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Ghananand Kavitt Saar घनानन्द कवित्त के पदों की व्याख्या


Ghananand Kavitt Saar Edited by Vishwanath Prasad Mishra in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम आचार्य विश्वनाथप्रसाद मिश्र द्वारा सम्पादित “घनानन्द कवित्त” के अगले 18 से लेकर 21 तक के पदों का सार समझने वाले है। तो चलिए बिना देरी किये शुरू करते है :

आचार्य विश्वनाथप्रसाद मिश्र द्वारा सम्पादित घनानन्द कवित्त के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
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Ghananand Kavitt घनानन्द कवित्त के पदों की विस्तृत व्याख्या (18-21)


Vishwanath Prasad Mishra Sampadit Ghananand Kavitt Ke Pad 18-21 Saar in Hindi : दोस्तों ! घनानंद कवित्त के 18-21 पदों का भावार्थ सहित सार इसप्रकार है :

पद : 18.

Ghananand Kavitt Ke Pad 18 Ki Vyakhya Saar Sahit in Hindi

जेतो घट सोधौं पै न पऊँ कहौं आहि सो धौं
को घौ जीव जारै अटपटी गति डाह की।
घूम कों न घरै, गात सीरी परै ज्यों ज्यों जरै
ढरै नैन-नीर वीर हरै मति आह की।
जतन बुझे है सब जाकी झर आगे अत्र
कबहूँ न दबै भरो भभक उमाह की।
जब ते निहारै घनानंद सुजान प्यारे
तब ते अनोखी आग लागि रही चाह की।।

व्याख्या :

दोस्तों ! इस कवित्त में पूर्वानूराग का वर्णन किया गया है। प्रिय के दर्शन से रात की उत्पत्ति है। प्रत्यक्ष दर्शन से प्रेम उत्पन्न हुआ है। दर्शन के समय विरह की अग्नि की क्या स्थिति है, उसका वर्णन है। विरहाग्नि की प्रचंडता और विलक्षणता का वर्णन है।

दोस्तों ! जब से घनानंद ने प्रिय सुजान को देखा है, तब से चाह को एक अनोखी आग लगी है। उसका अनोखापन यह है कि जितना भी उसको शरीर में खोजती हूँ, वह मिलती ही नहीं है। उसका पता ही नहीं चल पाता कि वह कहाँ है ? जब उस अग्नि का पता ही नहीं है तो फिर मेरे जी को कौन जला रहा है ?

घनानन्द कवित्त पद व्याख्या :

उसका जलाना भी कोई साधारण नहीं है। जलन की स्थिति बड़ी बेढंगी है। सामान्यतया जैसी होती है, उससे अलग है। बहुत बढ़-चढ़ कर है। इस अग्नि में धुँआ नहीं होता है। जहाँ से धुँआ आता है, वहाँ से आग के होने का पता चल जाता है। ऐसी भी आग होती है, जिसका धुँआ नहीं होता, पर वह जहाँ होती है, वहाँ गर्मी होती है। यह आग तो अनोखी है, बड़ी बेढंगी है। इस आग से शरीर ज्यों-ज्यो जलता है, त्यों-त्यों ठंडा पड़ता है।

यदि कहीं कुछ उष्णता होती भी है तो उसे शीतल करने के लिए नेत्रों से नीर प्रवाहित होता है। इसकी आह नहीं करने का परिणाम यह है कि श्वाँस की वायु से भी आग प्रज्वलित होने की संभावना होती है। जहाँ वह सुलगती दिखती है, वहाँ उसके अस्तित्व का पता चल जाता है। लेकिन वह भी नहीं हो पा रहा।

विलक्षणता तो यह है कि उसको शांत करने के लिये जितने उपचार किये जाते हैं, वे उसकी तीव्र ज्वाला के कारण बुझ जाते हैं। अब यह अग्नि इतनी प्रचंड हो गई है कि उत्साह से भरी हुई उसकी भभक भी दबती नहीं है। यह प्रचंड से प्रचंडतम होती चली जाती है।

पद : 19.

