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Andhere Mein – Muktibodh | ‘अंधेरे में’ कविता की व्याख्या
Gajanan Madhav Muktibodh Rachit Andhere Mein Kavita in Hindi : दोस्तों ! स्वागत है आपका हमारे इस मंच पर, जहां हम RPSC कॉलेज लेक्चरर के अध्ययन से संबंधित सीरीज चला रहे है। कॉलेज लेक्चरर के पाठ्यक्रम में जिन रचनाओं को शामिल किया गया है, उनका हम पिछले कुछ लेखों में अध्ययन कर चुके है। आज के इस लेख में हम गजानन माधव मुक्तिबोध की रचना Andhere Mein – Muktibodh | ‘अंधेरे में’ का अध्ययन आरंभ करने जा रहे हैं :
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Andhere Mein – Muktibodh | ‘अंधेरे में’ कविता का मूल भाव
दोस्तों ! Gajanan Madhav Muktibodh | गजानन माधव मुक्तिबोध को हम सब अच्छी तरह जानते हैं। ये हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि, आलोचक, निबंधकार, कहानीकार तथा उपन्यासकार थे। मुक्तिबोध को प्रगतिशील कविता और नई कविता के बीच का एक सेतू भी माना जाता है।
मुक्तिबोध की कविता ‘अंधेरे में’ उनके काव्य-संग्रह “चांद का मुंह टेढ़ा है” में संकलित है। इस कविता में कवि ने स्वतंत्रता से पहले की और स्वतंत्रता के बाद की स्थिति का चित्रण किया है। इसमें यह दिखाया गया है कि जिन स्वतंत्रता सेनानियों ने देश के लिए लड़ते-लड़ते अपने प्राण दे दिये, वे लोग स्वतंत्रता के बाद किसी ‘अंधेरे में’ खो गये और जो लोग स्वार्थी और अवसरवादी थे, वे प्रकाश में आ गये।
इसमें उच्च मध्यम वर्ग के व्यक्ति का संघर्ष दिखाया गया है, जो एक तरफ तो सामाजिक अव्यवस्था और विकृतियों के विरुद्ध लड़ता है और दूसरी तरफ वह अपनी सुख-सुविधाएं भी छोड़ने को तैयार नहीं है। व्यक्ति के मन के इस द्वंद्व को ही इस कविता के माध्यम से व्यक्त किया गया है।
‘अंधेरे में’ कविता का सारांश | Andhere Mein Kavita Ka Saransh :
मुक्तिबोध की इस कविता में दो रक्तालोक स्नात पुरुष हैं। इनमें पहला पुरुष तो जिन्दगी के अंधेरे कमरों में चक्कर लगा रहा है, जबकि दूसरा पुरुष तालाब की लहरों में अपना चेहरा देखता हुआ, अंदर आने के लिए सांकल बजा रहा है।
इस कविता में ‘अंधेरा’ सामाजिक अव्यवस्था का प्रतीक है। जब तक यह अव्यवस्था दूर नहीं होगी, तब तक व्यक्ति के व्यक्तित्व का शोधन नहीं हो पायेगा। कविता में ‘वह’ और ‘मैं’ के बीच आत्मसाक्षात्कार की प्रक्रिया परस्पर चलती है। व्यक्ति अपने आप को भूलकर ‘वह’ पाने के लिए भटकता फिर रहा है। और ‘मैं ‘अपनी सुविधाजीवी वृति को छोड़ नहीं पाता है, क्योंकि उसे अपनी कमजोरियों से लगाव है।
लेकिन वह रक्तालोक स्नात पुरुष को भी नहीं छोड़ना चाहता है। रक्तालोक स्नात पुरुष को मानवीय संस्कृति के विकास के लिए संघर्षरत पुरुष का प्रतीक माना है। इस कविता के द्वारा कवि ने अंधेरे के माध्यम से अपनी आत्मा के तत्व को खोजकर, सारी मानवता से खुद को जोड़ने का प्रयास किया है।
अंधेरा कवि के अवचेतन मन और सामाजिक विकृतियों का प्रतीक है। इस प्रकार यह कविता हिंदी साहित्य में मील का पत्थर है। यह कविता 8 खंडों में विभक्त है। हम इस कविता के सभी खंडों की विस्तृत व्याख्या करने जा रहे है। तो चलिए शुरू करते है :
