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Ramdhari Singh Dinkar | उत्तर छायावादी कवि रामधारी सिंह दिनकर
नमस्कार दोस्तों ! पिछले कुछ अध्यायों से हम उत्तर छायावाद के बारे में पढ़ रहे है। हमने पिछले अध्याय में प्रमुख उत्तर छायावादी कवियों का विस्तृत उल्लेख किया था। जिनमें Ramdhari Singh Dinkar | रामधारी सिंह दिनकर का भी प्रमुख उत्तर छायावादी कवियों में नाम आता है।
पिछले नोट्स में हमने इन पर अलग से नोट्स लेकर आने का वादा किया था। तो आज हम आपको इन्हीं के बारे में विस्तार से बताने जा रहे है। साथ ही आपको कुछ अन्य उत्तर छायावादी कवियों की भी जानकारी देने जा रहे है। तो चलिए शुरू करते है :
छायावादोत्तर कवियों में पहली पीढ़ी के कवि Ramdhari Singh Dinkar | रामधारी सिंह दिनकर है । इनका जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के सिमरिया गांव में हुआ। दिनकर हिंदी के प्रमुख लेखक एवं कवि थे । ये आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में प्रसिद्ध है।
दिनकर जी स्वतंत्रता से पहले तो एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए परंतु स्वतंत्रता के पश्चात दिनकर राष्ट्र कवि के रूप में विख्यात हो गए। उनकी रचनाओं में कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति हुई है। वहीं दूसरी ओर उनकी कविताओं में ओज, विद्रोह और आक्रोश की पुकार भी है।
इन्हीं दोनों विशेषताओं का उत्कर्ष हमें उनकी रचनाओं “उर्वशी” और “कुरुक्षेत्र” में देखने को मिलता है। इन्हें पद्म विभूषण की उपाधि भी दी गई। इनकी पुस्तक “संस्कृति के चार अध्याय” के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार और “उर्वशी” के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया गया।
Ramdhari Singh Dinkar | रामधारी सिंह दिनकर की उपाधियाँ :
- जन-जागरण के वैतालिक
- अनल कवि
- आग और राग के कवि
- डिप्टी राष्ट्रकवि।
दोस्तों यहां ध्यान दें :
युग के वैतालिक | भारतेंदु हरिश्चंद्र |
आधुनिक युग के वैतालिक | मैथिलीशरण गुप्त |
जन-जागरण के वैतालिक | रामधारी सिंह दिनकर |
Ramdhari Singh Dinkar | रामधारी सिंह दिनकर की प्रमुख रचनाएँ :
01. | प्रणभंग | 1929 |
02. | रेणुका | 1935 |
03. | हुंकार | 1938 |
04. | द्वन्द्वगीत | 1940 |
05. | रसवंती | 1940 |
06. | यशोधरा – प्रबंध काव्य | 1946 |
07. | कुरुक्षेत्र – खंडकाव्य | 1946 |
08. | सामधेनी – काव्य संग्रह | 1947 |
09. | इतिहास के आंसू | 1951 |
10. | मिर्च का मज़ा | 1951 |
11. | धूप और धुआँ | 1951 |
12. | रश्मिरथी | 1952 |
13. | दिल्ली | 1954 |
14. | नीम के पत्ते | 1954 |
15. | नील कुसुम | 1955 |
16. | उर्वशी – खंडकाव्य | 1961 |
17. | परशुराम की प्रतीक्षा – प्रबंध काव्य | 1963 |
18. | आत्मा की आँखें | 1964 |
19. | दिनकर की सूक्तियाँ | 1964 |
