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Vinay Patrika Pad 151-152 विनय पत्रिका के पदों की व्याख्या
Vinay Patrika Pad 151-152 Vyakhya by Tulsidas in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! श्री गोस्वामी तुलसीदास रचित “विनय-पत्रिका” की पद श्रृंखला में आज हम अगले 151-152वें पदों की व्याख्या को समझते है। आप इन पदों को ध्यान से समझकर अच्छे से तैयार अवश्य करते चले। ये बहुत ही महत्वपूर्ण पद है।
श्रीगोस्वामी तुलसीदास कृत “विनय-पत्रिका” के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
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Vinay Patrika Ki Vyakhya विनय पत्रिका के पद संख्या 151 की व्याख्या
Tulsidas Krit Vinay Patrika Ke Pad 151 Ki Vyakhya in Hindi : दोस्तों ! विनय पत्रिका के 151वें पद की व्याख्या इसप्रकार है :
#पद :
Vinay Patrika Pad Sankhya 151 Ki Vyakhya in Hindi
जो पै चेराई रामकी करतो न लजातो।
तौ तू दाम कुदाम ज्यों कर-कर न बिकातो।।1.।।जपत जीह रघुनाथको नाम नहिं अलसातो।
बाजीगरके सूम ज्यों खल खेह न खातो।।2.।।जौ तू मन ! मेरे कहे राम-नाम कमाते।
सीतापति सन्मुख सुखी सब ठाँव समातो।।3.।।राम सोहाते तोहिं जौ तू सबहिं सोहातो।
काल करम कुल कारनी कोऊ न कोहातो।।4.।।राम-नाम अनुरागही जिय जो रतिआतो।
स्वारथ-परमारथ-पथी तोहिं सब पतिआतो।।5.।।
व्याख्या :
तुलसीदास जी कहते हैं कि अरे तू रामचंद्र जी की गुलामी करने में शर्म नहीं करता तो तू खरा दाम होकर, खोटे दाम की तरह हाथों-हाथ ना बिकता। तात्पर्य यह है कि तू परमात्मा का अंश है, पर अपने स्वरूप को भूला देने और मायाहीन होने से अनेक योनियों से टकराता फिरता है। कहीं भी तेरा आदर नहीं होता।
तुलसीदास जी कहते हैं कि यदि तू जीभ से श्रीरघुनाथ जी का नाम लेने में आलस्य नहीं करता तो आज तुझे बाजीगर के सूम के समान धूल नहीं फाकनी पड़ती अर्थात् जिस प्रकार बाजीगर से खेल देखने के बाद भी कोई कंजूस कुछ नहीं देता तो उसके नाम से काठ के पुतलों के मुँह में धूल डालकर गालियां सुनाता है। उसी प्रकार यदि तू भगवान का नाम लेने में कंजूसी नहीं करता तो तुझे गालियां नहीं खानी पड़ती। तेरी यह दुर्दशा नहीं होती।
आगे तुलसीदास जी कहते हैं कि अरे मन तू मेरे कहने से श्रीराम नाम रूपी धन कमाता तो श्रीरघुनाथ जी तुझे अपनी शरण में ले लेते और तू सुखी होता एवं सर्वत्र तेरा आदर होता। लोक भी बन जाता और परलोक भी बन जाता।
तुलसीदास जी कहते हैं कि जो तुझे श्रीराम जी अच्छे लगे होते तो तू भी सबको अच्छा लगता और काल, कर्म आदि जितने भी इस जीव के प्रेरक हैं, वे सब क्रोध नहीं करते और तेरे अनुकूल हो जाते।
आगे तुलसीदास जी कहते हैं कि यदि श्रीराम नाम से तू प्रेम करता, लगन लगाता तो स्वार्थ और परमार्थ के बटोही तुझ पर विश्वास करते।
#पद :
Vinay Patrika Ke Pad 151 Ki Bhavarth Sahit Vyakhya in Hindi
सेइ साधु सुनि समुझि कै पर-पीर पिरातो।
जनम कोटिको कांदलो हृद-ह्रदय थिरातो।।6.।।भव-मग अगम अनंत है, बिनु श्रमहि सिरातो।
महिमा उलटे नामकी मुनि कियो किरातो।।7.।।अमर-अगम तनु पाइ सो जड़ जाय न जातो।
होतो मंगल-मूल तू, अनुकूल बिधातो।।8.।।जो मन,प्रीति-प्रतीतिसों राम-नामहिं रातो।
तुलसी रामप्रसादसों तिहुँताप न तातो।।9.।।
व्याख्या :
