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Kamayani Ki Vyakhya | कामायनी का चिंता सर्ग भाग – 9
दोस्तों ! आप सभी को प्यार भरा नमस्कार ! जैसा कि हम जयशंकर प्रसाद रचित कामायनी के चिंता सर्ग का अध्ययन कर रहे है। आज हम Kamayani Ki Vyakhya | कामायनी के चिंता सर्ग के 54-60 पदों को विस्तार से समझने की कोशिश करते है :
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Kamayani Ki Vyakhya | कामायनी के चिंता सर्ग का अर्थ एवं व्याख्या
Jaishankar Prasad Krit Kamayani Ki Vyakhya in Hindi : कामायनी महाकाव्य के प्रथम चिंता सर्ग के 54-60 पदों का अर्थ एवं व्याख्या निम्नप्रकार से है :
पद : 54.
Jai Shankar Prasad Rachit Kamayani Ki Vyakhya in hindi
उधर गरजतीं सिंधु लहरियाँ, कुटिल काल के जालों सी।
चली आ रहीं फेन उगलती, फन फैलाये व्यालों-सी।
अर्थ :
मनु कहते हैं कि उधर क्रूर मृत्यु के जालों के समान दिखाई देने वाली सागर की भीषण लहरें गरजती हुई इस प्रकार आगे बढ़ती थी, मानो अपने-अपने फन फैलाए अनेक जहरीले सांप बढे चले आ रहे हो।
यहां लहरों की उपमा सर्प से देते हुए यह कल्पना की गई है कि लहरों से उठने वाला फेन ऐसा प्रतीत होता था, मानो वह सर्पों के मुख से निकला हुआ जहर हो। दोस्तों ! इन पंक्तियों में उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार है।
पद : 55.
Kamayani Mahakavya Ke Chinta Sarg Ki Vyakhya in Hindi
धँसती धरा, धधकती ज्वाला, ज्वाला-मुखियों के निस्वास।
और संकुचित क्रमश: उसके, अवयव का होता था ह्रास।
अर्थ :
जल प्रलय की भयानकता का वर्णन करते हुए मनु कह रहे हैं कि धीरे-धीरे धरती नीचे की ओर धंसने लगी और उसके अंदर की आग ऊपर प्रकट हुई जो कि ज्वालामुखी पर्वत की भीषण लपटों के समान लगती थी। इस प्रकार पृथ्वी का भू-भाग क्रमशः संकुचित होने लगा। इस प्रकार प्रस्तुत पंक्तियों में अन्यार्थलंकार और नाद सौंदर्य प्रशंसनीय है।
पद : 56.
Kamayani Ka Pahla Sarg Chinta Sarg in Hindi
सबल तरंगाघातों से उस, क्रुद्ध सिंद्धु के, विचलित-सी।
व्यस्त महाकच्छप-सी धरणी, ऊभ-चूम थी विकलित-सी।
अर्थ :
प्रलय काल का वर्णन करते हुए मनु कहते हैं कि कुछ समुंद्र की शक्तिशाली तरंगों के कारण पृथ्वी अत्यधिक विचलित और क्षुब्ध लगने लगी और ऐसा प्रतीत होने लगा कि मानो दीर्घकाय कछुए के समान धरती लहरों के चपेटों से ऊपर की ओर सरक आई हो। कहने का तात्पर्य है कि पृथ्वी का अधिकांश भाग जलमग्न हो गया और थोड़ा सा भाग ही लहरों के थपेड़े खाता हुआ डूबने से बचा हुआ था। प्रस्तुत पंक्तियों में उपमा अलंकार की योजना की गई है।
पद : 57.
Kamayani Ke 54 to 60 Pado Ki Vyakhya Arth in Hindi
बढ़ने लगा विलास-वेग सा, वह अतिभैरव जल-संघात।
तरल-तिमिर से प्रलय-पवन का, होता आलिंगन प्रतिघात।
अर्थ :
मनु कहते हैं कि जिस तरह देवताओं की वासना अत्यंत तीव्र गति से बढ़ती चली गई थी। उसी प्रकार जल प्रलय भी अत्यंत वेग से बढ़ने लगा और चारों ओर भयंकर जल राशि एकत्र होने लगी। साथ ही चारों ओर अंधकार की सघन परतों पर भयंकर पवन आकर बार-बार टकराता था और ऐसा लगता था कि उन दोनों में भीषण घात-प्रतिघात चल रहा है। इन पंक्तियों में उपमा और समासोक्ति अलंकार की योजना हुई है।
पद : 58.