20. | हारे को हरिनाम | 1970 |
21. | दिनकर के गीत | 1973 |
- “हुंकार” दिनकर की पहली ओजस्वी रचना है। इसी रचना के आधार पर दिनकर जन-जागरण के वैतालिक बन गए।
- “लौटा दो अर्जुन भीम” चर्चित कविता हुंकार में ही शामिल है।
“कह दे शंकर से वे आज करें,
प्रलय नृत्य फिर एक बार।”
— हुंकार
- “द्वंदगीत” और “रसवंती” रचनाओं पर छायावादी प्रभाव देखने को मिलता है।
- “द्वंदगीत” में जीवन-जगत संबंधी रहस्य को उजागर किया गया है। तथा “रसवंती” में श्रृंगारिक छंद मिलते हैं।
- “सामधेनी” में “कलिंग विजय” और “मेरे स्वदेश” कविताएं शामिल है।
- “रश्मिरथी” में रश्मिरथी कर्ण को बताया गया है।
- “परशुराम की प्रतीक्षा” रचना पर भारत-चीन युद्ध का संबंध देखा जा सकता है।
- दिनकर ने टी. एच. लॉरेंस की कविताओं का अनुवाद “आत्मा की आंखें” नाम से किया।
- आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने दिनकर की पहली प्रबंध रचना “प्रणभंग” को माना है।
Ramdhari Singh Dinkar | रामधारी सिंह दिनकर की प्रमुख रचनाओं की जानकारी :
कुछ प्रमुख रचनाओं की विस्तृत जानकारी इस प्रकार है :
उर्वशी | Urvashi :
यह 1961 में रचित एक खंडकाव्य है। यह गीतीनाटक है। जो 5 भागों में विभाजित है। इस काव्य में दिनकर जी ने उर्वशी और पुरूरवा की प्राचीन कहानी को एक नए रूप में चित्रित किया है। उर्वशी को कामाध्यात्म की रचना कहा जाता है।
इस कृति में पुरुरवा एक धरती पुत्र है और उर्वशी एक स्वर्ग की अप्सरा है। इन दोनों की अलग – अलग तरह की प्यास को दिखाया है। पुरुरवा के अंदर देवत्व की तृष्णा है जबकि उर्वशी सहज भाव से पृथ्वी का सुख-आनन्द पाना चाहती है।
उर्वशी प्रेम और सौंदर्य का काव्य है। दिनकर जी की यह एक महत्वपूर्ण कृति है। इसमें इन्होंने प्रेम की छवियों को मनोवैज्ञानिक धरातल पर पहचाना है।
” न हो यह वासना तो जिंदगी की माप कैसे हो ?
किसी के रूप का सम्मान मुझ पर पाप कैसे हो ?”
— उर्वशी
यद्यपि दिनकर को प्रसिद्धि कुरुक्षेत्र रचना से मिली तथापि दिनकर अपनी पहचान उर्वशीकार के रूप में ही अधिक मानते है।
कुरुक्षेत्र | Kurukshetra :
दिनकर जी द्वारा 1946 ईस्वी में रचित कुरुक्षेत्र विश्व के 100 महान ग्रंथों में 74 वें स्थान पर माना जाता है। कुरुक्षेत्र की मूल संवेदना या उद्देश्य युद्ध और शांति की समस्या पर विचार करना है। इस रचना पर प्रगतिवादी एवं समाजवादी दर्शन का प्रभाव देखा जा सकता है।
कुरुक्षेत्र का कथानक महाभारत का शांति पर्व एवं अनुशासन पर्व है। रचनाकार का उद्देश्य महाभारत की कथा दोहराना नहीं है बल्कि आधुनिक भाव बोध की सशक्त अभिव्यक्ति करना है।
दिनकर जी का कुरुक्षेत्र एक वैचारिक खंडकाव्य है और यह शंकाकुल हृदय की उपज है। स्वयं कुरुक्षेत्रकार के शब्दों में, —
“कुरुक्षेत्र लिखना कभी भी संभव नहीं हो पाता यदि
शंकाकुल हृदय पर चढ़कर मस्तिष्क बोल नहीं रहा होता तो।”