Ghananand Kavitt Ke Pad 19 Ka Saar in Hindi

आखें जौं न देखै तो नहा है कछु देखति ये
ऐसी दुखहाइनि की दसा आय देखियै।
प्रानन के प्यारे जान रूप उजियारे बिना
मिलान तिहारे इन्हैं कौन लेख लेखियै।
नीर-न्यारे मीन औ चकोर चंदहीनहुँ ते
अति ही अधीन दीन गति मति पेखियै।
हौं जो घनानन्द ढरारे रसमरै भारे
चातिक विचारे सौं न चूकनि परेखियै।।

व्याख्या :

दोस्तों ! इस छंद में विरहणी के नेत्र और प्राण, विरह से अधिक व्याकुल है। उसकी चातक वृत्ति है। यदि प्रिय किसी प्रकार के कौतूहल से ही आकृष्ट होता है तो उससे यह कहना कि विरहिणी को देखने आप आइए या मत आइए, पर आंखों की यह स्थिति अवश्य देख जाइए कि आपको ना देखकर यह कुछ देखती ही नहीं। कौतूहल की शांति के लिये उनकी दशा को तो देख जाइए। आंखें अपने प्रिय को ना देखकर निरर्थक हो गई है।

उनकी व्यर्थता की यह स्थिति भी विलक्षण कौतूहल का दृश्य है। प्रिय ने अत्यंत दयनीय स्थिति या तो मीन की देखी होगी या चकोरी की। यदि उन स्थितियों से भी बढ़कर दयनीय स्थिति देखनी हो तो यहाँ देखी जा सकती है। विरहणी के अपराध के कारण आप में परामुखता जगी है तो उसका परित्याग ही श्रेयस्कर होगा।

घनानन्द कवित्त पद व्याख्या :

दोस्तों ! घनानंद कहते हैं कि हे प्राणों के प्रिय, सौंदर्य का प्रकाश करने वाले सुजान ! बिना आपको देखे, ये आंखें कुछ भी नहीं देख पाती हैं। आपको ना देखकर यह कुछ भी नहीं देखती हैं। ऐसी दुखियाँ आंखों की दशा ही आप आकर देख ले। आपने ऐसी विलक्षण आंखें नहीं देखी होगी। आपके मिलन के बिना यह किसी भी गिनती में नहीं है। इनका होना या ना होना बराबर है।

इनकी विवशता और दीनता मीन और चकोर से कहीं अधिक है। केवल आपको ही चाहने के कारण मेरी चातक वृति है। आप तो आनंद के घन है, प्रवणशील है, बरसने वाले हैं, अत्यंत रसमय है। मुझ बेचारे चातक को इस प्रकार भूलकर मेरी परीक्षा मत लीजिए। मेरी भूलों का विचार ना करके उस पर द्रवीभूत हो जाइए, बुरा मत मानिए।

पद : 20.

Ghananand Kavitt Ke Pad 20 Ki Vyakhya Saar Sahit in Hindi

जहाँ ते पधारे मेरे नैननि हो पाँव घारे
वारे ये विचारे प्राण पैड पैड पै मनौ।
लातूर न होह हा हा नेकु फेंट छोरि बैठो
मोहिं वा बिसासो को है ब्यौरों बूझिबो घनौ।
है निरदई कों हमारौं सुघि कैसे आई
कौन विधि दीनौ पाती दीन जानि कै भनौं।
झूठ की त*ई छाक्यों त्यों हित-कचाई पाक्यौ
तकै गुनगुन घनानंद कहा गनौ।।

व्याख्या :

दोस्तों ! इस छंद में घनानंद लिखते हैं कि प्रिय के यहाँ से कभी कोई दूत नहीं आता था, पर इस बार आया है। वह केवल मौखिक संदेश ही लेकर नहीं आया है, बल्कि प्रिय ने उसे पत्रिका भी स्वयं लिखकर दी है। जो इतना निष्ठुर था, किसी भी प्रकार से प्रेमी की खोज-खबर नहीं लेता था, उसने दूत भेजा और हस्तलिखित पत्रिका देकर भेजा। इस पर प्रेमी को आश्चर्य है।

वह प्रिय के इस दूत को तुरंत लौटने देना नहीं चाहता। उसकी उत्सुकता, उसका कौतूहल इतना बढ़ा है, उसे इतनी अधिक जिज्ञासा हो गई है कि वह दूत से इसका पूरा विवरण चाहता है कि उस निर्दय प्रिय को प्रेमी की सुध कैसे आयी ? उसने पत्र लिखने की ओर ध्यान भी कैसे दिया ? जो अपने वादों को पुरा ना करता हो, जो प्रेम करने में ही कच्चा हो, उसका इस प्रकार का कार्य आश्चर्य पैदा करता है। इसी से प्रेमी पूरा विवरण चाह रहा है।

दोस्तों ! कवि कहता है कि प्रिय जहाँ-जहाँ से गये, मेरे नेत्रों पर पैर रखकर ही गये अर्थात् मेरे नेत्र निरंतर उनका जाना एकटक देखते रहे। मानो मेरे बेचारे प्राण कदम-कदम पर न्योछावर हो गये। हे दूत ! तुम हड़बड़ी मत करो, थोड़ा आराम से बैठो। मुझे उस विश्वासघाती का बहुत सा हाल पूछना है। उस निष्ठुर को मेरा स्मरण कैसे आया ?

