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भ्रमरगीत सार अर्थ Bhramar Geet Saar Pad Arth by Shukla


भ्रमरगीत सार अर्थ Bhramar Geet Saar Pad Arth by Shukla in Hindi : नमस्कार दोस्तों ! जैसा कि हम पिछले कुछ दिनों से रामचंद्र शुक्ल द्वारा संपादित “भ्रमरगीत सार” का अध्ययन कर रहे है। इसी क्रम में हम आज इसके पद संख्या #39-41 की विस्तृत व्याख्या करने जा रहे है। तो आइए समझ लेते है :

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भ्रमरगीत सार अर्थ Bhramar Geet Saar Pad Arth by Shukla [#39-41]


Bhramar Geet Saar Pad Arth Vyakhya by Shukla in Hindi : दोस्तों ! “भ्रमरगीत सार” के 39-41 तक के पदों की व्याख्या निम्नवत है :

#पद : 39.

भ्रमरगीत सार अर्थ Bhramar Geet Saar Pad Arth by Shukla Raag Saarang Vyakhya in Hindi

राग सारंग
अपने स्वारथ को सब कोऊ
चुप करि रहौ, मधुप रस लंपट! तुम देखे अरु वोऊ।।
औरौ कछू सँदेस कहन को कहि पठयो किन सोऊ

लीन्हे फिरत जोग जुबतिन को बड़े सयाने दोऊ।।
तब कत मोहन रास खिलाई जो पै ज्ञान हुतोऊ ?
अब हमरे जिय बैठो यह पद ‘होनी होउ सो होऊ’।।
मिटि गयो मान परेखो ऊधो हिरदय हतो सो होऊ।
सूरदास प्रभु गोकुलनायक चित-चिंता अब खोऊ।।

शब्दार्थ :

क्रम संख्या शब्द अर्थ
01. स्वारथ स्वार्थ
02. कोऊ कोई
03. मधुप भौंरा
04. लंपट लालची
05. अरु और
06. वोऊ वह भी
07. किन क्यों नहीं
08.सोऊवहां भी
09. जुबतिन युवतियाँ
10. सयाने चतुर
11. जिय प्राण
12. परेखो पश्चाताप, दुःख

व्याख्या :

दोस्तों ! उद्धव को गोपियाँ खरी-खोटी सुना रही है और कह रही है कि हे उद्धव ! इस संसार में सभी लोग अपने ही स्वार्थ को देखते हैं। दूसरों की कोई चिंता नहीं करते हैं। रस के लोभी, रस के लालची, मधुप तुम चुप हो जाओ। हमने तुम्हें भी देख लिया है और श्रीकृष्ण को भी देख लिया है। तुम दोनों एक ही तरह के स्वार्थी हो। यदि कोई और संदेश उन्होंने देकर भेजा है तुम्हे, तो कह क्यों नहीं देते हो ? तुम दोनों बड़े चतुर मालूम होते हो। युवतियों के लिए योग लिये फिरते हो। ऐसे चतुर तुम दोनों हो।

कहने का तात्पर्य है कि तुम भी हमें योग का संदेश दे रहे हो और उन्होंने भी तुम्हें यही योग का संदेश देने के लिये हमारे पास भेजा है। यदि सचमुच ही श्री कृष्ण ज्ञान को इतना महत्व देते थे, तब हमारे साथ रास क्यों रचाया ?

भ्रमरगीत सार अर्थ Bhramar Geet Saar Pad Arth by Shukla

हे उद्धव ! अब तो हमने मन में यह निश्चय कर लिया है कि जो होगा, वह देखा जायेगा। किंतु हम उनके प्रेम को, श्री कृष्ण के प्रेम को नहीं छोड़ेगी। हे उद्धव ! श्री कृष्ण की उपेक्षा और मौन के प्रति हमारे ह्रदय में अब तक मान और पश्चाताप की भावनायें थी। वे अब जाती रही है। अर्थात् अब हमें श्री कृष्ण के द्वारा अपने प्रेम की उपेक्षा किये जाने के कारण कोई शिकायत नहीं है।

हमारे श्री कृष्ण तो गोकुल के स्वामी हैं, इसलिए हमारी सारी चिंताएं वे स्वयं ही दूर कर देंगे और इसलिए अब तुम भी अपनी इस चिंता को दूर कर दो कि तुम हमें योग सिखाने में असफल रहे हो। दोस्तों ! यहाँ सूरदास जी ने श्री कृष्ण की स्वार्थपरता और गोपियों के अनन्य प्रेम का एक साथ चित्रण किया है।


#पद : 40.

