Padmavati Samay Ke Pad 31-40 | पद्मावती समय के पदों की व्याख्या


नमस्कार दोस्तों ! आज के नोट्स में हम Padmavati Samay Ke Pad 31-40 | पद्मावती समय के 31 से 40 तक के पदों की व्याख्या प्रस्तुत करने जा रहे है। विषय की महत्ता को देखते हुए हम इसके अगले पदों को भी विस्तारपूर्वक समझने जा रहे है। हम पिछले नोट्स में इसके कुल 30 पदों का अध्ययन कर चुके है।



पद : 31.

Chand Bardai Krit Padmavati Samay Ke 31-40 Pado Ki Vyakhya :

पंज सुर सबाद्द बाजित्र बाजं
सहस सहनाय म्रिग मोह राजं ।।

समुद सिर सिषर उच्छाह छाहं ।
रचित मण्डपं तोरणं श्रीयमाहं ।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.पंज सुरपांच प्रकार के वाद्य यंत्र
2.बाजंबाजे
3.सहसहजारों
4.सहनायशहनाइयाँ
5.समुद सिषरसमुंद्र शिखर दुर्ग
6.उच्छाहउत्साह
7.श्रीयमाहंसौंदर्य का भंडार

अर्थ :

राजा कुमोदमणि समुंद्र शिखर की ओर बारात को सुसज्जित करके चलने लगा। जब यह समाचार समुंद्र शिखर में पहुंचा तो वहां खुशी के कारण पांच प्रकार के वाद्य यंत्रों की ध्वनि बजने लग जाती है। मृगों को मोहित करने वाली शहनाइयाँ बजने लगी।

समुंद्र शिखर में उत्साह और आनंद का वातावरण चारों तरफ छाने लगा। समुंद्र शिखर में बारात के स्वागत के लिए तोरण एवं मंडप और बंदनवार सजाए जा रहे हैं। चारों तरफ एक अनुपम सौंदर्य की शोभा छा रही है।

विशेष :

  • यहाँ अतिश्योक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।

पद : 32.

पद्मावती विलषि वर बाल बेली।
कही कीर सॉ बात तब हो अकेली।।

झटं जाहु तुम कीर दिल्ली सुदेसं।
बरं चहुवानं जो आनौ नरेसं।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.विलषिव्याकुल होकर
2.वरश्रेष्ठ
3.कीरतोता
4.झटंजल्दी से
5.जाहुजाओ

अर्थ :

बारात की खबर जब पद्मावती को पता चलती है तो वह व्याकुल होकर तोते के पास जाती है। जब अकेली होती है, तब तोते से अपने मन की बात कहती है कि हे तोते ! तुम जल्दी दिल्ली जाओ और पृथ्वीराज को बुलाकर ले आओ। मैं उन्हीं का वरण करूंगी। यह बात तुम जल्दी जाकर उन्हें बताओ और उन्हें लेकर आओ।


पद : 33.

आँनों तुम चहुवान बर, अरु कहि इहै सँदेस।
साँस सरीरहि जौ रहै, प्रिय प्रथिराज नरेश ।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.आँनोंले आओ
2.अरुऔर
3.कहिकहता है
4.इहैयह
5.सरीरहिशरीर में

अर्थ :

रानी पद्मावती तोते को दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान के पास भेजती है। और उन्हें जल्दी से बुलाकर ले आने को कहती है। रानी पद्मावती तोते को संबोधित करके कहने लगती है : हे तोते ! तुम पृथ्वीराज से जाकर कहना कि मेरे शरीर में जब तक सांस है, तब तक मैं तुम्हारी ही हूँ और तुम्हारा ही वरण करूंगी।

विशेष :

  • ब्रजभाषा मिश्रित अपभ्रंश का प्रयोग है।
  • इसमें दूहा छंद है।
  • पद्मावती के एकनिष्ठ प्रेम का चित्रण हुआ है।


पद : 34.

