Andhere Mein Kavita Ki Vyakhya | ‘अंधेरे में’ कविता की व्याख्या


Andhere Mein Kavita Ki Vyakhya in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! पिछले नोट्स में हमने मुक्तिबोध रचित अँधेरे में कविता की कुछ शुरुआती पदों की व्याख्या समझी थी। आज हम इससे आगे के पदों की व्याख्या को समझने का प्रयास करेंगे। तो चलिए शुरू करते है :

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Andhere Mein Kavita Ki Vyakhya | ‘अंधेरे में’ कविता की व्याख्या


Muktibodh Krit Andhere Mein Kavita Ki Vyakhya in Hindi : दोस्तों ! गजानन माधव मुक्तिबोध की ‘अंधेरे में’ कविता के अगले पदों की व्याख्या कुछ इस प्रकार से है :

#5. व्याख्या :

Andhere Mein Kavita Ki Vyakhya Arth in Hindi

तेजो प्रभामय उसका ललाट देख
मेरे अंग-अंग में अजीब एक थरथर
गौरवर्ण, दीप्त-दृग, सौम्य-मुख
सम्भावित स्नेह-सा प्रिय-रूप देखकर
विलक्षण शंका,
भव्य आजानुभुज देखते ही साक्षात्
गहन एक संदेह।

कवि कह रहा है कि लाल कुहरे से उत्पन्न रक्तरंजित आकृति अर्थात् खूनी क्रांति से उत्पन्न उस उन्मुक्त व्यक्तित्व का उंचा मस्तक, तेज से मंडित एवं अत्यधिक प्रभामय था। उसे निहारकर मेरे प्रत्येक अंग में एक अजीब सी थरथराहट सी भर उठी।

उसका गोरा रंग चमकते हुए बड़े-बड़े नेत्र और शांत-सौम्य मुख तथा उस पर छा रही संभावित स्नेह की एक प्रिय लगने वाली रूपरेखा देखकर मेरा अंतर्मन एक विलक्षण सी शंका से भर उठा। उस दिव्य विराट पुरुष की महानता की प्रतीक घुटनों तक लंबी बांहे, साक्षात निहारते ही मेरे मन में एक गहरा संदेह का भाव जागृत हो गया।

दोस्तों ! इसका भाव यह है कि मानव की दिव्यता और विराटता को जगाने की आवश्यकता है। उसके विनिर्माण और जागरण में ही मानवता का भविष्य सुखद हो सकता है। विराट मानव की कल्पना भव्य और उदात्त हैं। रक्तरंजित क्रांति के बाद ही ऐसी विराटता की परिकल्पना की संभावना कवि ने व्यजिंत की है।


#6. व्याख्या :

Andhere Mein Kavita Ki Vyakhya or Bhavarth in Hindi

वह रहस्यमय व्यक्ति
अब तक न पायी गयी मेरी अभिव्यक्ति है
पूर्ण अवस्था वह
निज-सम्भावनाओं, निहित प्रभावों, प्रतिमाओं की,
मेरे परिपूर्ण का आविर्भाव,
हृदय में रिस रहे ज्ञान का तनाव वह,
आत्मा की प्रतिमा।

कवि अपने अंतश्चेतना में एक पूर्ण पुरुष और समग्र मानवीय समाज की परिकल्पना रखता है। जो कि जीवन के गहन अंधकार में भी अभिव्यक्ति पाने के लिए मचल रही है, पर जीवन की निराशाएं व विषमताएं उन्हें व्यजिंत नही होने देती।

इन्हीं विचारों को प्रकट करते हुए कवि कहता है कि इस अंधेरी गुफा में रक्त रंजित रूप में सहसा उभरने वाली वह आकृति वस्तुतः मेरे भावों और विचारों का ही स्वरूप है, जो अब तक अभिव्यंजित हो पाने में असमर्थ है।