भ्रमरगीत सार अर्थ Bhramar Geet Saar Pad Arth by Shukla with Hard Meaning in Hindi

तुम जो कहत सँदेसो आनि
कहा करौं वा नँदनंदन सों होत नहीं हितहानि।।
जोग-जुगुति किहि काज हमारे जदपि महा सुखखानि ?
सने सनेह स्यामसुन्दर के हिलि मिलि कै मन मानि ।।
सोहत लोह परसि पारस ज्यों सुबरन बारह बानि
पुनि वह चोप कहाँ चुम्बक ज्यों लटपटाय लपटानि।।
रूपरहित नीरासा निरगुन निगमहु परत न जानि।
सूरदास कौन बिधि तासों अब कीजै पहिचानि ?

शब्दार्थ :

क्रम संख्या शब्द अर्थ
01. सँदेसो समाचार
02. आनि अन्य
03. हितहानि प्रेम की हानि
04. किहि किस
05.जदपि फिर भी
06. सने भीगे हुये
07. सोहत शोभा
08.रसि स्पर्श
09. सुबरन सोना
10.पारसएक पत्थर जिसके स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है
11. बारह बानि बारह कलाओं के साथ चमकने वाले सूर्य के समान उज्जवल
12. पुनि फिर
13. चोप चाह
14. नीरासा निराशा
15. तासों उसे

व्याख्या :

दोस्तों ! गोपियाँ चाहती है कि उद्धव उनके साथ केवल श्री कृष्ण की बात करें। उन्हीं के विषय में वार्तालाप करें। किंतु जब बीच-बीच में निर्गुण ब्रह्म को ले आते हैं, जिस पर क्षुब्ध होकर गोपियाँ उद्धव से कह रही है कि हे उद्धव ! तुम हमें श्री कृष्ण के प्रेम से संबंधित संदेश न कहकर, कोई अन्य योग ज्ञान से संबंधित संदेश कह रहे हो। इसमें हमारी तनिक भी रुचि नहीं है।

संदेश को सुनना हमारे लिए उचित नहीं है, क्योंकि इससे श्री कृष्ण के प्रति हमारे प्रेम की हानि होती। किंतु हम उनसे प्रेम करना नहीं छोड़ सकती। यद्यपि योग साधना महान सुखों की खान है, जैसाकि तुम कहते हो, किंतु ये हमारे किस काम की है। योग साधना को अपनाने पर हमें श्री कृष्ण प्रेम को छोड़ना पड़ेगा जो कि हमारे लिए संभव नहीं है। इसलिए तुम्हारा यह योग हमारे लिए बेकार है।

भ्रमरगीत सार अर्थ Bhramar Geet Saar Pad Arth by Shukla

हमारा सारा सुख तो श्री कृष्ण प्रेम में ही निहित है। हमारा मन श्याम-सुंदर के साथ मिलकर उनके स्नेह पूर्ण रूप में डूब गया है। जिस प्रकार लोहा पारस के स्पर्श से बारह बानि खरा सोना बन जाता है और सोना बनने से वो उत्साह, आकर्षण उसमें शेष नहीं रह जाता, जो उसे चुम्बक के प्रति आकर्षित कर उससे चिपका देता है। उसी प्रकार योग साधना के कारण भले ही हमारा मन निर्मल, खरे सोने के समान क्यों ना हो जाये, परन्तु उसकी सर्वस्व प्रेम भावना नष्ट हो जायेगी।

तुम कहते हो कि तुम्हारा निर्गुण ब्रह्म निष्काम है, अगम्य है। आज तक वेदों ने भी उसका पार नहीं पाया तो फिर तुम्हारे इस ब्रह्म के साथ हम कैसे परिचय प्राप्त करे ? जब वेदों के लिए भी तुम्हारा ये निर्गुण और निष्काम ब्रह्म गम्य नहीं है तो हम अबला, मूढ़ नारियां उसका ज्ञान किसप्रकार प्राप्त कर सकती है ? और जब हमारा उससे परिचय ही नहीं हो पायेगा तो हम उससे प्रेम किस प्रकार कर पायेंगी ?

प्रस्तुत पद में निर्गुण पर सगुण का प्रभाव दिखलाया है।


#पद : 41.

