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Padmavati Samay Ke Pad | पद्मावती समय के पद (22-30)
नमस्कार दोस्तों ! आज हम चंदबरदाई कृत Padmavati Samay Ke Pad | पद्मावती समय के आगे के पदों का अध्ययन करने जा रहे है। पिछले नोट्स में हम इसके लगभग 21 पदों को विस्तारपूर्वक समझ चुके है। परीक्षा की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण होने के कारण हम इसके कुछ अन्य आगे के पदों को भी समझने का प्रयास कर रहे है :
Padmavati Samay Ke Pad | पद्मावती समय के पदों की व्याख्या
Padmavati Samay Ke Pad | पद्मावती समय के अगले 22 से 30 पदों की व्याख्या इस प्रकार से है :
पद : 22 – 23.
Padmavati Samay Ke Pad aur Unki Vyakhya in Hindi :
कामदेव अवतार हुअ, सुअ सोमेसर नन्द।
सहस-किरन, झलहल कमल, रति समीप बर बिंद।।
सुनत स्त्रवन प्रथिराज जस, उमंग बाल विधि अंग।
तन-मन चित्त चहुँआन पर, बस्यौ सु-रत्तह रंग।।
शब्दार्थ :
क्र. सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | हुअ | हुआ |
2. | सुअ | सुत, पुत्र |
3. | नन्द | आनंद देने वाला |
4. | सहस-किरन | सूर्य |
5. | बिंद | पति या दूल्हा |
6. | जस | यश, कीर्ति |
7. | उमंग | उत्साह उमड़ पड़ा |
8. | बाल | बाला (पद्मावती) |
अर्थ :
तोता राजा पृथ्वीराज की प्रशंसा करता हुआ कह रहा है कि सोमेश्वर का पुत्र पृथ्वीराज सबके मन को आनंद देने वाला है। रंग-रूप में साक्षात कामदेव का रूप प्रतीत होता है। ऐसा लगता है जैसे साक्षात कामदेव उपस्थित हो गए हो।
सहस्त्र किरणों के समान सूर्य के जैसे झलझलाते रूप के समान है। पृथ्वीराज सूर्य की किरणों के समान ओजस्वी और कामदेव के समान रूपवान हैं। वह अति सुंदर है।
तोते के द्वारा पृथ्वीराज के रूप का वर्णन सुनकर वह बाला (पद्मावती) रोमांचित हो गई। उसका पूरा तन और मन राजा पृथ्वीराज पर आसक्त हो गया अर्थात् पृथ्वीराज के रूप और गुण की चर्चा सुनकर वह अनुरक्त हो गई। वह प्रेम के रंग में रंग गई।
विशेष :
- रूप व गुण का वर्णन अतिश्योक्तिपूर्ण है, इसलिए अतिश्योक्ति अलंकार है।
- श्रृंगार रस का प्रयोग हुआ है।
- दोहा छंद प्रयुक्त हुआ है।
- ब्रज भाषा का प्रयोग है।
पद : 24.
बैस बिती ससिता, गई आगम कियो बसंत ।
मात-पिता चिंता भई, सोधि जुगति कौ कंत ।।
शब्दार्थ :
क्र. सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | बैस | वयस्क अवस्था |
2. | बिती | व्यतीत |
3. | ससिता | शिशुता |
4. | सोधि | खोजना |
अर्थ :
इस पद में वर्णन किया गया है कि राजकुमारी पद्मावती धीरे-धीरे बाल्यावस्था को व्यतीत कर चुकी है। और युवावस्था में प्रवेश कर चुकी है। अब उसके पिता को इस बात की चिंता हो रही है कि अपनी पुत्री के लिए योग्य वर कौन होगा।
राजकुमारी पद्मावती अब सयानी हो गई है और उसके माता-पिता उस नवयौवना के लिए उपयुक्त वर की खोज कर रहे हैं। बसंत का प्रयोग यौवन के लिए हुआ है ।
विशेष :
- अतिश्योक्ति अलंकार है।
- श्रृंगार रस का प्रयोग है।
पद : 25.
Padmavati Samay Ke Pad aur Unka Bhavarth in Hindi :
सोधि जुगति कौ कंत कियो, तब चित्त चाहौ दिस।
लयौ विप्र गुरु बोल, कही समुझाय बात तस ।।
नर नरिन्द नरपति बड़े गढ़ द्रुग्ग असेसह ।
सीलवन्त कुल सुद्ध, देहु कन्या सुनरेसह ।।
तब चलन देहु दुज्जह लगन, सगुन बंद हिय अप्प तन ।
आनंद उच्छाह समुदह सिखर, बजत नद्द नीसाँन घन ।।
शब्दार्थ :
क्र. सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | सोधि | खोजना |
2. | जुगति कौ कंत | उपयुक्त पति |
3. | बोल | बुला लिया |
4. | तस | उन्हें |
5. | सुनरेसह | श्रेष्ठ नरेश को |
6. | अप्प तन | अपने हाथ से |
7. | उच्छाह | उत्साह |
अर्थ :
पद्मावती के पिता को चिंता हुई तो वह चारों दिशाओं में उपयुक्त वर की तलाश करने में लग जाते है। अपने कुलगुरु ब्राह्मण को बुलवाते है और कहते है कि संसार में बहुत सारे नरपति हैं, कई श्रेष्ठ लोग भी हैं और बहुत सारे बड़े-बड़े दुर्गों के अधिपति हैं। पर मुझे श्रेष्ठ राजा को ही अपनी कन्या देनी है, जो शीलगुण हो और अच्छे कुल का हो।
ऐसा कहकर शगुन की पत्रिका उन्होंने अपने कुलगुरु के हाथ में रख दी। जब समुद्र-शिखर के लोगों को यह बात पता चली तो प्रजा में खुशी का माहौल छा गया और खुशी के मारे ढोल-नगाड़े बजने शुरू हो गए।
पद : 26.