Chand Bardai Padmavati Samay Bhavarth 31 to 40 in Hindi :

प्रिय पृथीराज नरेस, जोग लिषि कग्गर दिन्नौ
लगुन बरग रचि सरब, दिन द्वादस ससि लिन्नौ ।।

सै अरु ग्यारह तीस, साष संवत परमानह।
जोषित्री कुल सुद्ध वरनि वर रष्षहु प्रानह ।।

दिष्षंत दिष्ट उच्चरिय वर, एक पलक विलम्ब न करिय ।
अलगार रयन दिन पंच महि, ज्यों रुकमिनि कन्हर वरिय ।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.जोग योग्य
2.कग्गरकागज, पत्र
3.दिन्नौदिया
4.वरनिवरण करके
5.रष्षहुरक्षा करो
6.उच्चरियउठकर चल दीजिए
7.पलकपल भर भी
8.रयनरात, रैन
9.महिमैं

अर्थ :

रानी पद्मावती ने एक कागज लिया और उस पर विवाह की सभी तिथियां जैसे : लग्न किस तिथी को‌ है? विवाह किस तिथि को है? आदि सब सही प्रकार से लिखकर तोते को दे दिया। और लिखा कि शुक्ल पक्ष की द्वादशी तक आपको यहाँ पर पहुँचना है। इस तिथि को मेरा विवाह हो जाएगा।

वह आगे कहती है कि इस पत्र को देखते ही आपको बिल्कुल भी विलंब नहीं करना है। इन 5 दिनों में आपको उसी प्रकार यहाँ पहुँचना है, जिस प्रकार कान्हा जी ने रुक्मिणी को वरण किया था।

विशेष :

  • यहाँ कवित्त छंद है।
  • डिंगल पिंगल भाषा का प्रयोग है।
  • उदाहरण अलंकार का प्रयोग है।

पद : 35 – 36.

ज्यों रुकमनी कन्हर वरिय, त्यों वरि संभर कान्त।
सिव मंडप पच्छिम दिसा, पूजि समय सप्रान्त ।।

लै पत्री सुक यों चल्यौ उड्यौ गगनि गसि बाव
जहँ दिल्ली प्रथिराज नर अट्ठ जाम में जाव ।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.कन्हरश्रीकृष्ण
2.वरियवरण किया
3.त्योंउसी प्रकार
4.पूजि समयपूजा के समय
5.सप्रान्तसुंदर प्राण
6.गसिसमान
7.बाववायु
8.अट्ठ जामआठ पहर

अर्थ :

रानी पद्मावती ने तोते को माध्यम बनाकर पृथ्वीराज चौहान को संदेश भेजा है कि हे सांभर नरेश ! आप उसी प्रकार मेरा वरण करिए, जिस प्रकार द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने राजा भीष्मा की पुत्री रुक्मणी का वरण किया था।

मैं (पद्मावती) विवाह के दिन प्रात:काल नगर के पश्चिम में स्थित शिव मंदिर में पूजा करने जाऊंगी। आप उसी समय मेरा हरण कर लीजिए। पद्मावती के पत्र को लेकर तोता वायु वेग से उड़कर चला गया और आठ पहर में तोता वहां जा पहुंचा, जहां पृथ्वीराज चौहान निवास करते है।

विशेष :

  • अनुप्रास अलंकार प्रयुक्त हुआ है।


पद : 37.

Padmavati Samay Ke Dohe/Pad/Arth 31-40 in Hindi :

दिय कग्गर नृपराज कर, पुलि वंचिय प्रथिराज ।
सुक देखत मन में हँसे, कियौ चलन कौ साज ।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.कग्गरकागज
2.नृपराजराजाधिराज
3.करहाथ में
4.कौ साज चलने की तैयारी

अर्थ :

रानी पद्मावती द्वारा भेजी गई चिट्ठी को पढ़कर पृथ्वीराज ने क्या किया ? वह इस प्रकार है : राजकुमारी पद्मावती का पत्र तोते ने दिल्ली पहुंचकर राजाधिराज पृथ्वीराज चौहान के हाथों में रख दिया। राजा ने पत्र खोलकर पढ़ा और हरण एवं वरण का आमंत्रण पाकर उन्होंने समुद्र शिखर चलने की तैयारी कर ली।

विशेष :

  • डिंगल पिंगल भाषा का प्रयोग है।

पद : 38.

उहै घरी उहि पलनि, उहै दिनवेर उहै सजि ।
सकल सूर सांमत, लिए सब बोली बंब बजि ।।

अरु कवि चंद अनूप, रूप सरसै बर कह बहु ।
और सैन सब पच्छ, सहस सेना तिय सष्षहु ।।

चामंडराय दिल्ली धरह, गढ़पति करि गढ़ भार दिय ।
अलगार राज प्रथिराज तब, पूरब दिस तब गमन किय ।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.उहैउसी
2.घरीघड़ी
3.पलनिपल
4.वेरवेला
5.चंदकवि चंदबरदाई
6.अनूपअनुपम
7.सैनसेना
8.पच्छपीछे
9.सहससहस्त्र

अर्थ :