भ्रमरगीत सार अर्थ Bhramar Geet Saar Pad Arth by Shukla Raag Dhanashri Shabdarth Sahit in Hindi

राग धनाश्री
हम तौ कान्ह केलि की भूखी।
कैसे निरगुन सुनहिं तिहारो बिरहिनि बिरह-बिदूखी ?
कहिए कहा यहौ नहिं जानत काहि जोग है जोग।
पा लागों तुमहीं सों, वा पुर बसत बावरे लोग।।
अंजन, अभरन, चीर, चारु बरु नेकु आप तन कीजै।
दंड, कमंडल, भस्म, अधारी जौ जुवतिन को दीजै।।
सूर देखि दृढ़ता गोपिन की ऊधो यह ब्रत पायो।
कहै ‘कृपानिधि हो कृपाल हो! प्रेमै पढ़न पठायो।।

शब्दार्थ :

क्रम संख्या शब्द अर्थ
01. केलि क्रीड़ाये
02. बिदूखी दुखी
03. काहि किस
04. जोग योग्य
05. वा उस
06. बावरे पगले
07. अभरन आभरण, आभूषण
08. चीर वस्त्र
09. चारु सुन्दर
10. जुवतिन युवतियाँ
11. प्रेमै प्रेम को ही

व्याख्या :

दोस्तों ! उद्धव के ज्ञानोपदेश को सुनकर गोपियाँ कहती है कि हे उद्धव ! हम तो श्री कृष्ण के साथ क्रीड़ाये करने की भूखी है। हम श्री कृष्ण के वियोग में दुखी विरहणी नारियाँ है। हम तुम्हारे निर्गुण ब्रह्म के उपदेशों को कैसे सुन सकती हैं ? गोपियाँ कहती है कि हे उद्धव ! तुम्हें इतना भी ज्ञान नहीं है कि तुम्हारी योग के योग्य कौन है ? तुम्हारे योग के पात्र कौन है ?

हे उद्धव ! हम तुम्हारे पाँव पड़ती है। हमसे इसप्रकार की बातें मत करो। तुम्हे देखकर तो ऐसा लगता है कि उस नगरी में अर्थात् मथुरा में केवल पागल लोग ही रहते है। यदि तुम्हें ऐसा लगता है कि हम युवतियों को दंड, कमंडल, भस्म आदि साधन के उपकरण धारण करने योग्य है। तो फिर एक काम करो। तुम अपने शरीर पर अंजन (काजल), आभूषण, सुन्दर वस्त्र आदि सब धारण करके देखो। क्या तुम्हे कोई शोभा देते है ? क्या यह उचित है ?

सूरदास जी कहते है कि इसप्रकार गोपियों के प्रेम दृढ़ता और अनन्यता को देखकर, उद्धव को ये विश्वास हो गया कि कृपालु श्री कृष्ण ने उन्हें यहाँ ब्रज में गोपियों को योग का उपदेश देने के लिए नहीं भेजा बल्कि उनसे प्रेम का पाठ ग्रहण करने के लिए भेजा है।

भ्रमरगीत सार अर्थ Bhramar Geet Saar Pad Arth by Shukla

दोस्तों ! गोपियाँ कहती है कि हे उद्धव ! तुम्हें इस बात का भी ज्ञान नहीं है कि हम जैसे श्री कृष्ण प्रेम के विरह में संतप्त अबलाओं के साथ किसप्रकार की बातें करनी चाहिए। तुम्हे तो यह चाहिए था कि तुम हमें सांत्वना देते।

श्री कृष्ण कब आयेंगे ? ये बताते। परन्तु तुम तो हमें शिक्षा देने लग गये। तुम विरहिणियों को निर्गुण ब्रह्म की साधना करने का उपदेश देते हो। यह अनुचित है। क्योंकि योग साधना तो योगियों के लिए ही उचित है। हम अबला नारियाँ तो श्री कृष्ण के प्रेम के लिए ही है। जिसप्रकार हमारे श्रृंगार प्रसाधन तुम्हारे लिये अनुपयुक्त है, उसीप्रकार योग से सम्बन्ध सभी उपकरण हमारे लिये अनुपयोगी है।

और अंत में गोपियों के इसप्रकार श्री कृष्ण के प्रति अटूट प्रेम और अनन्यता को देखकर उद्धव को इस बात का विश्वास हो जाता है कि श्री कृष्ण ने उन्हें कोई उपदेश देने के लिए नहीं बल्कि प्रेम का पाठ पढ़ने के लिए ब्रज में भेजा है।

दोस्तों ! आज हमने Bhramar Geet Saar Pad Arth by Shukla भ्रमरगीत सार के 39-41 पदों की विस्तृत व्याख्या की। इसी क्रम में अगले कुछ पदों की व्याख्या आने वाले लेख में की जायेगी।

ये भी अच्छे से समझे :


एक गुजारिश :

दोस्तों ! आशा करते है कि आपको भ्रमरगीत सार अर्थ Bhramar Geet Saar Pad Arth by Shukla के बारे में हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी I यदि आपके मन में कोई भी सवाल या सुझाव हो तो नीचे कमेंट करके अवश्य बतायें I हम आपकी सहायता करने की पूरी कोशिश करेंगे I

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