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Meera Muktavali-Narottam Das मीरा मुक्तावली की व्याख्या (41-45)
Meera Muktavali-Narottam Das Pad in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! आज हम नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली” के अगले 41-45 पदों की व्याख्या करने जा रहे है। तो चलिए इन्हें समझ लेते है :
नरोत्तमदास स्वामी द्वारा सम्पादित “मीरा मुक्तावली“ के पदों का विस्तृत अध्ययन करने के लिये आप
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Meera Muktavali Vyakhya मीरा मुक्तावली की शब्दार्थ सहित व्याख्या (41-45)
Narottamdas Swami Sampadit Meera Muktavali Ke 41-45 Pad in Hindi : दोस्तों ! “मीरा मुक्तावली” के 41 से लेकर 45 तक के पदों की शब्दार्थ सहित व्याख्या निम्नानुसार है :
पद : 41.
Meera Muktavali Ki 41-45 Pad Vyakhya in Hindi
परम सनेही राम की नित ओळूं आवै।
राम हमारे, हम हैं राम के, हरि बिन कछु न सुहावै।।
आवण कह गये, अजहुँ न आये, जिवड़ो अति उकळावै।
तुम दरसण की आस रमइया ! कब हरि दरस दिखावै ?
चरण-कँवळ की लगन लगी नित, बिन दरसण दुख पावै।
मीराँ को प्रभु दरसण दीज्यौ, आँणद वरण्यो न जावै।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | ओळूं | याद |
2. | अजहुँ | आज भी |
3. | जिवड़ो | जी |
4. | अति | ज्यादा |
5. | उकळावै | व्याकुल |
6. | नित | हमेशा |
7. | लगन | प्रीति |
8. | दीज्यौ | देना |
9. | वरण्यो | वर्णन |
व्याख्या :
मीरा कहती है कि मेरे परम प्रिय श्रीकृष्ण जी की मुझे प्रतिदिन याद आती रहती है। प्रियतम श्रीकृष्ण जी आप तो हमारे है और हम आपके है। मुझे आपके दर्शन के बिना कुछ भी नहीं सुहाता है। आपने वादा किया था कि आप मुझे मिलने आयेंगे और दर्शन देंगे, लेकिन आप तो आज भी नहीं आये।
इससे मेरा जी अत्यंत व्याकुल है, आपके दर्शन की आशा में। हे मेरे रमइया श्रीकृष्ण ! कब मुझे दर्शन दोगे ? आपके कमल रूपी चरणों की लगन लगी है और आपके दर्शन के बिना मेरा जी बहुत दुखी रहता है। मीरा के प्रभु मुझे दर्शन दीजिए। आपके दर्शनों से मुझे जो आनंद प्राप्त होगा, उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।
पद : 42.
Meera Muktavali – Narottamdas Swami in Hindi
रमइया विन रह्योइ न जाइ
खान-पान मोहि फीको-सो लागै, नैणा रहे मुरझाइ।
बार-बार मैं अरज करत हूँ, रैण गयी, दिन जाइ।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | मोहि | मुझे |
2. | फीको | बेस्वाद |
3. | अरज | प्रार्थना |
4. | रैण | रात |
व्याख्या :
मीराबाई कहती है कि है मेरे रमइया श्री कृष्ण ! आपके बिना मुझसे रहा नहीं जा रहा है। यह खाना-पीना सब मुझे बेस्वाद लगता है और मेरे नेत्र मुरझा रहे हैं। मैं आपसे बार-बार प्रार्थना करती हूँ और यह प्रार्थना करते-करते पूरी रात तो चली गई है। अब दिन भी चला जाता है।
पद : 43.
Meera Muktavali-Narottam Das – Vyakhya Shabdarth Sahit in Hindi
रमैया बिन नींद न आवै,
नींद न आवै, बिरह सतावै, प्रेम की आँच डुलावै।
बिन पिया-जोत मन्दिर अँधियारो, दीपक दाय न आवै।।
पिया बिन मेरी सेज अलूणी, जागत रैण बिहावै।
पिया कब रै घर आवै।।दादुर मोर पपीहा बोलै, कोयल शब्द सुणावै,
घुमट घटा ऊलर होइ आयी, दामिणी दमक डरावै।
नैण मोरे झर लावै।।कहा करुँ कित जाऊँ मोरी सजनी ! बेदन कूण बुतावै,
विरह-नागण मोरी काया डसी है, लहर-लहर जिव जावै।
जडी घस लावै।।को है सखी सहेली सजनी, पिया कूँ आण मिलावै,
मीराँ कूँ प्रभु कब र मिलोगे, मन-मोहन मोहि भावै।
कबै हँस कर बतळावै।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | सतावै | तपाता है |
2. | दाय न आवै | बैचैन किये रहता है |
3. | अलूणी | बेस्वाद |
4. | बिहावै | व्यतीत करना |
5. | दामिणी | बिजली |
6. | कित | कहाँ |
7. | घस | घिसना |
8. | आण | लाकर |
9. | बतलावे | बात करोगे |
10. | भावै | भाते हो |
व्याख्या :
मीरा कहती है कि हे मेरे रमइया ! आपके बिना मुझे नींद नहीं आती है। आपके बिना मुझे विरह तपाता है और प्रेम की ज्वाला मुझे बेचैन किये रहती है। बिना प्रिय के मेरे घर में अँधियारा है, ज्योति नहीं है और दीपक मुझे अच्छा नहीं लगता है। प्रियतम के प्रकाश की ज्योति ही मुझे अच्छी लगती है। प्रियतम के बिना मेरी शैय्या भी मुझे बेस्वाद लगती है, अच्छी नहीं लगती है और पूरी रात जागते हुये ही व्यतीत करती हूँ। हे मेरे प्रियतम ! आप कब मेरे घर आओगे ?