सवालष्ष उत्तर सयल कमऊं गढ़ दूरंग ।
राजत राज कुमोदमणि हय गय द्रिब्ब अभंग ।।
शब्दार्थ :
क्र. सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | सवालष्ष | शिवालिक पर्वत श्रेणी या सवा लाख। |
2. | कमऊं | कुमायूं |
3. | दूरंग | दुर्गम |
4. | राजत | सुशोभित |
5. | द्रिब्ब | द्रव्य, धन |
6.. | अभंग | असंख्य |
अर्थ :
पुरोहित ने पद्मावती की वह लग्न-पत्रिका जिस राजा को दी, वह राजा शिवालिक पर्वत श्रेणी के उत्तर में है। जिसके दुर्ग का नाम कुमायूं दुर्ग था। कुमायूं दुर्ग पर कुमोद मणि नामक राजा का शासन था।
राजा कुमोद मणि के पास असंख्य हाथी और असंख्य घोड़े रहते थे। वह असंख्य द्रव्य या धन का स्वामी था। ऐसे राजा को पुरोहित ने लग्न-पत्रिका ले जाकर दी।
विशेष :
- ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है।
पद : 27.
नारिकेल फल परठि दुज, चौक पूरि मनि – मुत्ति।
दई जु कन्या बचन वर, अति अनंद करि जुत्ति ।।
शब्दार्थ :
क्र. सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | नारिकेल | नारियल |
2. | परठि | स्थापित किया |
3. | दुज | द्विज ब्राह्मण। |
अर्थ :
राजा पुरोहित ने लग्न-पत्रिका सपादलक्ष के राजा कुमोद मणि को ले जाकर दी। पुरोहित ने राजा कुमोद मणि के यहां पहुंचकर चौके पूरकर, उस पर नारियल रख दिया। और फिर उस लग्नपत्रिका को राजा कुमोद मणि के हाथों में सौंप दिया। इस पर अत्यंत प्रसन्नता से भरकर राजा ने पुरोहित को कन्या को वरण करने का वचन दे दिया।
पद : 28.
विहिसित वरं लगन लिन्नो नरिदं।
बजी द्वार द्वारं सु आनंद दुंदं।।
गढनं गढ़पत्ति सब बोल नुंत्ते ।
आइयं भूप सब कुटुम्मं सुजत्ते ।।
शब्दार्थ :
क्र. सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | वरं | श्रेष्ठ, राजा |
2. | दुंदं | दुन्दुभी, नगाड़े |
3. | गढ़पत्ति | राजा |
4. | नुंत्ते | न्यौता दिया |
अर्थ :
राजा कुमोद मणि ने लग्न-पत्रिका को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया। राजा की प्रजा के घर-घर में आनंद की दुंदुभी बजने लगी अर्थात् प्रजा में आनंद की लहर दौड़ गई। आस-पास के सभी गढ़पति राजाओं को न्यौते दिए गए। और सभी राजा अपने परिवार के साथ सज-धज कर आ गए।
पद : 29.
चले दस सहस्सु असब्बार जानं।
पुरिलं पैदलं ते तीस थानं ।।
मत्त मद गलितं सै पंच दंती ।
मनो सांम पाहार बुगपंति पंती।।
शब्दार्थ :
क्र. सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | सहस्सु | दस हजार |
2. | असब्बार | घुड़सवार |
3. | जानं | बारात |
4. | ते | उनसे |
5. | तीस थानं | तीस पड़ाव |
6. | सै पंच | पांच सौ |
7. | दंती | हाथी |
अर्थ :
राजा विजयपाल के पुरोहित द्वारा दी गई लग्न-पत्रिका को स्वीकार करने के बाद, राजा कुमोद मणि समुंद्र-शिखर की ओर चल पड़े। उनकी बारात में उनके साथ दस हजार घुड़सवार हैं।
पैदल सैनिक तो इतने ज्यादा थे कि तीस पडाव पूरे भर जाते थे। उनकी बारात में पांच सौ मदमस्त हाथी थे। जिनके बड़े-बड़े दांत इस प्रकार लगते थे मानो काले पहाड़ों में सफेद बगुले की पंक्ति उड़ रही हो।
विशेष :
- अतिश्योक्ति अलंकार है।
- अनुप्रास अलंकार भी प्रयुक्त हुआ है।
पद : 30.
चले अग्गि तेजी जु तत्ते तुषार।
चौवरं चौरासी जु साकत्ति भारं।।
कंठं नगं नूपं अनोपं सुलालं ।
रंग पंच रंग ढलकंत ढ़ालं ।।
शब्दार्थ :
क्र. सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | तुषार | ऐसा देश जहां के घोड़े तेज दौड़ने के लिए प्रसिद्ध है |
2. | चौवर चौरासी | घोड़ों को पहनाने के आभूषण |
अर्थ :
तुषार देश के घोड़े आगे-आगे चले जा रहे हैं। चौवर-चौरासी (घोड़ों को पहनाए जाने वाला आभूषण) पहनाकर, अच्छे से सुसज्जित करके घोड़ों को ले जाया जा रहा है। सबके गले में नगों की मालाएं थी और उनके गले की ढाल पांच रंगों से निर्मित थी।
विशेष :
- अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
तो दोस्तों ! आज हमने Padmavati Samay Ke Pad | पद्मावती समय के अगले 22 से 30 पदों को समझ लिया है। फिर से हाजिर होंगे कुछ और महत्वपूर्ण पदों के साथ। उम्मीद है कि आपको नोट्स उपयोगी लग रहे होंगे। तो बने रहिये हमारे साथ।
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एक गुजारिश :
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