आगे तुलसीदास जी कहते हैं कि यदि तू संतों की सेवा करता और दूसरों की पीड़ा सुन-समझ कर दुखी होता तो तेरे देह रुपी तालाब में अनेक जन्मों का जमा मेल नीचे बैठ जाता और तेरा अंतःकरण निर्मल हो जाता।
इस संसार का मार्ग अगम्य है। इसपर चलना बहुत दुष्कर है, किंतु यदि तू यह उत्तम आचरण करता हुआ इस पर चलता तो तू बिना श्रम के ही उसे पार कर जाता। क्योंकि श्रीराम जी का उल्टा नाम लेने की महिमा ने वाल्मीकि को की मुनि बना दिया था। कहने का तात्पर्य यह है कि जब उल्टे नाम का यह प्रभाव है तो सीधा नाम जपने से क्या सिद्ध नहीं हो सकता।
अरे जड तेरा यह जो शरीर है, वह देवताओं को भी दुर्लभ है। यह यूं ही नहीं चला जाता। तू कल्याण का मूल हो जाता है अर्थात ब्रह्म अवस्थाओं को पहुंच जाता और देव भी तुझ पर कृपा करता ।
अरे मन तू यदि प्रेम और विश्वास से राम नाम में मन लगा लेता तो राम जी की कृपा से तीनों तापों में ना जलता। अर्थात् संसार की बाधाओं से बच जाता।
Vinay Patrika Ki Vyakhya विनय पत्रिका के पद संख्या 152 की व्याख्या
Tulsidas Krit Vinay Patrika Ke Pad 152 Ki Vyakhya in Hindi : दोस्तों ! विनय पत्रिका के 150वें पद की व्याख्या इसप्रकार है :
#पद :
Tulsidas Ji Rachit Vinay Patrika Ke Pad 152 Ki Arth Sahit Vyakhya in Hindi
राम भलाई आपनी भल कियो न काको।
जुग जुग जानकिनाथको जग जागत साको।।1.।।ब्रह्मादिक बिनती करी कहि दुख बसुधाको।
रबिकुल-कैरव-चंद भो आनंद-सुधाको।।2.।।कौसिक गरत तुषार ज्यों तकि तेज तियाको।
प्रभु अनहित हित को दियो फल कोप कृपाको।।3.।।हरयो पाप आप जाइकै संताप सिलाको।
सोच-मगन काढयो सही साहिब मिथिलाको।।4.।।रोष-रासि भृगुपति धनी अहमिति ममताको।
चितवत भाजन करि लियो उपसम समताको।।5.।।
व्याख्या :
तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीराम जी ने अपने भले स्वभाव से किसका भला नहीं किया है अर्थात् श्रीराम जी ने सबका भला किया है। युग-युग से जानकी रमण जी का यश विश्व में प्रसिद्ध है। उन्होंने भलाई से संसार में सबका भला किया है।
ब्रह्मादिक देवताओं ने पृथ्वी का दु:ख देखकर विनय की थी, इसलिए पृथ्वी का भार सहने के लिये और राक्षसों को मारने के लिये, सूर्यवंश रूपी कुमुदिनी को प्रफुल्लित करने वाले और अमृता को आनंद देने वाले श्रीरामचंद्र जी प्रकट हुये।
आगे तुलसीदास जी कहते हैं कि मुनि विश्वामित्र ताड़का का तेज देखकर गले जाते थे। इसलिए प्रभु ने ताड़का को मारकर शत्रु को मित्र का सा फल दिया और क्रोध के बदले कृपा की। तात्पर्य यह है कि दुष्ट ताड़का को स्वर्ग भेजकर आपने कृपा की।
आगे तुलसीदास जी कहते हैं कि आपने स्वयं ही जाकर अहिल्या का ताप संताप दूर कर दिया। उसे दिव्य देह प्रदान कर पतिलोक में भेज दिया और मिथिला के महाराज जनक को शोक सागर में डूबते हुये निकाल लिये अर्थात् धनुष को तोड़कर उनकी प्रतिज्ञा पूरी कर दी।
तुलसीदास जी कहते हैं कि परशुराम जी क्रोध के भंडार, अहंकार और ममत्व के धनी थे।और उन्हें भी आपने देखते ही शांति और समता का पात्र बना दिया अर्थात् वे क्रोधी स्वभाव से शांत और अहंकारी से समदृष्टा बन गये। यह सब आपके शील स्वभाव का ही प्रभाव है।
#पद :
Vinay Patrika Pad Sankhya 152 Bhavarth Sahit Vyakhya in Hindi
मुदित मानि आयसु चले बन मातु-पिताको।
धरम-धुरंधर धीरधुर गुन-सील-जिता को ?।।6.।।गुह गरीब गतग्याति हूँ जेहि जिउ न भखा को ?