राजा पृथ्वीराज उसी घड़ी, उसी क्षण, उसी वेला में, उसी दिन वार को चलने के लिए तैयार हो गए। उसने अपने सभी शूरवीर सामंतों को भी बुला लिया। साथ ही अनुपम कवि चंदबरदाई को भी बुला लिया, जिसने अनेक तरह से पृथ्वीराज के रूप में उनकी प्रशंसा की है।

अपनी बाकी सेना पीछे दुर्ग की रक्षा के लिए छोड़कर तीन हजार सैनिकों को लेकर चल दिए। चामुंडराय को दिल्ली दुर्ग की रक्षा के लिए नियुक्त किया गया और उसे तब तक पूरे दुर्ग का कार्यभार दे दिया गया, जब तक वे वापस नहीं आ जाते। वे गुप्त रुप से बिना किसी को खबर किये पूर्व दिशा की ओर चल पड़े।

विशेष :

  • पिंगल भाषा का प्रयोग है।
  • कवित्त नामक छंद है।

पद : 39.

Padmavati Samay Vyakhya Bhavarth 31-40 in Hindi :

जा दिन सिषर बरात गय, ता दिन गय प्रथिराज।
ताही दिन पतिसाह कौ, भइ गज्जनै अवाज ।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.जा दिनजिस दिन
2.सिषरसमुद्र शिखर
3.गयगयी
4.ताही दिन उसी दिन
5.गज्जनैगजनी में
6.अवाजसूचना

अर्थ :

पद्मावती का संदेश पाकर राजा पृथ्वीराज चौहान अपनी सेना के साथ समुद्र शिखर की ओर चल पड़ते है। बादशाह शहाबुद्दीन गोरी को इसकी सूचना मिल जाती है कि पृथ्वीराज दिल्ली से बाहर गया है।

विशेष :

  • दूहा छंद प्रयुक्त हुआ है।


पद : 40.

सुनि गज्जनै अवाज़, चढ़्यौ साहबदीन वर ।
षुरासाँन सूलतान, कास काबिलिय मीर धर ।।

जंग जुरन जालिम जुझार, भुजसार भार भुअ ।
धर धमंकि भजि सेस, गगन रवि लुप्ति रैन हुअ ।।

उलटी प्रवाह मनौं सिंधु सर, रुक्कि राह अड्डौ रहिय ।
तिहि घरी राज प्रथिराज सौं, चंद बचन इहि विधि कहिय ।।

शब्दार्थ :

क्र.सं.शब्दअर्थ
1.साहबदीनशहाबुद्दीन ग़ोरी
2.षुरासाँनखरास्तन नामक देश
3.मीरसरदार
4.धरदृढ़
5.जंग जुरन युद्ध लड़ने में कुशल
6.भुजसारलोहे जैसी शक्तिशाली भुजाओं वाले

अर्थ :

शहाबुद्दीन गोरी ने जब यह खबर सुनी कि राजा पृथ्वीराज थोड़ी सी सेना लेकर समुद्र शिखर की ओर गया है। तो मौका पाकर उसने भारत पर तुरंत आक्रमण कर दिया। उसकी सेना में खरास्तन नामक देश के काबुल के सरदार शामिल थे। इन योद्धाओं की भुजाएँ लोहे जैसी शक्तिशाली और मजबूत थी। वे युद्ध में जुझारू योद्धा थे।

उन्हें देखकर ऐसा लगता था जैसे वे इस पृथ्वी का भार उठाने में भी सक्षम है। उनके पैरों की धमक सुनकर शेषनाग भी भाग गया। धरती डगमगाने लगी। सेना के चलने से उड़ती हुई धूल से सूर्य भी ढक गया और दिन में ही रात जैसा अंधकार छा गया।

वह विशाल सेना उमड़ती हुई राजा पृथ्वीराज का रास्ता रोककर खड़ी हो गई। शहाबुद्दीन को रास्ता रोककर खड़ा देखकर कवि चंदबरदाई ने उस वक्त पृथ्वीराज से यह वचन कहे।

विशेष :

  • कथानक रूढ़ियों का प्रयोग हुआ है ।
  • अतिश्योक्ति अलंकार प्रयुक्त हुआ है।

इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने Padmavati Samay Ke Pad 31-40 | पद्मावती समय के 31 से 40 तक के पदों की विस्तृत व्याख्या की है। उम्मीद है कि आपको अब तक बताये कुल 40 पदों के बारे में अच्छे से समझ आ गया होगा। ये सभी पद परीक्षा की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। आप इन्हें जरूर तैयार कर लेवे।


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