मेंढक टर-टर कर रहे हैं। मोर बोल रहे हैं और पपीहा भी बोल रहा है। कोयल भी अपने मीठे शब्द सुना रही है। घटाएँ घुमड़-घुमड़ कर के और अधिक झुक गई हैं। बिजली चमक रही है और विरहिणी को डरा रही है, जिससे नैनों से वर्षा हो रही है।
मीराबाई कहती है कि कहाँ जाऊँ और मैं क्या करूँ ? हे सखी ! मुझे बताओ। मैं अपनी वेदना को किसको बताऊँ। विरह रुपी नागिन मेरी काया को डस रही है और मेरे प्राण काँप-काँप करके जा रहे हैं। कोई ऐसी औषधि घिसकर के ले आओ। ऐसी कौन मेरी सखी है, जो मेरे प्रिय को लाकर मुझसे मिला दे। हे मेरे मन को मोहित करने वाले ! आप मुझे कब मिलोगे ? मुझे तो आप ही सुहाते हो। आप कब दर्शन दोगे ? कब मुझसे हँस-हँस कर बात करोगे ? कब मैं आपके बतरस का आनंद लूँगी ?
पद : 44.
Meera Muktavali-Narottam Das with Hard Meanings in Hindi
सखी ! मेरी नींद नसानी।
पिय के पंथ निहारत, सिगरी रैण विहानी।।
सब सखियन मिलि सीख दयी, मन अेक न मानी।
बिन देख्या कल नाहिं परत, जिया अैसी ठानी।।
अंग-अंग व्याकुल भयी, मुख पिय-पिय वानी।
अंतर् वेदन विरह की, वह पीड़ न जानी।।
ज्यूँ चातक घन कूँ रटै, मछरी जिमि पानी।
मीरां व्याकुल विरहणी, सुध-बुध बिसरानी।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | नसानी | नष्ट हो गई |
2. | सिगरी | पूरी |
3. | विहानी | व्यतीत |
4. | वानी | वाणी |
5. | पीड़ | पीड़ा |
6. | घन | बादल |
7. | बिसरानी | भूल गई |
व्याख्या :
मीराबाई कहती है कि हे सखी ! बेशक मेरी नींद नष्ट हो गई है। प्रिय का रास्ता देखते-देखते पूरी रात व्यतीत हो गई है। सभी सखियों ने मिलकर मुझे सीख भी दी थी, पर मेरे मन ने एक भी नहीं मानी। मेरे मन ने तो ऐसा ठान लिया है कि प्रिय को देखे बिना शांति धारण नहीं करना है।
मेरे अंग-अंग बड़े व्याकुल है, मेरे मुख पर केवल पिय-पिय का ही उच्चारण रहता है। मेरे हृदय की वेदना बड़ी गहरी है। उस पीड़ा को कोई और जान ही नहीं सकता है। जैसे कोई चातक बादल को रटता है और जैसे मछली पानी से प्रेम करती है। मीरा भी अपने विरह में इसी प्रकार से व्याकुल है और तन की सुध-बुध को भूल गई है।
पद : 45.
Meera Muktavali-Narottam Das Ke Pad 41-45 Ki Vyakhya in Hindi
दरस बिन दूखण लागे नैण,
जब तें तुम बिछुरे प्रभु मोरे ! कबहुँ न पायो चैन।
विरह-कथा का सूं कहूँ सजनी ! वह गयी करवत अैन।।
कल न परत पल हरि मग जावेत, भयी छ-मासी रैण।
मीरां के प्रभु ! कब रे मिलोगे दुख-मेटण सुख-दैण।।
शब्दार्थ :
क्र.सं. | शब्द | अर्थ |
---|---|---|
1. | दूखण | दुखी |
2. | नैण | नेत्र |
3. | वह | बह |
4. | जावेत | देखना |
5. | कल | शांति |
6. | भयी | हो गई |
7. | छ-मासी | 6 महीने के बराबर लम्बी |
8. | दैण | देने वाले |
व्याख्या :
मीराबाई कह रही है कि हे मेरे प्रभु ! आपके दर्शन के बिना मेरे नेत्र अब दुखने लग गये हैं। जबसे हे मेरे प्रभु ! आप मुझसे बिछुडे हो, कभी इनको चैन नहीं मिला है। अपने विरह की कथा मैं किससे कहूँ ? हे मेरी सखी ! मेरे लिये अब यही ठीक रहेगा कि मैं बह जाऊँ या काशी में कट-कटकर बह जाऊँ।
मुझे क्षणभर भी शांति नहीं मिलती है और मेरे प्रभु का रास्ता देखती हूँ। एक रात्रि भी छः महीने के बराबर लंबी हो गई है। मीरा के प्रभु आप कब मिलोगे, क्योंकि आपसे मिलकर के ही मेरा दु:ख मिटेगा। आप मुझे कब दर्शन दोगे ?
इसप्रकार दोस्तों ! आज हमने “मीरा मुक्तावली” के 41-45 पदों की व्याख्या को समझा। अब तक हमने कुल 45 पदों को विस्तारपूर्वक समझ लिया है। आप इन्हें अच्छे से तैयार अवश्य कर लेवे। धन्यवाद !
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एक गुजारिश :
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