घनानन्द कवित्त पद व्याख्या :

वह तो झूठ की सच्चाई से भरा हुआ है। यदि उसमें किसी बात की सच्चाई है तो वह झूठ की है। इसी प्रकार यदि वह किसी बात में पक्का है तो प्रेम के कच्चेपन में पक्का है। मैं आपसे जिस प्रिय के बारे में जिज्ञासा कर रहा हूँ, वह मुझे बहुत प्रिय थे। इसका अनुमान इसी से लगा लो कि वह जिस मार्ग से यहाँ से गये, वे मेरे नेत्रों पर पैर रखकर गये। उस मार्ग पर मेरे नेत्र, उनके पैर रखने के पहले ही बिछ गये।

मेरे यह प्राण प्रिय के विदेश जाने से व्याकुल थे, उनके प्रत्येक कदम पर स्वयं को न्योछावर करते गये। आप इतनी हड़बड़ी में पत्रिका देकर जाना चाहते हैं। कृपया ऐसा ना करें। आप बहुत दूर से चलकर आ रहे हैं, कुछ विश्राम कर लीजिए। आपके बैठने से मेरे प्रयोजन की सिद्धि होने वाली है और वह प्रयोजन क्या है ?

मुझे उस विश्वासघाती का बहुत सा विवरण पूछना है। मुझे यह बताइए कि उस निष्ठुर को मेरी सुध कैसे आई ? इतने दिन तो उसने हाल-चाल जानने का कोई प्रयत्न नहीं किया तो यह स्थिति कैसे आई ? इसकी मुझे किसी प्रकार से संभावना ही नहीं थी। उसने पत्रिका भी आपको स्वयं लिख कर दी है। भला यह असंभव कार्य कैसे संभव हो गया ? मुझे अत्यंत दीन समझ कर मुझे यह सब बताइए।

पद : 21.

Ghananand Kavitt Pad 21 Saar – Vishwanath Prasad Mishra in Hindi

घनआनंद रस ऐन, कहौ कृपानिधि कौन हित।
मरत पपीहा नैन, बरसौ पै दरसौ नहीं॥

व्याख्या :

दोस्तों ! प्रिय के दर्शन के अभाव में प्रेमी की आंखें दु:खी है। वह अपने आप से बातें करते हुये कह रहा है, एकांत भाषण के रूप में। हे घनानंद ! आप रस के बादल हैं, कृपा के कोष हैं। आप प्रेम के घन हैं लेकिन आपका यह प्रेम कैसा है कि नेत्र रूपी चातक मर रहे हैं। आप बरसते तो है, पर उसे दिखाई नहीं देता। यह पपीहा (चातक) केवल जल ही नहीं चाहता है, आपके दर्शन चाहता है। इसकी तृप्ति दर्शन के बिना नहीं हो सकती।

दोस्तों ! कोई बादल तो हो सकता है, पर ऐसा भी हो सकता है कि उसमें रस ना हो अर्थात् जल ना हो। जो रस वाला है, वो पहले ही कहीं पर बरस गया हो। जिस घन की चर्चा कवि घनानंद कर रहे हैं, वह केवल बादल नहीं है। उसमें रस है, वह रस का घर है। पर केवल रस होने से ही बादल उसकी वृष्टि कर दे, ऐसा नहीं हो सकता।

घनानन्द कवित्त पद व्याख्या :

जल भरे बादल दिखाई तो दे, पर वर्षा नहीं करें। यह बादल ऐसे नहीं है, अनुकूलता प्रदर्शित करने वाले हैं। प्रेम और आनंद से आप में कृपा बहुत है, पर यह प्रेम और अनुकूलता होकर भी किस काम की। यह किसके लिये है ? क्या यह मेरे लिये नहीं है ? पपीहे के लिये नहीं है तो फिर यह और किसके लिये है।

बादल बरसता है, पर बरसता भी नहीं है – ये कैसा विरोध है जो बादल कहीं बरसेगा तो दिखाई भी नहीं देगा। दोस्तों ! यह बात केवल प्रिय और प्रेमी के पक्ष में ही नहीं है, बल्कि इसे हम भक्त और भगवान के संबंध में भी ले सकते हैं। भगवान की अनुकूलता तो दिखती है, पर वह दृश्य नहीं है, अदृश्य है।

इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने घनानंद कवित्त के अगले 18-21 तक के पदों का भावार्थ सहित सार समझा। अगले पार्ट में कुछ नए पदों के साथ फिर से मिलते है। धन्यवाद !


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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको “Ghananand Kavitt Saar घनानन्द कवित्त के पदों की व्याख्या” के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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