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Andhere Mein Kavita Ka Arth | ‘अंधेरे में’ कविता का अर्थ एवं व्याख्या


Andhere Mein Kavita Ka Arth Vyakhya in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! Rajasthan RPSC Assistant Professor के सिलेबस में शामिल मुक्तिबोध रचित ‘अँधेरे में’ बहुत ही महत्वपूर्ण कविता है। हम इस कविता की पूर्ण व्याख्या प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहे है। तो इसी क्रम में आज हम अगले #9-14 पदों की व्याख्या को समझते है :

आप गजानन माधव मुक्तिबोध कृत ‘अंधेरे में’ कविता का विस्तृत अध्ययन करने के लिए नीचे दी गयी पुस्तकों को खरीद सकते है। ये आपके लिए उपयोगी पुस्तके है। तो अभी Shop Now कीजिये :


Andhere Mein Kavita Ka Arth | ‘अंधेरे में’ कविता का अर्थ एवं व्याख्या


Muktibodh Krit Andhere Mein Kavita Ka Arth in Hindi : दोस्तों ! गजानन माधव मुक्तिबोध की ‘अंधेरे में’ कविता के अगले पदों की व्याख्या कुछ इस प्रकार से है :

#9. व्याख्या :

Andhere Mein Kavita Ka Arth Bhavarth in Hindi,

कवि की अंतश्चेतना मनोवैज्ञानिक स्तर पर द्वन्द्वग्रस्त होकर अपनी आंतरिकता को अभिव्यक्त कर पाने के लिए छटपटा रही है। भोगे हुए एवं बीते क्षणों की भयावह और घुटन भरे चित्र रूप मनः प्रकाश से उतरकर क्षुब्ध रंगों के द्वारा रूपाकार प्राप्त करना चाहते हैं।

सूनापन सिहरा,
अँधेरे में ध्वनियों के बुलबुले उभरे,
शून्य के मुख पर सलवटें स्वर की,
मेरे ही उर पर, धँसाती हुई सिर,
छटपटा रही हैं शब्दों की लहरें
मीठी है दुःसह!!

उन सबको और अपनी विवशता को इन पंक्तियों में रूपान्तरित करते हुए कवि कह रहा है कि मेरे चारों ओर जो सूनापन घिर रहा है, जो आदिम व बर्बर प्रवृत्तियों और गहन एकान्तिकता का परिचायक है, वह जैसे उस मन: पुरुष के प्रभाव से सिहर काँप रहा है तथा जीवन के चारों ओर छा रहे निराशा के अंधकार में भी ध्वनियों के बुलबुले उभरने लगते हैं।

अर्थात् जैसे पानी में बुलबुले उभरने लगते हैं, उसी प्रकार मनुष्य चेतनाओं के आकार-प्रकार भी ध्वनित होकर बनने और बिगड़ने लगते हैं। कवि कहना चाहता है कि बोल पाने में असमर्थ मुख भी अब बोल पाने की भंगिमा में उभर रहा है।

शब्दों की लहरें अर्थात् अर्थों और विचारों की तरंगे मेरे हृदय में छटपटा रही हैं और फिर असमर्थ सी होकर जैसे मेरे हृदय में ही समाई जा रही हैं। यह विचारों की लहरें अत्यधिक मग्न है, पर अत्यधिक असहनीय भी है। अब इन्हें अपने पास बांध एवं समेट कर रखना मेरे लिए असहनीयता की स्थिति तक कठिन हो गया है।


#10. व्याख्या :

Gajanan Madhav Muktibodh Andhere Mein in Hindi

अरे, हाँ, साँकल ही रह -रह
बजती है द्वार पर।
कोई मेरी बात मुझे बताने के लिए ही
बुलाता है — बुलाता है
हृदय को सहला मानो किसी जटिल
प्रसंग में सहसा होठों पर
होठ रख, कोई सच-सच बात
सीधे-सीधे कहने को तड़प जाय, और फिर
वही बात सुनकर धँस जाय मेरा जी–

दरवाजे पर रह-रहकर सांकल सी बज रही है। जैसे कोई अज्ञात हृदय के द्वार को चेतावनी दे-देकर खुलवाना चाहता है। जैसे विचार उमड़-घुमड़ कर प्रकट हो जाने के लिए मन के द्वारों के उस ओर तीव्रता से मचल और कुलबुला रहे हैं।

जैसे कोई अंतश्चेतना अपनी ही बात मुझे बताने के लिए मन के द्वार बजा-बजाकर अपनी ओर बुला रही है, मानो कोई मेरे हृदय को सहला कर किसी जटिल बात के प्रसंग को, सत्य रूप में मेरे होठों पर होंठ रखकर कहने के लिए मचल रहा है। उस बात को सुनकर मेरा पहले से ही धंसा हुआ जी और अधिक धंसा जाता है।


#11. व्याख्या :

Andhere Mein Kavita Ka Mool Bhaav in Hindi

इस तरह, साँकल ही रह-रह बजती है द्वार पर
आधी रात, इतने अँधेरे में, कौन आया मिलने?
विमन प्रतीक्षातुर कुहरे में घिरा हुआ
द्युतिमय मुख – वह प्रेम भरा चेहरा —
भोला-भाला भाव–
पहचानता हूँ बाहर जो खड़ा है !!