मेरे ऊपर जो अब तक प्रभाव पड़े हैं एवं मेरे मन में जो भिन्न-भिन्न प्रतिमाएं हैं और मेरे मन में जीवन के भविष्य की अनेक संभावनाएं हैं। यह रहस्यपूर्ण व्यक्ति उन्हीं सब का साकार रूप है। इस के रूप में मेरे ही संपूर्ण मानवीय रूप एवं व्यक्तित्व का उदय हो रहा है। मेरे मन-मस्तिष्क में बौद्धिकता एवं ज्ञान-विज्ञान का संघर्ष चल रहा है, यह उसी का प्रतीक है। इसे मेरी आत्मा का प्रतीक भी कहा जा सकता है।


#7. व्याख्या :

Muktibodh rachit Andhere Mein Kavita Ki Vyakhya in Hindi

प्रश्न थे गम्भीर, शायद ख़तरनाक भी,
इसी लिए बाहर के गुंजान
जंगलों से आती हुई हवा ने
फूँक मार एकाएक मशाल ही बुझा दी-
कि मुझको यों अँधेरे में पकड़कर
मौत की सज़ा दी !

कवि प्रश्न करता हुआ कहता है कि वह फटे हुए कपड़े क्यों पहने हुए हैं ? इसका सुनहरा मुंह ऐसा सांवला क्यों हो गया है ? उसकी छाती पर गहरा घाव क्यों हो गया है ? उसने जेल की सजा क्यों काटी ? उसे कौन रोटी पानी-देता है ? यह सब होते हुए भी उसके मुख पर मुस्कुराहट क्यों है ? फिर भी वह शक्तिशाली दिखाई क्यों देता है ?

कवि कहता है कि यह प्रश्न न केवल गंभीर है, बल्कि खतरनाक भी है। शायद इसीलिए बाहरी वातावरण के सुनेपन और वातावरण की हवा ने मेरे अंदर की ज्ञानरूपी मशाल को फूंक मारकर ही बुझा दिया। ताकि मैं बाहरी जीवन की विषमताओं को, अत्याचारों को, अनाचारों को ना देखूं और ना ही मैं व्यक्त करूं। इसलिए मुझे अंधेरे में पकड़कर मौत की सजा दी है।


#8. व्याख्या :

Andhere Mein Kavita Ki Vyakhya Arth – Gajanan Madhav Muktibodh in Hindi

किसी काले डैश की घनी काली पट्टी ही
आँखों में बँध गयी,
किसी खड़ी पाई की सूली पर मैं टाँग दिया गया,
किसी शून्य बिन्दु के अँधियारे खड्डे में
गिरा दिया गया मैं
अचेतन स्थिति में !

मेरी आंखों पर काली पट्टी बांध दी गई है। मेरे विचारों को विराम चिह्न दिया गया है। मुझे किसी पाई की सूली पर लटका दिया गया है। मुझे किसी शून्य बिंदु के गहरे गड्ढे में गिरा दिया गया है, ताकि मैं कुछ भी नहीं सोचूँ, कुछ भी ना व्यक्त करूँ। मुझे अचेतन की स्थिति में पहुंचा दिया गया है।

दोस्तों ! सहज मानवीय अभिव्यक्तियों की विवशता का कवि के द्वारा सजीव व मार्मिक चित्रण किया गया है। मशाल चेतना एवं ज्ञान की प्रतीक है और वह क्रांति एवं संघर्ष की प्रतीक भी है। गुंजान और जंगली हवाएं जीवन की बीहड़ता और सूनेपन की प्रतीक है।


इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने मुक्तिबोध की Andhere Mein Kavita Ki Vyakhya | ‘अंधेरे में’ कविता के अगले #4-8 पदों की व्याख्या को विस्तार से समझा। उम्मीद है कि आपको हमेशा की तरह समझने में कोई कठिनाई नहीं हुई होगी। आगे के पदों की व्याख्या को लेकर फिर से मिलते है।

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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Andhere Mein Kavita Ki Vyakhya | ‘अंधेरे में’ कविता की व्याख्या के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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