Andhere Mein – Muktibodh | ‘अंधेरे में’ कविता की व्याख्या
दोस्तों ! गजानन माधव मुक्तिबोध की प्रसिद्ध कविता Andhere Mein| ‘अंधेरे में’ को अच्छे से समझने के लिए हम इसकी व्याख्या करने जा रहे है। आप इसे ध्यान से समझने की कोशिश कीजिये :
#1. व्याख्या :
Andhere Mein – Muktibodh Kavita Ki Vyakhya in Hindi
ज़िन्दगी के…
कमरों में अँधेरे
लगाता है चक्कर
कोई एक लगातार;
आवाज़ पैरों की देती है सुनाई
बार-बार….बार-बार,
वह नहीं दीखता… नहीं ही दीखता,
किन्तु वह रहा घूम
तिलस्मी खोह में ग़िरफ्तार कोई एक,
भीत-पार आती हुई पास से,
गहन रहस्यमय अन्धकार ध्वनि-सा
अस्तित्व जनाता
अनिवार कोई एक,
दोस्तों ! कवि अंधेरे में टहलते हुये और अपने अंतर्मन की गहराइयों में यात्रा करते हुये, अचानक उभर आने वाली एक आकृति को निहारता है। और कवि का चेतन एक प्रश्नात्मक रूप धारण कर लेता है। यहां कवि उसी का वर्णन कर रहा है :
कवि कह रहा है कि मेरा अंतर्मन अनुभव कर रहा है कि इस जीवन रूपी कमरे के अंधेरे में एक अदृश्य शक्ति चक्कर लगाती रहती है। अर्थात् अंतर्मन की गहराइयों में, वैचारिकता और रचनाधर्मिता के स्तर पर, कुछ उमड़-घुमड़ कर आने की चेष्टा कर रहा है।
एक व्यक्ति बंदी बना हुआ सा जरूर घूम रहा है। दीवार के पार से पास आती हुई, उसके पैरों की आवाज कुछ सुनाई सी जरूर दे रही है। वह अपने अस्तित्व का एहसास मुझे कराता रहता है। मेरे और उसके बीच में मन-भावना रुपी दीवार होने के कारण मैं भले ही उसे देख नहीं पाता, लेकिन उसका एहसास मैं निरंतर करता हूँ।
#2. व्याख्या :
Andhere Mein – Muktibodh Kavita Ka Bhavarth in Hindi
और मेरे हृदय की धक्-धक्
पूछती है–वह कौन
सुनाई जो देता, पर नहीं देता दिखाई !
इतने में अकस्मात गिरते हैं भीतर से
फूले हुए पलस्तर,
खिरती है चूने-भरी रेत
खिसकती हैं पपड़ियाँ इस तरह–
ख़ुद-ब-ख़ुद
कोई बड़ा चेहरा बन जाता है,
स्वयमपि
मुख बन जाता है दिवाल पर,
नुकीली नाक और
भव्य ललाट है,
दृढ़ हनु
कोई अनजानी अन-पहचानी आकृति।
कौन वह दिखाई जो देता, पर
नहीं जाना जाता है !!
कौन मनु ?
मेरा धकधक करता हृदय प्रश्न करता है कि वह आखिर है कौन, जो केवल सुनाई देकर अपने अस्तित्व का एहसास तो कराता है, पर आँखों के सामने आकर कभी दर्शन नहीं कराता। कभी अंतर्मन में कई प्रकार के भावों की अनुभूति तो वह कराता है, पर सत्ता रूप में वास्तविक दर्शन नहीं करा पाता।
जैसे समय की मार से पुराने खंडहर या मकान फूले हुये पलस्तर अपने आप गिरने एवं झड़ने लगते है और चूने से भरी रेत खुरचकर झड़ने लगती है। अपने आप ही कोई भी आकृति बन जाती है। नुकीली नाक और ललाट जैसी आकृतियाँ बनने लगती है। इस तरह एक परिचित या अपरिचित सी आकृति बन जाती है।
कवि मन की आँखों से उन आकृतियों को देख लेता है, पर उन्हें पहचान नहीं पाता । वह अंतर्चेतना में उभरी इस अलग सी आकृति से पुष्टि करता है कि मेरे इस अंतर्मन के अँधेरे में, विचारों की गहराई में क्या स्वयं मनु उभर आया है ?