इसलिए शायद कोई मेरे द्वार पर रह-रहकर सांकल बजाये जा रहा है। पता नहीं, आधी रात के गहरे अंधेरे में मुझसे मिलने कौन आया है ? उस बाहर खड़े प्रतीक्षा में व्याकुल अनमने उदास चेहरे को, जो चिंताओं के कुहरे से घिर ढक रहा है, फिर भी अपने ओजस्विता में प्रकाशमय है।

प्रेमभरे उस चेहरे को मैं पहचानता हूं। वह जो भोले-भाले भाव में बाहर खड़ा है। उसे मेरी अंतश्चेतना पहचानती है। दोस्तों ! इन पंक्तियों में कवि की अपनी ही अन्तश्चेतनाओं से जैसे पुकार-पुकार कर सोचने और विचारने पर अभिव्यंजना करने को विवश कर रही है।


#12. व्याख्या :

Muktibodh Rachit Andhere Mein Kavita Ka Arth in Hindi

यह वही व्यक्ति है, जी हाँ !
जो मुझे तिलस्मी खोह में दिखा था।
अवसर-अनवसर
प्रकट जो होता ही रहता
मेरी सुविधाओं का न तनिक ख़याल कर।
चाहे जहाँ, चाहे जिस समय उपस्थित,
चाहे जिस रूप में, चाहे जिन प्रतीकों में प्रस्तुत,
इशारे से बताता है, समझाता रहता,
हृदय को देता है बिजली के झटके !!

दोस्तों ! कवि अपने ही मन की परछाइयों को, अपने ही अंत: आकाश के द्वीप में से जानने-पहचानने की श्रेष्ठता करते हुए, उसके एक अन्य आकर्षक स्वरूप का वर्णन करते हुए कहते हैं कि मेरे मन के द्वार की सांकलों को बजा-बजा कर मुझे अपनी ओर बुलाने वाला, यह वही व्यक्ति है। मेरी ही अंतश्चेतना की स्वरूपित परछाई है, जो मुझे पहली बार जादुई गुफा में रहस्यमी मानसिकता में दिखाई दिया था।

आज ही नहीं पहले भी यह समय-असमय प्रकट होकर मेरे सामने बिना मेरी सुख-सुविधा का ध्यान रखते हुए, यह मेरे सामने प्रकट हो जाता है। यह किसी भी स्थिति में मेरे सामने उपस्थित हो जाता है। यह किसी भी बात या तथ्य का प्रतीक बन जाता है। यह अपने ही संकेतों से जीवन का तथ्य बताता है और समझाता ही रहता है। मेरी अंतश्चेतना को बिजली जैसे तीव्र झटके दे-देकर अनवरत झिझोंरता रहता है।


#13. व्याख्या :

Andhere Mein Kavita Ka Arth – Gajanan Madhav Muktibodh

अरे, उसके चेहरे पर खिलती हैं सुबहें,
गालों पर चट्टानी चमक पठार की
आँखों में किरणीली शान्ति की लहरें
उसे देख, प्यार उमड़ता है अनायास!
लगता है– दरवाजा खोलकर
बाहों में कस लूँ,
हृदय में रख लूँ
घुल जाऊँ, मिल जाऊँ लिपटकर उससे
परन्तु, भयानक खड्डे के अँधेरे में आहत
और क्षत-विक्षत, मैं पड़ा हुआ हूँ,
शक्ति ही नहीं है कि उठ सकूँ जरा भी

उसके चेहरे पर सुबह खिला करती है, उसके गालों पर ऊंचे पठारी चट्टानों की चमक रहती है। अर्थात् वह पठार की तरह ऊंचा, दृढ़ और उज्जवल सा प्रतीत होता है। उसकी आंखों से किरणों की उज्जवल शांति की लहरें मचलती है। उसे देखकर मन में प्यार का भाव उमड़ता है और मन में आता है कि दरवाजा खोलकर उसे बाहों में भर लूं।

अपने हृदय में भर लूँ। उसमें घुलमिल जाऊं अर्थात् उसी का रूप हो जाऊं। पर क्या करूं, अपने मंतव्य को और भावनाओं के प्रिय को मैं अपनी बाहों में बांध पाने में असमर्थ हूं, क्योंकि मैं जीवन की विषमताओं के गहरे खड्डे में घायल, विवश और क्षत-विक्षत पड़ा हूं। मुझ में थोड़ा सा भी उठ पाने की शक्ति नहीं है।


#14. व्याख्या :

Muktibodh Krit Andhere Mein Kavita Ka Arth in Hindi

(यह भी तो सही है कि
कमज़ोरियों से ही लगाव है मुझको)
इसीलिए टालता हूँ उस मेरे प्रिय को
कतराता रहता,
डरता हूँ उससे।

यह भी ठीक है कि मुझे दुर्बलताओं से ही लगाव एवं सहानुभूति है अर्थात् मैं स्वयं दुर्बल और विवश हूं। अपने जैसे लोगों से ही सहानुभूति रखता हूं। इस प्रकार मैं अकेला और शक्तिहीन हूं और इसी कारण अपने प्रिय को टालता हूँ और स्वयं उससे कतराया सा, डरा सा रहता हूं।

कवि ने सहज मानवीय विवशता का वर्णन किया है, जो कि अपने प्रिय अर्थात् मंतव्य को पहचान कर भी उसे पा नहीं सकती। खड्डे का अंधेरा चेतना की घुटन का प्रतीक है। प्रिय कवि की उन्मुक्त चेतना का प्रतीक है।


इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने मुक्तिबोध की Andhere Mein Kavita Ka Arth | ‘अंधेरे में’ कविता के अगले #9-14 पदों का अर्थ एवं व्याख्या समझ ली है। उम्मीद है कि आपको अच्छे से समझ आ ही गया होगा। तो मिलते है फिर से कुछ नए पदों की व्याख्या के साथ।

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एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको Andhere Mein Kavita Ka Arth | ‘अंधेरे में’ कविता का अर्थ एवं व्याख्या के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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