कुरुक्षेत्र में 7 सर्ग है और इसका छठा सर्ग प्रसिद्ध है। छठे सर्ग में कवि ने बुद्धि के अतिरेक, विज्ञान के भयानक विनाशकारी परिणाम पर गहरी चिंता व्यक्त की है। भदंत आनंद कोसल्यायन ने कुरुक्षेत्र को आधुनिक युग की गीता कहा है।
चर्चित पंक्तियां :
“हाय रे मानव नियति के दास।”
“सावधान मनुष्य ! यदि विज्ञान है तलवार तो इसे दे फेंक,
तजकर मोह विस्मृति के पार।”
— कुरुक्षेत्र
कुरुक्षेत्र के छठे सर्ग में भीष्म और युधिष्ठिर का वार्तालाप नहीं मिलता बल्कि स्वयं कवि ने सीधे-सीधे पाठकों को संबोधित किया है। कुरुक्षेत्र पर गांधीवादी प्रभाव नहीं बल्कि क्रांतिकारी राष्ट्रवाद का प्रभाव मिलता है।
परशुराम की प्रतीक्षा | Parshuram Ki Pratiksha :
यह रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित एक खंडकाव्य है। इसका रचनाकाल 1963 है। यह रचना भारत-चीन युद्ध के बाद लिखी गई है। इसलिए इस रचना पर भारत-चीन युद्ध का प्रभाव देखा जा सकता है।
दिनकर जी यह संदेश देना चाहते हैं कि हमें अपने नैतिक मूल्यों की रक्षा करते हुए अपने राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा के लिए सदैव प्रयत्नशील रहना चाहिए।
Other Uttar Chhayavadi Kavi | अन्य उत्तर छायावादी कवि
रामकुमार वर्मा | Ramkumar Verma
ये पाँचवें छायावादी कवि माने जाते हैं। इनका जन्म 1905 में हुआ। इनकी प्रमुख रचनाएँ इसप्रकार से है :
- अंजलि
- चंद्रकिरण
- रूप राशि
- आकाशगंगा
- चित्रलेखा
- निशीथ
- एकलव्य – प्रबंध काव्य
ठाकुर प्रसाद सिंह | Thakur Prasad Singh
इनकी प्रमुख रचनाएँ इसप्रकार से है :
- महामानव
यह एक प्रबंध काव्य है, जो गांधीजी के जीवन पर रचित है।
जानकी वल्लभ शास्त्री | Janki Ballabh Shastri
ये छोटे निराला के नाम से जाने जाते हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ इसप्रकार से है :
- रूप-अरूप
- अवन्तिका
- शिप्रा
- मेघगीत
गुरु भक्त सिंह ‘भक्त’ | Guru Bhakt Singh ‘Bhakt’
इनकी प्रमुख रचनाएँ इसप्रकार से है :
- विक्रमादित्य – प्रबंध काव्य
- नूरजहां – प्रबंध काव्य
उदय शंकर भट्ट | Uday Shankar Bhatt
इनकी प्रमुख रचनाएँ इसप्रकार से है :
- विसर्जन
- मानसी
- एकला चलो रे
- विजयपथ
- अमृत और विष – काव्य संग्रह
- युगदीप – काव्य संग्रह
- यथार्थ और कल्पना
- अमृत और विष अमृत लाल नागर का उपन्यास भी है।
दोस्तों ! हमने आज आपको Ramdhari Singh Dinkar | उत्तर छायावादी कवि रामधारी सिंह दिनकर एवं अन्य शेष उत्तर छायावादी कवियों के बारे में बता दिया है। अब आपके पास उत्तर छायावाद के प्रमुख कवियों और उनकी रचनाओं की अच्छी-खासी जानकारी हो गयी है। उम्मीद करते है कि आपको उत्तर छायावादी कवि और उनकी प्रमुख रचनाओं के बारे जानकारी अवश्य पसंद आयी होगी।
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एक गुजारिश :
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