी वासना-सरिता का वह, कैसा था मदमत्त प्रवाह,
प्रलय-जलधि में संगम जिसका, देख हृदय था उठा कराह।

अर्थ :

मनु कहते हैं कि देवताओं के जीवन में उमड़ती हुई वासना रूपी नदी कुछ ऐसे मतवाले और तीव्र वेग के साथ प्रवाहित हुई कि अंत में यह नदी विनाश के समुद्र में ही लीन हो गई। कहने का तात्पर्य यह है कि देवताओं के घोर भोग-विलास के कारण ही यह विश्व जल-प्रलय हुआ और समस्त देवजाति नष्ट हो गई तथा उनके इस अंत से अब मनु का ह्रदय कराह उठा है।



पद : 34.

Kamayani Mahakavya Ke Pahle Chinta Sarg Ki Vyakhya in hindi

चिर-किशोर-वय, नित्य विलासी, सुरभित जिससे रहा दिगंत,
आज तिरोहित हुआ कहाँ वह, मधु से पूर्ण अनंत वसंत?

अर्थ :

मनु कहते हैं कि जीवन के वे मधुर दिन कहाँ चले गये, जब युवावस्था की ही अनुभूति होती थी। नित्य ही भोग विलास और वासना में मग्न रहने के सुअवसर मिलते थे। और जीवन में हमेशा ही बसंत ऋतु छाई रहती थी। अर्थात् जीवन मादकतापूर्ण था। ऐसा जीवन अब कहाँ चला गया। वो भावुकतापूर्ण बसंत ऋतु न जाने कहाँ चली गयी।


पद : 35.

Kamayani ke 33 to 40 Pado ka Arth Bhaav in Hindi

कुसुमित कुंजों में वे पुलकित, प्रेमालिंगन हुए विलीन,
मौन हुई हैं मूर्छित तानें, और न सुन पडती अब बीन।

अर्थ :

मनु कह रहे हैं कि फूलों से लदे लता के मण्डपों में होने वाले आलिंगन के दृश्य भी अब कहीं दिखाई नहीं देते हैं। स्वर लहरी भी कहीं सुनाई नहीं देती और वीणा भी अब शांत है।



पद : 36.

Kamayani Ke Pratham Chinta Sarg Ke 33 to 40 Pado Ki Vyakhya

अब न कपोलों पर छाया-सी, पडती मुख की सुरभित भाप
भुज-मूलों में शिथिल वसन की, व्यस्त न होती है अब माप।

अर्थ :

मनु कहते हैं कि इस जल-प्रलय के कारण देवताओं और देव बालाओं को न तो चुम्बन सुख ही प्राप्त होता है और न ही वे प्रेम रूप से प्रेमालिंगन ही कर पाते है। पहले तो इस जल-प्लावन के पूर्व देवता उन रूपवती नारीयों के कपोलों का चुम्बन लेते थे, तब उन्हें उनके शरीर से निकलने वाली फूलों की मधुर सुगंध का आनंद प्राप्त होता था।

साथ ही वासना के आवेग में, जब देवबालाएँ देवताओं का आलिंगन करती थी, तब उनके वस्त्र अस्त-व्यस्त होकर देवताओं के बगलों तक आकर बिखर जाते थे। लेकिन अब ये सब दृश्य समाप्त हो चुके है।


पद : 37.

Kamayani Mahakavya ka Pahla Chinta Sarg 33-40 Pad in hindi

कंकण क्वणित, रणित नूपुर थे, हिलते थे छाती पर हार,
मुखरित था कलरव, गीतों में, स्वर लय का होता अभिसार।

अर्थ :

मनु कहते है कि जब देवबालाएँ देवताओं का आलिंगन करती थी। तब उनके कंगन मधुर ध्वनि करते थे और घुंघरूं बज उठते थे। उनकी छाती पर हार हिलने लगते थे और चारों तरफ संगीत की मधुर ध्वनि गूंजने लगती थी और इन गीतों में स्वर एवं लय परस्पर मिले रहते थे।



पद : 38.

Jaishankar Prasad Ki Kamayani Mahakavya Ki Vyakhya in Hindi

सौरभ से दिगंत पूरित था, अंतरिक्ष आलोक-अधीर,
सब में एक अचेतन गति थी, जिसमें पिछड़ा रहे समीर।

अर्थ :

देवताओं के भोग-विलास का उल्लेख करते हुए मनु कह रहे है कि उस समय सभी दिशाये सुगंध से परिपूर्ण रहती थी और आकाश भी पूरी तरह से प्रकाशमय रहता था। साथ ही देवताओं में एक ऐसी अचेतन गति विद्यमान थी, जो पवन के वेग से भी तेज थी। अर्थात् देवताओं के भोग विलास की गति वायु के वेग को भी पीछे छोड़ रही थी। देवता निरंतर भोग-विलास में लीन रहने के कारण अपना होश खो बैठे थे और उन्हें भविष्य का बिल्कुल भी ख्याल नहीं रहा।


पद : 39.

Kamayani Mahakavya Ke Chinta Sarg Ki Vyakhya or Arth in hindi

वह अनंग-पीड़ा-अनुभव-सा, अंग-भंगियों का नर्तन,
मधुकर के मरंद-उत्सव-सा, मदिर भाव से आवर्तन।

अर्थ :

मनु कहते है कि जब देवबालाएँ अपने विविध अंगो को मोड़कर कई तरह के हाव-भाव के साथ नृत्य करती थी तो ऐसा लगता था, जैसे उन्हें काम पीड़ा की अनुभूति हो रही है। उनकी इन अंग-चेष्टाओं को देखकर देवता भी उनके यौवन-रस का पान करने में रत हो जाया करते थे।

यहाँ देवताओं की तुलना भँवरे से की गयी है। जिस तरह एक भंवरा एक फूल से दूसरे फल का रस लेता फिरता है, उसी तरह देवता भी रसपान करने में लगे रहते थे। प्रस्तुत पंक्तियों में देवताओं की तीव्र भोग-विलास की भावना को अभिव्यक्त किया गया है।



पद : 40.

Kamayani Ke Chinta Sarg Ki Vyakhya Bhaav Arth in hindi

सुरा सुरभिमय बदन अरुण, वे नयन भरे आलस अनुराग़।
कल कपोल था जहाँ बिछलता, कल्पवृक्ष का पीत पराग।

अर्थ :

मनु बताते है कि देवबालाओं के मुख से हमेशा शराब की सुगंध निकला करती थी। और रात्रि में देर तक जागने के कारण उनके आलस्य और प्रेम से भरे नेत्र हमेशा लाल रहते थे। उनके सुन्दर गालों से वासना झलकती थी और उनमें मादकता भी अधिक बढ़ गयी थी।

अत्यधिक चुम्बनों की वजह से उनके लाल गाल पीले पड़ गये थे। इतना सब होने के बाद भी उनकी इस पीली आभा के आगे कल्प वृक्ष के फूलों का पीला पराग भी तुच्छ प्रतीत होता था।


इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने Kamayani Ke Chinta Sarg Ki Vyakhya | कामायनी के चिंता सर्ग भाग – 6 की विस्तृत व्याख्या बता दी है। उम्मीद है कि आपको सभी पद अच्छे से समझ में आ गए होंगे।

ये भी अच्छे से समझे :


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