#3. व्याख्या :
Andhere Mein – Muktibodh Kavita Ka Arth in Hindi
बाहर शहर के, पहाड़ी के उस पार, तालाब…
अँधेरा सब ओर,
निस्तब्ध जल,
पर, भीतर से उभरती है सहसा
सलिल के तम-श्याम शीशे में कोई श्वेत आकृति
कुहरीला कोई बड़ा चेहरा फैल जाता है
और मुसकाता है,
पहचान बताता है,
किन्तु, मैं हतप्रभ,
नहीं वह समझ में आता।
कवि किसी ऐसी जगह का वर्णन करता है, जो शहर के बाहरी भाग में और पहाड़ी के दूसरी ओर मौजूद है। इस जगह पर एक तालाब है। वास्तव में तालाब कवि के मन या चेतना का ही प्रतीक है। इस तालाब के चारों तरफ अँधेरा व्याप्त है। यानी उदासी और निराशा का वातावरण है। और तालाब का पानी ठहरा हुआ है।
लेकिन अचानक से तालाब के अंदर से कुछ प्रकट होता है। तालाब का पानी जो अँधेरे से काला सा दिखाई दे रहा है, उसमें अचानक से कोई सफ़ेद सी आकृति दिखाई देती है। धुंध से बना एक बड़ा सा चेहरा तालाब के पानी पर फ़ैल जाता है। ये धुंध से बना चेहरा विषम परिस्तिथियों का प्रतीक है।
ये धुंध से बना चेहरा मुस्कुराता हुआ, अपनी पहचान भी बताने की कोशिश करता है। लेकिन कवि हैरान है। उसे उसका चेहरा, उसके कोई संकेत, उसकी भाषा आदि कुछ भी समझ नहीं आता। वास्तविकता तो ये है कि कवि के अवचेतन मन में कई इच्छाएं, विचार दबे हुये है, जो उसके मन में हलचल मचाकर उसे परेशान करते रहते है।
#4. व्याख्या :
Andhere Mein – Gajanan Madhav Muktibodh Kavita in Hindi
अरे ! अरे !!
तालाब के आस-पास अँधेरे में वन-वृक्ष
चमक-चमक उठते हैं हरे-हरे अचानक
वृक्षों के शीशे पर नाच-नाच उठती हैं बिजलियाँ,
शाखाएँ, डालियाँ झूमकर झपटकर
चीख़, एक दूसरे पर पटकती हैं सिर कि अकस्मात्–
वृक्षों के अँधेरे में छिपी हुई किसी एक
तिलस्मी खोह का शिला-द्वार
खुलता है धड़ से
……………………
घुसती है लाल-लाल मशाल अजीब-सी
अन्तराल-विवर के तम में
लाल-लाल कुहरा,
कुहरे में, सामने, रक्तालोक-स्नात पुरुष एक,
रहस्य साक्षात् !!
कवि कह रहा है कि तालाब के पास हरे-हरे जंगली वृक्षों की चोटियों पर प्रकाश उत्पन्न करने वाली बिजलियाँ रह-रहकर नाचती है। वृक्षों की डालियाँ, तेज हवा और उत्पन्न आंधी के कारण एक-दूसरे पर अपना सर पटकती सी जान पड़ती है।
वृक्षों के गहन अंधकार में एक जादुई गुफा का पत्थर से बना द्वार धड़-धड़ करती ध्वनि के साथ खुलता है। उसमें एक अजीब सी लाल-लाल मशाल जलती सी दिखती है। उस पत्थर की गुफा में लाल रंग का कुहरा सा छाया हुआ है।
उस कुहरे के प्रकाश में नहाया हुआ एक पुरुष दिखाई देता है। इस प्रकार ये सारा का सारा वातावरण एवं रक्तरंजित पुरुष किसी रहस्य को साकार करता हुआ सा लग रहा है।
तो दोस्तों ! आज हमने Andhere Mein – Muktibodh |मुक्तिबोध की ‘अँधेरे में’ कविता का मूल भाव और कुछ महत्वपूर्ण अर्थ एवं व्याख्या को समझा है। आगे के लेखों में भी इस कविता की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत करने की कोशिश रहेगी। ये कविता प्रतियोगी परीक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। तो आप इसे जरूर से तैयार कर लीजिये और बने रहिये हमारे साथ।
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एक गुजारिश :
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