पायो पावन प्रेम तें सनमान सखाको।।7.।।सद्गति सबरी गीधकी सादर करता को ?
सोच-सींव सुग्रीवके संकट-हरता को ?।।8.।।राखि बिभीषणको सकै अस काल-गहा को ?
आज बिराजत राज है दसकंठ जहाँको।।9.।।बालिस बासी अवधको बूझिये न खाको।
सो पाँवर पहुंचो तहाँ जहँ मुनि-मन थाको।।10.।।
व्याख्या :
आगे तुलसीदास जी कहते हैं कि माता कैकेयी और पिता की आज्ञा मानकर प्रसन्न चित्त से आप वन को चले गये। ऐसा भला धर्म-धुरंधरऔर धैर्य-पुंगव तथा सदगुण एवं शील को जीतने वाला और दूसरा कोई नहीं है।
तुलसीदास जी कहते हैं कि जिसकी जाति का कोई भी ठिकाना नहीं, जिसने सब प्रकार के जीवो का भक्षण किया, जो गरीब था, ऐसे गुहनिषाद ने भी इस श्रीरघुनाथ जी से पवित्र प्रेम के कारण सखा जैसा आदर प्राप्त किया।
आगे वे कहते हैं कि सबरी और जटायु को मोक्ष भी तो आपने ही दिया है। महान दुखी सुग्रीव का संकट हरने वाला भी भला कौन है अर्थात् वह श्रीरघुनाथ जी ही हैं।
ऐसा कौन काल का ग्रास था, जो विभीषण को अपनी शरण में रखता। रावण के राज्य में आज भी विभीषण राजा बना बैठा है। यह सब कृपा श्रीरघुनाथ जी की है, अन्यथा जो रावण से बहिष्कृत हुये विभीषण को अपनी शरण में रखता।
आगे तुलसीदास जी कहते हैं कि अयोध्या का रहने वाला धोबी, जिसमें खाक बराबर की भी बुद्धि नहीं थी, जिसे कोई धूल के बराबर भी नहीं समझता था। वह पापी भी वहां पहुंच गया, जहां पहुंचने में मुनियों का मन थक जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि जिस परमधाम के संबंध में बड़े-बड़े मुनि विचार तक नहीं कर सकते, वहां वह धोबी शरीर सहित चला गया।
#पद :
Vinay Patrika Pad Sankhya 152 Vyakhya – Tulsidas in Hindi
गति न लहै राम-नामसों बिधि सो सिरजा को ?
सुमिरत कहत प्रचारि कै बल्ल्भ गिरिजको।।11.।।अकनि अजामिलकी कथा सानंद न भा को।
नाम लेत कलिकालहू हरिपुरहिं न गा को ?।।12.।।राम-नाम-महिमा करै काम-भूरुह आको।
साखी बेद पुरान हैं तुलसी-तन ताको।।13.।।
व्याख्या :
आगे तुलसीदास जी कहते हैं कि ब्रह्मा ने ऐसा कौन बनाया है, जो श्रीराम-नाम के प्रभाव से मुक्त है। जीव मात्र श्रीराम-नाम से मुक्त हो सकते हैं। पार्वती वल्लभ शिवजी भी इस श्रीराम-नाम का स्वयं स्मरण करते हैं और दूसरों को सुना-सुना कर उसका प्रचार किया करते हैं।
आगे तुलसीदास जी कहते हैं कि अजामिल की कथा सुनकर कौन प्रसन्न नहीं हुआ और श्रीराम का नाम स्मरण करके इस कलिकाल में कौन ऐसा है, जो विष्णुलोक नहीं गया हो।
अंत में तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीराम-नाम का महत्व अब आकोवा को भी कल्पवृक्ष कर सकता है। इस बात के प्रमाण वेद और पुराण हैं। इस पर भी यदि विश्वास ना हो तो तुलसी की ओर देखो अर्थात् मैं महान नीच था, पर श्रीराम-नाम के प्रभाव से ही आज मैं श्रीरामभक्तों में गिना जाता हूं।
दोस्तों ! इसप्रकार आज हमने Vinay Patrika Pad 151-152 | विनय पत्रिका के 151-152वें पदों की विस्तृत व्याख्या समझी। उम्मीद है कि आप इन पदों को अच्छे से समझ पा रहे होंगे। अपना धैर्य और सहयोग बनाये रखे।
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एक गुजारिश :
दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “Vinay Patrika Pad 151-152 विनय पत्रिका के पदों की व्याख्या“ के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I
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