Kamayani Ke Chinta Sarg Ke 54 to 60 Pado Ka Arth Bhaav in Hindi
वेला क्षण-क्षण निकट आ रही, क्षितिज क्षीण, फिर लीन हुआ।
उदधि डुबाकर अखिल धरा को, बस मर्यादा-हीन हुआ।
अर्थ :
मनु कहते हैं कि धीरे-धीरे सागर का किनारा क्षण-प्रतिक्षण समीप जाने लगा अर्थात् अभी तक जितनी पृथ्वी डूबने से बची थी, वह भी डूबने लगी। साथ ही सुदूर क्षितिज के पास की पृथ्वी भी जलमग्न हो जाने के कारण जल और आकाश मिले हुये दिखाई देने लगे।
दोस्तों ! समुद्र की यह मर्यादा परम्परागत है कि वह अपने तट को नहीं डूबाता। परंतु प्रलयकालीन सागर के विषय में यह बात नहीं है, क्योंकि उस समय समुद्र अपनी मर्यादा का भी परित्याग कर देता है। अतः इन पंक्तियों में भी यही कहा गया है। प्रलयकालीन समुंद्र ने अपनी मर्यादा का त्याग कर पृथ्वी को डुबो दिया और वह सीमाहीन हो गया।
पद : 59.
Kamayani Ki Vyakhya Arth Mool Bhaav in Hindi
करका क्रंदन करती गिरती, और कुचलना था सब का।
पंचभूत का यह तांडवमय, नृत्य हो रहा था कब का।
अर्थ :
प्रलयकालीन भयानकता वर्णन करते हुए मनु कहते हैं कि चारों ओर से भयंकर आवाजे करते हुए ओले बरसने लगे और उनके नीचे सब कुछ दबने लगा। पंचभूतों का यह तांडव नृत्य अर्थात् विनाशकारी कार्य ना जाने कब तक चलता रहा। दोस्तों ! भगवान शंकर संसार का संहार करते समय तांडव नृत्य करते हैं। इसी आधार पर कवि ने तांडव नृत्य को विनाशकारी कार्य माना है।
पद : 60.
Kamayani Ki Vyakhya-JaiShankar Prasad in Hindi
एक नाव थी, और न उसमें, डाँडे लगते, या पतवार।
तरल तरंगों में उठ-गिरकर, बहती पगली बारंबार।
अर्थ :
भीषण जल प्रलय में समस्त देवजाति का विनाश हो गया था। इस प्रलय में देवताओं के एकमात्र वंशज केवल मनु ही जीवित बचे थे। मनु अपने जीवित बचे रहने की कथा सुनाते हुये कहते है कि इस जल प्लावन में समस्त प्रकार के ऐश्वर्य समाप्त हो गए थे लेकिन ऐसे में मनु को एक ऐसी नाव मिली, जिसमे ना कोई डाँड़ (नाव खेने का बांस) और ना ही कोई पतवार को लगाया जा सकता था।
मनु इसी नौका पर सवार हो गए। ये नौका चंचल लहरों से होती हुयी आगे बढ़ने लगी। ये नौका पगली की भांति इधर-उधर भाग रही थी। कभी ये नौका ऊपर उठती तो कभी नीचे गिरती लेकिन लगातार चलती जा रही थी। दोस्तों ! प्रस्तुत पंक्तियों में मानवीकरण अलंकार की योजना हुयी है।
दोस्तों ! आज हमने Kamayani Ki Vyakhya | कामायनी के चिंता सर्ग भाग – 9 में आगे के 54-60 पदों का विस्तार से अध्ययन किया। उम्मीद है कि आपको अच्छे से समझ में आये होंगे। तो फिर मिलेंगे आगे के कुछ पदों को लेकर। तब तक बने रहिये हमारे साथ !
ये भी अच्छे से समझे :
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